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कांग्रेस स्थापना दिवस को छोड़ इटली जा रहे राहुल गांधी पर सवाल क्यों न खड़े हों?

    • मशाहिद अब्बास
    • Updated: 28 दिसम्बर, 2020 08:21 PM
  • 28 दिसम्बर, 2020 08:21 PM
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कांग्रेस पार्टी अपना 136वां स्थापना दिवस (Congress Party Foundation Day) मना रही है और पार्टी के बड़े नेता (Rahul Gandhi) देश से बाहर चले गए हैं. सवाल उठना लाज़िमी है कि आख़िर ऐसा भी क्या ज़रूरी काम रहा होगा जिसके आगे पार्टी का स्थापना दिवस कार्यक्रम और किसान आंदोलन जैसे मौके नजरअंदाज किए जा रहे हैं.

आज कांग्रेस पार्टी का 136वां स्थापना दिवस (Congress Party Foundation Day) है. कांग्रेस पार्टी की सुप्रीम लीडर और पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) बीमार हैं. ऐसे में दूसरे नंबर की हैसियत रखने वाले राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का पार्टी के स्थापना दिवस के कार्यक्रमों में रहना ज़रूरी हो जाता है. लेकिन राहुल गांधी स्थापना दिवस के ठीक एक दिन पहले विदेश निकल गए हैं. यह ख़बर जैसे ही मीडिया में आयी तो एक सियासी उबाल देखने को मिलने लगा. भाजपा ने इसे गैर जिम्मेदाराना काम बताया तो कांग्रेस पार्टी ने इसे राहुल गांधी का निजी दौरा बताकर भाजपा (BJP) को जवाब देने की कोशिश की है. राहुल गांधी अक्सर विदेश दौरे के दौरान भाजपा के निशाने पर आ जाते हैं लेकिन इस बार राहुल गांधी के इस दौरे से खुद उनके पार्टी के नेता ही असहमति जता रहे हैं. कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता भी दबे मन से इस वक्त को विदेश यात्रा के लिए अनुकूल नहीं मान रहे हैं. देश में किसान आंदोलन (Farmers Protest) भी अपनी रफ्तार पकड़े हुए है जिसे कांग्रेस पार्टी ने भी समर्थन दिया हुआ है.

स्थापना दिवस पर राहुल गांधी के विदेश जाने ने उनकी राजनीतिक काबिलियत सवाल खड़े कर दिए हैं

राहुल गांधी ने इस आंदोलन को समर्थन देते हुए ही अपनी गिरफ्तारी भी दी थी और लगातार केन्द्र में बैठी मोदी सरकार पर हमलावर नज़र आ रहे थे. राहुल गांधी किसानों के बीच जाकर भी नए कृषि कानून को काला कानून बता रहे थे. राहुल गांधी के किसानों के बीच जाने से एक सटीक मैसेज जाने लगा था कि वह किसानों के लिए सबसे मुखर आवाज़ उठाना चाहते हैं लेकिन अब राहुल गांधी के विदेश चले जाने से जो निष्कर्ष निकल रहा है वो यही है कि एक विपक्षी दल के रूप में ही राहुल गांधी ने किसानों को अपना समर्थन दिया था.

राहुल गांधी और उनकी पार्टी ने...

आज कांग्रेस पार्टी का 136वां स्थापना दिवस (Congress Party Foundation Day) है. कांग्रेस पार्टी की सुप्रीम लीडर और पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) बीमार हैं. ऐसे में दूसरे नंबर की हैसियत रखने वाले राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का पार्टी के स्थापना दिवस के कार्यक्रमों में रहना ज़रूरी हो जाता है. लेकिन राहुल गांधी स्थापना दिवस के ठीक एक दिन पहले विदेश निकल गए हैं. यह ख़बर जैसे ही मीडिया में आयी तो एक सियासी उबाल देखने को मिलने लगा. भाजपा ने इसे गैर जिम्मेदाराना काम बताया तो कांग्रेस पार्टी ने इसे राहुल गांधी का निजी दौरा बताकर भाजपा (BJP) को जवाब देने की कोशिश की है. राहुल गांधी अक्सर विदेश दौरे के दौरान भाजपा के निशाने पर आ जाते हैं लेकिन इस बार राहुल गांधी के इस दौरे से खुद उनके पार्टी के नेता ही असहमति जता रहे हैं. कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता भी दबे मन से इस वक्त को विदेश यात्रा के लिए अनुकूल नहीं मान रहे हैं. देश में किसान आंदोलन (Farmers Protest) भी अपनी रफ्तार पकड़े हुए है जिसे कांग्रेस पार्टी ने भी समर्थन दिया हुआ है.

स्थापना दिवस पर राहुल गांधी के विदेश जाने ने उनकी राजनीतिक काबिलियत सवाल खड़े कर दिए हैं

राहुल गांधी ने इस आंदोलन को समर्थन देते हुए ही अपनी गिरफ्तारी भी दी थी और लगातार केन्द्र में बैठी मोदी सरकार पर हमलावर नज़र आ रहे थे. राहुल गांधी किसानों के बीच जाकर भी नए कृषि कानून को काला कानून बता रहे थे. राहुल गांधी के किसानों के बीच जाने से एक सटीक मैसेज जाने लगा था कि वह किसानों के लिए सबसे मुखर आवाज़ उठाना चाहते हैं लेकिन अब राहुल गांधी के विदेश चले जाने से जो निष्कर्ष निकल रहा है वो यही है कि एक विपक्षी दल के रूप में ही राहुल गांधी ने किसानों को अपना समर्थन दिया था.

राहुल गांधी और उनकी पार्टी ने जितनी भी मेहनत पिछले दिनों तक की थी और किसानों के लिए आवाज़ उठाई थी अब वह सारे घटनाक्रम कठघरे में आ गए हैं. जो फायदा इस आंदोलन से कांग्रेस पार्टी या राहुल गांधी उठा सकते थे इस विदेश दौरे ने उसको संकट में डाल दिया है. राहुल गांधी की यात्रा निजी ही सही लेकिन यह एक ऐसे समय में हुयी है जब राहुल गांधी को देश में रहकर किसानों के साथ खड़ा रहने की ही ज़रूरत थी.

किसान आंदोलन को यूं तो कई दलों ने समर्थन दे रखा है लेकिन इस आंदोलन का फायदा या नुकसान कौन सी पार्टी अधिक उठा रही है इस पर भी नज़र डालना ज़रूरी है. किसानों से हो रही बातचीत में जो सामने आ रहा है वह यही है कि वह किसी भी राजनीतिक पार्टीयों को अपना मंच नहीं देंगें तो सवाल उठता है कि आखिर राजनीतिक दल इस आंदोलन को किस तरह ताकत दे सकते हैं.

कांग्रेस पार्टी ने गिरफ्तारी दी समर्थन दिया लेकिन किसानों के दिल में जगह बना पाने में कांग्रेस पार्टी अबतक नाकाम ही साबित हुयी है. वहीं दूसरी ओर ज़मीनी मदद देकर अकाली दल, आम आदमी पार्टी और रालोद ने कुछ हद तक किसानों के दिल में जगह ज़रूर बटोरी है. इन पार्टियों ने किसान आंदोलन को समर्थन देने के साथ साथ उसकी बुनियादी ज़रूरतों को भी पूरा किया जिसके चलते इन पार्टियों ने अंदर ही अंदर किसानों का साथ भी पा लिया है.

कांग्रेस पार्टी इससे चूक गई और लाख कोशिश के बावजूद आंदोलन को उस तरीके से समर्थन नहीं दे सकी जिस तरह के समर्थन की किसानों को ज़रूरत थी. कांग्रेस पार्टी ने एक बड़ा मौका अपने हाथों से गवां दिया है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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