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मुख्तार अंसारी से दूरी बनाने की नौबत अखिलेश-राजभर की जोड़ी के सामने भाजपा ने पैदा की है!

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 16 फरवरी, 2022 09:07 PM
  • 16 फरवरी, 2022 09:07 PM
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यूपी चुनाव 2022 (UP Election 2022) से पहले समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने वाले सुभासपा नेता ओमप्रकाश राजभर लंबे समय से मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) से अपनी 'दोस्ती' के किस्से बताते हुए उसे टिकट देने की बात करते रहे. लेकिन, भाजपा के आक्रामक रुख ने समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव को अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर कर दिया है.

जेल में बंद बाहुबली मुख्तार अंसारी इस बार यूपी चुनाव 2022 का हिस्सा नही बनेगा. मऊ सदर की परंपरागत सीट से पांच बार विधायक रहे मुख्तार अंसारी ने ये फैसला क्यों लिया है? इसका जवाब उनके बेटे अब्बास अंसारी देते हैं कि 'देश में आज लोकतंत्र खतरे में है. साजिश रची जा रही थी, जिसकी वजह से मेरे पिता नामांकन नहीं दाखिल कर पाए. ऐसी स्थिति में मेरे पिता ने मुझे विरासत सौंपी है और मैं इसे आगे बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोडूंगा.'

दरअसल, केवल मुख्तार अंसारी के नाम से बचने की कोशिश में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने वाली सुभासपा ने अब्बास अंसारी को टिकट दिया है. क्योंकि, बाहुबली मुख्तार अंसारी के बड़े भाई और पूर्व विधायक सिगबतुल्लाह अंसारी अपने बेटे के साथ पिछले साल अगस्त में ही समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे. और, इन्हें सदस्यता दिलाने के खुद समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव कार्यक्रम में मौजूद थे. समाजवादी पार्टी का सुभासपा से गठबंधन है. और, ओमप्रकाश राजभर लंबे समय से मुख्तार अंसारी के साथ अपनी 'दोस्ती' की चर्चा करते रहे हैं. तो, तय माना जा रहा था कि मुख्तार अंसारी की यूपी चुनाव 2022 में सुभासपा के जरिये बैकडोर से एंट्री होगी. लेकिन, सपा गठबंधन के अब्बास अंसारी को टिकट देने के बाद कहा जा सकता है कि मुख्तार अंसारी से दूरी बनाने की नौबत अखिलेश-राजभर की जोड़ी के सामने भाजपा ने पैदा की है.

मुख्तार अंसारी के नाम से बचने की कोशिश में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने वाली सुभासपा ने अब्बास अंसारी को टिकट दिया है.

जिसे लेकर चाचा-भतीजे में हुई अदावत, अब वही साथ

मुख्तार अंसारी के भाई की समाजवादी पार्टी में एंट्री पर शिवपाल सिंह यादव ने अखिलेश यादव का ही डायलॉग उन पर चिपका दिया था. दरअसल, 2017 के विधानसभा चुनाव...

जेल में बंद बाहुबली मुख्तार अंसारी इस बार यूपी चुनाव 2022 का हिस्सा नही बनेगा. मऊ सदर की परंपरागत सीट से पांच बार विधायक रहे मुख्तार अंसारी ने ये फैसला क्यों लिया है? इसका जवाब उनके बेटे अब्बास अंसारी देते हैं कि 'देश में आज लोकतंत्र खतरे में है. साजिश रची जा रही थी, जिसकी वजह से मेरे पिता नामांकन नहीं दाखिल कर पाए. ऐसी स्थिति में मेरे पिता ने मुझे विरासत सौंपी है और मैं इसे आगे बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोडूंगा.'

दरअसल, केवल मुख्तार अंसारी के नाम से बचने की कोशिश में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने वाली सुभासपा ने अब्बास अंसारी को टिकट दिया है. क्योंकि, बाहुबली मुख्तार अंसारी के बड़े भाई और पूर्व विधायक सिगबतुल्लाह अंसारी अपने बेटे के साथ पिछले साल अगस्त में ही समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे. और, इन्हें सदस्यता दिलाने के खुद समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव कार्यक्रम में मौजूद थे. समाजवादी पार्टी का सुभासपा से गठबंधन है. और, ओमप्रकाश राजभर लंबे समय से मुख्तार अंसारी के साथ अपनी 'दोस्ती' की चर्चा करते रहे हैं. तो, तय माना जा रहा था कि मुख्तार अंसारी की यूपी चुनाव 2022 में सुभासपा के जरिये बैकडोर से एंट्री होगी. लेकिन, सपा गठबंधन के अब्बास अंसारी को टिकट देने के बाद कहा जा सकता है कि मुख्तार अंसारी से दूरी बनाने की नौबत अखिलेश-राजभर की जोड़ी के सामने भाजपा ने पैदा की है.

मुख्तार अंसारी के नाम से बचने की कोशिश में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने वाली सुभासपा ने अब्बास अंसारी को टिकट दिया है.

जिसे लेकर चाचा-भतीजे में हुई अदावत, अब वही साथ

मुख्तार अंसारी के भाई की समाजवादी पार्टी में एंट्री पर शिवपाल सिंह यादव ने अखिलेश यादव का ही डायलॉग उन पर चिपका दिया था. दरअसल, 2017 के विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल का सपा में विलय ये कहकर रद्द किया था कि 'पार्टी में माफियाओं के लिए कोई जगह नहीं है.' आजतक के साथ बातचीत में शिवपाल यादव ने कहा था कि 'समाजवादी पार्टी में माफियाओं की एंट्री नहीं होनी चाहिए.' हालांकि, शिवपाल सिंह यादव का ये कथन उनके समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन से पहले का था. और, अब शिवपाल यादव भी सपा गठबंधन का हिस्सा हैं. कहा जाता है कि 2016 में मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल के सपा में विलय का विरोध करने से ही यादव कुनबे में छिड़े सत्ता संघर्ष की नींव रखी थी. दरअसल, उस दौरान शिवपाल यादव ने सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव की सहमति से मुख्तार अंसारी के साथ ही अतीक अहमद को भी समाजवादी पार्टी में शामिल करने की पटकथा लिख दी थी. लेकिन, अखिलेश ने इस पर आपत्ति जता दी थी.

2017 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान का एक किस्सा में मुझे आज भी याद है. कानपुर की कैंट विधानसभा सीट से बाहुबली अतीक अहमद को समाजवादी पार्टी का उम्मीदवार बनाए जाने की चर्चा हुई थी. करीब 200 लग्जरी गाड़ियों का काफिला लेकर अतीक अहमद कैंट विधानसभा सीट के एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र में आया था. हालांकि, उस दौरान समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन समीकरण के चलते ये सीट कांग्रेस के खाते में चली गई थी. और, उस वक्त अखिलेश यादव भी अपनी क्लीन इमेज की ब्रांडिंग में लगे हुए थे. तो, अतीक अहमद को यहां से टिकट नहीं मिल सका था. लेकिन, अतीक अहमद की केवल आमद भर से मुस्लिम बहुल कैंट विधानसभा सीट का सारा समीकरण पलट गया था. 2012 के विधानसभा चुनाव में जहां 42551 वोटों के साथ 9000 से ज्यादा के मार्जिन से कैंट सीट पर जीतने वाला भाजपा प्रत्याशी, 2017 में 71805 वोट मिलने पर भी कांग्रेस के प्रत्याशी से करीब 10 हजार वोटों से हार गया था. यहां गौर करने वाली बात ये भी है कि ध्रुवीकरण केवल एक समुदाय का नहीं हुआ था.

समय बदला और अखिलेश यादव भी बदल गए

यूपी चुनाव 2022 में अखिलेश यादव के सामने 'करो या मरो वाली स्थिति' आ चुकी है. और, इसकी वजह ये है कि 2017 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी कोई बड़ा करिश्मा नहीं दिखा पाई है. जिसने अखिलेश यादव को कौमी एकता दल की समाजवादी पार्टी में बैकडोर एंट्री कराने के लिए मजबूर कर दिया है. क्योंकि, अंसारी बंधुओं का पूर्वांचल के कई जिलों में अच्छा-खासा प्रभाव है. और, मुस्लिम मतदाताओं के बीच अंसारी बंधुओं की रॉबिनहुड सरीखी छवि बनी हुई है. वैसे, सिगबतुल्लाह अंसारी भी मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल के ही अभिन्न अंग रहे हैं. अंसारी बंधुओं में से तीसरे अफजाल अंसारी फिलहाल गाजीपुर से बसपा सांसद हैं. और, वो भी इस पार्टी के अघोषित सदस्य माने जा सकते हैं. समाजवादी पार्टी ने मुख्तार अंसारी के भाई सिबगतुल्लाह अंसारी को मोहम्मदाबाद से पार्टी का प्रत्याशी घोषित किया है. तो, सपा गठबंधन में सुभासपा नेता ओमप्रकाश राजभर ने मुख्तार अंसारी से अपनी दोस्ती बनाए रखने के लिए उनके बेटे अब्बास अंसारी को टिकट दिया है. वैसे, अब्बास अंसारी 2017 के चुनाव में घोसी से बसपा के टिकट पर किस्मत आजमा चुके हैं, लेकिन उन्हें बीजेपी के फागू चौहान ने सियासी पटखनी दे दी थी.

चुनाव आयोग से ज्यादा भाजपा ने कसा शिकंजा

चुनाव आयोग की सख्ती की वजह से सियासी दलों ने आपराधिक छवि वाले बाहुबली नेताओं से काफी हद तक कन्नी काटी है. लेकिन, उनकी बैकडोर एंट्री के लिए सहयोगी दलों का सहारा लेने में कोई कोताही नहीं बरती जा रही है. वैसे, पूर्वांचल की इन सीटों पर यूपी चुनाव 2022 के आखिरी चरण में मतदान होना है, तो अखिलेश यादव कहीं न कहीं खुद को सेफ साइड रखते हुए रणनीति बना रहे हैं. क्योंकि, अंसारी बंधुओं को समाजवादी पार्टी से बाहर निकालने का परिणाम अखिलेश 2017 में ही देख चुके हैं. दरअसल, समाजवादी पार्टी से विलय रद्द होने के बाद अंसारी बंधुओं ने कौमी एकता दल का विलय बसपा में कर दिया था. और, पूर्वांचल में समाजवादी पार्टी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा था. यूपी चुनाव 2022 में अखिलेश यादव की साख दांव पर लगी है, तो उन्हें जिताऊ प्रत्याशी ही चाहिए. लेकिन, भाजपा ने अपने चुनावी कैंपेन को पूरी तरह से माफिया, गुंडाराज और कानून व्यवस्था पर टिका दिया है, जो सीधे तौर पर समाजवादी पार्टी को ही घेरे में लेता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर सीएम योगी आदित्यनाथ तक भाजपा के स्टार प्रचारकों की पूरी फौज समाजवादी पार्टी पर मुख्तार अंसारी को लेकर हमलावर रही है. तो, कहा जा सकता है कि भाजपा के आक्रामक रवैये को देखते हुए अखिलेश यादव ने ओमप्रकाश राजभर के साथ मुख्तार अंसारी की जगह उनके बेटे अब्बास अंसारी को प्रत्याशी बनाने का दांव खेला होगा. क्योंकि, अगर मुख्तार अंसारी सपा गठबंधन के प्रत्याशी बनते, तो भाजपा और ज्यादा आक्रामक रुख अपनाते हुए पूर्वांचल में इसका प्रचार करती, जो आगे के चरणों में समाजवादी पार्टी के लिए मुश्किल पैदा कर सकता था. वैसे, भाजपा ने मऊ सदर सीट से अजय प्रकाश सिंह उर्फ मन्ना सिंह के चचेरे भाई अशोक सिंह को मैदान में उतारा है. 2009 में मन्ना सिंह की एके-47 से गोलियां बरसा कर हत्या कर दी गई थी. इसमें मुख्तार अंसारी गवाह के मुकर जाने पर बरी हो गए थे. वहीं, मोहम्मदाबाद की सीट पर भाजपा ने अलका राय को प्रत्याशी बनाया है, जिनके पति कृष्णानंद राय की हत्या में भी मुख्तार अंसारी को मास्टरमाइंड बताया जाता है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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