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यूरोप से भारत ले सीख, रोहिंग्या मुसलमानों को मिले किसी मुस्लिम देश में शरण !

    • अमित अरोड़ा
    • Updated: 23 सितम्बर, 2017 12:21 PM
  • 23 सितम्बर, 2017 12:21 PM
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यूरोपीय देशों ने मानवता और उदारवाद के आधार पर कई लोगों को अपने यहां रहने का स्थान दिया परंतु यह नहीं सोचा कि विपरीत विचारधारा के लोगों को अपने देश में जगह देकर वह मुसीबत को दावत दे रहे है.

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने संयुक्त राष्ट्र आम सभा की सालाना बैठक में कहा कि 'अमेरिकी राष्ट्रपति के तौर पर मैं हमेशा अमेरिका को आगे रखूंगा. देश का नेता होने के नाते आप सभी को भी अपने देशों के हित पहले साधने चाहिए.' इस बात को यूरोपीय देशों ने कुछ वर्ष पहले समझ लिया होता तो आज यूरोप की यह दुर्दशा नहीं होती.

रोहिंग्या समर्थकयूरोप के देश मूलतः समृद्ध और विकसित है, जहां संसाधानो की कमी नहीं है. सामान्य जनता शिक्षित और खुले विचारों को मानने वाली है. मानव अधिकार और व्यक्तिगत आज़ादी को यूरोप का समाज काफ़ी महत्व देता है. कई दशकों से मानव अधिकार के मुद्दे पर यूरोपीय देश, अपने देशों में प्रताड़ित विस्थापितों को शरण देते आए हैं.

विस्थापितों के अलावा विकसित समाज में जीवन व्यापन की इच्छा लेकर उत्तर अफ्रीका, मध्य-दक्षिण एशिया से अनेक लोग 1945-1950 से 2010-2015 के बीच यूरोप में बसने लगे. शुरू के दशकों में यूरोपीय सरकारों ने इन लोगों के आने पर कोई विशेष रोक नहीं लगाई. फलस्वरूप, क़ानूनी और गैर-क़ानूनी तरीके से आने वाले इन लोगों के कारण यूरोप के कई क्षेत्रों में जनसांख्यिकी परिवर्तन नज़र आने लगा है. कई क्षेत्रों में यूरोप के मूल निवासी अल्पसंख्यक बन गये हैं, और बाहर के लोग बहुसंख्यक. बेल्जियम, फ्रांस, ब्रिटेन जैसे देशों के कई शहरों में बाहर से आए लोगों ने अपने विशेष मोहल्ले भी बना लिए है. इन मोहल्लों में यूरोप के मूल निवासी जाने से डरते है.

2015 में मध्य एशिया में आइएसआइएस के उदय और सिरिया, इराक़ में छिड़े गृह युद्ध का असर यूरोप पर ऐसा पड़ा की आज यूरोप के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लग गया है. अपनी उदारवादी नीति पर कायम यूरोप के कई देशों ने मध्य एशिया के प्रताड़ित विस्थापितों को शरण देने का निर्णय किया. 2016 में लगभग 10 लाख शरणार्थी यूरोप पहुंचे....

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने संयुक्त राष्ट्र आम सभा की सालाना बैठक में कहा कि 'अमेरिकी राष्ट्रपति के तौर पर मैं हमेशा अमेरिका को आगे रखूंगा. देश का नेता होने के नाते आप सभी को भी अपने देशों के हित पहले साधने चाहिए.' इस बात को यूरोपीय देशों ने कुछ वर्ष पहले समझ लिया होता तो आज यूरोप की यह दुर्दशा नहीं होती.

रोहिंग्या समर्थकयूरोप के देश मूलतः समृद्ध और विकसित है, जहां संसाधानो की कमी नहीं है. सामान्य जनता शिक्षित और खुले विचारों को मानने वाली है. मानव अधिकार और व्यक्तिगत आज़ादी को यूरोप का समाज काफ़ी महत्व देता है. कई दशकों से मानव अधिकार के मुद्दे पर यूरोपीय देश, अपने देशों में प्रताड़ित विस्थापितों को शरण देते आए हैं.

विस्थापितों के अलावा विकसित समाज में जीवन व्यापन की इच्छा लेकर उत्तर अफ्रीका, मध्य-दक्षिण एशिया से अनेक लोग 1945-1950 से 2010-2015 के बीच यूरोप में बसने लगे. शुरू के दशकों में यूरोपीय सरकारों ने इन लोगों के आने पर कोई विशेष रोक नहीं लगाई. फलस्वरूप, क़ानूनी और गैर-क़ानूनी तरीके से आने वाले इन लोगों के कारण यूरोप के कई क्षेत्रों में जनसांख्यिकी परिवर्तन नज़र आने लगा है. कई क्षेत्रों में यूरोप के मूल निवासी अल्पसंख्यक बन गये हैं, और बाहर के लोग बहुसंख्यक. बेल्जियम, फ्रांस, ब्रिटेन जैसे देशों के कई शहरों में बाहर से आए लोगों ने अपने विशेष मोहल्ले भी बना लिए है. इन मोहल्लों में यूरोप के मूल निवासी जाने से डरते है.

2015 में मध्य एशिया में आइएसआइएस के उदय और सिरिया, इराक़ में छिड़े गृह युद्ध का असर यूरोप पर ऐसा पड़ा की आज यूरोप के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लग गया है. अपनी उदारवादी नीति पर कायम यूरोप के कई देशों ने मध्य एशिया के प्रताड़ित विस्थापितों को शरण देने का निर्णय किया. 2016 में लगभग 10 लाख शरणार्थी यूरोप पहुंचे. 2017 में भी क़ानूनी और गैर-क़ानूनी तरीके से शरणार्थियों का आना ज़ारी है. इतनी बड़ी संख्या में बाहर से लोगों का यूरोप में आना, यूरोपीय महाद्वीप के लिए विनाशकारी सिद्ध हो रहा है. शरणार्थियों के आने से यूरोप में यकायक क़ानून व्ययवस्था पर बुरा असर पड़ने लगा है. लूट-पाट, छेड़ खानी, बलात्कार, हत्या के मामलों में एक दम बढ़ोतरी देखी गई है. अधिकतम अपराध की घटनाओं में शरणार्थियों को लिप्त पाया गया है. जो शहर, देश महिलाओं के सम्मान के लिए विख्यात थे, जहां कभी महिलायों पर कोई अत्याचार नहीं हुआ था वहां शरणार्थियों के अपराध के कारण आज महिलाएं अपने आप को असुरक्षित महसूस करती है.

अराकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मीपिछले एक-दो साल से यूरोप अनगिनत आतंकवादी हमले झेल चुका है. कोई माने या न माने, इन आतंकवादी हमलों का मुख्य कारण वह सोच है जो इस्लामी कट्टरवाद से पैदा होती है. प्राय: इन आतंकवादी हमलों के पीछे उत्तर अफ्रीका, मध्य-दक्षिण एशिया से आए मुस्लिम समाज के युवा ही पाए गए है. यह युवा इस्लामी कट्टरवाद के प्रभाव में ग्रस्त पाए गए है. इस आतंकवाद, ख़राब क़ानून व्यवस्था की जड़ में यूरोपीय लोगों और उत्तर अफ्रीका, मध्य एशिया से आए लोगों के बीच का सांस्कृतिक अंतर है. यूरोपीय रहन-सहन, उदारवादी सोच, महिलाओं की आज़ादी, धार्मिक सोच, उत्तर अफ्रीका और मध्य एशिया से आए मुस्लिम समाज के बिल्कुल विपरीत है. यही अंतर टकराव का कारण बन रहा है.

यूरोपीय देशों ने मानवता और उदारवाद के आधार पर कई लोगों को अपने यहां रहने का स्थान दिया परंतु यह नहीं सोचा कि विपरीत विचारधारा के लोगों को अपने देश में जगह देकर वह मुसीबत को दावत दे रहे है. आज यूरोप का अस्तित्व ख़तरे में है. भारत को यूरोप की स्थिति से सीख लेनी चाहिए. यदि भारत में म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमानों को शरण दी गई तो भारत को भी यूरोप जैसी समस्या झेलनी पड़ सकती है.

जब तक म्यांमार में शांति स्थापित नहीं होती तब तक रोहिंग्या मुसलमानों को किसी मुस्लिम देश में शरण मिलनी चाहिए, ताकि रोहिंग्या मुसलमानों को किसी प्रकार के सांस्कृतिक अंतर और कलह का सामना न करना पड़े.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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