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मोदी की योजनाएं जहां पहुंची हैं वहां से उनका सीना नापा जा सकता है !

    • आईचौक
    • Updated: 18 मई, 2017 02:43 PM
  • 18 मई, 2017 02:43 PM
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एक तरफ तो दावों और योजनाओं का कोई ठिकाना ही नही है, तो दूसरा पहलु इस सबसे परे कुछ कड़वे सच हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश का शासन चलाते हुए तीन साल पूरे कर रहे हैं. इन तीन सालों में पीठ थप-थपाने वाली उन्‍होंने कई घोषणाएं कीं. कई योजनाएं लांच कीं. लेकिन, क्‍या ये योजनाएं भारत की तस्‍वीर बदलने वाली साबित हुईं ? आप तथ्य को देखिए और खुद ही फैसला कीजिए...

60% शौचालयों में पानी ही नही..

नेशलन सैम्पल सर्वे ऑफिस के एक सर्वे के अनुसार स्वच्छ भारत अभियान के तहत बनाए गए 60 प्रतिशत शौचालयों में पानी ही नही हैं. सरकारी सब्सिडी से 3.5 करोड़ शौचालय तो बनाए गए, लेकिन ऐसे 10 में से 6 सौचालयों में तो पानी ही उपलब्ध नहीं हो पाया है. और तो और 2016 तक तो करीब 55% ग्रामीण इलाकों में तो करीब 11% शहरी इलाके लोगों के घरों में अब भी शौचालय नहीं है.

स्वच्छ भारत का सच

नहीं रहा 56 इंच का सीना !

56 इंच के सीने को लेकर नरेन्द्र मोदी चुनाव में जरूर उतरे थे. लेकिन अब लगता है छोटा पड़ता जा रहा है. कॉग्रेस के प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने हाल ही में कुछ आकड़ें उजागर किए हैं जिससे ये और भी साफ हो जाता है. सरहद पर पिछले 35 महीनों के भाजपा के शासनकाल के दौरान 91 नागरिकों और 198 सौनिकों की जान गई, जबकि 2011-14 में कांग्रेस सरकार के दौरान 50 नागरिकों और 103 जवानों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी. बात नक्सलियों की करें, तो नक्सली हिंसा में मोदी के सत्ता में आने के बाद से 442 नागरीकों और 278 जवानों की जान गई है, जबकी यहीं आकड़ा कांग्रेस के कार्यकाल के दौरान 367 नागरिकों और 268 जवानों तक ही थी. अब बात उत्तर-पूर्वीय भारत की करें तो  सिंघवी का कहना है कि 2011-14 के दौरान 229 नागरिकों और 47 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया गया, जबकि पिछले 35 महीनों के दौरान 344 नागरिक मारे गए और 99 जवान शहीद हो गए थे. अब आंकड़े ही सबकुछ स्पषट कर रहा है, तो मुझे कुछ बोलने की जरूरत तो है नहीं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश का शासन चलाते हुए तीन साल पूरे कर रहे हैं. इन तीन सालों में पीठ थप-थपाने वाली उन्‍होंने कई घोषणाएं कीं. कई योजनाएं लांच कीं. लेकिन, क्‍या ये योजनाएं भारत की तस्‍वीर बदलने वाली साबित हुईं ? आप तथ्य को देखिए और खुद ही फैसला कीजिए...

60% शौचालयों में पानी ही नही..

नेशलन सैम्पल सर्वे ऑफिस के एक सर्वे के अनुसार स्वच्छ भारत अभियान के तहत बनाए गए 60 प्रतिशत शौचालयों में पानी ही नही हैं. सरकारी सब्सिडी से 3.5 करोड़ शौचालय तो बनाए गए, लेकिन ऐसे 10 में से 6 सौचालयों में तो पानी ही उपलब्ध नहीं हो पाया है. और तो और 2016 तक तो करीब 55% ग्रामीण इलाकों में तो करीब 11% शहरी इलाके लोगों के घरों में अब भी शौचालय नहीं है.

स्वच्छ भारत का सच

नहीं रहा 56 इंच का सीना !

56 इंच के सीने को लेकर नरेन्द्र मोदी चुनाव में जरूर उतरे थे. लेकिन अब लगता है छोटा पड़ता जा रहा है. कॉग्रेस के प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने हाल ही में कुछ आकड़ें उजागर किए हैं जिससे ये और भी साफ हो जाता है. सरहद पर पिछले 35 महीनों के भाजपा के शासनकाल के दौरान 91 नागरिकों और 198 सौनिकों की जान गई, जबकि 2011-14 में कांग्रेस सरकार के दौरान 50 नागरिकों और 103 जवानों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी. बात नक्सलियों की करें, तो नक्सली हिंसा में मोदी के सत्ता में आने के बाद से 442 नागरीकों और 278 जवानों की जान गई है, जबकी यहीं आकड़ा कांग्रेस के कार्यकाल के दौरान 367 नागरिकों और 268 जवानों तक ही थी. अब बात उत्तर-पूर्वीय भारत की करें तो  सिंघवी का कहना है कि 2011-14 के दौरान 229 नागरिकों और 47 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया गया, जबकि पिछले 35 महीनों के दौरान 344 नागरिक मारे गए और 99 जवान शहीद हो गए थे. अब आंकड़े ही सबकुछ स्पषट कर रहा है, तो मुझे कुछ बोलने की जरूरत तो है नहीं.

सरहद पर हालातनक्सलियों की करतूतपूर्वोत्तर भारत के हालातकिसान भी हैं बेहाल

अब बात कृषि क्षेत्र की करते हैं. किसानों की आत्महत्या की बढ़ती संख्या एक चिंता का विषय है. जिस तरह से हाल ही में तमिलनाडु के किसानों ने जंतर-मंतर पर प्रदर्शन किया, वो सबको झकझोर देनेवाला था. महाराष्ट्र के किसानों का हाल भी किसी से छुपा नहीं है. सोमवार (15 मई) को अगरलता में कार्यक्रम के दौरान सीताराम येचुरी ने कहा है, सरकारी आंकड़ो के अनुसार 2014 से हर वर्ष 12,000 से 16,000 किसान आत्महत्या कर रहे हैं. ख़ैर, फसलों का नष्ट होना तो यूपीए के समय से होता आ रहा है. लेकिन अब मोदी सरकार के आ जाने के बाद से उन्हें मुआवजा भी नहीं दिया जा रहा है.

फेक है ये मेक इन इंडिया

मेक इन इंडिया तो एक नारा बनकर ही रह गया. इस कैम्पेन के जरीए मोदी भारत को दूनिया का मैन्युफैक्चरिंग हब बनाना चाहते थे. लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक के हालिया डाटा के अनुसार विर्निमाण में एफ.डी.आई. और एफ.डी.आई. के फ्लो की प्रतिशत भी 2016 से घटी है. जरा आकड़ों को देखिए.

source: tradingeconomics.com

अब आकड़ो से ये तो साफ है कि 40 मिलिन डालर का एफ.डी.आई. जो भारत में आया है, वो विर्निमाण क्षेत्र का हिस्सा ही नही है. और तो और जिन स्मार्ट शहरों का सपना मोदी नें दिखाया था, वो हकिकत से काफी दूर हैं. वैसे तो 100 शहरों की बात कही गई थी, लेकिन अभी तक तो एक का भी काम शुरू नहीं हो पाया है.

एफ.डी.आई. का सचधन काला या नियती काली

कालेधन को लेकर कोई ठोस नीति अभी तक नही दिखी है. नोटबंदी को कालेधन से जोड़कर देखा जा रहा था. लेकिन यूएन की हालिया रिर्पोट ने ये साफ किया है कि नोटबंदी के जरिए काले धन को नहीं रोका जा सकता है. वैसे तो नोटबंदी के दौरान 45 दिनों में ही जन-धन खातों में 87,000 करोड़ जमा हो गए थे. लेकिन ये रूपए भी ऐसे ही खातों में पड़े हैं जैसे कि बिना पानी के शौचालय.

बेरोजगारी भी है एक अहम मुद्दा

वैसे तो मोदी जी ने एक करोड़ रोजगार पौदा करने की बात कि थी. लेकिन ये हक़िकत से कोसो दूर है. सरकार के विशेषज्ञय समुहों के दल नीति आयोग के अनुसार बेरोजगारी दर 5 से 8 प्रतिशत रहने का अनुमान है. इसकी तुलना कांग्रेस की सरकार से करें तो, 2013 में ये दर 4.9 प्रतिशत था, जबकी 2012 में 4.7 प्रतिशत और 2011 में 3.1 प्रतिशत थी. मोदी सरकार ने रोजगार को बढ़ाने के लिए बहुत सारी योजनाएं बनाए लेकिन उसका कोई खास असर होता तो नहीं दिख रहा है.क्या इस दर से 1 करोड़ नौकरियां आयेगी ?आवास भी नहीं दे पा रहे है मोदी

अगर बुनियादी सुविधाओं की बात की जाए, तो रोटी, कपड़ा और मकान है. एक तरफ तो मोदी 2022 तक 2 करोड़ से ज्यादा घरों की सौगात देने की बात करते हैं, तो दूसरी ओर इस स्किम का कोई सिर-पैर नज़र नही आ रहा है. पहले चरण में अप्रैल 2015 से मार्च 2017 के बीच देश के 100 शहरों में रिआयती दर पर घर देने की योजना थी. लेकिन हक़िकत तो आपके सामने ही है. 100 शहरों को तो छोड़ ही दीजिए, अभी तक एक शहर में भी इस योजना से किसी को फायदा हुआ है, ये किसी को पता नही है.

नाम बदलने से पहचान नहीं बदलती

कई योजनाओं के तो नाम बदलकर नया साबित करने की कोशिश की गई. निर्मल भारत को स्वच्छ भारत बना दिया गया, प्लानिंग कमीशन को नीति आयोग और नेशनल मिशन ऑफ फाईनेनशियल इनक्लूजन को जन-धन का नाम देकर नई स्किम ही पेश करने की कोशिश की गई है.

रिसर्च और कंटेंट- श्रीधर भारद्वाज (इन्टर्न, आईचौक)

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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