• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

सुसंस्कृत विश्व के निर्माण के लिए क्यों जरूरी हैं गांधी के विचार

    • अरविंद जयतिलक
    • Updated: 02 अक्टूबर, 2018 01:48 PM
  • 02 अक्टूबर, 2018 01:48 PM
offline
आज के दौर में भारत ही नहीं बल्कि विश्व समुदाय को भी समझना होगा कि गांधी के ही सुझाए रास्ते पर चलकर ही एक समृद्ध और सुसंस्कृत विश्व का निर्माण किया जा सकता है.

आधुनिक भारतीय चिंतन प्रवाह में गांधी के विचार सार्वकालिक हैं. वे भारतीय उदात्त सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत के अग्रदूत भी हैं और सहिष्णुता, उदारता और तेजस्विता के प्रमाणिक तथ्य भी. सत्यशोधक संत भी और शाश्वत सत्य के यथार्थ सामाजिक वैज्ञानिक भी. राजनीति, साहित्य, संस्कृति, धर्म, दर्शन, विज्ञान और कला के अद्भुत मनीषी और मानववादी विश्व निर्माण के आदर्श मापदण्ड भी. सम्यक प्रगति मार्ग के चिह्न भी और भारतीय संस्कृति के परम उद्घोषक भी.

गांधी के लिए वेद, पुराण एवं उपनिषद का सारतत्व ही उनका ईश्वर है और बुद्ध, महावीर की करुणा ही उनकी अहिंसा. सत्य, अहिंसा, ब्रहमचर्य, अस्तेय, अपरिग्रह, शरीर श्रम, आस्वाद, अभय, सर्वधर्म समानता, स्वदेशी और समावेशी समाज निर्माण की परिकल्पना ही उनका आदर्श रहा है. गांधी के आदर्श विचार उनके निजी तथा सामाजिक जीवन तक ही सीमित नहीं रहे. उन विचारों को उन्होंने आजादी की लड़ाई से लेकर जीवन के विविध पक्षों में भी आजमाया. तब लोगों का कहना था कि आजादी के लक्ष्य में सत्य और अहिंसा नहीं चलेगी. लेकिन गांधी ने दिखा दिया कि सत्य और अहिंसा के रास्ते पर चलकर भी आजादी को हासिल किया जा सकता है.

दुनिया के किसी भी इंसान के लिए गांधी जी का जीवन एक प्रेरणा है

आजादी के आंदोलन के दौरान गांधी ने लोगों को संघर्ष के तीन मंत्र दिए सत्याग्रह, असहयोग और बलिदान. उन्होंने खुद इसे समय की कसौटी पर कसा भी. सत्याग्रह को सत्य के प्रति आग्रह बताया. यानी आदमी को जो सत्य दिखे उस पर पूरी शक्ति और निष्ठा से डटा रहे. बुराई, अन्याय और अत्याचार का किन्हीं भी परिस्थितियों में समर्थन न करे. सत्य और न्याय के लिए प्राणोत्सर्ग करने को बलिदान कहा. अहिंसा के बारे में उनके विचार सनातन भारतीय संस्कृति की प्रतिध्वनि हैं. गांधी पर गीता के उपदेशों का व्यापक असर रहा. वे...

आधुनिक भारतीय चिंतन प्रवाह में गांधी के विचार सार्वकालिक हैं. वे भारतीय उदात्त सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत के अग्रदूत भी हैं और सहिष्णुता, उदारता और तेजस्विता के प्रमाणिक तथ्य भी. सत्यशोधक संत भी और शाश्वत सत्य के यथार्थ सामाजिक वैज्ञानिक भी. राजनीति, साहित्य, संस्कृति, धर्म, दर्शन, विज्ञान और कला के अद्भुत मनीषी और मानववादी विश्व निर्माण के आदर्श मापदण्ड भी. सम्यक प्रगति मार्ग के चिह्न भी और भारतीय संस्कृति के परम उद्घोषक भी.

गांधी के लिए वेद, पुराण एवं उपनिषद का सारतत्व ही उनका ईश्वर है और बुद्ध, महावीर की करुणा ही उनकी अहिंसा. सत्य, अहिंसा, ब्रहमचर्य, अस्तेय, अपरिग्रह, शरीर श्रम, आस्वाद, अभय, सर्वधर्म समानता, स्वदेशी और समावेशी समाज निर्माण की परिकल्पना ही उनका आदर्श रहा है. गांधी के आदर्श विचार उनके निजी तथा सामाजिक जीवन तक ही सीमित नहीं रहे. उन विचारों को उन्होंने आजादी की लड़ाई से लेकर जीवन के विविध पक्षों में भी आजमाया. तब लोगों का कहना था कि आजादी के लक्ष्य में सत्य और अहिंसा नहीं चलेगी. लेकिन गांधी ने दिखा दिया कि सत्य और अहिंसा के रास्ते पर चलकर भी आजादी को हासिल किया जा सकता है.

दुनिया के किसी भी इंसान के लिए गांधी जी का जीवन एक प्रेरणा है

आजादी के आंदोलन के दौरान गांधी ने लोगों को संघर्ष के तीन मंत्र दिए सत्याग्रह, असहयोग और बलिदान. उन्होंने खुद इसे समय की कसौटी पर कसा भी. सत्याग्रह को सत्य के प्रति आग्रह बताया. यानी आदमी को जो सत्य दिखे उस पर पूरी शक्ति और निष्ठा से डटा रहे. बुराई, अन्याय और अत्याचार का किन्हीं भी परिस्थितियों में समर्थन न करे. सत्य और न्याय के लिए प्राणोत्सर्ग करने को बलिदान कहा. अहिंसा के बारे में उनके विचार सनातन भारतीय संस्कृति की प्रतिध्वनि हैं. गांधी पर गीता के उपदेशों का व्यापक असर रहा. वे कहते थे कि हिंसा और कायरता पूर्ण लड़ाई में मैं कायरता की बजाए हिंसा को पसंद करूंगा. मैं किसी कायर को अहिंसा का पाठ नहीं पढ़ा सकता वैसे ही जैसे किसी अंधे को लुभावने दृश्यों की ओर प्रलोभित नहीं किया जा सकता.

उन्होंने अहिंसा को शौर्य का शिखर माना. उन्होंने अहिंसा की स्पष्ट व्याख्या करते हुए कहा कि अहिंसा का अर्थ है ज्ञानपूर्वक कष्ट सहना. उसका अर्थ अन्यायी की इच्छा के आगे दबकर घुटने टेक देना नहीं. उसका अर्थ यह है कि अत्याचारी की इच्छा के विरुद्ध अपनी आत्मा की सारी शक्ति लगा देना. अहिंसा के माध्यम से गांधी ने विश्व को यह भी संदेश दिया कि जीवन के इस नियम के अनुसार चलकर एक अकेला आदमी भी अपने सम्मान, धर्म और आत्मा की रक्षा के लिए साम्राज्य के सम्पूर्ण बल को चुनौती दे सकता है. गांधी के इन विचारों से विश्व की महान विभूतियों ने स्वयं को प्रभावित बताया. आज भी उनके विचार विश्व को उत्प्रेरित कर रहे हैं. लोगों द्वारा उनके अहिंसा और सविनय अवज्ञा जैसे अहिंसात्मक हथियारों को आजमाया जा रहा है.

ऐसे समय में जब पूरे विश्व में हिंसा का बोलबाला है, राष्ट्र आपस में उलझ रहे हैं, मानवता खतरे में है, गरीबी, भूखमरी और कुपोषण लोगों को लील रहा है तो गांधी के विचार बरबस प्रासंगिक हो जाते हैं. अब विश्व महसूस भी करने लगा है कि गांधी के बताए रास्ते पर चलकर ही विश्व को नैराश्य, द्वेष और प्रतिहिंसा से बचाया जा सकता है. गांधी के विचार विश्व के लिए इसलिए भी प्रासंगिक हैं कि उन विचारों को उन्होंने स्वयं अपने आचरण में ढालकर सिद्ध किया. उन विचारों को सत्य और अहिंसा की कसौटी पर जांचा-परखा.

1920 का असहयोग आंदोलन जब जोरों पर था उस दौरान चौरी चौरा में भीड़ ने आक्रोश में एक थाने को अग्नि की भेंट चढ़ा दी. इस हिंसक घटना में 22 सिपाही जीवित जल गए. गांधी जी द्रवित हो उठे. उन्होंने तत्काल आंदोलन को स्थगित कर दिया. उनकी खूब आलोचना हुई लेकिन वे अपने इरादे से टस से मस नहीं हुए. वे हिंसा को एक क्षण के लिए भी बर्दाश्त करने को तैयार नहीं थे. उनकी दृढ़ता कमाल की थी. जब उन्होंने महसूस किया कि ब्रिटिश सरकार अपने वादे के मुताबिक भारत को आजादी देने में हीलाहवाली कर रही है तो उन्होंने भारतीयों को टैक्स देने के बजाए जेल जाने का आह्नान किया. विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का आंदोलन चलाया. ब्रिटिश सरकार द्वारा नमक पर टैक्स लगाए जाने के विरोध में दांडी यात्रा की और समुद्र तट पर नमक बनाया. उनकी दृढ़ता को देखते हुए उनके निधन पर अर्नोल्ड जे टोनीबी ने अपने लेख में उन्हें पैगंबर कहा.

प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीन का यह कथन लोगों की जुबान पर है कि आने वाले समय में लोगों को सहज विश्वास नहीं होगा कि हांड़-मांस का एक ऐसा जीव था जिसने अहिंसा को अपना हथियार बनाया. हिंसा भरे वैश्विक माहौल में गांधी के विचारों की ग्राह्यता बढ़ती जा रही है. जिन अंग्रेजों ने विश्व के चतुर्दिक हिस्सों में यूनियन जैक को लहराया और भारत में गांधी की अहिंसा को चुनौती दी, आज वे भी गांधी के अहिंसात्मक आचरण को अपनाने की बात कर रहे हैं. विश्व का पुलिसमैन कहा जाने वाला अमेरिका जो अपनी धौंस-पट्टी से विश्व समुदाय को आतंकित करता है अब उसे भी लगने लगा है कि गांधी की विचारधारा की राह पकड़कर ही विश्व में शांति स्थापित की जा सकती है.

सच तो यह है कि गांधी के शाश्वत मूल्यों की प्रासंगिकता बढ़ी है. गांधी अहिंसा के न केवल प्रतीक भर हैं बल्कि मापदण्ड भी हैं जिन्हें जीवन में उतारने की कोशिश हो रही है. अभी गत वर्ष पहले ही अमेरिका पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने व्हाइट हाउस में अफ्रीकी महाद्वीप के 50 देशों के युवा नेताओं को संबोधित करते हुए कहा था कि आज के बदलते परिवेश में युवाओं को गांधी जी से प्रेरणा लेने की जरूरत है. गत वर्ष पहले अमेरिका की प्रतिष्ठित टाइम पत्रिका ने महात्मा गांधी की अगुवाई वाले नमक सत्याग्रह को दुनिया के सर्वाधिक दस प्रभावशाली आंदोलनों में शुमार किया.

याद होगा अभी कुछ साल पहले जाम्बिया के लोकसभा सचिवालय द्वारा विज्ञान भवन में संसदीय लोकतंत्र पर एक सेमिनार आयोजित किया गया जिसमें राष्ट्रमंडल देशों के लोकसभा अध्यक्षों और पीठासीन अधिकारियों ने शिरकत की. जाम्बिया की नेशनल असेम्बली के अध्यक्ष ने भी इस सम्मेलन के दौरान गांधी के सिद्धान्तों की मुक्त कंठ से प्रशंसा की और कहा कि भारत के साथ हम भी महात्मा गांधी की विरासत में साझेदार हैं. उन्होनें बताया कि अहिंसा के बारे में गांधी जी की शिक्षाओं ने जाम्बिया के स्वतंत्रता आन्दोलन को बेहद प्रभवित किया.

सच तो यह है कि अब गांधी के वैचारिक विरोधियों को भी लगने लगा है कि गांधी के बारे में उनकी अवधारणा संकुचित थी. उन्हें विश्वास होने लगा है कि गांधी के नैतिक नियम पहले से कहीं और अधिक प्रासंगिक और प्रभावी हैं और उनका अनुपालन होना चाहिए. गांधी जी राजनीतिक आजादी के साथ सामाजिक-आर्थिक आजादी के लिए भी चिंतित थे. समावेशी समाज की संरचना को कैसे मजबूत आधार दिया जाए उसके लिए उनका अपना स्वतंत्र चिंतन था.

उन्होंने कहा कि जब तक समाज में विषमता रहेगी, हिंसा भी रहेगी. हिंसा को खत्म करने के लिए विषमता मिटाना जरूरी है. विषमता के कारण समृद्ध अपनी समृद्धि और गरीब अपनी गरीबी में मारा जाएगा. इसलिए ऐसा स्वराज हासिल करना होगा, जिसमें अमीर-गरीब के बीच खाई न हो. शिक्षा के संबंध में भी उनके विचार स्पष्ट थे. उन्होंने कहा है कि मैं पाश्चात्य संस्कृति का विरोधी नहीं हूं. मैं अपने घर के खिड़की दरवाजों को खुला रखना चाहता हूं जिससे बाहर की स्वच्छ हवा आ सके. लेकिन विदेशी भाषाओं की ऐसी आंधी न आ जाए कि मैं औंधे मुंह गिर पडूं.

गांधी जी नारी सशक्तीकरण के प्रबल पैरोकार थे. उन्होंने कहा कि जिस देश अथवा समाज में स्त्री का आदर नहीं होता उसे सुसंस्कृत नहीं कहा जा सकता. लेकिन दुर्भाग्य है कि गांधी के ही देश में उनके आदर्श विचारों की कद्र नहीं है. आज के दौर में भारत ही नहीं बल्कि विश्व समुदाय को भी समझना होगा कि उनके सुझाए रास्ते पर चलकर ही एक समृद्ध, सामथ्र्यवान, समतामूलक और सुसंस्कृत विश्व का निर्माण किया जा सकता है.

ये भी पढ़ें -

क्या "सत्य और अहिंसा" की आड़ में अपनी राजनीति चमका रहे थे गांधी ?

'तिरंगा' बनाने वाले पिंगली ने शायद ही सोचा हो, देश ऐसे भी बंटेगा?

पीटरमरीत्ज़बर्ग रेलवे स्टेशन, वो जगह जिसने मोहनदास को महात्मा बना दिया


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲