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राहुल गांधी किसानों के साथ सड़क पर उतर जाते तो दोनों का ही भला हो जाता

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 01 दिसम्बर, 2020 12:07 PM
  • 01 दिसम्बर, 2020 12:07 PM
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) पंजाब और हरियाणा के किसानों के समर्थन में अक्टूबर में ही खेती बचाओ यात्रा पर निकले थे. अगर वैसे ही किसान आंदोलन (Farmers Protest) से जुड़ जाते तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को घेरने में ज्यादा सक्षम महसूस करते.

किसानों का सड़क पर उतरना केंद्र की बीजेपी सरकार पर बहुत भारी पड़ रहा है - फर्ज कीजिये अगर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) भी किसानों को सड़क पर पहुंच कर ज्वाइन कर लेते तो क्या हाल होता? कम से कम किसानों के बीच खड़े होकर राहुल गांधी के सवाल उठाने पर बीजेपी नेता उतने आक्रामक तो नहीं ही हो पाते जितना चीन के मामले में नजर आते रहे.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के चिंतित होने से ही समझा जा सकता है कि किसान आंदोलन (Farmers Protest) का कितना असर पड़ रहा है. किसान आंदोलन की अहमियत कुछ ऐसे भी समझी जा सकती है कि वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण में किसान और कांग्रेस ऐसे छाये रहे कि कई बार तो देव दीपावली की चमक तक फीकी नजर आने लगी थी.

बीजेपी सरकार पर किसान आंदोलन के दबाव को नागौर से सांसद हनुमान बेनीवाल की अमित शाह को लिखी गयी चिट्ठी से भी समझी जा सकता है. राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के नेता हनुमान बेनीवाल उस वक्त सुर्खियों में रहे जब राजस्थान में सचिन पायलट और अशोक गहलोत के झगड़े से पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के दूरी बनाये रखने को मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे थे. इसे ऐसे समझ सकते हैं कि हनुमान बेनीवाल बीजेपी नेतृत्व के बचाव में वैसे ही लगे हुए थे जैसे कंगना रनौत के मुंबई पहुंचने पर रामदास अठावले बीजेपी के लिए बैटिंग करत देखे गये थे - मगर, अब वो बात नहीं रही.

हनुमान बेनीवाल ने अमित शाह को संबोधित कर एक ट्वीट किया और सीधे सीधे धमकी दे डाली, 'चूंकि RLP एनडीए का घटक दल है लेकिन पार्टी की ताकत किसान और जवान है - अगर इस मामले में त्वरित कार्यवाही नहीं की गई तो मुझे किसान हित में एनडीए का सहयोगी दल बने रहने के विषय पर पुनर्विचार करना पड़ेगा!'

एक ट्वीट में हनुमान बेनीवाल ने कहा, 'श्री अमित शाह जी,...

किसानों का सड़क पर उतरना केंद्र की बीजेपी सरकार पर बहुत भारी पड़ रहा है - फर्ज कीजिये अगर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) भी किसानों को सड़क पर पहुंच कर ज्वाइन कर लेते तो क्या हाल होता? कम से कम किसानों के बीच खड़े होकर राहुल गांधी के सवाल उठाने पर बीजेपी नेता उतने आक्रामक तो नहीं ही हो पाते जितना चीन के मामले में नजर आते रहे.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के चिंतित होने से ही समझा जा सकता है कि किसान आंदोलन (Farmers Protest) का कितना असर पड़ रहा है. किसान आंदोलन की अहमियत कुछ ऐसे भी समझी जा सकती है कि वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण में किसान और कांग्रेस ऐसे छाये रहे कि कई बार तो देव दीपावली की चमक तक फीकी नजर आने लगी थी.

बीजेपी सरकार पर किसान आंदोलन के दबाव को नागौर से सांसद हनुमान बेनीवाल की अमित शाह को लिखी गयी चिट्ठी से भी समझी जा सकता है. राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के नेता हनुमान बेनीवाल उस वक्त सुर्खियों में रहे जब राजस्थान में सचिन पायलट और अशोक गहलोत के झगड़े से पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के दूरी बनाये रखने को मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे थे. इसे ऐसे समझ सकते हैं कि हनुमान बेनीवाल बीजेपी नेतृत्व के बचाव में वैसे ही लगे हुए थे जैसे कंगना रनौत के मुंबई पहुंचने पर रामदास अठावले बीजेपी के लिए बैटिंग करत देखे गये थे - मगर, अब वो बात नहीं रही.

हनुमान बेनीवाल ने अमित शाह को संबोधित कर एक ट्वीट किया और सीधे सीधे धमकी दे डाली, 'चूंकि RLP एनडीए का घटक दल है लेकिन पार्टी की ताकत किसान और जवान है - अगर इस मामले में त्वरित कार्यवाही नहीं की गई तो मुझे किसान हित में एनडीए का सहयोगी दल बने रहने के विषय पर पुनर्विचार करना पड़ेगा!'

एक ट्वीट में हनुमान बेनीवाल ने कहा, 'श्री अमित शाह जी, देश मे चल रहे किसान आंदोलन की भावना को देखते हुए हाल ही में कृषि से सम्बंधित लाये गये 3 बिलों को तत्काल वापस लिया जाये और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को पूरी तरह लागू करें.' हनुमान बेनीवाल की चेतावनी से पहले कृषि कानूनों के विरोध में शिरोमणि अकाली दल पहले ही एनडीए से अलग हो चुका है.

मालूम नहीं बीजेपी की मुश्किल को राहुल गांधी समझ पा रहे हैं भी या नहीं? ऐसा तो नहीं कहा जा सकता कि राहुल गांधी किसानों के विरोध का सपोर्ट नहीं कर रहे हैं, लेकिन उनको समझना चाहिये के ये वक्त ऑनलाइन कैंपेन का नहीं है - बेहतर तो यही होता कि राहुल गांधी भी किसानों की लड़ाई उनके बीच खड़े होकर लड़ते - क्योंकि ऐसा होने पर दोनों का भला हो सकता है.

सोशल मीडिया नहीं, सड़क पर उतरने का वक्त है

दिल्ली में डेरा डाले किसान पंजाब से ही आये हैं, जहां अक्टूबर में राहुल गांधी खेती बचाओ यात्रा में शामिल हुए थे - और ट्रैक्टर से लंबा सफर किया था. जब हरियाणा में राहुल गांधी की ट्रैक्टर यात्रा को एंट्री नहीं मिल रही थी तो वो धरने पर तब तक बैठे रहने का ऐलान कर दिये जब तक बीजेपी की मनोहर लाल खट्टर सरकार की अनुमति नहीं मिल जाती - बहरहाल, हरियाणा सरकार दबाव में आ गयी और राहुल गांधी को सौ साथियों के साथ यात्रा करने की छूट दे दी थी.

राहुल गांधी अभी तक किसना आंदोलन अकेले करते आ रहे हैं - एक बार किसानों के साथ होकर भी देखना चाहिये!

राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर हमले के लिए ट्विटर के कंधे का इस्तेमाल किया है. राहुल गांधी ने लिखा है, 'वादा था किसानों की आय दोगुनी करने का, मोदी सरकार ने आय तो कई गुना बढ़ा दी, लेकिन अडानी-अंबानी की... जो काले कृषि कानूनों को अब तक सही बता रहे हैं, वे क्या खाक किसानों के पक्ष में हल निकालेंगे.'

ट्विटर पर ही राहुल गांधी ने एक वीडियो मैसेज भी जारी किया है और उसके साथ एक हैशटैग इस्तेमाल किया है - #SpeakpForFarmers. राहुल गांधी ने आम लोग और कांग्रेस कार्यकर्ताओें से किसानों की आगे बढ़ कर मदद करने की अपील की है - खाना खिलायें...' ये भी कहा है कि किसानों के साथ खड़ा होना चाहिये.

राहुल गांधी के राजनीतिक कॅरियर का प्रमुख हिस्सा किसानों से जुड़े मुद्दे उठाने में लगा है. ये ठीक है कि मौजूदा दौर में सोशल मीडिया की ताकत का हर कोई लोहा मान रहा है, लेकिन ऐसे में जबकि किसान राशन-पानी और बिस्तर के साथ दिल्ली पहुंच कर डेरा डाले हुए हैं, राहुल गांधी थोड़ा और कदम बढ़ाते तो किसानों की आवाज तो बुलंद होती ही, उनके विरोधियों को भी कांग्रेस नेता की आलोचना एक लिए एक्स्ट्रा हिम्मत की जरूरत महसूस होती.

बागियों को जवाब देने का बेहतरीन मौका

राहुल गांधी को भी कांग्रेस में सबसे पहले प्रियंका गांधी की ही तरह महासचिव बनाया गया था, हालांकि, 2004 में ही वो अमेठी से सांसद बन चुके थे जबकि महासचिव 2007 में बनाये गये. 10 साल बाद अध्यक्ष बने राहुल गांधी ने 2019 के आम चुनाव से पहले बहन को भी उसी पद पर मनोनीत किया था. प्रियंका गांधी की ही तरह राहुल गांधी भी महासचिव बनते ही एक्टिव हो गये थे - पहली बार राहुल गांधी तब सुर्खियों में आये जब संसद में एक किसान की पत्नी की कहानी सुनायी थी - कलावती की कहानी.

महाराष्ट्र में यवतमाल जिले के जालका गांव की रहने वाली कलावती को राहुल गांधी ने 2008 में संसद में विदर्भ क्षेत्र के किसानों की जिंदगी का प्रतिनिधि किरदार बना कर पेश किया था. किसानों की हालत को समझने के लिए राहुल गांधी कलावती के घर पहुंचे थे - कलावती के माध्यम से किसान आत्महत्या की समस्या की तस्वीर खींचने की कोशिश की थी.

राहुल गांधी की इस पहले के बाद सुलभ इंटरनेशनल ने कलावती को 36 लाख रुपये देने की घोषणा की - और 6 लाख की पहली किस्त देने के बाद बाकी 30 लाख रुपये भी कलावती के खाते में जमा करा दिया गया. महाराष्ट्र सरकार ने भी मदद की घोषणा की और दूसरे कई लोग भी कलावती की मदद में आगे आये.

सीधा असर ये हुआ कि कलावती की जिंदगी तो सुधर ही गयी, राहुल गांधी भी किसानों, गरीबों और समाज के वंचित तबकों की आवाज बनने की अपनी मुहिम में जुट गये. बाद में कई बार वो दलित परिवारों के घर गये, ये बात अलग है कि बीएसपी नेता मायावती तंज कसती रहीं - 'राहुल गांधी दलितों के घर से दिल्ली लौटने के बाद एक विशेष प्रकार से साबुन से नहाते हैं.'

2011 राहुल गांधी की भट्टा पारसौल यात्रा और 2015 में दिल्ली के रामलीला मैदान में किसान खेत मजदूर रैली भी कांग्रेस नेता के अभियानों का ही हिस्सा है. 2016 में उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी ने किसान यात्रा के तहत खाट सभा की थी और फिर 2018 में किसानों पर हुई फायरिंग के विरोध में मध्य प्रदेश के मंदसौर भी पहुंचे थे - अभी अभी अक्टूबर, 2020 में खेती बचाओ यात्रा में भी शामिल हुए.

कलावती से शुरू होकर किसान कर्जमाफी तक - राहुल गांधी को संघर्ष का खुद तो बहुत फायदा नहीं हुआ लेकिन किसानों का कुछ न कुछ कल्याण जरूर हुआ है. 2016 की किसान यात्रा के बावजूद राहुल गांधी साल भर बाद हुए चुनाव में 101 सीटों पर लड़कर भी कांग्रेस को सात ही सीटें दिला पाये, लेकिन जून की मंदसौर यात्रा के बाद अक्टूबर-नवंबर, 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सरकार ही बन गयी. मध्य प्रदेश के साथ ही छत्तीगढ़ में हो रहे चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने सत्ता में आने के 10 दिन के भीतर ही किसानों का कर्ज माफ किये जाने का वादा किया था. सरकार भी बनी और कुछ आदेश भी जारी हुए, लेकिन कमलनाथ सरकार गिर भी गयी. कमलनाथ सरकार गिराने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस सरकार पर चुनावी वादे न पूरा किये जाने का आरोप लगाया था - बिलकुल वैसे ही जैसे सचिन पायलट को अशोक गहलोत से झगड़ा खत्म करने के एवज में राजस्थान के लोगों से किया गया चुनावी वादा पूरा किये जाने का अब भी इंतजार ही है.

राहुल गांधी के किसान कर्जमाफी की मुहिम चलाये जाने का फायदा ये हुआ कि यूपी सरकार को भी कांग्रेस नेता के वादे अपने तरीके से पूरा करना पड़ा था - और 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस की न्याय स्कीम से बने दबाव के चलते मोदी सरकार को किसान सम्मान निधि के साथ आगे आना ही पड़ा. वो भी तब जबकि बीजेपी हमेशा ही किसानों की कर्जमाफी के खिलाफ रही है.

राहुल गांधी चाहते तो किसान आंदोलन ज्वाइन करके कांग्रेस के बागी नेताओं का मुंह हमेशा के लिए बंद कर देते. गुलाम नबी आजाद और कपिल सिब्बल सहित 23 नेताओं ने सोनिया गांधी को पत्र लिख कर एक ऐसे स्थायी अध्यक्ष की डिमांड रखी है जो 'वास्तव में काम करता हुए नजर भी आये'!

किसानों के आंदोलन में शामिल होकर राहुल गांधी पार्टी में बगावत पर उतरे नेताओं की जबान पर ताला तो लगा ही देते, बीजेपी नेताओं जैसे राजनीतिक विरोधियों को भी राहुल गांधी को घेरने से पहले चार बार सोचना पड़ता. मानते हैं कि आंदोलनरत किसान जब अमित शाह के प्रस्तावों को नकार दे रहे हैं तो राहुल गांधी को तवज्जो देते या नहीं, जरूरी नहीं है. वैसे ये किसान पंजाब से ही आये हैं जहां कांग्रेस की ही सरकार है और मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह खुद भी सपोर्ट में खड़े नजर आ रहे हैं. कृषि कानूनों के विरोध में किसानों के भारत बंद के दौरान भी कैप्टन अमरिंदर सिंह ने किसानों से कानून व्यवस्था में व्यवधान न बनने की अपील की थी, लेकिन पहले से ही बोल दिया था कि उनके खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज नहीं होगी.

ऐसे में क्या राहुल गांधी कैप्टन अमरिंदर सिंह के माध्यम से किसानों के आंदोलन में शामिल होने के लिए किसान नेताओं से बातचीत कर उनको मना नहीं सकते थे?

2017 में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जब पंजाब चुनाव में प्रचार के लिए पहुंचे तो बोले, 'अब मैं यहीं खूंटा गाड़ के बैठूंगा...'. कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भले ही अरविंद केजरीवाल की सरकार न बनने दी हो, लेकिन राहुल गांधी भी अगर खूंटे के साथ किसान आंदोलन में कूद पड़ते तो उनका तो भला होता ही, राहुल गांधी के कॅरियर के लिए किसान आंदोलन नया लांच पैड साबित हो सकता था.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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