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क्‍यों बुलंदशहर दंगे का रहस्‍य कभी नहीं खुलेगा...

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 06 दिसम्बर, 2018 10:38 PM
  • 06 दिसम्बर, 2018 10:36 PM
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जैसे जैसे घड़ी की सुइयां आगे बढ़ रही हैं और एक के बाद एक नए तथ्य सामने आ रहे हैं बुलंदशहर हिंसा का मामला उलझता जा रहा है. चंद घंटों में ही मामला इस हद तक उलझ चुका है कि शायद ही कभी इंसाफ हो पाए और दोषियों को सजा मिल सके.

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में हुई हिंसा को 50 घंटे के आस पास हो चुके हैं. समय की इस अवधि में जितनी भी तफ्तीश हुई, उसमें ऐसा बहुत कुछ हो चुका है, जिससे मामला किसी मिस्ट्री सरीखा बन गया है. बुलंदशहर हिंसा की जो ताजी स्थिति है, यदि उसका अवलोकन किया जाए तो इस बात पर यकीन किया जा सकता है कि शायद ही ये उलझा हुआ मामला कभी सुलझे और दोषियों को सजा मिले. गोकशी की अफ़वाहों के बीच जिस तरह हिंसा हुई और जैसे उसमे एक पुलिस इंस्पेक्टर के अलावा स्थानीय युवक की मौत हुई, मामले पर राजनीतिक रंग चढ़ गया है. बात अगर पुलिस की हो तो योगी की पुलिस हमेशा की तरह एक बार फिर सवालों के घेरे में है और उससे लगातार प्रश्न पूछे जा रहे हैं. हमने दंगे के पहले और दंगे के बाद की स्थिति का अवलोकन किया. ऐसा करते हुए हमें ऐसे बहुत से बिंदु मिले, जो इस बात को साफ कर देते हैं कि, जिस तरह मामले को अलग-अलग रंगों में रंगा गया शायद ही कभी तस्वीर साफ हो पाए और सच्चाई निकल कर हमारे सामने आ पाए. आइये नजर डालते हैं कुछ ऐसे पहलुओं पर.

जैसे जैसे समय बीत रहा है बुलंदशहर हिंसा का मामला उलझता जा रहा है

गौ-हत्‍या किसने की, इसका पुख्‍ता प्रमाण नहीं है:

मामले की शुरुआत गौ हत्या की सूचना से हुई. शुरुआत में कहा गया कि, बजरंग दल का जिला अध्यक्ष योगेश राज जो इस घटना का मास्टर माइंड था. उसने खेतों में गाय की हत्या के अवशेष देखे. इसके बाद गोकशी पर उत्तर प्रदेश के एडीजी लॉ एंड आर्डर आनंद कुमार का बयान आया जिसने उन्होंने स्याना के भूतपूर्व ग्राम प्रधान का हवाला दिया. आनंद कुमार के अनुसार बुलंदशहर के थाना स्याना में भूतपूर्व ग्राम प्रधान ने सूचना दी कि ग्राम मऊ के खेतों में गोवंश के अवशेष पाए गए हैं. ग्राम प्रधान से मिली इस सूचना के बाद स्याना थाने के...

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में हुई हिंसा को 50 घंटे के आस पास हो चुके हैं. समय की इस अवधि में जितनी भी तफ्तीश हुई, उसमें ऐसा बहुत कुछ हो चुका है, जिससे मामला किसी मिस्ट्री सरीखा बन गया है. बुलंदशहर हिंसा की जो ताजी स्थिति है, यदि उसका अवलोकन किया जाए तो इस बात पर यकीन किया जा सकता है कि शायद ही ये उलझा हुआ मामला कभी सुलझे और दोषियों को सजा मिले. गोकशी की अफ़वाहों के बीच जिस तरह हिंसा हुई और जैसे उसमे एक पुलिस इंस्पेक्टर के अलावा स्थानीय युवक की मौत हुई, मामले पर राजनीतिक रंग चढ़ गया है. बात अगर पुलिस की हो तो योगी की पुलिस हमेशा की तरह एक बार फिर सवालों के घेरे में है और उससे लगातार प्रश्न पूछे जा रहे हैं. हमने दंगे के पहले और दंगे के बाद की स्थिति का अवलोकन किया. ऐसा करते हुए हमें ऐसे बहुत से बिंदु मिले, जो इस बात को साफ कर देते हैं कि, जिस तरह मामले को अलग-अलग रंगों में रंगा गया शायद ही कभी तस्वीर साफ हो पाए और सच्चाई निकल कर हमारे सामने आ पाए. आइये नजर डालते हैं कुछ ऐसे पहलुओं पर.

जैसे जैसे समय बीत रहा है बुलंदशहर हिंसा का मामला उलझता जा रहा है

गौ-हत्‍या किसने की, इसका पुख्‍ता प्रमाण नहीं है:

मामले की शुरुआत गौ हत्या की सूचना से हुई. शुरुआत में कहा गया कि, बजरंग दल का जिला अध्यक्ष योगेश राज जो इस घटना का मास्टर माइंड था. उसने खेतों में गाय की हत्या के अवशेष देखे. इसके बाद गोकशी पर उत्तर प्रदेश के एडीजी लॉ एंड आर्डर आनंद कुमार का बयान आया जिसने उन्होंने स्याना के भूतपूर्व ग्राम प्रधान का हवाला दिया. आनंद कुमार के अनुसार बुलंदशहर के थाना स्याना में भूतपूर्व ग्राम प्रधान ने सूचना दी कि ग्राम मऊ के खेतों में गोवंश के अवशेष पाए गए हैं. ग्राम प्रधान से मिली इस सूचना के बाद स्याना थाने के पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध कुमार पुलिसबल के साथ घटनास्थल पर पहुंचे.

एडीजी लॉ एंड आर्डर के बयान के बाद लोग गोकशी पर सोच विचार कर ही रहे थे कि, मुख्य अभियुक्त योगेश राज ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो डाला और सफाई दी. इस ताजे वीडियो में योगेश ये कहते पाया जा रहा है कि उसे कुछ लोगों द्वारा गोकशी की सूचना मिली. यहां तीन बयान हैं जो अपने में भिन्न हैं और साफ साफ बता रहे हैं कि गोकशी होते हुए किसी ने देखा नहीं और जो हुआ वो महज अफवाह के कारण हुआ.

कुंदन की ट्रॉली में गायों के अवशेष, लेकिन क्‍या वाकई कुंदन ही कुसूरवार है?

घटना वैसे ही उलझी हुई थी उसके बाद सनसनी तब मची जब इस घटना के पीछे किसी कुंदन का नाम आया. सोशल मीडिया पर घटना का एक और वीडियो वायरल हुआ है. जिसमें एक ट्राली दिखाई गई है और उसमें गायों के अवशेष हैं. साथ ही घटना का जिम्मेदार किसी कुंदन नाम के शख्स को ठहराया जा रहा है.

कहा जा रहा है कि गोकशी कुंदन ने की. ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर ये कुंदन कौन है? और अब जबकि ये वीडियो सामने आ गया है तो पुलिस उसे खोजने या उसके बारे में कुछ पता लगा पाने में क्यों असमर्थ है?  सवाल जस का तस है कि क्या वाकई इस घटना का असली कसूरवार कुंदन है?

सुमित की गोली लगने से मौत, परिजनों का बयान वीडियो से अलग:

घटना में पुलिस इंस्पेक्टर के अलावा सुमित नाम के युवक की मौत हुई है. घटना का जो ताजा वीडियो सामने आया है उसमें साफ दिख रहा है कि सुमित भीड़ का हिस्सा है और पुलिस पर पत्थरबाजी कर रहा है. वीडियो में साफ है कि आत्मरक्षा में पुलिस की तरफ से चली गोली सुमित को लगती है और मौके पर ही उसकी मौत हो जाती है. इस पूरे मामले में सबसे दिलचस्प बात ये है कि वीडियो में जैसा सुमित का रवैया था और जैसा उसके परिजन बता रहे हैं वो बिल्कुल भी मेल नहीं खाता.

सुमित के परिजन सुमित को पढ़ने लिखने वाला लड़का बता रहे हैं. परिजनों की मानें तो सुमित भविष्य में पुलिसकर्मी बनना चाहता था और इसके लिए घर से दूर एक कोचिंग क्लास भी करता था और प्रशिक्षण भी ले रहा था. साथ ही परिजनों ने ये भी कहा कि 20 दिन पहले ही खेतीबाड़ी में अपने पिता की मदद करने के लिए वो गांव आया हुआ था. ऐसे में सवाल ये उठता है कि यदि सुमित पढ़ने लिखने वाला लड़का था. तो वो भीड़ का हिस्सा कैसे बना और आखिर क्यों वो पुलिस वालों पर उग्र तेवर में पत्थर बरसा रहा था?

सुमित इस दुनिया से जा चुका है मगर उसके परिजन यही चाहते हैं कि जो FIR पुलिस की तरफ से दर्ज हुई है उसमें से सुमित का नाम हटाया जाए नहीं तो वो लोग खाना पीना त्याग देंगे.

मुख्य आरोपी योगेश ने वीडियो जारी करके पुलिस को ठेंगा दिखाने का काम किया है

मुख्‍य आरोपी योगेश राज हिरासत से बाहर बेखौफ वीडियो संदेश कैसे जारी कर रहा है?

इस पूरे मामले में सबसे दिलचस्प रवैया घटना के मुख्य आरोपी योगेश राज का है. योगेश न सिर्फ एनकाउंटर करने में महारथ हासिल कर चुकी उत्तर प्रदेश पुलिस को मुंह चिढ़ा रहा है. बल्कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अपराध मुक्त समाज के दावों को करारा तमाचा जड़ रहा है. योगेश फ़िलहाल फरार है और पुलिस लगातार उसकी तलाश में छापेमारी कर रही है ऐसे में उसका वीडियो बनाना और उसे सोशल मीडिया पर जारी करना खुद-ब-खुद बता देता है कि उसे उन ताकतों का पूरा संरक्षण प्राप्त है जो इस घटना के पीछे थीं.

इस वीडियो में बेख़ौफ़ होकर योगेश का खुद को निर्दोष बताना इस बात की पुष्टि कर देता है कि उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था की क्या स्थिति है और कैसे बड़ी आसानी के साथ पुलिस की आंखों में धूल झोंकी जा सकती है.

बीजेपी सांसद और अन्‍य हिंदू संगठन इसे गाय से जुड़ी संवेदना का मामला बता रही है, लेकिन क्‍या ये इतना ही है:

घटना के बाद, मामले को लेकर तरह तरह के बयान आ रहे हैं. इन बयानों को देखकर ये भी साफ हो जाता है कि इसे हिंदू संगठन गाय से जुड़ी संवेदना का मामला बता रहे हैं और इसका जिम्मेदार मुसलमानों और इज्तेमा को मान रहे हैं. बुलंदशहर के सांसद भोला सिंह के अनुसार, जिले में कानून-व्यवस्था को लेकर कोई दिक्कत नहीं होती है. लेकिन पुलिस को इज्तेमा को लेकर अंधेरे में रखा गया. इसके कारण वहां हालात खराब हुए और इसी वजह से बुलंदशहर में हिंसा भड़की.

वहीं संघ नेता इंद्रेश कुमार का भी यही मानना है कि घटना का मुख्य कारण गोकशी थी और जो भी हुआ उसी भावना के मद्देनजर हुआ.

गौ-हत्‍या के मामले में दो नाबालिगों पर भी आरोप, लेकिन परिजनों के बयान अलग:

पूरा मामला बहुत ज्यादा कॉम्प्लिकेटेड है और उसपर भी इसे और जयादा कॉम्प्लिकेटेड उस FIR ने कर दिया है जो गोकशी के नाम पर पुलिस ने पेश की है. बजरंग दल के जिला प्रमुख और मुख्य आरोपी योगेश राज के बयान के आधार पर दर्ज हुई इस FIR का यदि अवलोकन किया जाए तो मिलता है कि यूपी पुलिस ने गोकशी के मामले में जिले के नयाबांस गांव के 7 मुस्लिमों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है.

7 में से दो अभियुक्त नाबालिग बताए जा रहे हैं जिनकी उम्र 11 और 12 साल है. गांव के लोगों और स्थानीय पुलिसकर्मियों के मुताबिक, नाबालिगों को छोड़कर बाकी के 5 घटना के दिन गांव में मौजूद नहीं थे. नाबालिगों के माता-पिता और रिश्तेदारों का कहना है कि एफआईआर में दर्ज आरोपियों की खोज में पुलिस उनके घर आई और शुरुआती पूछताछ के बाद बच्चों को एक रिश्तेदार के साथ अपने साथ लेकर चली गई.

मामले पर जो पुलिस का रवैया है उससे साफ हो गया है कि उसने ऐसा बहुत कुछ कर दिया है जिससे न सिर्फ विभाग की किरकिरी हुई बल्कि पूरा सूबा और सूबे की कानून व्यवस्था सवालों के घेरे में आ गई.

बुलंदशहर हिंसा में मारे गए इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह

अपना एक इंस्‍पेक्‍टर खो देने वाली यूपी पुलिस के पास कार्रवाई के लिए अब भी कोई स्‍पष्‍ट रास्‍ता नहीं है:

इस पूरे मामले में सबसे दुखद पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की मौत है. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं कि भले ही सरकार मुआवजा देकर और बातचीत से मामले को रफा दफा कर दे मगर शायद ही कभी मृतक को इंसाफ मिल पाए. घटना को बीते 50 घंटे के ऊपर हो चुके हैं ऐसे में मुख्य अभियुक्तों का अभी तक फरारी काटना इस बात को साफ कर देता है कि यूपी पुलिस के पास कार्रवाई के लिए अब भी कोई स्‍पष्‍ट रास्‍ता नहीं है और अब तक मामले को लेकर जो भी हो रहा है वो अंधेरे में तीर मारने जैसा है.

उत्तर प्रदेश के डीजीपी का मामले को साजिश बताना और ये पूछना कि मवेशी का शव मौका-ए-वारदात पर कैसे पहुंचा खुद इस बात की पुष्टि कर देता है कि उत्तर प्रदेश में निजाम कैसा है और अपराधियों के हौसले कितने बुलंद हैं.

चूंकि मामला बहुत ज्यादा उलझा हुआ और पूर्णतः राजनीतिक है. अतः आन वाले वक़्त में हम ऐसा बहुत कुछ देखेंगे जिसकी कल्पना भी शायद हमने कभी की हो. जैसे ये मामला हर घंटे उलझ रहा है और एक नया मोड़ ले रहा है ये साफ है कि आने वाले वक़्त में ये मामला एक आम मामला बन कर फाइलों और कागजों की भेंट चढ़ जाएगा और इंसाफ के तलबगार इंसाफ की आस में अपना जीवन गुजार देंगे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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