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राम मंदिर निर्माण में अक्षम भाजपा का ताजा बहाना सुनिए...

    • अरविंद मिश्रा
    • Updated: 21 अगस्त, 2018 05:00 PM
  • 21 अगस्त, 2018 01:26 PM
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राम मंदिर निर्माण का मुद्दा हमेशा से ही भाजपा के लोकसभा चुनाव घोषणापत्र में शामिल रहा है. पार्टी इसका लाभ समय समय पर उठाती रही है. लेकिन इस बार मंदिर निर्माण में राज्‍यसभा में बहुमत का न होना बहाना बनकर सामने आया है.

जैसे-जैसे 2019 का लोकसभा चुनाव नज़दीक आ रहा है वैसे-वैसे राम मंदिर का मुद्दा भी उठने लगा है. ताज़ा मामला उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का वो बयान है जहां वो कहते हैं कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए अगर कोई विकल्प नहीं बचता है, तो ऐसी स्थिति में भाजपा सरकार संसद में बिल ला सकती है. उनके अनुसार भाजपा का राज्यसभा में बहुमत नहीं है, वरना विधेयक पारित कराकर अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ कर देते. हालांकि 2015 में भी केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने इसी तरह का वक़्तव्य दिया था, लेकिन केशव प्रसाद मौर्य के कथन का समय काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि 2019 के लोकसभा का बिगुल बज चुका है.

तो क्या इस बार भी भाजपा के लिए राम मंदिर चुनावी मुद्दा होगा? चूंकि केशव प्रसाद मौर्य उत्तर प्रदेश से ही ताल्लुक रखते हैं और जिस तरह से प्रदेश में लोकसभा के दो उप चुनावों में भाजपा को मुंह की खानी पड़ी ऐसे में इनका बयान अहम माना जा रहा है. अहम इसलिए भी क्योंकि उनके फूलपुर लोकसभा के साथ ही साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का पारम्परिक सीट गोरखपुर को हार जाना भाजपा को शायद राम मंदिर मुद्दे पर आने को विवश कर रही है? या केशव प्रसाद मौर्य का यह कथन कि भाजपा का राज्यसभा में बहुमत नहीं है केवल वही जुमला साबित होगा - मंदिर वहीं बनाएंगे लेकिन तारीख नहीं बताएंगे?

केशव प्रसाद मौर्य के कथन का समय काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि 2019 के लोकसभा का बिगुल बज चुका है.

लेकिन इतने वर्षों से केवल राम मंदिर के साथ ही भेदभाव क्यों? अगर बात एससी/एसटी संशोधन कानून की हो तो ये तो राज्य सभा से पास हो जाता है. अगर भाजपा को उप राष्ट्रपति का चुनाव जीतना हो तो उसे कहां से राज्यसभा में बहुमत प्राप्त हो जाता है? तो राम मंदिर के लिए राज्यसभा में बहुमत का ना...

जैसे-जैसे 2019 का लोकसभा चुनाव नज़दीक आ रहा है वैसे-वैसे राम मंदिर का मुद्दा भी उठने लगा है. ताज़ा मामला उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का वो बयान है जहां वो कहते हैं कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए अगर कोई विकल्प नहीं बचता है, तो ऐसी स्थिति में भाजपा सरकार संसद में बिल ला सकती है. उनके अनुसार भाजपा का राज्यसभा में बहुमत नहीं है, वरना विधेयक पारित कराकर अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ कर देते. हालांकि 2015 में भी केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने इसी तरह का वक़्तव्य दिया था, लेकिन केशव प्रसाद मौर्य के कथन का समय काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि 2019 के लोकसभा का बिगुल बज चुका है.

तो क्या इस बार भी भाजपा के लिए राम मंदिर चुनावी मुद्दा होगा? चूंकि केशव प्रसाद मौर्य उत्तर प्रदेश से ही ताल्लुक रखते हैं और जिस तरह से प्रदेश में लोकसभा के दो उप चुनावों में भाजपा को मुंह की खानी पड़ी ऐसे में इनका बयान अहम माना जा रहा है. अहम इसलिए भी क्योंकि उनके फूलपुर लोकसभा के साथ ही साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का पारम्परिक सीट गोरखपुर को हार जाना भाजपा को शायद राम मंदिर मुद्दे पर आने को विवश कर रही है? या केशव प्रसाद मौर्य का यह कथन कि भाजपा का राज्यसभा में बहुमत नहीं है केवल वही जुमला साबित होगा - मंदिर वहीं बनाएंगे लेकिन तारीख नहीं बताएंगे?

केशव प्रसाद मौर्य के कथन का समय काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि 2019 के लोकसभा का बिगुल बज चुका है.

लेकिन इतने वर्षों से केवल राम मंदिर के साथ ही भेदभाव क्यों? अगर बात एससी/एसटी संशोधन कानून की हो तो ये तो राज्य सभा से पास हो जाता है. अगर भाजपा को उप राष्ट्रपति का चुनाव जीतना हो तो उसे कहां से राज्यसभा में बहुमत प्राप्त हो जाता है? तो राम मंदिर के लिए राज्यसभा में बहुमत का ना होना कहीं बहाना तो नहीं? यह 2019 के लिए चुनावी मुद्दा मात्र भर तो नहीं?

भाजपा के लिए राम मंदिर का मुद्दा हमेशा से ही इसके लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र में शामिल रहा है और इसका लाभ भी भाजपा समय समय पर उठाती रही है.

2014 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा ने अपने घोषणापत्र में राम मंदिर का ज़िक्र किया था. 'भाजपा अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए संविधान के भीतर सभी संभावनाएं तलाशने के अपने रुख को दोहराती है' इसका नतीजा सबके सामने था. उत्तरप्रदेश में भाजपा को अकेले 80 में से 71 सीटों पर जीत हासिल हुई थी, वहीं पूरे देश में 282 सीटें जीती थीं.

वैसे तो राम मंदिर का मामला सुप्रीम कोर्ट में है और 2018 के अंत से पहले इस पर फैसला आने की पूरी संभावना है. ऐसे में 2019 के लोकसभा चुनाव में इस पर राजनीति अपने चरम पर भी रहने का पूरा संयोग बनता दिख रहा है.

भाजपा के नेता राम मंदिर मुद्दे का भरपूर दोहन कर सत्ता या संवैधानिक पदों पर भी जा पहुंचे हैं. लेकिन राम मंदिर का मुद्दा आज भी उसी सूरत में है जहां वो 26 साल पहले था. हमेशा से ही इस मुद्दे को चुनावों के वक़्त उठाया जाता है और कुछ न कुछ बहाने से यह टलता जाता है. और हर चुनावों की तरह 2019 के लोकसभा चुनाव में भी इसका सबसे अहम चुनावी मुद्दा बनना तय दिख रहा है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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