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मोदी पर हमले के मामले में कांग्रेस के बाद अब राहुल गांधी भी अकेले पड़ने लगे हैं

    • आईचौक
    • Updated: 25 जून, 2020 06:23 PM
  • 25 जून, 2020 06:23 PM
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) पर हमले को लेकर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के पक्ष में कांग्रेस में आम राय नहीं है. बस गांधी परिवार के नाम पर सब चुप हो जाते हैं - इसी मुद्दे पर अमित शाह ने कहा है कि इमरजेंसी (Emergency 1975) के 45 साल बाद देश में तो लोकतंत्र है लेकिन कांग्रेस के भीतर नहीं.

राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) पर निजी हमले को लेकर कांग्रेस के भीतर ही विरोध झेलना पड़ रहा है. हालत ये है कि CWC की मीटिंग तक में उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा को गांधी परिवार के धौंस के बूते विरोध की आवाज को दबाना पड़ रहा है. सूत्रों के हवाले से कांग्रेस कार्यकारिणी से आयी खबरों में बताया गया है कि किस तरह मोदी पर हमला न करने की सलाह देकर आरपीएन सिंह अकेले पड़ गये - क्योंकि गांधी परिवार का मूड भांपते ही सारे नेता हां में हां मिलना शुरू कर दिये थे.

देश में इमरजेंसी (Emergency 1975) लागू होने की बरसी पर बीजेपी को भी कांग्रेस के भीतर असहमित को हवा देने का मौका मिल गया है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का कहना है कि इमरजेंसी के 45 साल बाद देश में तो लोकतंत्र है, लेकिन कांग्रेस के भीतर नहीं है.

मोदी पर हमले के पक्ष में सिर्फ राहुल और प्रियंका हैं

सोनिया गांधी खुशकिस्मत हैं कि कांग्रेस में अभी शरद पवार जैसा कोई नेता नहीं है, वरना एक और एनसीपी बनते देर नहीं लगती है. कांग्रेस की बदकिस्मती भी यही है, नहीं तो एक बार टूट जाने के बाद कांग्रेस के फिर से खड़े होने की संभावना बढ़ जाती - क्योंकि टूटने के बाद भी तो दोनों की राजनीति एक साथ ही चलेगी. ऊपर से गठबंधन ज्यादा मजबूत और तंदुरूस्त भी तो हो जाता है.

ऐसा भी नहीं कि असहमति के मुद्दों पर विरोध प्रकट करने वाला कोई नेता नहीं है - कांग्रेस कार्यकारिणी से असहमति और विरोध की जो खबर आयी है, ज्योतिरादित्य सिंधिया भी तो कभी वैसे ही विरोध जताया करते थे. धारा 370 और CAA पर कांग्रेस के स्टैंड खिलाफ विरोध करने वालों में सिंधिया भी थे और उनके विचार से इत्तेफाक रखने वाले कांग्रेस में बचे उनके साथी भी. मुमकिन है शरद पवार न सही, सिंधिया बनने के मौके की तलाश में कई कांग्रेस नेता सही वक्त का इंतजार कर रहे हों.

CWC की वर्चुअल मीटिंग 23 जून को हुई थी - और अशोक गहलोत जैसे नेताओं ने फिर से राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी संभालने...

राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) पर निजी हमले को लेकर कांग्रेस के भीतर ही विरोध झेलना पड़ रहा है. हालत ये है कि CWC की मीटिंग तक में उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा को गांधी परिवार के धौंस के बूते विरोध की आवाज को दबाना पड़ रहा है. सूत्रों के हवाले से कांग्रेस कार्यकारिणी से आयी खबरों में बताया गया है कि किस तरह मोदी पर हमला न करने की सलाह देकर आरपीएन सिंह अकेले पड़ गये - क्योंकि गांधी परिवार का मूड भांपते ही सारे नेता हां में हां मिलना शुरू कर दिये थे.

देश में इमरजेंसी (Emergency 1975) लागू होने की बरसी पर बीजेपी को भी कांग्रेस के भीतर असहमित को हवा देने का मौका मिल गया है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का कहना है कि इमरजेंसी के 45 साल बाद देश में तो लोकतंत्र है, लेकिन कांग्रेस के भीतर नहीं है.

मोदी पर हमले के पक्ष में सिर्फ राहुल और प्रियंका हैं

सोनिया गांधी खुशकिस्मत हैं कि कांग्रेस में अभी शरद पवार जैसा कोई नेता नहीं है, वरना एक और एनसीपी बनते देर नहीं लगती है. कांग्रेस की बदकिस्मती भी यही है, नहीं तो एक बार टूट जाने के बाद कांग्रेस के फिर से खड़े होने की संभावना बढ़ जाती - क्योंकि टूटने के बाद भी तो दोनों की राजनीति एक साथ ही चलेगी. ऊपर से गठबंधन ज्यादा मजबूत और तंदुरूस्त भी तो हो जाता है.

ऐसा भी नहीं कि असहमति के मुद्दों पर विरोध प्रकट करने वाला कोई नेता नहीं है - कांग्रेस कार्यकारिणी से असहमति और विरोध की जो खबर आयी है, ज्योतिरादित्य सिंधिया भी तो कभी वैसे ही विरोध जताया करते थे. धारा 370 और CAA पर कांग्रेस के स्टैंड खिलाफ विरोध करने वालों में सिंधिया भी थे और उनके विचार से इत्तेफाक रखने वाले कांग्रेस में बचे उनके साथी भी. मुमकिन है शरद पवार न सही, सिंधिया बनने के मौके की तलाश में कई कांग्रेस नेता सही वक्त का इंतजार कर रहे हों.

CWC की वर्चुअल मीटिंग 23 जून को हुई थी - और अशोक गहलोत जैसे नेताओं ने फिर से राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी संभालने की मांग शुरू कर दी, ये खबर सूत्रों के हवाले से मीडिया में आयी है, लेकिन पूछे जाने पर कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने यही समझाने की कोशिश की कि चर्चा में ये मुद्दा नहीं रहा. हो सकता है कांग्रेस अभी इस मसले को ज्यादा तवज्जो न देने के मूड में हो - क्योंकि ज्यादा जोर तो अर्थव्यवस्था, कोरोना वायरस और चीन से सरहद विवाद पर मोदी सरकार को घेरने को लेकर है.

CWC यानी कांग्रेस वर्किंग कमेटी यानी की बैठक में ज्यादा माथापच्ची भी एक ही बात पर हुई - तमाम ज्वलंत मुद्दों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर व्यक्तिगत और सीधे हमले को लेकर. इस मुद्दे पर एक बार फिर कांग्रेस में दो फाड़ नजर आया है.

दरअसल, आरपीएन सिंह ने सुझाव दे डाला कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियों और गलत फैसलों पर हमले तो निश्चित तौर जारी रखने चाहिये, लेकिन व्यक्तिगत हमलों से परहेज करना चाहिये.

मोदी पर हमले को लेकर राहुल गांधी कांग्रेस में ही अकेले पड़ते जा रहे हैं

राहुल गांधी सबसे ज्यादा आरपीएन सिंह की इस सलाह से खफा हुए - और साथ में उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा भी. मामला तब और भी गंभीर हो गया जब प्रियंका गांधी ने कह डाला कि कांग्रेस में ये केवल राहुल गांधी ही हैं जो प्रधानमंत्री मोदी से अकेले लड़ते नजर आ रहे हैं. ऐसा बोल कर प्रियंका गांधी ने पी. चिदंबरम, मनीष तिवारी और रणदीप सुरजेवाला जैसे नेताओं को तो दुख पहुंचाया ही होगा, सबसे ज्यादा तकलीफ तो पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह को हुई होगी. हो सकता है, मनमोहन सिंह की आलोचना का लेवल प्रियंका गांधी को पसंद न आया हो क्योंकि मनमोहन सिंह के बयान में तीखापन तो था, लेकिन 'चौकीदार चोर है' जैसा सस्ता और बिकाऊ नहीं.

प्रियंका गांधी वाड्रा ने नाराजगी दिखाते हुए कहा कि अब इस बात पर भी फैसला हो जाना चाहिये कि हमें प्रधानमंत्री मोदी पर हमला करना है या फिर महज मोदी सरकार की नीतियों पर ही.

जब राहुल गांधी की बारी आयी तो आरपीएन सिंह की राय पर रिएक्ट करते हुए बोले कि वो उस पर बात करना चाहते हैं. राहुल गांधी ने कहा कि जो भी CWC का फैसला होगा वो मानेंगे कि मोदी को निशाना बनाना है या सरकार को - क्योंकि वो पार्टी के सेवक हैं. फिर बोले, 'लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि सारी नाकामी नरेंद्र मोदी की है, चाहे वो लद्दाख का मामला हो या आर्थिक संकट.

राहुल ने सबके सामने अपना सवाल रख दिया - फिर हमें किस पर बात करनी चाहिए?

ये बात तब ज्यादा गंभीर हो गयी जब कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने टिप्पणी कर दी कि पार्टी में केवल राहुल ही पीएम मोदी से अकेले लड़ते दिखाई देते हैं और आज इस बात पर निर्णय होना ही चाहिए कि हमें पीएम मोदी पर कटाक्ष करना है या केवल सरकार की नीतियों पर. रप्रियंका गांधी, असल में, कांग्रेस नेताओं के सामने ये जताने की कोशिश कर रही थीं कि राहुल गांधी अकेले ही प्रधानमंत्री मोदी को घेर रहे हैं, जबकि होना तो ये चाहिये कि सारे कांग्रेस नेता मिल कर ऐसा करें. 2019 के आम चुनाव के बाद कांग्रेस की हार को लेकर हुई चर्चाओं में राहुल गांधी ने भी तकरीबन ऐसी ही राय जाहिर की थी कि ऐसा लगा जैसे वो अकेले ही 'चौकीदार चोर है' नारा लगाते रहे और पार्टी के दूसरे नेताओं ने इस अभियान में उनका साथ नहीं दिया. राहुल गांधी ने कहा कि वो मोदी से डरते नहीं हैं. राहुल गांधी ने कहा कि मोदी ऐसे शख्स हैं जिसमें बदला लेने की भावना भरी हुई है - लेकिन वो स्थिति को फेस करने के लिए तैयार हैं.

राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा के तेवर देख जब कांग्रेस नेता सुर में सुर मिलाने लगे तो आरपीएन सिंह भी समझ गये कि नक्कारखाने में तूती की आवाज क्या मायने रखती है, लिहाजा सफाई देने की कोशिश की कि उनके कहने का मतलब वो नहीं जिस तरफ बहस चली गयी बल्कि कुछ और था. इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, ऐसा लगा जैसे सब कुछ पहले से तय हो. मीटिंग में रहे कुछ कांग्रेस नेताओं से बात के आधार पर रिपोर्ट बताती है कि राहुल गांधी के करीबी कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल तो लगता है पहले से ही लिस्ट तैयार कर रखी कि किसी बोलना है और किसे नहीं. पूरी मीटिंग में राहुल गांधी की टीम हावी रही और राजीव साटव, सुष्मिता देव और बी. श्रीनिवास जैसे नेता राहुल गांधी की तारीफ में कसीदे पढ़े जा रहे थे.

प्रधानमंत्री मोदी पर निजी हमले को लेकर ऐसी राय देने वाले आरपीएन सिंह पहले नेता नहीं हैं, बल्कि जयराम रमेश, शशि थरूर और अभिषेक मनु सिंघवी जैसे नेता भी ऐसी सलाहियत समय समय पर देते रहे हैं - लेकिन सभी के हिस्से में कांग्रेस नेतृत्व का कोपभाजन बनने के सिवा कुछ हासिल नहीं हुआ.

सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी ज्वाइन किया और राज्य सभा पहुंच गये, लेकिन आरपीएन सिंह के पास चुप रहने के अलावा विकल्प भी तो नहीं था. विरोध प्रकट करने का जो खामियाजा अभी अभी कांग्रेस प्रवक्ता संजय झा को भुगतना पड़ा है, वैसा ही आरपीएन सिंह के साथ भी तो हो सकता है.

कांग्रेस प्रवक्ता के पद से हटाये जाने के बाद संजय झा ने कांग्रेस के भीतर लोकतंत्र के अभाव की तरफ ध्यान दिलाया है - और उसी बात को लेकर अब अमित शाह ने कांग्रेस नेतृत्व पर जोरदार हमला बोला है.

बीजेपी का तगड़ा पलटवार

25 जून, 1975 को ही तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सिफारिश पर भारतीय संविधान की धारा 352 के तहत तब के राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद ने देश में इमरजेंसी लागू कर दी थी - और वो 21 महीने तक प्रभावी रही थी.

बीजेपी नेता और अमित शाह ने इमरजेंसी के 45 साल के पूरे होने के मौके पर कांग्रेस पर तगड़ा हमला बोला है - कांग्रेस में अभी तक इमर्जेंसी की सोच है.

अमित शाह का कहते हैं, 'देश में लोकतंत्र है लेकिन कांग्रेस में लोकतंत्र नहीं है.' अमित शाह ने कहा है, 'कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में कुछ नेताओं ने मुद्दे उठाए तो लोग चिल्ला पड़े - एक पार्टी प्रवक्ता को बिना सोचे-समझे बर्खास्त कर दिया गया.'

हाल फिलहाल सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ कांग्रेस के कई नेताओं के मोदी सरकार से सवाल पूछने को लेकर अमित शाह का कहना रहा, 'देश के एक विपक्षी दल के रूप में कांग्रेस को खुद से सवाल पूछने की जरूरत है. आखिर क्यों आपातकाल की उसकी मानसिकता बरकरार है - आखिर क्यों एक राजवंश से ताल्लुक नहीं रखने वाले उस पार्टी के नेता बोल नहीं पाते? क्यों वहां नेता निराश हैं?'

हाल ही में संजय झा को कांग्रेस प्रवक्ता के पद से हटा दिया गया क्योंकि वो सवाल पूछने और विरोध में लेख लिखने लगे थे. संजय झा पूछते हैं, मैंने गलत क्या लिखा है? कहते हैं, मैंने यही तो लिखा है कि देश को कांग्रेस ही बचा सकती है, लेकिन कांग्रेस को बदलना होगा - अगर इसको लेकर सोनिया जी नाराज हो जाती हैं तो मेरे पास कहने को कुछ भी नहीं है.

नवभारत टाइम्स के साथ इंटरव्यू में संजय झा से पूछा गया - आप अपनी चिंता पार्टी प्लैटफॉर्म पर भी तो जाहिर कर सकते थे!

सवाल के जवाब में संजय झा बोले, 'सच ये है कि पार्टी में ऐसा कोई प्लैटफॉर्म ही नहीं है, जिस पर अपनी बात रखी जा सके. पार्टी में मेरी तमाम नेताओं, कार्यकर्ताओं से बात होती रहती है, सभी मौजूदा वक्त में निराश हैं, लेकिन कोई जोखिम नहीं उठाना चाहता. फिर मैंने सोचा कि मैं ही जोखिम उठाता हूं.'

जब कांग्रेस में गड़बड़ी फैलाने वालों को लेकर पूछा गया तो संजय झा का कहना रहा - कांग्रेस के अंदर एक ‘मंडली’ है, जिसका पार्टी पर कब्जा है - वो पार्टी को बदलने नहीं दे रहे हैं, अच्छे लोगों को ऊपर आने नहीं दे रहे हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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