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राहुल गांधी को समझना होगा कि मोदी के खिलाफ अदानी के इस्तेमाल में क्या लोचा है

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 29 दिसम्बर, 2022 04:53 PM
  • 29 दिसम्बर, 2022 04:51 PM
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गौतम अदानी (Gautam Adani) के राजस्थान में निवेश को लेकर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के बयान से जो कन्फ्यूजन हुआ था, वो बढ़ता जा रहा है - क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के खिलाफ अपना केस मजबूत करने के लिए वो अदानी का इस्तेमाल करते हैं?

भारत जोड़ो यात्रा के दौरान एक बार अचानक राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने अलग ही नजरिया पेश किया था - और ज्यादा हैरानी इसलिए भी हुई क्योंकि अदानी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अदानी (Gautam Adani) को लेकर राहुल गांधी की बातों से लगा जैसे वो अपना स्टैंड हमेशा के लिए बदल रहे हों, लेकिन जल्दी ही ये भी स्पष्ट हो गया कि वो महज एक अस्थायी भाव था.

अदानी पर राहुल गांधी की राय तो बाद के दिनों में भी सुनने को मिलती रही, लेकिन दिल्ली में दाखिल होते ही वो फिर से अपने पुराने रुख पर कायम दिखे. लाल किला पर अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने जोर देकर अपनी बात फिर से दोहरायी - 'ये मोदी सरकार नहीं, बल्कि अंबानी-अदानी की सरकार है.'

करीब दो महीने पहले की बात है. अक्टूबर, 2022 में 'इन्वेस्ट राजस्थान 2022' सम्मेलन हुआ था. निवेश सम्मेलन में राजस्थान में निवेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और गौतम अदाणी के मुलाकात की खबर हर किसी को हैरान करने वाली थी - क्योंकि गौतम अदानी और मुकेश अंबानी को लेकर 2014 से ही राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के खिलाफ आक्रामक रुख अख्तियार किये हुए हैं.

राहुल गांधी ने एक झटके में सरप्राइज टर्न ले लिया. लेकिन जिस तरीके से उस बात को वो समझाने की कोशिश कर रहे थे, वे बड़े ही कन्फ्यूज करने वाले रहे. तरीका बिलकुल वही रहा जैसे राहुल गांधी कांग्रेस और संघ-बीजेपी की विचारधारा में फर्क समझाते रहते हैं. गौतम अदानी के निवेश को भी वो उसी पैमाने पर तौल कर पेश कर रहे थे.

लेकिन इंडिया टुडे के साथ इंटरव्यू में कांग्रेस सरकारों को लेकर गौतम अदानी की बातें सुनने और समझने के बाद तो राहुल गांधी ज्यादा ही कन्फ्यूज्ड लगने लगे हैं. आखिर गौतम अदानी पर राहुल गांधी के किस रुख को फाइनल माना जाये - जयपुर सम्मेलन पर रिएक्शन वाला या...

भारत जोड़ो यात्रा के दौरान एक बार अचानक राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने अलग ही नजरिया पेश किया था - और ज्यादा हैरानी इसलिए भी हुई क्योंकि अदानी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अदानी (Gautam Adani) को लेकर राहुल गांधी की बातों से लगा जैसे वो अपना स्टैंड हमेशा के लिए बदल रहे हों, लेकिन जल्दी ही ये भी स्पष्ट हो गया कि वो महज एक अस्थायी भाव था.

अदानी पर राहुल गांधी की राय तो बाद के दिनों में भी सुनने को मिलती रही, लेकिन दिल्ली में दाखिल होते ही वो फिर से अपने पुराने रुख पर कायम दिखे. लाल किला पर अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने जोर देकर अपनी बात फिर से दोहरायी - 'ये मोदी सरकार नहीं, बल्कि अंबानी-अदानी की सरकार है.'

करीब दो महीने पहले की बात है. अक्टूबर, 2022 में 'इन्वेस्ट राजस्थान 2022' सम्मेलन हुआ था. निवेश सम्मेलन में राजस्थान में निवेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और गौतम अदाणी के मुलाकात की खबर हर किसी को हैरान करने वाली थी - क्योंकि गौतम अदानी और मुकेश अंबानी को लेकर 2014 से ही राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के खिलाफ आक्रामक रुख अख्तियार किये हुए हैं.

राहुल गांधी ने एक झटके में सरप्राइज टर्न ले लिया. लेकिन जिस तरीके से उस बात को वो समझाने की कोशिश कर रहे थे, वे बड़े ही कन्फ्यूज करने वाले रहे. तरीका बिलकुल वही रहा जैसे राहुल गांधी कांग्रेस और संघ-बीजेपी की विचारधारा में फर्क समझाते रहते हैं. गौतम अदानी के निवेश को भी वो उसी पैमाने पर तौल कर पेश कर रहे थे.

लेकिन इंडिया टुडे के साथ इंटरव्यू में कांग्रेस सरकारों को लेकर गौतम अदानी की बातें सुनने और समझने के बाद तो राहुल गांधी ज्यादा ही कन्फ्यूज्ड लगने लगे हैं. आखिर गौतम अदानी पर राहुल गांधी के किस रुख को फाइनल माना जाये - जयपुर सम्मेलन पर रिएक्शन वाला या फिर वो जो अक्सर दोहराते रहते हैं?

अब तो ये समझना भी मुश्किल हो रहा है कि वास्तव में गौतम अदानी को लेकर राहुल गांधी का स्टैंड है क्या?

ये विचारधारा के स्तर पर कोई केमिकल-लोचा है या फिर गौतम अदानी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खिलाफ राहुल गांधी के सतत प्रतिशोध के शिकार हैं?

भारतीय राजनीति पर अदानी के मन की बात

जैसे राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष न बनने की जिद पर अड़े रहे, वैसे ही अब लगने लगा है कि वो अदानी-अंबानी को लेकर भी जिद ही पकड़े हुए हैं. अगर राहुल गांधी ने अशोक गहलोत और गौतम अदानी की जयपुर सम्मेलन में हुई मुलाकात को लेकर थोड़ी देर के लिए पलटी नहीं मारी होती तो शायद ये भी जिद उनकी नहीं लगती - तब तो और भी नहीं अगर सचिन पायलट का गुस्सा वो अशोक गहलोत पर निकाल दिये होते.

इंडिया टुडे के साथ खास इंटरव्यू में अपने खिलाफ राजनीतिक हमलों को लेकर पूछे गये सवाल का गौतम अदानी ने जो जवाब दिया है, वो बेहद काबिले गौर है. ऐसा लगता है जैसे गौतम अदानी तमाम हमलों के बीच मजबूत होकर टी-शर्ट पहन कर निकल पड़े हों.

1. मोदी, अदानी और गुजरात: 'सूट-बूट की सरकार' से लेकर 'अंबानी-अदानी की सरकार' की देश में चल रही राजनीति के दरम्यान गौतम अदानी के लिए ये सवाल काफी मौजूं रहा कि वो निशाने पर क्यों आ जाते हैं?

गौतम अदानी ने बड़े ही साधारण तरीके से अपना पक्ष रख दिया, 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मैं एक ही प्रदेश से आते हैं... इसलिए मेरे ऊपर ऐसे बेबुनियाद आरोप लगाना आसान हो जाता है... लेकिन इसमें सच्चाई नहीं है.'

राहुल गांधी आखिर गौतम अदानी को लेकर कोई एक स्टैंड क्यों नहीं ले पाते

गौतम अदानी ने एक मजबूत दलील ये दी कि जब कारोबार के लिए वो मैदान में उतरे तो देश में कांग्रेस की सरकार हुआ करती थी - और गुजरात में भी ऐसा ही था. तब देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी हुआ करते थे. वैसे भी बीजेपी की सरकार तो गुजरात में पहली बार 1995 में बनी जब केशुभाई पटेल मुख्यमंत्री बने थे.

अदानी ग्रुप के प्रमुख गौतम अदानी का कहना है कि केंद्र में ये कांग्रेस की ही सरकारें रहीं जब उनका कारोबार शुरू हुआ और बीजेपी के सत्ता में आने से पहले ये कांग्रेस सरकारों की ही नीतियां रही हैं जो वो तरक्की के रास्ते पर तेजी से कदम बढ़ाते चले गये.

खुद को निशाना बनाये जाने वालों को गौतम अदानी ने दो कैटेगरी में बांट दिया है. कहते हैं, ये दो तरह के लोग होते हैं. पहली कैटेगरी में वे लोग आते हैं जो हमारी आर्थिक स्थिति और लोन के बारे में पूरी जानकारी हीं नहीं रखते. वे अगर समझ लें तो सारी गलतफहमी दूर हो जाएगी. दूसरी कैटेगरी में निहित स्वार्थी लोग होते हैं, जो जबरदस्ती भ्रम पैदा करते हैं और हमारी प्रतिष्ठा को खराब कर रहे हैं.

2. कांग्रेस से अदानी को शिकायत नहीं राहुल गांधी भले ही 12 महीने 24x7 अदानी-अंबानी के नाम पर प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार को टारगेट करते रहे, लेकिन गौतम अदानी की बातों से तो लगता है जैसे राहुल गांधी बिलावजह ही रट लगाये रहते हैं.

ये बात भी गौतम ही बताते हैं, 'कई लोगों को ये जानकर आश्चर्य होगा कि मेरा सफर तब शुरू हुआ जब राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री थे... उनकी सरकार ने एग्जिम पॉलिसी को बढ़ावा दिया और उससे मेरा एक्सपोर्ट हाउस शुरू हुआ... अगर वो न होते तो मेरी शुरुआत ही न हो पाती.’

3. सबके साथ, अदानी का विकास जैसे राजीव गांधी सरकार की नीतियां गौतम अदानी के लिए फायदेमंद साबित हुईं, कालांतर में बिलकुल वैसे ही नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार भी उनके लिए मददगार साबित हुई.

वो कहते हैं, 'दूसरा मौका मुझे 1991 में मिला... जब तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव और तब के वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने मिल कर आर्थिक सुधारों को लागू किया.' अदानी के मुताबिक, जैसे देश में बहुत सारे लोगों को आर्थिकि सुधार लागू किये जाने से फायदा हुआ, अदानी ग्रुप को भी उसका लाभ मिला.

केशुभाई पटेल ने दिया मौका: गौतम अदानी के मुताबिक उनके कारोबार में तीसरी बार बहार तब आयी जब 1995 में गुजरात में बीजेपी की सरकार बनी - और आया, जब केशुभाई पटेल मुख्यमंत्री बने.

गौतम अदानी की बातों से लगता है कि राजीव गांधी सरकार की तरह गुजरात की कांग्रेस सरकारों के पास वैसा विजन नहीं था. कहते हैं, पहले गुजरात में औद्योगिक विकास केवल मुंबई से दिल्ली और एनएच-8 के इर्दगिर्द ही सीमित हुआ करता था.

एशिया के सबसे बड़े रईस अदानी का कहना है, केशुभाई पटेल सरकार ने तटीय इलाकों पर ध्यान दिया - और मुझे मुंद्रा पर अपना पहला पोर्ट बनाने का मौका मिला.

मोदी राज में तो मौका ही मौका है: अपने कारोबार की तरक्की के लिए गौतम अदानी नरेंद्र मोदी के गुजरात का मुख्यमंत्री बनने को मील के पत्थर जैसा पाते हैं - और वही मोदी जब देश के प्रधानमंत्री बन जाते हैं, फिर कहना ही क्या?

गौतम अदानी बताते हैं, 'चौथा मौका 2001 में मिला जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने... मोदी की नीतियों से गुजरात के आर्थिक विकास को जैसे पंख ही लग गये... वही काम मोदी आज देश में कर रहे हैं.'

अदानी पर राहुल को कन्फ्यूजन क्यों?

लोक सभा में एक बार राहुल गांधी बजट पर चर्चा में हिस्सा लेने पहुंचे थे. तब राहुल गांधी का कहना था कि देश को सिर्फ चार लोग चलाते हैं. राहुल गांधी बोले, ‘बरसों पहले फैमिली प्लानिंग में नारा था... हम दो, हमारे दो... आज क्या हो रहा है? जैसे कोरोना दूसरे रूप में आता है, वैसे ही ये नारा दूसरे रूप में आया है... देश को आज चार लोग चलाते हैं - हम दो और हमारे दो.’

राहुल गांधी के भाषण पर बीजेपी सांसदों ने पूछ लिया कि चारों के नाम भी बता देते. लेकिन राहुल गांधी सिर्फ इतना ही बोले, नाम तो सब जानते ही हैं. जैसे गौतम अदानी खुद और मोदी को निशाना बनाये जाने के पीछे गुजरात से होने का तर्क दे रहे थे, राहुल गांधी भी उनकी ही बात कर रहे थे. असल में मोदी और बीजेपी नेता अमित शाह और अदानी के साथ साथ मुकेश अंबानी भी गुजरात के ही रहने वाले हैं - और ये सिलसिला सदाबहार चलता रहता है, लेकिन राजस्थान के मामले में राहुल गांधी ने अलग ही दलील दे डाली.

राहुल गांधी का कहना रहा, 'मिस्‍टर अदानी ने राजस्‍थान को ₹60,000 करोड़ का प्रस्‍ताव दिया है... ऐसा ऑफर कोई भी मुख्‍यमंत्री ठुकरा नहीं सकता... असल में किसी भी मुख्यमंत्री के लिए ऐसा प्रस्ताव ठुकराना ठीक भी नहीं है.'

जब राहुल गांधी को लगा कि अब तो चर्चा यूटर्न लेने जैसी होने लगेगी, फिर वो सफाई भी देने लगे. बोले, मैं न बिजनेस के खिलाफ हूं, न कॉर्पोरेट के खिलाफ... मैं कैपिटल के केंद्रीकरण के खिलाफ हूं.'

लेकिन एक बात तब भी नहीं समझ में आयी थी, और अब भी नहीं समझ में आ रही है कि एक ही चीज को दो तरह से कैसे समझा और समझाया जा सकता है. अगर अदानी के साथ कोई भी सरकारी समझौता गलत है, तो सभी सरकारों के साथ एक जैसा ही होगा.

राहुल गांधी का कहना रहा, 'मेरा विरोध इस बात को लेकर है कि बीजेपी की सरकार दो-तीन लोगों को हिंदुस्‍तान के सभी कारोबार में एकाधिकार हासिल कर लेने का मौका दे रही है... मैं इसके खिलाफ हूं.'

लेकिन ऐन उसी वक्त वो राजस्थान में अदानी के निवेश को लेकर अपना स्टैंड भी बताया, 'अगर राजस्‍थान की सरकार ने मिस्टर अदानी को गलत तरीके से बिजनेस दिया, तो मैं उसके बिलकुल खिलाफ हूं... मैं खड़ा हो जाऊंगा... अगर ऐसा नहीं है तो मुझे कोई दिक्कत नहीं है.'

अब जरा ये चीज गौतम अदानी के नजरिये से समझने की कोशिश करें. गौतम अदानी कारोबारी हैं. कारोबार में फायदे पर ही ज्यादा जोर होता है. अब सामने मोदी सरकार हो या फिर गहलोत सरकार या और कोई भी भी पार्टी - कारोबारी भी हमेशा अपना मुनाफा ही देखता है.

अब ऐसा क्या हो रहा है कि वही अदानी, मोदी सरकार का गलत फायदा उठा लेते हैं? और गहलोत सरकार के साथ सिर्फ सही डील कर पाते हैं?

आखिर ये कैसे समझा या समझाया जा सकता है कि मोदी सरकार के खिलाफ अदानी की हर डील देश के लोगों के खिलाफ, किसानों के खिलाफ और सभी तरह से खिलाफ ही है? और वही गौतम अदानी जब अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ सौदा पक्का करते हैं तो वो सौ फीसदी खरा होता है?

ये तो वैसे ही हुआ कि राहुल गांधी दावा करते हैं कि कांग्रेस की विचारधारा बीजेपी से श्रेष्ठ है. लेकिन क्या देश की जनता को भी बिलकुल ऐसा ही लगता है? अगर ऐसा ही होता तो 2014 और 2019 के आम चुनावों के नतीजे एक जैसे तो नहीं ही होते.

मान लेते हैं कि बीजेपी का प्रचार तंत्र मजबूत है. राहुल गांधी की वो बात भी मान लेते हैं कि बीजेपी ने राहुल गांधी को पप्पू साबित करने के लिए करोड़ों रुपये खर्च किये, लेकिन वही बीजेपी हिमाचल प्रदेश चुनाव में कैसे फेल हो गयी? या फिर 2018 में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कैसे फेल हो गयी थी?

अब तो ऐसा लगता है जैसे अंबानी-अदानी को लेकर राहुल गांधी के रुख में कहीं न कहीं कोई न कोई केमिकल लोचा जरूर है - और जब कांग्रेस के रणनीतिकार मिल बैठ कर इस मुद्दे पर राजनीतिक तौर पर दुरूस्त किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाते, राहुल गांधी खुद भी भ्रम पाले रहेंगे और दूसरों को भी कन्फ्यूज करते रहेंगे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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