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आखिर 'बॉर्न टू रूल' सिंड्रोम से कब बाहर आएंगे राहुल गांधी?

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 23 मई, 2022 05:30 PM
  • 23 मई, 2022 05:30 PM
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लंदन में हुए 'आइडिया फॉर इंडिया' कार्यक्रम (Ideas of India Conclave) में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने भारत के संविधान, अर्थव्यवस्था, कांग्रेस के चिंतन शिविर, विदेश नीति जैसे तमाम मुद्दों पर एक बार फिर अपना 'अलग' नजरिया रखा. उनका ये नजरिया कांग्रेस से मिले 'बॉर्न टू रूल' वाले सिंड्रोम का ही असर दिखाई पड़ता है.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी का हालिया लंदन दौरा काफी सुर्खियों में रहा. लंदन में हुए 'आइडिया फॉर इंडिया' कार्यक्रम में राहुल गांधी ने भारत के संविधान, अर्थव्यवस्था, कांग्रेस के चिंतन शिविर, विदेश नीति जैसे तमाम मुद्दों पर एक बार फिर अपना 'अलग' नजरिया रखा. एक ऐसा नजरिया, जो खुद को सही साबित करने की छटपटाहट से शुरू होकर नरेंद्र मोदी सरकार की आलोचना से होते हुए भारत को एक देश के तौर पर ही कठघरे में खड़ा करने को तैयार रहता है. दरअसल, राहुल गांधी 'आइडिया फॉर इंडिया' कार्यक्रम में अपनी गलतियों के लिए सामने वाले (नरेंद्र मोदी, भाजपा, आरएसएस, जनता) को दोषी ठहराने की कोशिशों में लगे रहे.

राहुल गांधी के लंदन में किए गए इस बौद्धिक विमर्श को देखकर पंजाब कांग्रेस के पूर्व नेता सुनील जाखड़ के पार्टी छोड़ने से पहले गांधी परिवार और उदयपुर के चिंतन शिविर को लेकर दिए गए बयान की याद आ जाती है. जब सुनील जाखड़ ने कहा था कि कांग्रेस के चिंतिन शिविर में कमेटियां बनाकर देश-विदेश के मुद्दों पर ऐसे चिंतन किया जा रहा है. जैसे केंद्र में कांग्रेस की सरकार हो. जबकि, चिंतन इस बात पर होना चाहिए था कि कांग्रेस की हार के कारण क्या थे और इसके जिम्मेदार कौन थे?

दरअसल, कांग्रेस के 'युवराज' राहुल गांधी 2004 में सांसद बनने के बाद से ही 'बॉर्न टू रूल' के जिस विचार के साथ आगे बढ़ाए गए हैं. 2014 और 2019 में पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने राहुल गांधी में उस 'बॉर्न टू रूल' वाला सिंड्रोम काफी बढ़ा दिया है. इसी साल के अंत में गुजरात में विधानसभा चुनाव होना है. कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल ने पार्टी से किनारा कर लिया है. लेकिन, राहुल गांधी इन तमाम चिंताओं को दरकिनार करते हुए लंदन में 'आइडिया फॉर इंडिया' की चर्चा करने में मशगूल थे. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर 'बॉर्न टू रूल' सिंड्रोम से कब बाहर आएंगे राहुल गांधी?

कांग्रेस नेता राहुल गांधी का हालिया लंदन दौरा काफी सुर्खियों में रहा. लंदन में हुए 'आइडिया फॉर इंडिया' कार्यक्रम में राहुल गांधी ने भारत के संविधान, अर्थव्यवस्था, कांग्रेस के चिंतन शिविर, विदेश नीति जैसे तमाम मुद्दों पर एक बार फिर अपना 'अलग' नजरिया रखा. एक ऐसा नजरिया, जो खुद को सही साबित करने की छटपटाहट से शुरू होकर नरेंद्र मोदी सरकार की आलोचना से होते हुए भारत को एक देश के तौर पर ही कठघरे में खड़ा करने को तैयार रहता है. दरअसल, राहुल गांधी 'आइडिया फॉर इंडिया' कार्यक्रम में अपनी गलतियों के लिए सामने वाले (नरेंद्र मोदी, भाजपा, आरएसएस, जनता) को दोषी ठहराने की कोशिशों में लगे रहे.

राहुल गांधी के लंदन में किए गए इस बौद्धिक विमर्श को देखकर पंजाब कांग्रेस के पूर्व नेता सुनील जाखड़ के पार्टी छोड़ने से पहले गांधी परिवार और उदयपुर के चिंतन शिविर को लेकर दिए गए बयान की याद आ जाती है. जब सुनील जाखड़ ने कहा था कि कांग्रेस के चिंतिन शिविर में कमेटियां बनाकर देश-विदेश के मुद्दों पर ऐसे चिंतन किया जा रहा है. जैसे केंद्र में कांग्रेस की सरकार हो. जबकि, चिंतन इस बात पर होना चाहिए था कि कांग्रेस की हार के कारण क्या थे और इसके जिम्मेदार कौन थे?

दरअसल, कांग्रेस के 'युवराज' राहुल गांधी 2004 में सांसद बनने के बाद से ही 'बॉर्न टू रूल' के जिस विचार के साथ आगे बढ़ाए गए हैं. 2014 और 2019 में पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने राहुल गांधी में उस 'बॉर्न टू रूल' वाला सिंड्रोम काफी बढ़ा दिया है. इसी साल के अंत में गुजरात में विधानसभा चुनाव होना है. कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल ने पार्टी से किनारा कर लिया है. लेकिन, राहुल गांधी इन तमाम चिंताओं को दरकिनार करते हुए लंदन में 'आइडिया फॉर इंडिया' की चर्चा करने में मशगूल थे. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर 'बॉर्न टू रूल' सिंड्रोम से कब बाहर आएंगे राहुल गांधी?

राहुल गांधी को समझना होगा कि वो अपने बचकाने बयानों से भारतीय राजनीति में खुद को 'जैक ऑफ ऑल ट्रेड्स' साबित नहीं कर पाएंगे.

'यूनियन ऑफ स्टेट' के फलसफे को हकीकत क्यों समझ रहे हैं?

'आइडिया फॉर इंडिया' कार्यक्रम की शुरुआत राहुल गांधी के उस फलसफे के साथ हुई. जो उन्होंने कुछ समय पहले देश की संसद में दिया था. 'यूनियन ऑफ स्टेट' का ये फलसफा कांग्रेस और राहुल गांधी के लिए कई दशकों तक काम करता रहा. लेकिन, समय के साथ चीजें बदलीं और हर राज्य में सत्ता संभालने वाली कांग्रेस अब दो राज्यों में सिमट चुकी है. हालांकि, इस सच को मानने से इनकार करने के लिए ही राहुल गांधी 'यूनियन ऑफ स्टेट' की बात कर रहे हैं. शायद राहुल गांधी को लगता है कि लोगों को धर्म, जाति, नस्ल, संस्कृति जैसी चीजों पर बांटने से ही कांग्रेस की सत्ता में वापसी संभव है. और, कांग्रेस यानी की राहुल गांधी इन 'यूनियन ऑफ स्टेट' के बीच फेवीकोल की तरह काम कर सकते हैं.

वैसे, राहुल गांधी भले ही भारत को एक देश के तौर पर 'यूनियन ऑफ स्टेट' मानते हों. और, इसके लिए बाकायदा संविधान का हवाला देते हों. लेकिन, उसी संविधान ने राज्यों को उनके मजबूत अधिकार दिए हुए हैं. और, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के राज्यों पर किसी भी गैर-वाजिब अतिक्रमण के खिलाफ लोगों को खुलकर विरोध करने का अधिकार भी देते हैं. नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से लाए गए कृषि कानूनों के खिलाफ हुए किसान आंदोलन को खत्म हुए अभी दशकों नहीं बीते हैं. वैसे, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से लेकर महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे तक स्थानीय मुद्दों को लेकर जितनी मुखरता के साथ भाजपा और पीएम नरेंद्र मोदी पर हमलावर रहते हैं. ऐसा कहीं से भी नजर नहीं आता है कि राज्यों के पास बोलने का अधिकार ही नहीं रह गया है.

कांग्रेस की गलतियों के लिए जनता जिम्मेदार नहीं?

राहुल गांधी का मानना है कि देश में हर जाति, धर्म के लोगों को सुविधाएं मिलें. लेकिन, आरएसएस और भाजपा लोगों को सुविधाएं कर्म (जाति) के आधार पर सुविधाएं देने की सोच रखती हैं. जबकि, देखा जाए, तो लाभार्थी योजनाओं का बड़ा हिस्सा बिना धर्म और जाति के भेदभाव के सबको मिल रहा है. लेकिन, राहुल गांधी को लगता है कि लंदन में बैठकर अंग्रेजी में दलितों या मुस्लिमों की बात कर वह अपने इकोसिस्टम के जरिये देश में भाजपा सरकार के विरोध में माहौल बना सकते हैं. तो, यह उनकी भूल ही है. राहुल गांधी का मानना है कि भाजपा को वोट न देने वाले 60 फीसदी लोगों को एक करना होगा. लेकिन, जब लंदन में बैठकर वह खुद ही देश के 'यूनियन ऑफ स्टेट' होने की बात करते हैं. तो, इन्हें एक करने की बात पूरी तरह से बचकानी नजर आती है.

क्या सच में अहंकार से भर गई है विदेश नीति?

राहुल गांधी ने अपने लंदन दौरे पर विदेश मंत्रालय के अधिकारियों और भारत की विदेश नीति की जमकर आलोचना की. उन्होंने कहा कि 'भारतीय नौकरशाह अहंकारी हो गए हैं.' लेकिन, जब राहुल गांधी ये बयान दे रहे थे. उससे कुछ ही दिनों पहले अमेरिका, इंग्लैंड, रूस के राजनयिकों के भारत दौरे से लेकर हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यूरोपीय देशों की यात्रा में जिस तरह से भारत को एक 'मजबूत' सहयोगी के तौर पर स्थापित करने में मदद की है. अमेरिकी दबाव को दरकिनार करते हुए भारत ने यूएन में रूस के खिलाफ वोटिंग से दूरी बनाए रखी. वहीं, बात जब रूस से तेल खरीद की हुई. तो, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिकी धरती पर ही पश्चिमी देशों को आईना दिखाने में कोताही नहीं बरती.

भारत को मौके-बेमौके पर कोसने वाले पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान भी अपनी विदाई से पहले भारत की विदेश नीति की तारीफों के पुल बांध रहे थे. आतंकवाद को रोके जाने से पहले पाकिस्तान के साथ बातचीत न शुरू करने के फैसले ने ही भारत को विदेश नीति की मजबूत आधारशिला रखने में मदद की है. वरना इससे पहले पाकिस्तान प्रायोजित बड़े आतंकी हमले झेलने के बाद भी भारत की ओर से दोस्ती का हाथ ही बढ़ाया जाता रहा था. वैसे, अमेरिका को चीन से टक्कर लेने के लिए भारत की जरूरत है. और, क्वाड सम्मेलन में शामिल होने जापान गए पीएम नरेंद्र मोदी आत्मविश्वास से भरी इसी विदेश नीति के चलते अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ द्विपक्षीय संबंधों पर खुलकर बात करेंगे.

यूक्रेन और भारत के बीच का अंतर भी नहीं जानते राहुल गांधी!

राहुल गांधी ने 'आइडिया फॉर इंडिया' कार्यक्रम में भारत की विदेश नीति पर बात की. इस दौरान राहुल गांधी ने रूस-यूक्रेन युद्ध की तुलना भारत और चीन के बीच चल रहे तनाव से कर दी. राहुल गांधी की मानें, तो रूस ने यूक्रेन में जो किया है. चीन भी वही भारत में डोकलाम और लद्दाख में कर रहा है. चीन लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा नहीं मानता है. लेकिन, क्या चीन के ऐसा मानने भर से लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश उसके हो जाएंगे? राहुल गांधी को समझना होगा कि जरूरी नहीं है कि राजनीति में हर शख्स 'जैक ऑफ ऑल ट्रेड्स' हो. जिन विषयों में उनकी समझ कम है, तो उस पर बोलने से उन्हें बचना चाहिए.

चीन को गलवान घाटी में भारतीय सेना की ओर से मिले मुंहतोड़ जवाब का ही नतीजा है कि भारत और चीन के बीच लगातार सैन्य वार्ता की जा रही है. और, कई विवादित जगहों का समाधान निकाला जा चुका है. वैसे, यूक्रेन और भारत में एक बुनियादी अंतर उसकी परमाणु शक्ति संपन्नता का भी है. भारत एक परमाणु शक्ति के तौर पर जाना जाता है. और, इसकी वजह से चीन तो क्या कोई भी पड़ोसी देश इतनी आसानी से भारत पर युद्ध लादने की कोशिश नहीं करेगा. क्योंकि, भारत की विदेश नीति बातचीत के जरिये ही विवादों का हल निकालने पर चल रही है. और, यही राष्ट्रहित है.

श्रीलंका से भारत की तुलना राहुल गांधी ही कर सकते हैं

राहुल गांधी के नाम के आगे अगर 'गांधी' टाइटल न लगा होता. तो, शायद ही उन्हें कांग्रेस में इतने 'अभयदान' मिलते. अपने बयानों के जरिये कांग्रेस की भद्द पिटवाने के अलावा राहुल गांधी अब देश के सम्मान को भी ठोकर लगाने में कोई कमी नहीं रखते हैं. अगर ऐसा नहीं होता, तो श्रीलंका के साथ भारत की तुलना करने जैसी बेवकूफाना हरकत शायद ही वह करने की सोचते. लेकिन, राहुल गांधी कांग्रेस के 'युवराज' हैं, तो उनकी सभी गलतियां माफ हैं. भारत में श्रीलंका जैसी स्थिति पैदा होने की बात करने वाले राहुल गांधी भूल जाते हैं कि भारत को सबसे तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था कहा जा रहा है.

और, ये सब केवल कहने के लिए नहीं है. दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट-अप इकोसिस्टम, आईएमएफ यानी विश्व मुद्रा कोष की ओर से भारत के 2029 तक 5 ट्रिलियन इकोनॉमी बनने की संभावना, कोरोना महामारी के बाद अमेरिका, इंग्लैंड, चीन जैसे देशों से विकास दर के मामले में कहीं आगे नजर आ रहा भारत केवल राहुल गांधी के कहने भर से श्रीलंका बन जाएगा. ये केवल 'मुंगेरीलाल के हसीन सपने' जैसा ही है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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