• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

दंगों के खुदरा व्यापारी और क्‍या क्‍या गुल खिलाएंगे!

    • पीयूष बबेले
    • Updated: 28 जून, 2016 06:32 PM
  • 28 जून, 2016 06:32 PM
offline
नहर वाली घटना का मामला यह है कि जब हमले की नौबत आई तो लोग ट्रेक्टर ट्रालियां वहीं छोड़कर भाग गए थे. एक-दो ट्रॉली में आग लगी थी, लेकिन मरा कोई नहीं था. वो तो जोश बना रहे इसलिए बात आगे बढ़ती रही...

बीती रात आज तक चैनल पर ऑपरेशन दंगा देख रहा था. किस तरह विधायक खुलेआम किसी फिल्म के खिलाफ बवाल आयोजित करने के लिए पैसे मांग रहे थे. और यह भी गिना रहे थे कि बवाल कराने के किस मद में कितना पैसा आएगा. यह हमारे सार्वजनिक जीवन का ऐसा चेहरा है जो गाहे ब गाहे स्टिंग या अन्य माध्यमों से सामने आता रहता है. चूंकि इस वीडियो में मुजफ्फरनगर के विधायक को दिखाया गया तो मुझे 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों की याद आ गई. यह तब की बात है जब लोई और बाकी दूसरे दंगा प्रभावित शिविरों की रिपोर्टिंग जोरों पर थी. जब इस बात ने जोर पकड़ लिया कि एक पक्ष के लोगों के साथ जुल्म हुआ है, तो इस संतुलित करने के लिए एक खबर चली कि शामली में एक नहर के पास बहुत से हिंदुओं का कत्ल कर दिया गया और लाशें नहर में बहा दी गईं. कई मित्रों ने मुझसे भी यह सवाल किया कि आप शिविर के पीडि़तों को तो पहली बार उनके गांव में ले गए और वहां के जले मकानों और धर्मस्थलों पर लिखी गालियों तक को पढ़ आए, लेकिन इस कत्लेआम को आप ने किस वजह से छोड़ दिया. सवाल जायज था. मैंने तब कई लोगों से मारकर नहर फेंके गए लोगों की जानकारी देने के लिए संपर्क किया.

देश में दंगों के वक्त का नजारा

लेकिन नाम नहीं मिल पाए. उसके बाद मुझे पता चला कि एक वकील साहब ने सुप्रीम कोर्ट में इसी मुद्दे पर याचिका दायर की है. मैंने तुरंत उनसे संपर्क किया और मारे गए लोगों की सूची मांगी. उन्होंने बताया कि उनके पास सूची नहीं है, और रिपोर्टर के नाते मेरे पास सूची होनी चाहिए.

कई जगह माथा पटकने के बाद अंत में मैंने मुजफ्फरनगर में आरएसएस के एक बुजुर्ग प्रचारक से संपर्क किया. मैं जिस संपर्क के माध्यम से गया था उसमें ऑफ रिकॉर्ड बातचीत के...

बीती रात आज तक चैनल पर ऑपरेशन दंगा देख रहा था. किस तरह विधायक खुलेआम किसी फिल्म के खिलाफ बवाल आयोजित करने के लिए पैसे मांग रहे थे. और यह भी गिना रहे थे कि बवाल कराने के किस मद में कितना पैसा आएगा. यह हमारे सार्वजनिक जीवन का ऐसा चेहरा है जो गाहे ब गाहे स्टिंग या अन्य माध्यमों से सामने आता रहता है. चूंकि इस वीडियो में मुजफ्फरनगर के विधायक को दिखाया गया तो मुझे 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों की याद आ गई. यह तब की बात है जब लोई और बाकी दूसरे दंगा प्रभावित शिविरों की रिपोर्टिंग जोरों पर थी. जब इस बात ने जोर पकड़ लिया कि एक पक्ष के लोगों के साथ जुल्म हुआ है, तो इस संतुलित करने के लिए एक खबर चली कि शामली में एक नहर के पास बहुत से हिंदुओं का कत्ल कर दिया गया और लाशें नहर में बहा दी गईं. कई मित्रों ने मुझसे भी यह सवाल किया कि आप शिविर के पीडि़तों को तो पहली बार उनके गांव में ले गए और वहां के जले मकानों और धर्मस्थलों पर लिखी गालियों तक को पढ़ आए, लेकिन इस कत्लेआम को आप ने किस वजह से छोड़ दिया. सवाल जायज था. मैंने तब कई लोगों से मारकर नहर फेंके गए लोगों की जानकारी देने के लिए संपर्क किया.

देश में दंगों के वक्त का नजारा

लेकिन नाम नहीं मिल पाए. उसके बाद मुझे पता चला कि एक वकील साहब ने सुप्रीम कोर्ट में इसी मुद्दे पर याचिका दायर की है. मैंने तुरंत उनसे संपर्क किया और मारे गए लोगों की सूची मांगी. उन्होंने बताया कि उनके पास सूची नहीं है, और रिपोर्टर के नाते मेरे पास सूची होनी चाहिए.

कई जगह माथा पटकने के बाद अंत में मैंने मुजफ्फरनगर में आरएसएस के एक बुजुर्ग प्रचारक से संपर्क किया. मैं जिस संपर्क के माध्यम से गया था उसमें ऑफ रिकॉर्ड बातचीत के द्वार खुले. शहर के एक होटल में रात आठ बजे से नौ-दस बजे तक प्रचारक जी से लंबी चर्चा हुई. उनके झोले में अखबारों की कतरनें थीं, जिनमें हिंदू उत्पीडऩ से जुड़ी खबरों की प्रमुखता थी. खैर, मैंने उनसे पूछा कि नहर में काट कर फेंक दिए गए लड़कों के बारे में क्या जानकारी है? शुरू में उन्होंने यही कहा कि हां वहां बहुत जुल्म हुआ. लेकिन वह नाम नहीं बता पा रहे थे. उनका यही कहना था कि कई लोग थे, पता लगाना कठिन है. लेकिन जब मैंने उनसे यहां तक कहा कि आखिर जिसका लड़का गायब हुआ है, उसने कहीं न कहीं तो संपर्क किया होगा. आपका संगठन तो गांव-गांव तक फैला है और इन पीडि़तों के बारे में आपके पास बिलकुल ब्योरा न हो, यह कैसे हो सकता है? भले ही इनकी एफआईआर न लिखी गई हो और उनका मृतकों में नाम न हो, लड़का किसी भी वजह से गायब हो, हम उसे रिपोर्ट करेंगे? आखिर एकपक्षीय खबरों का छपना और हिंदुओं पर अत्याचार की खबरें प्रमुखता से आना तो गलत है? इस जिद के बाद प्रचारक जी कुछ पिघले, उनकी बुजुर्ग मुस्कान मुझे अब तक याद है. उन्होंने कहा था, ‘‘नहर वाली घटना का मामला यह है कि जब हमले की नौबत आई तो लोग ट्रेक्टर ट्रालियां वहीं छोड़कर भाग गए थे. एक-दो ट्रॉली में आग लगी थी, लेकिन मरा कोई नहीं था. वो तो जोश बना रहे इसलिए बात आगे बढ़ती रही.’’

इसके बाद बेहद विनम्र नजर आने वाले प्रचारक जी चले गए. लेकिन लोगों के जहन में भरी गई यह और ऐसी जमाम अफवाहें आज तक कायम हैं. पिछले हफ्ते कैराना गया तो वहां भी देखा कि इस बार लड़ाई लाठी-डंडे के बजाय दिमागों में लड़ी जा रही है. कोई किसी को मार नहीं रहा है, लेकिन अविश्वास जड़ें जमा रहा है. दिमाग में पश्चिमी यूपी के ही उस्ताद शायद वसीम बरेलवी का एक मिसरा तैर गया- ‘‘जेहनों में वह जंग है जारी, जिसका कुछ ऐलान नहीं है.’’

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲