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SC/ST एक्ट के नाम पर राहुल गांधी धोखे के शिकार!

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 03 अगस्त, 2018 12:30 PM
  • 03 अगस्त, 2018 11:27 AM
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कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सबसे पहले SC/ST एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर का विरोध किया. इस मुद्दे पर वो अपने पिता राजीव गांधी से भी दो कदम आगे नजर आ रहे हैं - क्योंकि शाहबानो केस के समय कांग्रेस की सरकार थी.

SC/ST एक्ट पर राम विलास पासवान से क्रेडिट लेना शुरू कर दिया है - और उसके बाद टीम मोदी भी ऐसा ही करेगी. ये ठीक है कि पासवान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिल कर सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर के खिलाफ रिव्यू पेटिशन दाखिल करने की मांग की. ये भी सही है कि उनके बेटे चिराग पासवान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर 8 अगस्त तक का अल्टीमेटम दे रखा था. चिराग पासवान की मांग थी कि एससी-एसटी एक्ट पर अध्यादेश या संसद में बिल लाकर उसके पुराने स्वरूप को बहाल नहीं किया गया तो लोक जनशक्ति पार्टी की दलित सेना 9 अगस्त को दलितों के देशव्यापी आंदोलन का समर्थर करेगी. वैसे चिराग पासवान ने SC/ST एक्ट पर ऑर्डर जारी करने वाले जस्टिस गोयल के खिलाफ भी मुहिम चला रहे हैं. जस्टिस गोयल को NGT का अध्यक्ष बनाया गया है - और चिराग पासवान हटाने की मांग पर अड़े हुए हैं.

SC/ST एक्ट मामले में श्रेय लेने की होड़...

बावजूद इन सबके SC/ST एक्ट को मूल स्वरूप में लाये जाने की कोशिश का पूरा क्रेडिट राहुल गांधी का बनता है. राहुल गांधी के कहने ही कांग्रेस नेता हरकत में आये और सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर विरोध शुरू किये. सिर्फ पासवान पिता-पुत्र ही नहीं, बाकी सारे दलित नेता भी हरकत में तभी आये जब कांग्रेस ने उनके सामने सवाल उठाय कि दलित सांसद बीजेपी सरकार के इस रवैये पर खामोश क्यों हैं?

राहुल गांधी को क्रेडिट क्यों?

दक्षिण कर्नाटक, उडुपी और मंगलुरू में राहुल गांधी की रैली और रोड शो पहले से तय थे. गुजरात चुनाव के बाद राहुल गांधी का पूरा जोर कर्नाटक पर ही रहा और यही वजह रही कि बाकी कांग्रेस नेताओं ने भी मेघालय, त्रिपुरा और नगालैंड विधानसभा चुनावों पर विशेष ध्यान नहीं दिया.

20 मार्च को जब SC/ST एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का ऑर्डर आया, राहुल गांधी अपने चुनाव...

SC/ST एक्ट पर राम विलास पासवान से क्रेडिट लेना शुरू कर दिया है - और उसके बाद टीम मोदी भी ऐसा ही करेगी. ये ठीक है कि पासवान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिल कर सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर के खिलाफ रिव्यू पेटिशन दाखिल करने की मांग की. ये भी सही है कि उनके बेटे चिराग पासवान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर 8 अगस्त तक का अल्टीमेटम दे रखा था. चिराग पासवान की मांग थी कि एससी-एसटी एक्ट पर अध्यादेश या संसद में बिल लाकर उसके पुराने स्वरूप को बहाल नहीं किया गया तो लोक जनशक्ति पार्टी की दलित सेना 9 अगस्त को दलितों के देशव्यापी आंदोलन का समर्थर करेगी. वैसे चिराग पासवान ने SC/ST एक्ट पर ऑर्डर जारी करने वाले जस्टिस गोयल के खिलाफ भी मुहिम चला रहे हैं. जस्टिस गोयल को NGT का अध्यक्ष बनाया गया है - और चिराग पासवान हटाने की मांग पर अड़े हुए हैं.

SC/ST एक्ट मामले में श्रेय लेने की होड़...

बावजूद इन सबके SC/ST एक्ट को मूल स्वरूप में लाये जाने की कोशिश का पूरा क्रेडिट राहुल गांधी का बनता है. राहुल गांधी के कहने ही कांग्रेस नेता हरकत में आये और सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर विरोध शुरू किये. सिर्फ पासवान पिता-पुत्र ही नहीं, बाकी सारे दलित नेता भी हरकत में तभी आये जब कांग्रेस ने उनके सामने सवाल उठाय कि दलित सांसद बीजेपी सरकार के इस रवैये पर खामोश क्यों हैं?

राहुल गांधी को क्रेडिट क्यों?

दक्षिण कर्नाटक, उडुपी और मंगलुरू में राहुल गांधी की रैली और रोड शो पहले से तय थे. गुजरात चुनाव के बाद राहुल गांधी का पूरा जोर कर्नाटक पर ही रहा और यही वजह रही कि बाकी कांग्रेस नेताओं ने भी मेघालय, त्रिपुरा और नगालैंड विधानसभा चुनावों पर विशेष ध्यान नहीं दिया.

20 मार्च को जब SC/ST एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का ऑर्डर आया, राहुल गांधी अपने चुनाव अभियान में व्यस्त रहे. कार्यक्रमों से जब फुरसत मिली तब तक मीडिया साइटों पर खबर आ चुकी थी. इंडियन एक्सप्रेस की खबर के लिंक के साथ राहुल गांधी ने एक ट्वीट किया.

SC/ST एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर के बाद विरोध की ये पहली आवाज थी - केंद्र सरकार ने कोर्ट में SC/ST एक्ट का ठीक से इसलिए बचाव नहीं किया क्योंकि ये उसके एजेंडे को सूट करता है.

राहुल गांधी की पहल पर ही कांग्रेस नेताओं ने संसद में ये मामला उठाते हुए सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पेटिशन फाइल करने की मांग की. संसद में कांग्रेस के सीनियर नेताओं अहमद पटेल, आनंद शर्मा, कुमारी शैलजा और राज बब्बर ने मोर्चा तो संभाला ही, बाद में ज्योतिरादित्य सिंधिया और रणदीप सिंह सुरजेवाला के साथ प्रेस कांफ्रेंस कर केंद्र की मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की.

दलित राजनीति की चुनौतियां...

कांग्रेस प्रवक्ता सुरजेवाला ने सरकार पर केस को कमजोर करने का खुला इल्जाम लगाया. सुरजेवाला का दावा था कि अदालत ने नोटिस तो अटॉर्नी जनरल को भेजा था, लेकिन न तो वो न ही सॉलिसिटर जनरल बल्कि एक एडिशनल सॉलिसिटर जनरल को पैरवी के लिए भेज दिया गया.

हफ्ते भर बाद कर्नाटक से लौटकर राहुल गांधी ने विपक्षी नेताओं के साथ राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात की और SC/ST एक्ट में बदलाव से दलितों की सुरक्षा को लेकर चिंता जतायी. राष्ट्रपति से इस मुलाकात में राहुल गांधी के अलावा कांग्रेस, बीएसपी, एनसीपी, सीपीएम, डीएमके और समाजवादी पार्टी के नेता शामिल थे.

उसी दौरान राम विलास पासवान और रामदास अठावले सहित एनडीए के दलित सांसदों ने प्रधानमंत्री मोदी से मिल कर SC/ST के कमजोर होने पर चिंता जतायी - और रिव्यू पेटिशन या फिर सरकार से अध्यादेश लाने की मांग की.

मामले की गंभीरता को देख बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को सफाई देनी पड़ी - 'केंद्र सरकार न तो एससी-एसटी समुदाय को मिलने वाले आरक्षण को खत्म करेगी न ही किसी और को ऐसा करने देगी... बाबासाहेब ने संविधान में जैसी आरक्षण नीति बनाई थी, उसे कोई बदलने की हिम्मत नहीं कर सकता...'

ओडिशा दौरे पर गये अमित शाह ने केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के साथ एक दलित के घर खाना भी खाया और बाद में राहुल गांधी पर झूठ और नफरत फैलाने का इल्जाम भी.

दबाव में आई मोदी सरकार

संसद में दलितों के लिए कानून का मुद्दा उठने के बाद सरकार तो हरकत में आने ही लगी थी, दलित समुदाय भी विरोध में सड़क पर उतर आया. 2 अप्रैल को दलितों ने भारत बंद की कॉल दी - और बंद के दौरान हुई हिंसा में 9 लोगों की मौत हो गयी. राजनीति तब भी चालू रही - सरकार भी हरकत में रही और विपक्ष भी.

मोदी सरकार के लिए मुसीबतें कम होने का नाम नहीं ले रही थीं. यूपी के कई दलित सांसद बागी हो उठे और अपने साथ हो रहे भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाने लगे. बीजेपी के कई दलित सांसदों ने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिख कर अपनी आपत्ति दर्ज करायी. ये सांसद यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बात व्यवहार से ज्यादा खफा नजर आये. बहरहाल, प्रधानमंत्री मोदी के हस्तक्षेप से मामला शांत हुआ.

तेलंगाना की दलित कॉलोनी में अमित शाह का लंच...

ये सब चल ही रहा था कि अंबेडकर जयंती का मौका भी संयोग से आ पड़ा. बीजेपी ने अंबेडकर जयंती के बहाने दलित समुदाय का गुस्सा शांत करने और उनके करीब पहुंचने की कोशिश शुरू की. फिर प्रधानमंत्री मोदी ने बीजेपी सांसदों और नेताओं को दलित आबादी वाले इलाकों में पहुंच कर वक्त गुजारने की सलाह दी. हालांकि, इस कोशिश में दलित हित कम और विवाद ज्यादा सामने आये - कोई आधी रात को होटल से खान लेकर किसी दलित के घर धावा बोल दे रहा था तो कोई मीडिया में बयान देकर बीजेपी के लिए मुश्किलें पैदा करने लगा.

23 जुलाई को राम विलास पासवान के घर पर एनडीए के करीब दो दर्जन दलित सांसद जुटे और इस मसले पर विस्तार से चर्चा की. इनमें तीन केंद्रीय मंत्री भी थे.

बीबीसी रेडियो से बातचीत में दिलीप मंडल कहते हैं - 'सरकार ने गलती सुधारी है... हालांकि, बहुत देर से गलती सुधारी है... सरकार को अब उन दलितों के परिवारों को मुआवजा देने चाहिये जिनकी जान गयी... जिन पर केस हैं उन्हें वापस लिये जाने चाहिये ताकि सब कुछ सही समझा जा सके.' देखा जाय तो राहुल गांधी ने SC/ST एक्ट के मामले में वैसा ही स्टैंड लिया जैसा शाहबानो केस में उनके पिता राजीव गांधी ने अख्तियार किया था. फर्क बस ये रहा कि तब राजीव गांधी सत्ता में थे और अभी राहुल गांधी विपक्ष में हैं.

तो क्या इस हिसाब से राहुल गांधी ने राजीव गांधी से बड़ा कदम उठाया है और कामयाबी भी मिली है?

दरअसल, SC/ST एक्ट का मामला भी राजनीतिक हिसाब से बिलकुल शाहबानो केस जैसा ही है यही वजह है कि मोदी-शाह की जोड़ी भी दबाव में आ गयी और उन्हें वो सब करना पड़ा जो राहुल गांधी मांग कर रहे थे. सवाल ये है कि अगर राहुल गांधी अपनी जगह सही थे तो बीजेपी अध्यक्ष शाह ने राहुल गांधी पर झूठ बोलने और नफरत फैलाने का इल्जाम क्यों लगाया? और अगर राहुल गांधी गलत थे तो मोदी सरकार वही सब क्यों कर रही है जो मांग राहुल गांधी ने सरकार के सामने रखी थी.

अब ये राहुल गांधी के लिए चुनौती है कि RTI और खाने के अधिकार की तरह कैसे SC/ST एक्ट के मूल स्वरूप में लौटने का क्रेडिट ले पाते हैं. अगर राहुल गांधी और उनकी टीम लोगों को ये बात समझाने में कामयाब रहती है तो लड़ाई में टक्कर मजबूत हो सकती है - वरना, जैसे चल रहा है आगे भी चलता ही रहेगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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