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अब जनता की अदालत में जयललिता की विरासत के दावेदार

    • आईचौक
    • Updated: 23 मार्च, 2017 04:37 PM
  • 23 मार्च, 2017 04:37 PM
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जयललिता की विरासत पर दावेदारी का मामला अब जनता की अदालत में है. पोएस गार्डन से तमिलनाडु विधानसभा और चुनाव आयोग के बाद अब जयललिता का आरके विधानसभा क्षेत्र फिलहाल ताजा अखाड़ा बना है.

जयललिता की विरासत पर दावेदारी का मामला अब जनता की अदालत में है. पोएस गार्डन से तमिलनाडु विधानसभा और चुनाव आयोग के बाद अब जयललिता का आरके विधानसभा क्षेत्र फिलहाल ताजा अखाड़ा बना है.

12 अप्रैल को होने ने जा रहा ये उपचुनाव हर पक्ष को अपनी दावेदारी साबित करने के लिए बराबर मौका मुहैया करा रहा है.

जनता की अदालत

यूपी और तमिलनाडु की सियासत के कई किरदार और परिस्थितियां मिलते जुलते हैं - नतीजे भी मेल खायें कोई जरूरी नहीं. समाजवादी पार्टी की तरह ही एआईएडीएमके का झगड़ा चुनाव आयोग पहुंचा, जहां ओ पनीरसेल्वम समर्थकों ने शशिकला को महासचिव बनाये जाने को चुनौती दी गयी.

तमिलनाडु में लड़ाई मुलायम सिंह यादव बनाम अखिलेश यादव जैसी नहीं रही जिसमें किसी एक पक्ष के लिए वॉक ओवर की भी गुंजाइश बचे. दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद चुनाव आयोग ने एआईएडीएमके के चुनाव चिह्न दो पत्तियों को तो फ्रीज किया ही पार्टी के नाम के इस्तेमाल पर भी रोक लगा दी. आयोग की ये व्यवस्था सिर्फ उपचुनाव तक ही लागू रहेगी, जब तक कि आखिरी फैसला नहीं हो जाता.

ये आम रास्ता है...

ईवीएम पर शक जताने से बहुत पहले मायावती का भरोसा उपचुनावों से उठ चुका था - इसीलिए वो कभी उपचुनावों में हिस्सा नहीं लेतीं. मायावती की नजर में उपचुनाव जैसे भी हों जीत उसमें उसी की होती है जो पार्टी सत्ता में होती है. अगर मायावती के नजरिये से देखें तो आरके नगर उपचुनाव में सत्ताधारी एआईएडीएमके के शशिकला गुट की जीत पक्की होनी चाहिये, मगर ऐसा हो ही जरूरी नहीं.

आरके पुरम सीट पर दोनों पक्ष नये सिंबल के साथ चुनाव मैदान में उतर रहे हैं जहां किसी के पास जुबानी दावेदारी के सिवा कोई पुरानी पहचान नहीं है. ऐसे में आयोग को भी न तो मायावती के 'हाथियों' या यूपी चुनाव की तरह...

जयललिता की विरासत पर दावेदारी का मामला अब जनता की अदालत में है. पोएस गार्डन से तमिलनाडु विधानसभा और चुनाव आयोग के बाद अब जयललिता का आरके विधानसभा क्षेत्र फिलहाल ताजा अखाड़ा बना है.

12 अप्रैल को होने ने जा रहा ये उपचुनाव हर पक्ष को अपनी दावेदारी साबित करने के लिए बराबर मौका मुहैया करा रहा है.

जनता की अदालत

यूपी और तमिलनाडु की सियासत के कई किरदार और परिस्थितियां मिलते जुलते हैं - नतीजे भी मेल खायें कोई जरूरी नहीं. समाजवादी पार्टी की तरह ही एआईएडीएमके का झगड़ा चुनाव आयोग पहुंचा, जहां ओ पनीरसेल्वम समर्थकों ने शशिकला को महासचिव बनाये जाने को चुनौती दी गयी.

तमिलनाडु में लड़ाई मुलायम सिंह यादव बनाम अखिलेश यादव जैसी नहीं रही जिसमें किसी एक पक्ष के लिए वॉक ओवर की भी गुंजाइश बचे. दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद चुनाव आयोग ने एआईएडीएमके के चुनाव चिह्न दो पत्तियों को तो फ्रीज किया ही पार्टी के नाम के इस्तेमाल पर भी रोक लगा दी. आयोग की ये व्यवस्था सिर्फ उपचुनाव तक ही लागू रहेगी, जब तक कि आखिरी फैसला नहीं हो जाता.

ये आम रास्ता है...

ईवीएम पर शक जताने से बहुत पहले मायावती का भरोसा उपचुनावों से उठ चुका था - इसीलिए वो कभी उपचुनावों में हिस्सा नहीं लेतीं. मायावती की नजर में उपचुनाव जैसे भी हों जीत उसमें उसी की होती है जो पार्टी सत्ता में होती है. अगर मायावती के नजरिये से देखें तो आरके नगर उपचुनाव में सत्ताधारी एआईएडीएमके के शशिकला गुट की जीत पक्की होनी चाहिये, मगर ऐसा हो ही जरूरी नहीं.

आरके पुरम सीट पर दोनों पक्ष नये सिंबल के साथ चुनाव मैदान में उतर रहे हैं जहां किसी के पास जुबानी दावेदारी के सिवा कोई पुरानी पहचान नहीं है. ऐसे में आयोग को भी न तो मायावती के 'हाथियों' या यूपी चुनाव की तरह 'समाजवादी' और एमसीडी चुनाव में 'आम' जैसे शब्दों के लिए कोई अलग से फरमान जारी करने की जहमत उठानी होगी. पूरी तरह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव.

नयी व्यवस्था के तहत शशिकला गुट को 'हैट' चुनाव चिह्न मिला है जबकि पन्नीरसेल्वम गुट को 'बिजली का खंभा'. साथ ही दोनों गुटों की पार्टियों के नामों को भी आयोग की मंजूरी मिली है. शशिकला गुट की पार्टी का नाम - ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम अम्मा (एआईएडीएमके अम्मा) मिला है तो पन्नीरसेल्वम पक्ष की पार्टी का नाम 'एआईएडीएमके पुराची थलैवी अम्मा' होगा.

आरके नगर सीट से एआईएडीएमके अम्मा के टीटीवी दीनाकरन मैदान में हैं तो एआईएडीएमके पुराची थलैवी अम्मा ने ई मधुसूदनन को मैदान में उतारा है.

राज्य की विपक्षी पार्टी डीएमके ने एन मरुदगनेष को अपना उम्मीदवार घोषित कर रखा है. 2016 में जयललिता के प्रभाव के चलते डीएमके को मुहंकी खानी पड़ी थी. ऐसे में जबकि अम्मा का ही नाम लेकर दो-दो दावेदार मैदान में हैं स्टालिन के लिए भी बढ़िया मौका माना जा सकता है जो उनकी नेतृत्व क्षमता के लिए इम्तिहान के एक पेपर जैसा ही है.

यूपी की प्रचंड जीत के बाद बीजेपी भी म्युजिक कम्पोजर गंगई अमरान के भरोसे कुलांचे भर रही है, जयललिता की भतीजी दीपा जयकुमार भी किस्मत आजमा रही हैं.

दीपा के लिए मौका

आरके नगर सीट से निर्दल चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकीं दीपा जयकुमार ने अब शशिकला गुट पर धमकाने का आरोप लगाया है. शशिकला गुट पर दबाव डाल कर इस्तीफा लेने का आरोप पूर्व मुख्यमंत्री ओ पनीरसेल्वम भी लगा चुके हैं.

जहां तक दीपा की दावेदारी का सवाल है तो उनके लिए ये सबसे सस्ता, टिकाऊ और मजबूत मौका है - अगर वो चुनाव जीत जाती हैं तो ये हर किसी के लिए बड़ा मैसेज होगा कि तमिलनाडु के लोग चाहते कुछ और हैं जबकि वहां हो कुछ और रहा है. एक सीट जीत कर वो पार्टी पर दावा नहीं जता सकतीं, लेकिन नैतिक दबाव तो बना ही सकती हैं.

दीपा की दावेदारी...

जयललिता के जन्म दिन पर दीपा ने एक राजनीतिक फोरम की भी घोषणा की थी, जिसमें उनके पति भी शामिल थे. अब पता चला है कि दीपा के पति उनके फोरम से अलग कोई राजनीतिक पार्टी बनाने की तैयारी कर रहे हैं.

यूपी में उम्मीद से दो गुणा ज्यादा मिली कामयाबी के बाद आरएसएस अब केरल, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में पांव जमाने की तैयारी कर रहा है. तमिलनाडु में बीजेपी की ओर से रजनीकांत को साधने की लगातार कोशिशें चलती रही हैं, लेकिन सुपरस्टार बस मुस्कुराते हुए फोटो सेशन से ज्यादा मौका नहीं देते.

ताजा घटनाक्रम में आरके नगर से बीजेपी उम्मीदवार गंगई आमरान की मुलाकात चर्चा में है. बीजेपी ने संगीतकार इलैयाराजा के भाई गंगई को जयललिता की सीट से चुनाव में उतारा है.

दरअसल, रजनीकांत का घर भी जयललिता के वेदा निलयम के पास ही है - और यही वजह है कि बीजेपी उम्मीदवार को उनसे मुलाकात का सहज मौका मिला.

मुलाकात भी हुई और फोटो सेशन भी. अब इतना कुछ हो गया तो एक ट्वीट तो बनता ही है. ट्वीट भी पोस्ट हो गया.

इस ट्वीट के पोस्ट होते ही नयी चर्चा और समीकरण बनने बिगड़ने लगे. आखिरकार सुपरस्टार रजनीकांत को भी अपना पक्ष स्पष्ट करने के लिए ट्विटर पर आना पड़ा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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