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यही ओरिजिनल राहुल गांधी हैं, सलाहकारों को दोष मत दीजिये प्लीज

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 22 जून, 2020 10:28 AM
  • 22 जून, 2020 10:28 AM
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की ज्यादातर राजनीतिक गतिविधियों के पीछे सलाहकारों की उनकी टीम का हाथ माना जाता है. गलवान घाटी (Galwan Valley) के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को Surender Modi कहना, कहीं से भी किसी सलाहकार की राय नहीं लगती - ये मूल विचार लगते हैं.

राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के भाषण और मंच से तरह तरह के पोज देने के पीछे सलाहकारों की राय मानी जाती रही है. राहुल गांधी ने खुद एक बार बताया भी था कि उनके लिए भाषण कोई और तैयार करता है - और अगर वो कोई कहानी भी सुनाते हैं तो वो भी उनके ऑफिस में एक लड़का है जो किस्से गढ़ता है और उनको सुनाता है.

संसद में तो एक बार राहुल गांधी के नोट्स ही कैमरे के फोकस में आ गये थे और मालूम हुआ कि वो सवाल भी वही पूछते हैं जो लिख कर मिलता है. वैसे लिखा हुआ भाषण पढ़ना, किसी और के बताये किस्से सुनाना या किसी की सलाह पर कोई खास अदा दिखाना भी कोई बुरी बात नहीं कही जाएगी. ये वही राहुल गांधी हैं जो मंच पर कमीज की आस्तीन चढ़ाते देखे जाते थे - और एक बार तो कुर्ते की फटी हुई जेब भी सरेआम दिखाये थे, लेकिन ये सब चलता है. लोगों ने भी वैसे ही हल्के में लिया.

राहुल गांधी को लेकर लोगों में जो अपरिपक्व नेता की धारणा बनी है, उसमें बीजेपी की आईटी सेल का बड़ा हाथ माना जाता है. आरोप लगता है कि ये बीजेपी का आईटी सेल ही है जो लोगों के बीच राहुल गांधी को पप्पू के रूप में पेश करता है. दिलचस्प बात तो ये भी है कि राहुल गांधी खुद भी इस बात से वाकिफ हैं. तभी तो एक बार गुस्से में कहा भी था - आप मुझे पप्पू समझते हो... मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता!

अब ये तो नहीं हो सकता कि कोई सलाहकार राहुल गांधी को इस तरह की सलाह देने की हिम्मत भी कर पाएगा कि वो भरी महफिल में लोगों के बीच विरोधियों को ललकारते हुए खुद को पप्पू कहें - ऐसे कई वाकये हुए हैं जो राहुल गांधी की मूल प्रवृत्ति की तरफ इशारा करते हैं. गलवान घाटी (Galwan Valley) में भारतीय जवानों की चीनी फौज के साथ हुई हिंसक झड़प के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को लेकर राहुल गांधी की टिप्पणी तो खुद की ही गढ़ी हुई लगती है - भला कोई सलाहकार ऐसी राय कैसे दे सकता है?

फिर तो यही...

राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के भाषण और मंच से तरह तरह के पोज देने के पीछे सलाहकारों की राय मानी जाती रही है. राहुल गांधी ने खुद एक बार बताया भी था कि उनके लिए भाषण कोई और तैयार करता है - और अगर वो कोई कहानी भी सुनाते हैं तो वो भी उनके ऑफिस में एक लड़का है जो किस्से गढ़ता है और उनको सुनाता है.

संसद में तो एक बार राहुल गांधी के नोट्स ही कैमरे के फोकस में आ गये थे और मालूम हुआ कि वो सवाल भी वही पूछते हैं जो लिख कर मिलता है. वैसे लिखा हुआ भाषण पढ़ना, किसी और के बताये किस्से सुनाना या किसी की सलाह पर कोई खास अदा दिखाना भी कोई बुरी बात नहीं कही जाएगी. ये वही राहुल गांधी हैं जो मंच पर कमीज की आस्तीन चढ़ाते देखे जाते थे - और एक बार तो कुर्ते की फटी हुई जेब भी सरेआम दिखाये थे, लेकिन ये सब चलता है. लोगों ने भी वैसे ही हल्के में लिया.

राहुल गांधी को लेकर लोगों में जो अपरिपक्व नेता की धारणा बनी है, उसमें बीजेपी की आईटी सेल का बड़ा हाथ माना जाता है. आरोप लगता है कि ये बीजेपी का आईटी सेल ही है जो लोगों के बीच राहुल गांधी को पप्पू के रूप में पेश करता है. दिलचस्प बात तो ये भी है कि राहुल गांधी खुद भी इस बात से वाकिफ हैं. तभी तो एक बार गुस्से में कहा भी था - आप मुझे पप्पू समझते हो... मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता!

अब ये तो नहीं हो सकता कि कोई सलाहकार राहुल गांधी को इस तरह की सलाह देने की हिम्मत भी कर पाएगा कि वो भरी महफिल में लोगों के बीच विरोधियों को ललकारते हुए खुद को पप्पू कहें - ऐसे कई वाकये हुए हैं जो राहुल गांधी की मूल प्रवृत्ति की तरफ इशारा करते हैं. गलवान घाटी (Galwan Valley) में भारतीय जवानों की चीनी फौज के साथ हुई हिंसक झड़प के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को लेकर राहुल गांधी की टिप्पणी तो खुद की ही गढ़ी हुई लगती है - भला कोई सलाहकार ऐसी राय कैसे दे सकता है?

फिर तो यही लगता है - ये ओरिजिनल राहुल गांधी हैं और इसके लिए सलाहकारों को दोषी ठहराना ठीक नहीं होगा.

तो ये ओरिजिनल राहुल गांधी हैं

2011 में एक बार दिग्विजय सिंह ने इस बात से इंकार किया था कि वो राहुल गांधी के सलाहकार हैं. दिग्विजय सिंह कई साल तक उत्तर प्रदेश के प्रभारी रहे और राहुल गांधी के ज्यादातर कार्यक्रमों के पीछे उनकी राय फाइल मानी जाती रही. जैसे जैसे दिग्विजय सिंह के पर कतरे जाने लगे और उनके प्रभार सीमित कर दिये गये, वो अपने विवादित बयानों की बदौलत चर्चाओं में बने रहने की कोशिश करते.

हाल ये हो गया था कि दिग्विजय सिंह आतंकवादियों तक तो सम्मान दे दिया करते - ओसामा जी या हाफिज साहब. जम्मू-कश्मीर तक को PoK की तर्ज पर भारत अधिकृत कश्मीर तक कह डालते. धीरे धीरे दिग्विजय सिंह की बातों को लोगों ने गंभीरता से लेना छोड़ दिया. ये तो 2018 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद दिग्विजय सिंह को सूबे के सियासी समीकरणों के चलते ज्यादा तवज्जो मिलने लगी, लेकिन फिर भोपाल से चुनाव लड़ने के बाद वो भी जाती रही. बहरहाल, अब वो फिर से राज्य सभा का चुनाव जीत चुके हैं.

राहुल गांधी क्यों भूल जाते हैं कि आपसी राजनीति देश से ऊपर कभी नहीं हो सकती?

राहुल गांधी की शुरुआती राजनीति में दिग्विजय सिंह का खासा प्रभाव लगता है - और उनके हट जाने के बाद भी राहुल गांधी के बयानों में दिग्विजय सिंह की छाप देखी जा सकती है. सबसे बड़ी बात की राहुल गांधी को चाहे जितने भी नये अवतार में पेश करने की कोशिश हो - जो ओरिजिनल राहुल गांधी हैं उनमें कोई बदलाव देखने को नहीं मिलता.

2017 के विधानसभा चुनावों की तैयारी के तहत राहुल गांधी उत्तर प्रदेश में किसान यात्रा पर निकले थे और जगह जगह उनकी खाट सभा हुआ करती रही. 18 सितंबर, 2016 को जब जम्मू-कश्मीर के उरी में आतंकावादी हमला हुआ तो राहुल गांधी किसान यात्रा पर ही रहे. फिर 29 सितंबर को जब उरी अटैक का बदला लेने के लिए सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक किया तब भी राहुल गांधी अपनी किसान यात्रा और खाट सभा में मशगूल रहे.

अक्टूबर, 2016 के पहले हफ्ते में जब राहुल गांधी दिल्ली लौटे तो कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने जोरदार स्वागत किया. राहुल गांधी राजघाट गये और फिर मीडिया के सामने प्रकट हुए - और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सीधा हमले में बोल गये - ' हमारे जवान हैं जिन्होंने देश के बचाने के लिए खून दिया है... जिन्होंने सर्जिकल स्ट्राइक किया... उनके खून के पीछे पीएम मोदी छुपे हुए हैं... प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जवानों के खून की दलाली कर रहे हैं.'

अब ये तो नहीं मालूम कि राहुल गांधी ने तब सलाहकारों के कहने पर ऐसा कहा था या ये उनके अपने दिमाग की उपज थी - लेकिन राहुल गांधी के मुंह से ये सुन कर लोगों को काफी गुस्सा आया. जिस नरेंद्र मोदी को सोनिया गांधी 'मौत का सौदागर' बता चुकी हों, उनके लिए राहुल गांधी के मुंह से ऐसी बातें सुनना किसी के लिए आश्चर्य की बात नहीं थी, फर्क बस ये था कि सोनिया गांधी ने तब वो बयान दिया था जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे - और राहुल गांधी ने तब ये कहा था जब वो देश के प्रधानमंत्री बन चुके थे. सोनिया गांधी ने गुजरात दंगों को लेकर मोदी के लिए वो बातें कही थी, जबकि राहुल गांधी ने वो बयान तब दिया जब देश सेना की बहादुरी का जश्न मना रहा था.

चार साल बाद, राहुल गांधी ने फिर से वैसी ही बात कही है जब देश एक बार फिर उरी जैसे दर्द के दौर से गुजर रहा है. सरहद पर हिंसक झड़प में एक कर्नल सहित देश के 20 जवान शहीद हो चुके हैं. जवानों की शहादत को लेकर देश के भीतर जो आग धधक रही है, लगता है राहुल गांधी को उस बात का जरा भी एहसास नहीं है.

राहुल गांधी के सवालों से कोई परेशानी नहीं थी. गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प को लेकर राहुल गांधी ने ट्विटर पर लगातार सवाल पूछे हैं - यहां तक भी पूछ लिया है कि हमारे जवान कहां शहीद हुए?

सब कुछ ठीक था, लेकिन राहुल गांधी का नरेंद्र मोदी को 'असल में सरेंडर मोदी' बता देना सुनने में ही काफी अजीब लगता है. ऐसा नहीं लगता कि ऐसे माहौल में राहुल गांधी का कोई भी सलाहकार ऐसी राय दे सकता है, बशर्तें वो भी भारतीय हो. हां, अगर वो खुद राहुल गांधी और कांग्रेस के राजनीतिक भविष्य के बारे में अच्छी सोच नहीं रखता तो बात और है.

अब तो यही लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 'सरेंडर मोदी' बताना, राहुल गांधी की ओरिजिनल सोच है - ऊपर से सरेंडर की स्पेलिंग surender लिखना भी कई तरफ इशारा करता है. ये तो असली सच है कि नाकामी इंसान को किस तरह की मनोदशा में पहुंचा देती है. समझना मुश्किल नहीं है कि राहुल गांधी कांग्रेस की लगातार नाकामियों से किस कदर परेशान होंगे.

उरी अटैक के बदले में सर्जिकल स्ट्राइक के बाद प्रधानमंत्री के लिए 'खून की दलाली' जैसी भाषा का इस्तेमाल और गलवान घाटी की झड़प के बाद उसी प्रधानमंत्री को 'सरेंडर मोदीट बताने के बाद लगता तो यही है कि राहुल गांधी का ओरिजिनल स्वरूप बिलकुल यही है - और इसके लिए सलाहकारों को दोष देना बहुत ही गलत होगा.

आपसी राजनीति देश से ऊपर कैसे हो सकती है?

अभी अभी गुजरात से आये राज्य सभा चुनाव के नतीजों से मालूम हुआ कि किस तरह राहुल गांधी ने सोनिया गांधी की मेहनत पर पानी फेर दिया. जिस गुजरात में सोनिया गांधी ने अमित शाह से आमने सामने की लड़ाई में शिकस्त देकर अपने राजनीतिक सचिव अहमद पटेल के लिए जीत सुनिश्चित कर दी थी - लेकिन जब से राहुल गांधी ने जिम्मेदारी ली ऐसा माहौल बना दिया कि कांग्रेस को एक सीट सीधे सीधे गंवा देनी पड़ी.

गलवान के मुद्दे पर देखा जाये तो सोनिया गांधी ने सर्व दलीय बैठक में मोदी सरकार से ऐसे तीखे सवाल पूछे कि प्रधानमंत्री को बयान देना पड़ा - और उसके बाद भी सवालों का सिलसिला नहीं थमा तो PMO को सफाई देने के लिए आगे आना पड़ा.

राहुल गांधी के सवाल सही हो सकते हैं, लेकिन इस नाजुक घड़ी में तो ये असली मुद्दे से भटकाने की कोशिश लगती है. सरकार से सवाल पूछना विपक्ष का हक है और इस हक से कोई वंचित भी नहीं कर रहा है, लेकिन देश के प्रधानमंत्री को दुश्मन देश की धृष्टता के साथ जोड़ कर कोई और नाम देकर उपहास करना किसी भी नजरिये से सही नहीं ठहराया जा सकता. कोई भी विचारधारा किसी विरोधी के लिए भी जब देश की बात हो ऐसी बातें बोलना तो दूर सोच भी नहीं सकती.

ज्यादा दिन नहीं हुए, दिल्ली विधानसभा के चुनाव में भी राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी के लिए कहा था कि 'युवा डंडे लेकर मारेंगे... '

ऐसी राय भी कोई सलाहकार दे सकता है क्या? जब संसद में अविश्वास प्रस्ताव के बाद राहुल गांधी प्रधानमंत्री से गले मिले और उसके बाद आकर आंख मारे थे, तो उनके सारे सलाहकार और कांग्रेस नेता हतप्रभ रह गये थे. किसी को समझ में नहीं आया कि ये क्या हुआ क्योंकि पहले से जो रणनीति तैयार की गयी थी उस स्क्रिप्ट में राहुल गांधी ने स्पॉट पर ही बदलाव कर लिया था. हाल ही में राहुल गांधी ने अमित शाह को लेकर भी राहुल गांधी ने विवादित टिप्पणी की थी.

2019 के आम चुनाव में हार को लेकर CWC में इस्तीफे की पेशकश के काफी दिनों बाद राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से अपना इस्तीफा ट्विटर पर शेयर किया था. अपने इस्तीफे में राहुल गांधी ने कहा था कि वो राफेल डील पर अपने स्लोगन पर कायम हैं और हमेशा रहेंगे. ये राफेल डील का ही मुद्दा रहा जिस पर राहुल गांधी को कांग्रेस की सत्ता में वापसी का यकीन दिला रहा था, लेकिन सपनों पर पानी फिर गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर राहुल गांधी की ताजा टिप्पणी में भी 'चौकीदार चोर है' की गूंज सुनी जा सकती है!

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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