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किसान आंदोलन और कांग्रेस: राहुल गांधी क्यों हो रहे हैं आक्रामक

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 31 जनवरी, 2021 08:49 PM
  • 31 जनवरी, 2021 08:48 PM
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कृषि कानूनों का विरोध राहुल गांधी शुरू से ही कर रहे हैं. इस विरोध में अन्य विपक्षी दल भी अपनी आहूतियां देने में लगे हैं. हर राजनीतिक दल इस किसान आंदोलन से अपनी धूमिल पड़ चुकी सियासी चमक फिर से पाना चाहता है. हालांकि, राहुल गांधी इस मामले में फिलहाल अन्य पार्टियों से आगे नजर आ रहे हैं.

कृषि कानूनों (Farm Laws) के विरोध में दो महीनों से भी ज्यादा समय से चल रहे किसान आंदोलन (Farmer Protest) को अब खुले तौर विपक्षी राजनीतिक दलों का समर्थन मिल रहा है. मौजूदा हालातों में खुद को किसानों का सबसे बड़ा हमदर्द दिखाने और बनाने की जद्दोजहद में जुटी कांग्रेस (Congress) का सपना इस आंदोलन के बहाने अपनी सियासी जमीन तैयार करने का है. बीते कुछ चुनावों में बुरे प्रदर्शन की वजह से कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने पार्टी अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद इस पद पर सोनिया गांधी (Sonia gandhi) काबिज हो गई है. किसान आंदोलन को लेकर राहुल गांधी के हालिया बयानों पर नजर डालें तो, कांग्रेस की मंशा साफ जाहिर हो रही है. राजनीतिक हाशिये पर जा चुकी कांग्रेस किसान आंदोलन के जरिये खुद को फिर से चमकाने की जुगत भिड़ा रही है.

किसान आंदोलन की दौड़ में सबसे आगे हैं राहुल गांधी

कृषि कानूनों का विरोध राहुल गांधी शुरू से ही कर रहे हैं. इस विरोध में अन्य विपक्षी दल भी अपनी आहूतियां देने में लगे हैं. हर राजनीतिक दल इस किसान आंदोलन से अपनी धूमिल पड़ चुकी सियासी चमक फिर से पाना चाहता है. हालांकि, राहुल गांधी इस मामले में फिलहाल अन्य पार्टियों से आगे नजर आ रहे हैं. दूसरे विपक्षी दल किसान आंदोलन को खुलकर समर्थन तो दे रहे हैं. लेकिन, राहुल गांधी की तरह आक्रामक नहीं दिख रहे हैं. वहीं, राहुल गांधी अपने तेवरों को कड़ा करते हुए दनादन गोल दागे जा रहे हैं.

आंदोलन में अराजकता की स्थिति बनती है, तो वह कांग्रेस के लिए फायदेमंद ही साबित होगी.

मोदी सरकार को घेरते हुए किसान आंदोलन के समर्थन में दिए जा रहे राहुल गांधी के आक्रामक बयान इसका सीधा उदाहरण हैं. वायनाड दौरे पर राहुल गांधी ने कहा था कि ज्यादातर किसानों को कृषि कानूनों...

कृषि कानूनों (Farm Laws) के विरोध में दो महीनों से भी ज्यादा समय से चल रहे किसान आंदोलन (Farmer Protest) को अब खुले तौर विपक्षी राजनीतिक दलों का समर्थन मिल रहा है. मौजूदा हालातों में खुद को किसानों का सबसे बड़ा हमदर्द दिखाने और बनाने की जद्दोजहद में जुटी कांग्रेस (Congress) का सपना इस आंदोलन के बहाने अपनी सियासी जमीन तैयार करने का है. बीते कुछ चुनावों में बुरे प्रदर्शन की वजह से कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने पार्टी अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद इस पद पर सोनिया गांधी (Sonia gandhi) काबिज हो गई है. किसान आंदोलन को लेकर राहुल गांधी के हालिया बयानों पर नजर डालें तो, कांग्रेस की मंशा साफ जाहिर हो रही है. राजनीतिक हाशिये पर जा चुकी कांग्रेस किसान आंदोलन के जरिये खुद को फिर से चमकाने की जुगत भिड़ा रही है.

किसान आंदोलन की दौड़ में सबसे आगे हैं राहुल गांधी

कृषि कानूनों का विरोध राहुल गांधी शुरू से ही कर रहे हैं. इस विरोध में अन्य विपक्षी दल भी अपनी आहूतियां देने में लगे हैं. हर राजनीतिक दल इस किसान आंदोलन से अपनी धूमिल पड़ चुकी सियासी चमक फिर से पाना चाहता है. हालांकि, राहुल गांधी इस मामले में फिलहाल अन्य पार्टियों से आगे नजर आ रहे हैं. दूसरे विपक्षी दल किसान आंदोलन को खुलकर समर्थन तो दे रहे हैं. लेकिन, राहुल गांधी की तरह आक्रामक नहीं दिख रहे हैं. वहीं, राहुल गांधी अपने तेवरों को कड़ा करते हुए दनादन गोल दागे जा रहे हैं.

आंदोलन में अराजकता की स्थिति बनती है, तो वह कांग्रेस के लिए फायदेमंद ही साबित होगी.

मोदी सरकार को घेरते हुए किसान आंदोलन के समर्थन में दिए जा रहे राहुल गांधी के आक्रामक बयान इसका सीधा उदाहरण हैं. वायनाड दौरे पर राहुल गांधी ने कहा था कि ज्यादातर किसानों को कृषि कानूनों की जानकारी नहीं है. ऐसा हुआ तो पूरे देश में आंदोलन होंगे और आग लग जाएगी. राहुल गांधी इस 'आग' के सहारे कांग्रेस की नैय्या को वैतरणी पार कराने की कोशिश में लगे हैं. 'आग' और पूरे देश में आंदोलन एक तरीके से CAA विरोधी दंगों की ओर इशारा माना जा सकता हैं. राहुल गांधी के बयानों का निचोड़ यही कहता है कि वह खुद चाहते हैं कि आंदोलन केवल दिल्ली तक सीमित न होकर पूरे देश में फैले. कहा जा सकता है कि अगर इस आंदोलन से अराजकता की स्थिति बनती है, तो वह कांग्रेस के लिए फायदेमंद ही साबित होगी.

चुनावी फसल उगाने को कांग्रेस को मिले किसानों के खेत

कांग्रेस ने किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर चलाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. इसके उलट कांग्रेस में जारी अंदरूनी रार लोगों के सामने जब-तब सामने आ ही जाती है. एक ओर कांग्रेस में पार्टी अध्यक्ष के चुनाव को लेकर बवाल थमता नहीं दिख रहा है. पार्टी से नाराज चल रहे वरिष्ठ नेताओं का गुट खुले तौर राहुल गांधी के खिलाफ नजर आ रहा है. वहीं, दूसरी ओर राहुल गांधी को एकबार फिर से सर्वस्वीकार्य नेता बनाने और दिखाने की उम्मीद में उनको अग्रिम मोर्चे पर खड़ा दिया गया है. राहुल गांधी ने भी मोर्चा संभालने के साथ मोदी सरकार को चेतावनी भरे लहजे में कहा कि अगर सरकार ने स्थितियां नहीं संभाली, तो देश को भारी नुकसान होने वाला है. सरकार को किसानों से बातकर तीनों कानून वापस लेने ही पड़ेंगे.

राहुल गांधी को किसानों के खेत में कांग्रेस की फसल लहलहाती दिख रही है.

कुछ ही महीनों में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में राहुल गांधी को किसानों के खेत में कांग्रेस की फसल लहलहाती दिख रही है. जिसकी वजह से राहुल किसानों को भड़काने का कोई भी मौका नहीं छोड़ रहा हैं. किसानों के समर्थन में राहुल गांधी कहते नजर आए कि हम सब आपके साथ हैं. आप एक इंच भी पीछे मत हटिए. वहीं, दिल्ली में हुई हिंसा में घायल पुलिसकर्मियों के मामले में राहुल गांधी 'संवेदना शून्य' नजर आते हैं. किसानों से सधती राजनीति के चक्कर में राहुल गांधी पुलिसकर्मियों को भूल गए हैं.

आंदोलन में हिंसा भड़की, तो नुकसान किसानों का

कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा और मोदी सरकार के बीच दस दौरों की बातचीत के बाद भी कोई हल नहीं निकला था. किसान संगठन तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग पर अड़े हुए हैं. भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत के आंसुओं ने गाजीपुर बॉर्डर को किसान आंदोलन का केंद्र बना दिया है. वहीं, राहुल गांधी मोदी सरकार के कृषि कानूनों के नुकसान गिनाते हुए कह रहे हैं कि पहले कानून से मंडिया खत्म होंगी, दूसरे कानून से बड़े कारोबारी अनाज की जमाखोरी करेंगे और तीसरे कानून से एमएसपी खत्म हो जाएगी. इन कानूनों से किसान खत्म हो जाएंगे. राहुल का ये बयान किसान आंदोलन की आग में घी बनता नजर आ रहा है.

हरियाणा, पंजाब और यूपी के किसानों का जमावड़ा एक बार फिर से दिल्ली की सीमाओं पर बढ़ गया है. स्थानीय लोगों और किसानों में झड़प होने की खबरें भी लगातार सामने आ रही हैं. ऐसे में कब ये आंदोलन हिंसक रूप धर ले, इस विषय में केवल कयास ही लगाए जा सकते हैं. भगवान न करे, मगर हिंसा भड़कने पर पहला नुकसान किसानों को ही नुकसान होगा. आगे राजनीतिक दल इस स्थिति का फायदा अपने हिसाब से उठाएंगे.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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