• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

मरीन ली पेन: ये नाम याद रख‍िएगा...

    • सुशोभित सक्तावत
    • Updated: 18 नवम्बर, 2016 02:00 PM
  • 18 नवम्बर, 2016 02:00 PM
offline
ये इस्लामिक चरमपंथ की घोर मुखालफत करती हैं, सेकुलर सिविल कोड का हवाला देकर फ्रांस में बुर्का और टोपी पर भी बैन लगवाना चाहती हैं. इन्‍हें फ्रांस की 'डोनाल्‍ड ट्रंप' भी कहा जा रहा है.

चार महीने बाद फ्रांस में होने जा रहे चुनावों में यह महिला जीत दर्ज कर प्रेसिडेंट बनने में कामयाब हो सकती है. मरीन की जीत की संभावनाएं आज जितनी उजली हैं, उतनी पहले कभी नहीं थीं. और उसकी बढ़ती लोकप्रियता में निहित प्रतीकात्मकता का महत्व तो इससे भी ज्यादा है.

क्योंकि, मरीन ली पेन की पार्टी नेशनल फ्रंट धुर दक्षिणपंथी (फ़ार राइट) है. वे अवैध इम‍िग्रैशन की कट्टर विरोधी हैं. वे इस्लामिक चरमपंथ की घोर मुखालफत करती हैं. वे सेकुलर सिविल कोड का हवाला देकर फ्रांस में बुर्का और टोपी (स्कल कैप) पर भी बैन लगवाना चाहती हैं. और उनकी लो‍कप्रियता दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है.

 मरीन ली पेन बन सकती हैं फ्रांस की अगली प्रसिडेंट

2015 में हुए क्षेत्रीय चुनावों में ली पेन के वोट शेयर में जबर्दस्त उछाल दर्ज किया गया. अप्रैल 2017 में होने जा रहे चुनावों में सोशलिस्ट पार्टी के फ्रांस्वां ओलां और रिपब्लिरकन्स के निकोलस सरकोजी को सबसे कड़ी चुनौती मरीन से ही मिलने वाली है.

ये भी पढ़ें- आतंकियों के निशाने पर क्यों रहता है फ्रांस...

आज फ्रांस में करीब पचास लाख मुस्लिम हैं, जो कि उसकी आबादी का 7.5 प्रतिशत हिस्सा है. यह यूरोपियन यूनियन के किसी भी देश में मुस्लिम आबादी का सबसे बड़ा प्रतिशत है. भूमध्यसागर के उस तरफ मौजूद ट्यूनीश‍िया और लीबिया से सीधे होने वाला अवैध इमिग्रैशन भी उसे...

चार महीने बाद फ्रांस में होने जा रहे चुनावों में यह महिला जीत दर्ज कर प्रेसिडेंट बनने में कामयाब हो सकती है. मरीन की जीत की संभावनाएं आज जितनी उजली हैं, उतनी पहले कभी नहीं थीं. और उसकी बढ़ती लोकप्रियता में निहित प्रतीकात्मकता का महत्व तो इससे भी ज्यादा है.

क्योंकि, मरीन ली पेन की पार्टी नेशनल फ्रंट धुर दक्षिणपंथी (फ़ार राइट) है. वे अवैध इम‍िग्रैशन की कट्टर विरोधी हैं. वे इस्लामिक चरमपंथ की घोर मुखालफत करती हैं. वे सेकुलर सिविल कोड का हवाला देकर फ्रांस में बुर्का और टोपी (स्कल कैप) पर भी बैन लगवाना चाहती हैं. और उनकी लो‍कप्रियता दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है.

 मरीन ली पेन बन सकती हैं फ्रांस की अगली प्रसिडेंट

2015 में हुए क्षेत्रीय चुनावों में ली पेन के वोट शेयर में जबर्दस्त उछाल दर्ज किया गया. अप्रैल 2017 में होने जा रहे चुनावों में सोशलिस्ट पार्टी के फ्रांस्वां ओलां और रिपब्लिरकन्स के निकोलस सरकोजी को सबसे कड़ी चुनौती मरीन से ही मिलने वाली है.

ये भी पढ़ें- आतंकियों के निशाने पर क्यों रहता है फ्रांस...

आज फ्रांस में करीब पचास लाख मुस्लिम हैं, जो कि उसकी आबादी का 7.5 प्रतिशत हिस्सा है. यह यूरोपियन यूनियन के किसी भी देश में मुस्लिम आबादी का सबसे बड़ा प्रतिशत है. भूमध्यसागर के उस तरफ मौजूद ट्यूनीश‍िया और लीबिया से सीधे होने वाला अवैध इमिग्रैशन भी उसे परेशान किए हुए है. पिछले दो साल में यूरोप में सबसे नृशंस आतंकी हमले फ्रांस में ही हुए हैं. इल्लीगल इमिग्रेशन और रैड‍िकल इस्लाम, इन दो मुद्दों पर आज यूरोप बंटा हुआ है और इसका सबसे बड़ा प्रयोगस्थल फ्रांस बना हुआ है. इसके बाद नीदरलैंड्स, बेल्जियम और जर्मनी का नंबर आता है.

पूरी दुनिया में संरक्षणवादी प्रवृत्तियां घर कर रही हैं. वैश्वीकरण का गुब्‍बारा फूट रहा है. राजनीतिक दलों के नेता राष्ट्रीय हितों को किसी भी कीमत पर बचाने की बात कर रहे हैं और उन्हें भरपूर जनसमर्थन भी मिल रहा है. अमेरिका में हुए चुनाव इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं, जिनमें डोनाल्ड ट्रम्प को इन्हीं मसलों पर जीत हासिल हुई है. यह आकस्मिक नहीं है कि ट्रम्प की जीत के तुरंत बाद मरीन ली पेन ने उन्हें शुभकामना संदेश प्रेष‍ित करते हुए कहा : 'आपने असंभव को संभव बना दिया है. लोग अपना भविष्य वापस चाहते हैं और हम उन्हें यह देकर ही रहेंगे.'

इस्लामिक चरमपंथ की घोर मुखालफत करती हैं मरीन

भारत, रूस, ब्रिटेन (ब्रेक्सिट), अमेरिका, फ्रांस : ये एक "पैटर्न" है. इसे आप "बैंडवैगन इफेक्ट" कह लीजिए. या इसे आप 'चेन रिएक्शन' कह लीजिए. वैश्वीकरण के मूल में उदारवाद था, खुली प्रणालियां थीं. उसमें कहीं न कहीं यह अलिख‍ित शर्त भी निहित थी कि हम अपने दरवाजे आपके लिए खोल रहे हैं तो यह उम्मीद भी आपसे कर रहे हैं कि आप हमें नुकसान नहीं पहुंचाएंगे. वैश्वीकरण के पच्चीस साल के प्रयोग के बाद अब यह भरोसा टूटने लगा है. 'ज़ेनोफ़ोबिया' पनप रहा है. लोग दूसरे देश और दूसरी नस्ल के लोगों को शक की नजर से देख रहे हैं. उन्हें महसूस हो रहा है कि भूमंडलीकरण के नाम पर लिबरल पॉवर एलीट्स ने उन्हें ठगा है. और ऐसा महसूस करने के लिए उन्हें दोष नहीं दिया जा सकता.

ये भी पढ़ें- ट्रंप के जीतने बाद भी क्या आत्ममंथन नहीं करेगा मुस्लिम समुदाय ?

जनवरी में डॉनल्ड ट्रम्प अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार संभाल लेंगे. पूरी दुनिया की नजर होगी कि वे अपनी नीतियों को किस तरह से अमलीजामा पहनाने वाले हैं. और इसी के साथ अप्रैल में फ्रांस में होने जा रहे चुनावों पर भी दुनिया की नजर बनी रहेगी. दुनिया चलाने वाले जी-8 के चार देशों यूके, यूएस, फ्रांस और रूस में संरक्षणवादी प्रवृत्तियों का उभार एक नई विश्व-व्यवस्था के निर्माण की ओर संकेत करता है. इतिहास की यह करवट अप्रत्याश‍ित है, जिसकी आज से महज एक दशक पहले 'मल्टी-पोलर वर्ल्ड' की बातें करने वालों ने कल्पना भी नहीं की होगी. लेकिन दुनियाभर में लिबरल्स ने अपने धूर्ततापूर्ण दोमुंहेपन के चलते लोकप्रिय विमर्श को जिस तरह से छला है, जरूरी सवालों पर बात करने से जिस तरह से इनकार किया है और मध्ययुगीन प्रवृत्तिकयों को जिस तरह से मौन समर्थन दिया है, उसको देखते हुए यह शायद इतना आश्चर्यजनक भी नहीं कहा जाना चाहिए.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲