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तो राहुल ने कर दिया एक चीनी युवा के रोजगार का इंतजाम !

    • अनुराग तिवारी
    • Updated: 03 नवम्बर, 2017 06:14 PM
  • 03 नवम्बर, 2017 06:14 PM
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जिस सेल्फी को लेकर राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लगातार आलोचना किये जा रहे हैं आज वही सेल्फी खुद उनके लिए मुसीबत बन गयी है.

सोशल मीडिया और मेन स्ट्रीम मीडिया में राहुल गांधी की सेल्फी छाई हुई है. उन्होंने यह सेल्फी दसवीं कक्षा में पढ़ने वाली स्टूडेंट मंतशा सेठ के साथ ली है. जैसा कि उम्मीद थी, मंतशा और राहुल की सेल्फी को लेकर तरह तरह की स्टोरीज पेश की जा रही हैं. लेकिन राहुल गांधी इसी सेल्फी से वो काम कर गए, जिसकी वे कुछ दिनों पहले जमकर आलोचना कर रहे थे.

यह सेल्फी उन्होंने भरूच में अपने रोडशो के दौरान ली. जिसमें शामिल होने मंतशा भी पहुंची थीं. मंतशा राहुल की पर्सनालिटी की बहुत बड़ी फैन हैं. जाहिर है, राहुल के साथ सेल्फी लेने के मौके ने उनको एक प्राउड फीलिंग दी होगी. मंतशा के मुताबिक वे काफी देर से राहुल की तरफ देख रहीं थीं और अचानक राहुल गांधी ने से उनकी नजर मिलीं तो राहुल ने उन्हें बस के ऊपर बुलाया. मंतशा ने राहुल गांधी के साथ एक सेल्फी लेने की इच्छा जताई तो उन्होंने वह इच्छा भी पूरी कर दी.

देखा जाए तो राहुल गांधी ने सेल्फी लेकर अपनी ही बात को काट दिया है

लेकिन इन सब के बीच राहुल गांधी भूल गए कि इसी सेल्फी को जरिया बनाते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर हमला कर रहे थे. अगर आपको याद हो तो खुद राहुल गांधी ने यह बयान दिया था कि मोदी जी जब सेल्फी लेने के लिए मोबाइल कैमरे का बटन दबाते हैं तो उससे चीन में एक युवा को रोजगार मिलता है. राहुल गांधी के बयान के अनुसार ही इस बार उन्होंने सेल्फी के लिए मोबाइल कैमरे का बटन दबाया तो एक चीनी युवा के रोजगार का इंतजाम हो गया होगा. देखा जाए तो तो अब दोनों ही नेता चीनी युवाओं को रोजगार दिलाने में एक दूसरे के बड़े प्रतियोगी हो गए हैं.

वैसे राहुल गांधी की चिंता बेवजह नहीं है, भारत का युवा भी चीनी युवा की तरह रोजगार चाहता है. बकौल राहुल गांधी, चीन में रोजाना 50 हजार युवाओं को रोजगार मिलता है और भारत में सिर्फ...

सोशल मीडिया और मेन स्ट्रीम मीडिया में राहुल गांधी की सेल्फी छाई हुई है. उन्होंने यह सेल्फी दसवीं कक्षा में पढ़ने वाली स्टूडेंट मंतशा सेठ के साथ ली है. जैसा कि उम्मीद थी, मंतशा और राहुल की सेल्फी को लेकर तरह तरह की स्टोरीज पेश की जा रही हैं. लेकिन राहुल गांधी इसी सेल्फी से वो काम कर गए, जिसकी वे कुछ दिनों पहले जमकर आलोचना कर रहे थे.

यह सेल्फी उन्होंने भरूच में अपने रोडशो के दौरान ली. जिसमें शामिल होने मंतशा भी पहुंची थीं. मंतशा राहुल की पर्सनालिटी की बहुत बड़ी फैन हैं. जाहिर है, राहुल के साथ सेल्फी लेने के मौके ने उनको एक प्राउड फीलिंग दी होगी. मंतशा के मुताबिक वे काफी देर से राहुल की तरफ देख रहीं थीं और अचानक राहुल गांधी ने से उनकी नजर मिलीं तो राहुल ने उन्हें बस के ऊपर बुलाया. मंतशा ने राहुल गांधी के साथ एक सेल्फी लेने की इच्छा जताई तो उन्होंने वह इच्छा भी पूरी कर दी.

देखा जाए तो राहुल गांधी ने सेल्फी लेकर अपनी ही बात को काट दिया है

लेकिन इन सब के बीच राहुल गांधी भूल गए कि इसी सेल्फी को जरिया बनाते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर हमला कर रहे थे. अगर आपको याद हो तो खुद राहुल गांधी ने यह बयान दिया था कि मोदी जी जब सेल्फी लेने के लिए मोबाइल कैमरे का बटन दबाते हैं तो उससे चीन में एक युवा को रोजगार मिलता है. राहुल गांधी के बयान के अनुसार ही इस बार उन्होंने सेल्फी के लिए मोबाइल कैमरे का बटन दबाया तो एक चीनी युवा के रोजगार का इंतजाम हो गया होगा. देखा जाए तो तो अब दोनों ही नेता चीनी युवाओं को रोजगार दिलाने में एक दूसरे के बड़े प्रतियोगी हो गए हैं.

वैसे राहुल गांधी की चिंता बेवजह नहीं है, भारत का युवा भी चीनी युवा की तरह रोजगार चाहता है. बकौल राहुल गांधी, चीन में रोजाना 50 हजार युवाओं को रोजगार मिलता है और भारत में सिर्फ 450 को. यह एक ऐसा बड़ा डिफरेंस है जो हुक्मरानों के चेहरे पर शिकन लाने के लिए काफी है. राजनेता यह भी भूल जाते हैं कि उनका सबसे बड़ा वोटर भी युवा वर्ग से ही आता है. देखने वाली बात है कि देश की इस सबसे बड़ी समस्या पर गंभीरता से कब विचार होगा?

आजकल राहुल युवाओं के लिए फिक्रमंद दिख रहे हैं और उन्हें उनकी नौकरी की चिंता है

फिलहाल राहुल गांधी और कांग्रेस नरेंद्र मोदी के खिलाफ बयानबाजी में अकसर यूपीए सरकार की नाकामियों की याद दिला देते हैं. यही नहीं, जिन अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं और मीडिया का हवाला देकर कांग्रेस नरेंद्र मोदी को घेरती आ रही है, वही संस्थाएं जब मोदी के फेवर की बात करती हैं तो राहुल और उनकी पार्टी उसे नकार देती हैं. हाल ही में जब वर्ल्ड बैंक ने कहा कि भारत ने ‘ईज ऑफ़ डूइंग बिजनेस’ केटेगरी में काफी सुधार किया है. बीजेपी इस पर बल्ले-बल्ले कर रही है तो राहुल गांधी इस अंतर्राष्ट्रीय तथ्य को नकारने में लग गए हैं.

राहुल जब शिक्षा संस्थानों को प्राइवेट सेक्टर इंडस्ट्रियलिस्ट्स के हाथ में देने की बात करते हैं तो भूल जाते हैं कि शिक्षा का बाजारीकरण उन्हीं की पार्टी कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने अपने शासनकाल किया था. इसी का नतीजा है कि आज इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट ग्रेजुएट्स की भरमार है. भूलिए मत, इसी मैनपावर के चलते भारत एक बड़ा आईटी हब बन सका. इस व्यवस्था में सबसे बड़ी जो खामी रह गई तो वह है राईट टू एजुकेशन का लागू तो होना लेकिन प्रभावी न होना.

बेहतर होता कि राहुल गांधी ऐसे मुद्दों को आगे बढ़ाते जो सीधे कहीं न कहीं इस देश के गरीब तबके से जुड़े हुए हैं और सरकार को मजबूर करते कि वह गरीबों की भलाई के लिए ऐसे काम करे जो जमीन पर दिखाई दें. फिलहाल राहुल गांधी वही काम कर रहे हैं जिसका आरोप उनकी पार्टी नरेंद्र मोदी पर लगतार लगाती आ रही है और वह है जुमलेबाजी. 

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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