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जय सियाराम: क्या राहुल गांधी ने RSS-BJP के हिंदुत्व की काट खोज ली है?

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 03 दिसम्बर, 2022 06:10 PM
  • 03 दिसम्बर, 2022 06:10 PM
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राजनीति में जय सियाराम (Jai Siyaram Slogan) का नारा लगाने वाले राहुल गांधी (Rahul Gandhi) पहले नेता तो नहीं हैं, लेकिन भारत जोड़ो यात्रा से मिल रहे रिस्पॉन्स के बीच संघ और बीजेपी (RSS-BJP Hindutva Agenda) के खिलाफ बड़ा हमला जरूर बोला है - लेकिन क्या कांग्रेस ने भी हिंदुत्व की अपनी लाइन पकड़ ली है?

राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को अरसे से एक ऐसे अस्त्र की तलाश रही है, जिसे वो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी (RSS-BJP Hindutva Agenda) के खिलाफ इस्तेमाल कर सकें. एक ऐसा ब्रह्मास्त्र जो संघ और बीजेपी के हिंदुत्व के एजेंडे में घुस कर सर्जिकल स्ट्राइक कर सके - और येन केन प्रकारेण वो अपनी पार्टी को फिर से वो जगह दिला सके जो कांग्रेस-मुक्त-भारत कैंपेन से पहले रही.

जैसा कि कांग्रेस की तरफ से लगातार दावा किया जा रहा है कि भारत जोड़ो यात्रा का कोई चुनावी मकसद नहीं है, मतलब ये कि संघ और बीजेपी के खिलाफ ही राहुल गांधी सड़क पर उतरे हैं. जब राहुल गांधी कहते हैं कि यात्रा नफरत के खिलाफ लोगों को एक दूसरे से जोड़ने और उनके करीब पहुंचने का मिशन है - और जिस तरह का रिस्पॉन्स यात्रा को मिल रहा है, निश्चित तौर पर राहुल गांधी के लिए उत्साहवर्धक तो है ही. बढ़े चलो.

भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी नये नये प्रयोग कर रहे हैं. भले ही बीजेपी नेता हिमंत बिस्वा सरमा को लगता हो कि दाढ़ी बढ़ाने के बाद वो सद्दाम हुसैन जैसे दिखने लगे हैं. भले बीजेपी नेता अमित मालवीय को महाकाल की सीढ़ियों पर राहुल गांधी साष्टांग प्रणाम दिखावा लगता हो, लेकिन अब संघ और बीजेपी नेतृत्व को भी मालूम होना चाहिये कि राहुल गांधी सॉफ्ट हिंदुत्व के प्रयोग से भी काफी आगे बढ़ चुके हैं.

जैसे गुरिल्ला युद्ध में दुश्मन के खिलाफ घात लगा कर हमले किये जाते हैं. और मौका देख कर घुसपैठ, राहुल गांधी भी बिलकुल वही तौर तरीका अपना रहे हैं - और खास बात ये है कि कांग्रेस नेता के निशाने पर संघ और बीजेपी का हिंदुत्व एजेंडा ही है.

ये सब राहुल गांधी के दिमाग में ऐसे रच बस गया है कि कांग्रेस महंगाई पर भी रैली बुलाती है तो राहुल गांधी हिंदुत्व और हिंदुत्ववादियों में फर्क समझाने लगते हैं. जैसे महात्मा गांधी...

राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को अरसे से एक ऐसे अस्त्र की तलाश रही है, जिसे वो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी (RSS-BJP Hindutva Agenda) के खिलाफ इस्तेमाल कर सकें. एक ऐसा ब्रह्मास्त्र जो संघ और बीजेपी के हिंदुत्व के एजेंडे में घुस कर सर्जिकल स्ट्राइक कर सके - और येन केन प्रकारेण वो अपनी पार्टी को फिर से वो जगह दिला सके जो कांग्रेस-मुक्त-भारत कैंपेन से पहले रही.

जैसा कि कांग्रेस की तरफ से लगातार दावा किया जा रहा है कि भारत जोड़ो यात्रा का कोई चुनावी मकसद नहीं है, मतलब ये कि संघ और बीजेपी के खिलाफ ही राहुल गांधी सड़क पर उतरे हैं. जब राहुल गांधी कहते हैं कि यात्रा नफरत के खिलाफ लोगों को एक दूसरे से जोड़ने और उनके करीब पहुंचने का मिशन है - और जिस तरह का रिस्पॉन्स यात्रा को मिल रहा है, निश्चित तौर पर राहुल गांधी के लिए उत्साहवर्धक तो है ही. बढ़े चलो.

भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी नये नये प्रयोग कर रहे हैं. भले ही बीजेपी नेता हिमंत बिस्वा सरमा को लगता हो कि दाढ़ी बढ़ाने के बाद वो सद्दाम हुसैन जैसे दिखने लगे हैं. भले बीजेपी नेता अमित मालवीय को महाकाल की सीढ़ियों पर राहुल गांधी साष्टांग प्रणाम दिखावा लगता हो, लेकिन अब संघ और बीजेपी नेतृत्व को भी मालूम होना चाहिये कि राहुल गांधी सॉफ्ट हिंदुत्व के प्रयोग से भी काफी आगे बढ़ चुके हैं.

जैसे गुरिल्ला युद्ध में दुश्मन के खिलाफ घात लगा कर हमले किये जाते हैं. और मौका देख कर घुसपैठ, राहुल गांधी भी बिलकुल वही तौर तरीका अपना रहे हैं - और खास बात ये है कि कांग्रेस नेता के निशाने पर संघ और बीजेपी का हिंदुत्व एजेंडा ही है.

ये सब राहुल गांधी के दिमाग में ऐसे रच बस गया है कि कांग्रेस महंगाई पर भी रैली बुलाती है तो राहुल गांधी हिंदुत्व और हिंदुत्ववादियों में फर्क समझाने लगते हैं. जैसे महात्मा गांधी और नाथूराम गोडसे. लेकिन लड़ाई जब हद से ज्यादा मुश्किल हो तो हल्के फुल्के दांव और चाल से काम नहीं चलता है. बड़े पैमाने पर गदर मचानी पड़ती है.

संघ और बीजेपी के खिलाफ राहुल गांधी ने वैसा ही हथियार खोज निकाला है, जैसे बीजेपी तीन तलाक के जरिये मुस्लिम घरों में घुस कर पुरुषों और महिलाओं का बंटवारा कर अपने खिलाफ पड़ने वाले एकजुट वोटों को न्यूट्रलाइज करने की कोशिश कर रही है. तमाम राजनीतिक तरकीबों की मदद से बीजेपी ने 2019 में हारी हुई आजमगढ़ और रामपुर लोक सभा सीट पर तो काबिज हो चुकी है, लेकिन रामपुर विधानसभा उपचुनाव में आजम खान बड़ी आसानी से अपने लोगों को समझा रहे हैं कि अगर वे बीजेपी को वोट देते हैं तो 'अब्दुल' को उनके घरों में पोछा लगाने से ज्यादा काम नहीं मिलने वाला है.

मुश्किल ये है कि न तो बीजेपी का कांग्रेस मुक्त भारत अभियान ही मंजिल हासिल कर सका है, न ही वो अमित शाह के ड्रीम प्रोजेक्ट पंचायत से पार्लियामेंट तक बीजेपी के शासन के स्वर्णिम काल में ही पहुंच सकी है - और ऐन इसी बीच राहुल गांधी घात लगा कर धावा बोलने लगे हैं.

राहुल गांधी ने कोई नॉवेल आइडिया तो नहीं अपनाया है, लेकिन संघ और बीजेपी की 'जय श्रीराम' के नारे की जगह जय सियाराम (Jai Siyaram Slogan) बोलने की चुनौती दे रहे हैं, वो नक्कारखाने की तूती तो नहीं ही साबित होने वाला है - समझने वाली बात ये है कि ऐसा करके वो संघ और बीजेपी के साथ साथ हिंदुत्व की राजनीतिक राह पर बढ़ रहे, अरविंद केजरीवाल को भी पछाड़ने की जुगत लगा चुके हैं.

जय श्रीराम नहीं, बोलो - 'जय सियाराम'

राहुल गांधी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को ठीक उसी जगह चोट किया है, जहां वो कमजोर पड़ता है - संघ में महिलाओं की गैरमौजूदगी. राहुल गांधी ने ये मुद्दा 2017 में हो रहे गुजरात विधानसभा के दौरान भी उठाया था, लेकिन संघ की तरफ से कोई ठोस जवाब नहीं दिया जा सका. स्थिति अब भी कुछ बदली हो, ऐसा भी नहीं लगता.

जैसे राहुल गांधी कांग्रेस न बनने की अपनी जिद पर कायम रहे, अगर 'जय सियाराम' भी यूं ही बोलते रहे तो कांग्रेस का भी कल्याण हो सकता है.

महिलाओं के साथ बातचीत में राहुल गांधी ने पूछा था, 'आरएसएस की शाखा में आपने एक भी महिला को शार्ट्स पहने देखा है? मैंने तो कभी नहीं देखा... आखिर आरएसएस में महिलाओं को आने की अनुमति क्यों नहीं है?'

फिर राहुल गांधी ने ये भी ध्यान दिलाया कि बीजेपी में कई महिलाएं हैं, 'लेकिन आरएसएस में मैंने किसी महिला को नहीं देखा है.'

तभी संघ के सीनियर नेता मनमोहन वैद्य की तरफ से राहुल गांधी को समझाने की कोशिश हुई, 'ये ऐसा ही है कि कोई पुरुष हॉकी के मैच में पहुंच जाये - और वहां महिला हॉकी खिलाड़ियों की तलाश करे!'

मनमोहन वैद्य का कहना रहा कि संघ शाखाओं पर पुरुषों के साथ काम करता है और उनके जरिये परिवारों से भी जुड़ता है. ऐसे सवाल उठने पर संघ की तरफ से आरएसएस के महिला विंग राष्ट्र सेविका समिति का उदाहरण दिया जाता है, लेकिन संघ की तरह उसकी सक्रियता कभी नहीं देखी गयी.

समय समय पर कभी महिलाओं की रुटीन तो कभी किसी और बहाने से संघ की तरफ से इस सवाल को काउंटर करने की कोशिश होती रही है - और राहुल गांधी ने फिर से संघ की उसी कमजोर नस पर प्रहार किया है.

भारत जोड़ो यात्रा के तहत मध्य प्रदेश पहुंचे राहुल गांधी ने किसी पंडित जी से मुलाकात और उनकी बातों का जिक्र करते हुए कहा, ''उनके संगठन में सीता नहीं आ सकतीं... उन्होंने उन्हें बाहर कर दिया... ये बहुत गहरी बात मध्य प्रदेश के एक पंडित जी ने सड़क पर मुझसे कही.'

राहुल गांधी बोले, 'पंडित जी ने मुझसे कहा कि आप अपनी स्पीच में पूछिये कि बीजेपी के लोग जय श्रीराम करते हैं मगर कभी जय सियाराम या हे राम क्यों नहीं करते? मुझे बहुत अच्छा लगा... बहुत गहरी बात बोली... आरएसएस और बीजेपी के लोग जिस भावना से राम ने अपनी जिंदगी जी, उस भावना से अपनी जिंदगी नहीं जीते... राम ने किसी के साथ अन्याय नहीं किया. राम ने समाज को जोड़ने का काम किया... भगवान राम की जो भावना थी, जो उनके जीने का तरीका है - आरएसएस के लोग और बीजेपी के लोग नहीं अपनाते.'

और फिर उसी क्रम में राहुल गांधी ने संघ और बीजेपी को सलाह दी, 'हमारे जो आरएसएस के मित्र हैं... मैं उनसे कहना चाहता हूं... जय श्रीराम, जय सियाराम और हे राम... तीनों का प्रयोग कीजिये - और सीता जी का अपमान मत कीजिये.'

राहुल गांधी कहते हैं, 'हम सीता को याद करते हैं... समाज में जो सीता की जगह होनी चाहिये उसका आदर करते हैं... जय सियाराम, जय सीताराम और जय श्रीराम... हम राम भगवान की जय करते हैं.'

कांग्रेस ने राहुल गांधी का ये वीडियो सोशल मीडिया पर भी शेयर किया है जिसमें वो कहते हैं, जय सियाराम तो वे कह ही नहीं सकते क्योंकि उनके संगठन में एक महिला नहीं है... वह जय सियाराम का संगठन ही नहीं है, उनके संगठन में महिला तो आ ही नहीं सकती... सीता तो आ ही नहीं सकती... सीता को तो बाहर कर दिया.'

बीजेपी का रिएक्शन भी दिलचस्प है: राहुल गांधी के बयान पर बीजेपी की तरफ से जोरदार विरोध हुआ है, लेकिन किसी ने भी कांग्रेस नेता के सवालों का जवाब देने की कोशिश नहीं की है. वैसे भी जब जवाब न हो तो सवाल पूछने वाले पर सवाल उठाकर काम तो चलाया ही जा सकता है - और अगर समर्थकों की तादाद अच्छी हो तो काम और भी आसान हो जाता है.

बीजेपी प्रवक्ता सैयद शाहनवाज हुसैन ने बड़ा ही कमजोर बचाव किया है, बीजेपी को राहुल गांधी के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है. ऊपर से राहुल गांधी को 'नकली हिंदू' के तंज के साथ इस बार इलेक्शन हिंदू करार दिया है. मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा का कहना है, राहुल बाबा का ज्ञान, बाबा-बाबा ब्लैक शीप तक ही सीमित है.

यूपी के डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक राहुल गांधी को नाटक मंडली का नेता बता रहे हैं. कहते हैं, वो कोट के ऊपर जनेऊ पहनते हैं. यूपी के ही एक और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य तो अपनी ही जीत बताने लगते हैं, भाजपा ने जय सियाराम बोलने के लिए विवश कर दिया है... ये भाजपा की वैचारिक विजय और कांग्रेसी विचारधारा की हार है!

केशव मौर्य आगे कहते हैं, 'अभी आपसे जय श्री राधारानी सरकार की - और जय श्रीकृष्ण भी कहलवाना है!'

सिर्फ नारेबाजी होगी, या आगे भी कोई इरादा है

राहुल गांधी की ही तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी जय सियाराम के नारे लगा चुके हैं. लेकिन अहम बात ये है कि राहुल गांधी सिर्फ नारा नहीं लगा रहे हैं, बल्कि संघ और बीजेपी को उसी नारे में उलझाने की कोशिश कर रहे हैं - और अब तक संघ या बीजेपी की तरफ से ऐसा कोई जवाब नहीं आया है जिससे ये मुद्दा खत्म हो जाये.

अगस्त, 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब अयोध्या में राम मंदिर के लिए भूमि पूजन करने पहुंचे तो संबोधन की शुरुआत 'सियावर रामचंद्र की जय' के साथ ही की थी. मोदी के मुंह से ये स्लोगन सुन कर लोगों को लगा जैसे बीजेपी 'सबका साथ, सबका विकास' के स्लोगन में 'सबका विश्वास' जोड़ने की कोशिश कर रही है.

अपने भाषण की नरेंद्र मोदी ने शुरुआत कुछ ऐसे की, 'सबसे पहले हम भगवान राम और माता जानकी को स्‍मरण करें... सियावर राम चंद्र की जय... जय सिया राम!'

पश्चिम बंगाल चुनाव के दौरान मार्च, 2021 में ममता बनर्जी ने 'जय श्रीराम' के नारे विरोध पर बीजेपी की आपत्ति के बारे में लोगों को समझा रही थीं, बोलीं - ‘वो कह रहे हैं कि आप अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगे... आपको जय श्रीराम कहना होगा - लेकिन आप जय सियाराम नहीं कह पाएंगे.’

ये मुद्दा नये सिरे से छेड़ कर कांग्रेस नेता ने संघ और बीजेपी की मुश्किल तो बढ़ाने की कोशिश की ही है - और ऐसा करके राहुल गांधी एक ही प्रयास में हिंदुत्व में अपनी हिस्सेदारी भी जताने की कोशिश कर रहे हैं, और महिलाओं का मुद्दा भी उठा रहे हैं. बीजेपी के लिए सीधे सीधे बचाव करना मुश्किल हो सकता है.

महिलाओं का मुद्दा : कांग्रेस नेतृत्व समय समय पर महिलाओं का मुद्दा अलग अलग तरीके से उठाता रहा है - और सबसे ज्यादा ये मुद्दा चर्चित रहा जब उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव हो रहे थे.

यूपी चुनाव 2022 में महिला उम्मीदवारों को 40 फीसदी आरक्षण देने की प्रियंका गांधी ने घोषणा की थी, तब राहुल गांधी की पहली सार्वजनिक प्रतिक्रिया रही - अभी तो ये शुरुआत है. हालांकि, उसके बाद ये मुद्दा ठंडा पड़ता भी लगा, लेकिन कोई बात नहीं जब जगे तभी सवेरा मान लेंगे.

बतौर कांग्रेस राहुल गांधी और उनसे पहले सोनिया गांधी भी महिला आरक्षण के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बारी बारी पत्र लिख चुके हैं. दोनों ही पत्रों में बीजेपी सरकार को एक जैसी ही सलाह दी गयी थी, आप महिला आरक्षण बिल लाइये और हम सपोर्ट करेंगे. दोनों नेताओं ने ये भी याद दिलाया था कि कैसे यूपीए सरकार में कांग्रेस ने कोशिश की, लेकिन गठबंधन की सरकार होने की वहज से अंजाम तक नहीं पहुंचा पाये. सोनिया गांधी ने लिखा था, आपके पास तो बहुमत है... आप कर सकते हैं.

दोनों ही पत्रों पर मोदी सरकार की तरफ से कोई ठोस आश्वासन या ऐसी प्रतिक्रिया नहीं दी गयी, जैसी अपेक्षित रही होगी. बल्कि बीजेपी नेताओं ने कांग्रेस नेतृत्व को ये समझाने की कोशिश की कि कांग्रेस पहले मोदी सरकार की तरफ से महिलाओं के लिए जो काम किये जा रहे हैं, उसे सपोर्ट करना चाहिये.

2019 में कांग्रेस महासचिव बनाये जाने के बाद प्रियंका गांधी ने अपने पहले भाषण की शुरुआत की थी, 'बहनों और भाइयों.' आमतौर पर नेता बहनों और भाइयों कह कर संबोधित करते हैं. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी ऐसा किया करती थीं - और आपको याद होगा, स्वामी विवेकानंद ने 1893 के शिकागो सम्मेलन में अपने संबोधन की शुरुआत भी ऐसे ही की थी, 'सिस्टर्स एंड ब्रदर्स...'

हिंदुत्व की राजनीति में हिस्सेदारी का दावा: ये ठीक है कि राहुल गांधी की बातों का मजाक बना दिया जाता है. कभी कभी वो खुद भी ऐसी हरकत कर बैठते हैं, लेकिन हिंदुत्व को लेकर अभी तक कांग्रेस नेता के स्टैंड में कोई बदलाव तो नहीं ही आया है - राहुल गांधी ने कभी नहीं कहा कि वो हिंदू नहीं हैं. ये तो राहुल गांधी के राजनीतिक विरोधी ही कहते रहते हैं.

हां, 'जय सियाराम' बोल कर राहुल गांधी ने काफी मजबूती के साथ अपनी दावेदारी जतायी है - जैसे कह रहे हों, हम भी हिंदू हैं. कोई मुगालते में न रहे. भगवान राम के साथ सीता का जिक्र कर राहुल गांधी ने मातृ शक्ति का आह्वान किया है, जिसे बीजेपी की तरफ से 'साइलेंट वोटर' बताया जाता रहा है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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