केरल में सबरीमाला मंदिर को लेकर विरोध प्रदर्शनों का एक कॉम्पटीशन सा चल पड़ा है. यहां की सड़कों पर इन दिनों अगजनी और तोड़फोड़ की तस्वीरें ही देखने को मिल रही हैं. स्कूल बंद हैं, दुकानें भी नहीं खुल रहीं. आम जनता से लेकर राजनीतिक पार्टियां तक इसमें कूद पड़ी हैं. एक के बाद एक विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. कभी लेफ्ट प्रदर्शन करता है तो कभी राइट विंग सड़कों पर उतरता है. देखा जाए तो ये मामला आस्था से कहीं ज्यादा राजनीति के रंग में रंग चुका है.
इन सबकी शुरुआत हुई 24 सितंबर 1990 से, जब एस. महेंद्रन नाम के एक शख्स ने वीआईपी महिलाओं के मंदिर में प्रवेश के खिलाफ आवाज उठाते हुए जनहित याचिका के जरिए केरल हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. 2006 में ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और 12 साल चली सुनवाई के बाद 28 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने 10-50 साल की महिलाओं को मंदिर में घुसने की इजाजत दे दी. भारी पुलिस बल तैनात होने के बावजूद एक भी महिला 1 जनवरी 2018 तक मंदिर में पूजा नहीं कर सकी. लेकिन 2 जनवरी को 2 महिलाओं ने मंदिर में घुसकर पूजा की है और बरसों पुरानी परंपरा को तोड़ दिया, जिसके बाद से बवाल और बढ़ गया है. केरल सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन कर रही है, वहीं दूसरी ओर, शिवसेना और भाजपा विरोध में खड़ी हैं. यहीं से लेफ्ट और राइट की राजनीति भी शुरू हो गई है. चलिए देखते हैं कैसे एक विरोध प्रदर्शन के जवाब में दूसरा विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है.
24 सितंबर 1990: एक तस्वीर के बाद मामला पहुंचा कोर्ट
19 अगस्त 1990 को केरल के दैनिक जन्मभूमि अखबार में एक तस्वीर छपी, जिसमें एक वीआईपी महिला अपनी नातिन का अन्नप्रासन यानी चोरुनु संस्कार करती दिखीं. केरल के चंगनशेरी में रहने वाले एस. महेंद्रन नामक शख्स ने इसके विरोध में 24 सितंबर 1990 को जनहित याचिका के जरिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. केरल हाईकोर्ट ने तस्वीर की गवाही को मानते हुए लोगों की आस्था को प्राथमिकता दी और 5 अप्रैल 1991 को सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध...
केरल में सबरीमाला मंदिर को लेकर विरोध प्रदर्शनों का एक कॉम्पटीशन सा चल पड़ा है. यहां की सड़कों पर इन दिनों अगजनी और तोड़फोड़ की तस्वीरें ही देखने को मिल रही हैं. स्कूल बंद हैं, दुकानें भी नहीं खुल रहीं. आम जनता से लेकर राजनीतिक पार्टियां तक इसमें कूद पड़ी हैं. एक के बाद एक विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. कभी लेफ्ट प्रदर्शन करता है तो कभी राइट विंग सड़कों पर उतरता है. देखा जाए तो ये मामला आस्था से कहीं ज्यादा राजनीति के रंग में रंग चुका है.
इन सबकी शुरुआत हुई 24 सितंबर 1990 से, जब एस. महेंद्रन नाम के एक शख्स ने वीआईपी महिलाओं के मंदिर में प्रवेश के खिलाफ आवाज उठाते हुए जनहित याचिका के जरिए केरल हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. 2006 में ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और 12 साल चली सुनवाई के बाद 28 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने 10-50 साल की महिलाओं को मंदिर में घुसने की इजाजत दे दी. भारी पुलिस बल तैनात होने के बावजूद एक भी महिला 1 जनवरी 2018 तक मंदिर में पूजा नहीं कर सकी. लेकिन 2 जनवरी को 2 महिलाओं ने मंदिर में घुसकर पूजा की है और बरसों पुरानी परंपरा को तोड़ दिया, जिसके बाद से बवाल और बढ़ गया है. केरल सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन कर रही है, वहीं दूसरी ओर, शिवसेना और भाजपा विरोध में खड़ी हैं. यहीं से लेफ्ट और राइट की राजनीति भी शुरू हो गई है. चलिए देखते हैं कैसे एक विरोध प्रदर्शन के जवाब में दूसरा विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है.
24 सितंबर 1990: एक तस्वीर के बाद मामला पहुंचा कोर्ट
19 अगस्त 1990 को केरल के दैनिक जन्मभूमि अखबार में एक तस्वीर छपी, जिसमें एक वीआईपी महिला अपनी नातिन का अन्नप्रासन यानी चोरुनु संस्कार करती दिखीं. केरल के चंगनशेरी में रहने वाले एस. महेंद्रन नामक शख्स ने इसके विरोध में 24 सितंबर 1990 को जनहित याचिका के जरिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. केरल हाईकोर्ट ने तस्वीर की गवाही को मानते हुए लोगों की आस्था को प्राथमिकता दी और 5 अप्रैल 1991 को सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध का फैसला सुनाते हुए कहा कि ये आस्था का विषय है, इसलिए संविधान के दायरे से बाहर है.
अगस्त 2016: चल पड़ा #ReadyToWait
2006 में ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और अब 28 सितंबर 2018 को इसमें फैसला आया है. लेकिन इस दौरान भी कुछ प्रदर्शन हुए. इनमें से ही एक है #ReadyToWait मूवमेंट, जो सोशल मीडिया पर चला. बहुत सी महिलाओं ने #ReadyToWait लिखी तख्तियों के साथ अपनी तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की और कहा कि वह सबरीमाला मंदिर में जाने के लिए 50 साल की उम्र तक का इंतजार करने के लिए तैयार हैं. लेकिन 28 सितंबर को सभी महिलाओं को सबरीमाला में प्रवेश की अनुमति मिलने के बाद राजनीति गरम हो गई है.
13 अक्टूबर: शिवसेना और भाजपा नेता की धमकी
28 सितंबर को सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश को सुप्रीम कोर्ट की अनुमति मिलने के बाद सबसे पहले 13 अक्टूबर को केरल में शिवसेना के 7 लोगों ने आत्महत्या की धमकी दी. वहीं दूसरी ओर, मलयालम एक्टर और भाजपा नेता Kollam Thulasi ने तो ये तक कह दिया कि सबरीमाला आने वाली महिलाओं काट के दो टुकड़े कर देने चाहिए.
16 अक्टूबर: महिलाओं ने रोकी गाड़ियां
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से नाराज बहुत सी महिलाएं सड़कों पर उतर गईं और गाड़ियां रोकने लगीं. सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला महिलाओं को हक में लग रहा था, महिलाएं ही उसके खिलाफ सड़कों पर दिखाई दीं.
17 अक्टूबर: सीढ़ी पर बैठ गए पुजारी
सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद 17 अक्टूबर को पहली बार मंदिर के कपाट खुले. इसके बाद फिर महिलाओं ने सबरीमाला में घुसने की कोशिश. उन्हें रोकने के लिए तो मंदिर के पुजारी और करीब 30 अन्य कर्मचारी सीढ़ियों पर बैठ गए और भगवान अय्यप्पा के भजन गाने लगे. पुजारियों ने ये भी धमकी दी कि अगर उन्होंने जबरदस्ती की तो मंदिर को ताला लगाकर पूजा बंद कर दी जाएगी.
महिला पत्रकार को गाड़ी में किया कैद
विरोध प्रदर्शन इतने उग्र हो गए कि एक महिला पत्रकार को उसकी कार में ही कैद कर दिया गया और गाड़ी को घेरकर प्रदर्शनकारियों ने गाड़ी पर लात-घूंसे बरसाए और महिला पत्रकार से बदतमीजी की.
1 जनवरी: लेफ्ट ने बनाई महिलाओं की श्रृंखला
केरल सरकार ने 1 जनवरी को नया प्लान बनाया और लाखों महिलाओं ने 620 किलोमीटर लंबी ह्यूमन चेन बनाई. स्वास्थ्य मंत्री केके श्यालजा और माकपा नेता वृंदा करात की अगुवाई में ये ह्यूमन चेन एक तरह का विरोध ही था, जो राइट विंग के प्रदर्शनों के विरोध का प्रतीक था. अभी राइट विंग इसका जवाब भी नहीं दे सका कि अगले ही दिन सबरीमाला मंदिर में वो हुआ, जो कभी नहीं हुआ था.
2 जनवरी: 2 महिलाओं ने तोड़ी बरसों की परंपरा
बिंदु अम्मिनी नाम की एक वकील महिला और कनकादुर्गा मान की एक महिला सरकारी कर्मचारी ने 2 जनवरी को मंदिर में सुबह करीब 3.45 बजे प्रवेश किया और पूजा की. इन्होंने पहले भी मंदिर में घुसने की कोशिश की थी, लेकिन प्रदर्शनकारियों ने उन्हें जाने नहीं दिया था. जैसे ही मंदिर के पुजारियों को ये पता चला कि 10-50 साल की महिलाओं ने मंदिर में प्रवेश किया है, तो घंटे भर के लिए सभी श्रद्धालुओं को मंदिर से बाहर भेजकर शुद्धिकरण कराया गया.
3 जनवरी: केरल बंद का आह्वान
दो महिलाओं द्वारा सबरीमाला में घुसकर पूजा करने के बाद राइट विंग के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने केरल बंद का आह्वान किया गया. दुकानें और स्कूल बंद कर दिए गए. जिन्होंने दुकानें बंद नहीं कीं, उनकी दुकान में तोड़फोड़ की गई. सड़कों पर चल रही गाड़ियों में भी तोड़फोड़ हुई. गुरुवार के दिन हुई इन घटनाओं में 100 आरटीसी बसों को भी तोड़ दिया गया.
4 जनवरी: राइट विंग को जवाब देने उतरीं 'बसें'
सबरीमाला में प्रवेश के विरोध में राइट विंग के प्रदर्शन के बाद बारी आई लेफ्ट विंग की. केरल सरकार ने शुक्रवार को करीब 24 बसों को विरोध प्रदर्शन में उतारा है. सबके शीशे टूटे हुए थे और उनके आगे एक पोस्टर लगा था, जिस पर लिखा था- 'इन सबसे लिए मैं जिम्मेदार नहीं हूं. कृपया मुझे मत तोड़ो, क्योंकि मैं कई लोगों की रोजी रोटी का सहारा हूं.' संदेश तो बिल्कुल सही लिखा है, लेकिन राजनीति लगातार जारी है.
इन्होंने मुंड़वा दी आधी मूछ
जितना अजीब बसों के जरिए प्रदर्शन करना है, उतना ही अजीब आधी मूंछ मुड़वा लेना है. आपको वो शख्स तो याद ही होगा, जिसकी एक तस्वीर वायरल हुई थी. तस्वीर में राजेश आर कुरूप नाम का ये शख्स अपने हाथ में भगवान अय्यपा की मूर्ति लिए था और उसके सीने पर पुलिस ने पैर रखा था और डंडा मार रही थी. ये तस्वीर एक फोटोशूट की थी, जबकि इसे सबरीमाला के प्रदर्शन से जोड़ते हुए गलत तरीके से पुलिस के बर्ताव पर सवाल उठाते हुए वायरल किया जा रहा था. उस तस्वीर के शख्स राजेश ने दो महिलाओं द्वारा सबरीमाला में प्रवेश करने पर अपनी आधी मूंछ मुंड़वा दी है.
ऐसा नहीं है कि सबरीमाला के विरोध में या समर्थन में जो लोग हैं वह सभी राजनीति से ताल्लुक रखते हैं. लेकिन ये भी सच है कि ये सभी लोग राजनीति का शिकार हो रहे हैं. केरल सरकार के साथ वो लोग हैं, जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हैं, जबकि जो मानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला गलत है और महिलाओं को सबरीमाला में प्रवेश नहीं मिलना चाहिए वह राइट विंग के साथ खड़े दिख रहे हैं. जब-जब सबरीमाला के कपाट खुलते हैं, तो मंदिर से लेकर सड़कों तक बवाल होता है. ये लड़ाई कहां जाकर रुकेगी, ये देखना दिलचस्प होगा.
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