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UP Election 2022: हिंदुत्व पर सबकी अलग-अलग परिभाषा, कौन सी बेहतर तय आप करिए

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 11 नवम्बर, 2021 07:46 PM
  • 11 नवम्बर, 2021 07:46 PM
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अगले साल की पहली तिमाही में होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव (UP Election 2022) के बाद साल के अंत में भी दो प्रदेशों में चुनाव होने हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो 2024 के आम चुनावों से पहले हर 6 महीने में देश के अंदर किसी न किसी राज्य में चुनावी पर्व दस्तक देता रहेगा. इन चुनावों में हिंदुत्व (Hindutva) का मुद्दा हर बार सामने आ ही जाएगा.

भारत में होने वाले सभी चुनावों में हिंदुत्व एक ऐसा मुद्दा है, जो 2014 के बाद से ही कॉमन हो चुका है. नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही भाजपा पर हिंदुत्ववादी राजनीति को बढ़ावा देना का आरोप लगाया जाता रहा है. वैसे, नरेंद्र मोदी को पीएम बनने के बाद से हिंदुत्व पर सीधे तौर पर बोलते हुए कम ही देखा और सुना गया है. लेकिन, गोहत्या पर प्रतिबंध, नागरिकता संशोधन कानून (CAA), धारा 370 रद्द करने जैसे मुद्दों के सहारे पीएम मोदी पर परोक्ष रूप से हिंदुत्व को बढ़ावा देने के आरोप लगाए जाते हैं. हालांकि, अब भाजपा के हार्ड हिंदुत्व को टक्कर देने के लिए विपक्षी दलों ने भी सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पकड़ ली है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो वर्तमान राजनीति को देखते हुए हिंदुत्व पर सभी दलों की अपनी अलग-अलग परिभाषा बनकर तैयार है. यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के मद्देनजर भी तमाम सियासी दल हिंदुत्व की अपनी-अपनी परिभाषाओं के साथ लोगों के सामने हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो सॉफ्ट और हार्ड हिंदुत्व की इन परिभाषाओं के बीच ये समझना मुश्किल नजर आता है कि कौन सी बेहतर है? आइए इन सभी पर एक नजर डालते हैं...

यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के मद्देनजर भी तमाम सियासी दल हिंदुत्व की अपनी-अपनी परिभाषाओं के साथ लोगों के सामने हैं.

योगी आदित्यनाथ का 'हिंदुत्व'

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद एक महंत और हिंदुत्व के फायरब्रांड नेताओं में उनकी गिनती की जाती है. योगी आदित्यनाथ ने सीएम बनने के साथ ही अयोध्या में दीपोत्सव के साथ ही काशी-मथुरा पर भी विशेष ध्यान दिया है. मथुरा में जन्माष्टमी मनाने के साथ काशी विश्वनाथ कॉरीडोर व अन्य विकास के कार्यों पर सीएम योगी खुद नजर रखते हैं. उत्तर प्रदेश में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने में सीएम योगी बिल्कुल भी...

भारत में होने वाले सभी चुनावों में हिंदुत्व एक ऐसा मुद्दा है, जो 2014 के बाद से ही कॉमन हो चुका है. नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही भाजपा पर हिंदुत्ववादी राजनीति को बढ़ावा देना का आरोप लगाया जाता रहा है. वैसे, नरेंद्र मोदी को पीएम बनने के बाद से हिंदुत्व पर सीधे तौर पर बोलते हुए कम ही देखा और सुना गया है. लेकिन, गोहत्या पर प्रतिबंध, नागरिकता संशोधन कानून (CAA), धारा 370 रद्द करने जैसे मुद्दों के सहारे पीएम मोदी पर परोक्ष रूप से हिंदुत्व को बढ़ावा देने के आरोप लगाए जाते हैं. हालांकि, अब भाजपा के हार्ड हिंदुत्व को टक्कर देने के लिए विपक्षी दलों ने भी सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पकड़ ली है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो वर्तमान राजनीति को देखते हुए हिंदुत्व पर सभी दलों की अपनी अलग-अलग परिभाषा बनकर तैयार है. यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के मद्देनजर भी तमाम सियासी दल हिंदुत्व की अपनी-अपनी परिभाषाओं के साथ लोगों के सामने हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो सॉफ्ट और हार्ड हिंदुत्व की इन परिभाषाओं के बीच ये समझना मुश्किल नजर आता है कि कौन सी बेहतर है? आइए इन सभी पर एक नजर डालते हैं...

यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के मद्देनजर भी तमाम सियासी दल हिंदुत्व की अपनी-अपनी परिभाषाओं के साथ लोगों के सामने हैं.

योगी आदित्यनाथ का 'हिंदुत्व'

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद एक महंत और हिंदुत्व के फायरब्रांड नेताओं में उनकी गिनती की जाती है. योगी आदित्यनाथ ने सीएम बनने के साथ ही अयोध्या में दीपोत्सव के साथ ही काशी-मथुरा पर भी विशेष ध्यान दिया है. मथुरा में जन्माष्टमी मनाने के साथ काशी विश्वनाथ कॉरीडोर व अन्य विकास के कार्यों पर सीएम योगी खुद नजर रखते हैं. उत्तर प्रदेश में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने में सीएम योगी बिल्कुल भी पीछे नही रहे हैं. अयोध्या में भव्य श्री राम मंदिर से लेकर चित्रकूट तक राम सर्किट बनाया जा रहा है. योगी आदित्यनाथ ने इस दौरान फैजाबाद का नाम बदलकर अयोध्या कर दिया है. नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ सूबे में दंगा भड़काने वालों पर सख्त कार्रवाई करने को विपक्ष ने हिंदुत्व का एजेंडा बताया था. योगी आदित्यनाथ अपने कई इंटरव्यू में कहते नजर आ चुके हैं कि वह किसी धर्म या मजहब के खिलाफ नहीं हैं. अगर उत्तर प्रदेश के सभी लोग शांति और सद्भाव से रहते हैं, तो उन्हें किसी से कोई शिकायत क्यों होगी.

आसान शब्दों में कहा जाए, तो सीएम योगी को केवल मुस्लिम विरोधी साबित किया जाता रहा है. जबकि, योगी आदित्यनाथ की 'वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट' योजना से मुसलमानों को सबसे ज्यादा फायदा हुआ है. ओडीओपी योजना में बड़ी संख्या में वो उद्योग आते हैं, जिनमें मुस्लिम कारीगरों और व्यवसायियों की भरमार है. वाराणसी में रेशम उद्योग, अलीगढ़ का ताला उद्योग, मुरादाबाद का पीतल के बर्तनों का उद्योग, एटा का घंटी व घुंघरू, आगरा में चमड़े के उत्पाद, भदोही का कालीन, लखनऊ का चिकन और जरदोजी और फिरोजाबाद के कांच उद्योग में सीधे तौर पर मुस्लिम समाज के लोगों को फायदा पहुंचा है. योगी सरकार ने मदरसा शिक्षा में भी बड़े बदलाव किए हैं. योगी सरकार ने मदरसा शिक्षा को अन्य स्कूलों के बराबर लाने के लिए एनसीईआरटी पाठ्यक्रम पेश किया है. मदरसा आधुनिकीकरण योजना से लेकर अल्पसंख्यकों के लिए छात्रवृत्ति योजना पर भी करोड़ों रुपये खर्च किए हैं. सियासी चश्मा हटाकर देखा जाए, तो सीएम योगी की छवि कट्टर हिंदूवादी वाली हो सकती है. लेकिन, वह मुस्लिम विरोधी नजर नहीं आते हैं. योगी द्वारा सांसद रहते मुस्लिम समाज की सहायता के कई किस्से गोरखपुर में मशहूर हैं.

अखिलेश यादव का 'टेंपल रन' वाला हिंदुत्व

भाजपा के हिंदुत्ववादी एजेंडे के आगे कमजोर पड़ने के साथ ही सभी विपक्षी दलों ने सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पकड़ ली है. उत्तर प्रदेश में एमवाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण के सहारे सत्ता पाने वाले सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पिछले एक साल से कई अलग-अलग मंदिरों के दर्शन कर चुके हैं. बीते साल अयोध्या के दौरे पर पहुंचे अखिलेश यादव ने वादा भी किया था कि राम मंदिर निर्माण के बाद वो परिवार समेत दर्शन के लिए आएंगे. इसी साल जनवरी में उन्होंने चित्रकूट में कामतानाथ मंदिर के दर्शन किए और कामदगिरि की परिक्रमा भी की. आसान शब्दों मे कहा जाए, तो बहुसंख्यक हिंदू वोटरों के लिए अखिलेश यादव ने भी सॉफ्ट हिंदुत्व की ओर रुख कर लिया है. हर जिले में परशुराम मंदिर बनवाने के वादे से लेकर सैफई में भगवान श्रीकृष्ण की 51 फीट की मूर्ति स्थापित करवाने तक अखिलेश यादव बहुसंख्यक मतदाताओं को लुभाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं. वहीं, भाजपा अखिलेश यादव पर यूपी चुनाव के लिए हिंदुत्व का ढोंग करने का आरोप लगा रही है.

भाजपा पर हिंदुत्व को लेकर हमलावर रहने वाले अखिलेश यादव भी अब राम मंदिर और समेत अन्य जगहों पर हाजिरी लगाकर सॉफ्ट हिंदुत्व की शरण में जा चुके हैं. हालांकि, यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा कहे जा रहे राम मंदिर पर भी अखिलेश यादव बैकफुट पर ही नजर आते हैं. अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह यादव की सपा सरकार के दौरान ही अयोध्या में कारसेवकों पर गोलियां चलाई गई थीं. अखिलेश यादव पर मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति के आरोप भी लगते रहे हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो सपा प्रमुख का एक मंदिर से दूसरे मंदिर के बीच का 'टेंपल रन' जारी है. 

मायावती का 'भूलसुधार अभियान' वाला हिंदुत्व

बसपा सुप्रीमो मायावती भी यूपी चुनाव में अपने सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले के सहारे आगे बढ़ रही हैं. हिंदुत्व को लेकर कुछ वर्षों पहले तक मायावती की ओर से भाजपा पर जितने सियासी हमले किए जाते थे, उनमें कमी आई हैं. एक तरह से मायावती ने यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के लिए अपनी भूलसुधार अभियान वाली रणनीति जनता के सामने रख दी है. मायावती ने प्रबुद्ध वर्ग (ब्राह्मण) के एक सम्मेलन में कहा था कि अगर राज्य में उनकी सरकार बनती है, तो काशी-मथुरा-अयोध्या में जारी विकास कार्यों को चुनाव बाद भी रोका नहीं जाएगा. बसपा सरकार में बदले की भावना से काम नहीं किया जाएगा. इतना ही नहीं, मायावती ने ये भी दावा किया कि वो पार्कों और मूर्तियों की जगह सूबे के विकास पर ध्यान केंद्रित करेंगी. इसी कार्यक्रम में वो हाथों में भगवान गणेश की मूर्ति और त्रिशूल लिए हुए नजर आई थीं. वहीं, पार्टी महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा ने अयोध्या से प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन की शुरुआत करने से पहले राम लला की पूजा भी की थी.

प्रियंका गांधी का दुर्गा स्तुति वाला 'हिंदुत्व'

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में पहुंच रैली के जरिये यूपी विधानसभा चुनाव का बिगुल फूंक दिया था. प्रियंका गांधी एयरपोर्ट से सीधे काशी विश्वनाथ मंदिर गईं. इसके बाद कुष्मांडा मंदिर में उन्होंने पूजा-अर्चना की. काशी में हुई अपनी रैली के दौरान प्रियंका गांधी ने माथे पर त्रिपुंड के साथ गले में तुलसी और रूद्राक्ष की माला धारण कर रखी थी. उन्होंने काशी की रैली में अपने भाषण की शुरुआत दुर्गा स्तुति से की थी. आसान शब्दों में कहा जाए, तो पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी की तरह ही प्रियंका गांधी भी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की छवि बदलने के लिए कोशिश कर रही हैं. जिस तरह से ममता बनर्जी चंडी पाठ के जरिये बहुसंख्यकों में अपनी स्वीकार्यता बढ़ाई थी. ठीक उसी राह पर प्रियंका गांधी भी चल रही हैं. हालांकि, इस मामले पर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का 2018 में दिया एक बयान बहुत मायने रखता है. राहुल गांधी ने कहा था कि मैं हिंदुत्व के किसी भी प्रकार में विश्वास नहीं रखता, चाहे वह नरम हिंदुत्व हो या कट्टर हिंदुत्व. हिंदू हैं, बस हो गया..जो धर्म की राजनीति करते हैं, वे हिंदुत्व की बात करते हैं. हमें धर्म की राजनीति नहीं करनी है. हिंदू होना और धर्म की राजनीति करना, दो अलग-अलग चीजें हैं.

अरविंद केजरीवाल का 'सच्चा हिंदुत्व'

यूपी चुनाव में अपनी किस्मत आजमाने जा रहे आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने पिछले दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले खुद को हनुमान भक्त घोषित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी. वहीं, हाल ही में अयोध्या में रामलला के दर्शन करने के बाद अरविंद केजरीवाल ने घोषणा की थी कि यूपी में उनकी सरकार बनने के बाद प्रदेश के सभी लोगों को अयोध्या की यात्रा कराई जाएगी. गोवा में भी केजरीवाल ने कुछ ऐसा ही वादा किया था. हालांकि, वहां राज्य के हिसाब से उन्होंने गोवा के लोगों को फ्री में अयोध्या में रामलला के दर्शन कराने, ईसाईयों को वेलांकन्नी, मुस्लिमों को अजमेर शरीफ और श्रद्धालुओं को शिरडी की तीर्थ यात्रा कराने की गारंटी दी थी. जिसके बाद उन पर सॉफ्ट हिंदुत्व का कार्ड खेलने के आरोप लगे थे. इन आरोपों पर अरविंद केजरीवाल ने हाल ही में एक न्यूज चैनल पर सफाई देते हुए कहा कि आम आदमी पार्टी 'सच्चे हिंदुत्व' का पालन कर रही है, क्योंकि वह देश के 130 करोड़ लोगों को एकजुट करना चाहती है. हिंदुत्व एकजुट करता है, हिंदुत्व तोड़ता नहीं है.

वैसे, देश में हर साल ही कोई न कोई चुनाव होते रहते हैं. अगले साल की पहली तिमाही में होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद साल के अंत में भी दो प्रदेशों में चुनाव होने हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो 2024 के आम चुनावों से पहले हर 6 महीने में देश के अंदर किसी न किसी राज्य में चुनावी पर्व दस्तक देता रहेगा. इन चुनावों में हिंदुत्व का मुद्दा हर बार सामने आ ही जाएगा. इन तमाम नेताओं के हिंदुत्व की परिभाषा तकरीबन आपके सामने है. इनमें से कौन सी बेहतर है, ये तय आप करिए.


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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