• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

फिर डर गए राहुल गांधी! कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव टलने की इनसाईड स्टोरी

    • शरत कुमार
    • Updated: 22 जनवरी, 2021 06:32 PM
  • 22 जनवरी, 2021 06:32 PM
offline
राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले, नेता के तौर पर Rahul Gandhi के बारे में हमेशा इस बात को लेकर कन्फ्यूजन में रहते हैं कि राहुल आख़िर एक बैटरी की तरह काम क्यों करते हैं. कभी पूरी तरह से डिस्चार्ज रहते हैं. तो कभी छुट्टियों से आने के बाद फ़ुल चार्ज नज़र आते हैं. इस बार भी राहुल गांधी जब लौटे हैं तो एक्शन में हैं लेकिन सवाल है कि कितने दिन.

तो फिर डर गए राहुल गांधी. आख़िर क्यों डर रहे हैं राहुल गांधी? विडंबना देखिए. राहुल गांधी के सर्वाधिक बोले जाने वाले डायलॉगों में से एक है कि मैं किसी से डरता नहीं. राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले, नेता के तौर पर राहुल गांधी के बारे में हमेशा इस बात को लेकर कन्फ्यूजन में रहते हैं कि राहुल गांधी आख़िर एक बैटरी की तरह काम क्यों करते हैं. कभी पूरी तरह से डिस्चार्ज नजर आते हैं. तो कभी अचानक से छुट्टियों के बाद फ़ुल चार्ज नज़र आते हैं. इस बार भी राहुल गांधी जब लौटे हैं तो एक्शन में हैं. राहुल गांधी ने कहा कि मुझे कोई गोली मार सकता है मगर मुझे कोई छू नहीं सकता. राहुल गांधी का यह डायलॉग सुनकर कांग्रेसियों का सीना चौड़ा हो गया था. लग रहा था इसबार राहुल गांधी आर या पार करने के मूड में आए हैं. जब आज कार्यसमिति की बैठक बुलायी गई तो सबने सोचा कि अब राहुल गांधी की ताज़पोशी फ़रवरी 2021 तक तो हो ही जाएगी. पहले से घोषणा कर दी गई थी कि कांग्रेस को नया राष्ट्रीय अध्यक्ष बहुत जल्दी मिल जाएगा. अशोक गहलोत जैसे नेता काफ़ी पहले से राहुल गांधी लाओ कांग्रेस बचाओ के नारे लगा रहे थे. मगर जैसे ही राहुल की ताज़पोशी का दिन नज़दीक आया सब चुनाव टालने में लग गए.

गांधी परिवार की कृपापात्र मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने तो पार्टी में चुनाव की मांग करने वाले नेताओं पर हमला ही बोल दिया. कांग्रेस के नेता आनंद शर्मा ने कहा कि संगठन के चुनाव जल्दी हो जाने चाहिए. इसपर अशोका गहलोत ने कहा कि क्या चुनाव- चुनाव करते रहते हो बाक़ि कोई काम नहीं है क्या? पार्टी में वरिष्ठ नेता अंबिका सोनी ने बात को संभालते हुए कहा कि ज़्यादा भावुक बनने की ज़रूरत नहीं है.

जैसे हालात हैं कांग्रेस न तो राहुल को निगल पा रही है और न ही उगल पा रही है

अब यह किसी को...

तो फिर डर गए राहुल गांधी. आख़िर क्यों डर रहे हैं राहुल गांधी? विडंबना देखिए. राहुल गांधी के सर्वाधिक बोले जाने वाले डायलॉगों में से एक है कि मैं किसी से डरता नहीं. राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले, नेता के तौर पर राहुल गांधी के बारे में हमेशा इस बात को लेकर कन्फ्यूजन में रहते हैं कि राहुल गांधी आख़िर एक बैटरी की तरह काम क्यों करते हैं. कभी पूरी तरह से डिस्चार्ज नजर आते हैं. तो कभी अचानक से छुट्टियों के बाद फ़ुल चार्ज नज़र आते हैं. इस बार भी राहुल गांधी जब लौटे हैं तो एक्शन में हैं. राहुल गांधी ने कहा कि मुझे कोई गोली मार सकता है मगर मुझे कोई छू नहीं सकता. राहुल गांधी का यह डायलॉग सुनकर कांग्रेसियों का सीना चौड़ा हो गया था. लग रहा था इसबार राहुल गांधी आर या पार करने के मूड में आए हैं. जब आज कार्यसमिति की बैठक बुलायी गई तो सबने सोचा कि अब राहुल गांधी की ताज़पोशी फ़रवरी 2021 तक तो हो ही जाएगी. पहले से घोषणा कर दी गई थी कि कांग्रेस को नया राष्ट्रीय अध्यक्ष बहुत जल्दी मिल जाएगा. अशोक गहलोत जैसे नेता काफ़ी पहले से राहुल गांधी लाओ कांग्रेस बचाओ के नारे लगा रहे थे. मगर जैसे ही राहुल की ताज़पोशी का दिन नज़दीक आया सब चुनाव टालने में लग गए.

गांधी परिवार की कृपापात्र मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने तो पार्टी में चुनाव की मांग करने वाले नेताओं पर हमला ही बोल दिया. कांग्रेस के नेता आनंद शर्मा ने कहा कि संगठन के चुनाव जल्दी हो जाने चाहिए. इसपर अशोका गहलोत ने कहा कि क्या चुनाव- चुनाव करते रहते हो बाक़ि कोई काम नहीं है क्या? पार्टी में वरिष्ठ नेता अंबिका सोनी ने बात को संभालते हुए कहा कि ज़्यादा भावुक बनने की ज़रूरत नहीं है.

जैसे हालात हैं कांग्रेस न तो राहुल को निगल पा रही है और न ही उगल पा रही है

अब यह किसी को समझ में नहीं आ रहा है कि अचानक से अशोक गहलोत को क्या हो गया जो तू-तू, मैं-मैं पर उतर आए. हर कोई हैरत में इसलिए है कि राहुल गांधी को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने की सबसे ज़्यादा मांग तो अशोक गहलोत हीं कर रहे थे, फिर अचानक से चुनाव की बात सुनकर क्यों भड़क गए. यानि कांग्रेस की कार्यसमीति की बैठक चुनाव कराने के लिए बल्कि चुनाव टालने के लिए बुलाई गई थी. कांग्रेस की बैठक में सबकुछ तय होता है.

पिछली बैठक में शामिल होने के लिए अशोक गहलोत जब दिल्ली गाए थे तो बाहर आकर मीडिया के सामने बयान दिया था कि राहुल गांधी को राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद संभालना चाहिए और इस बार उल्टी भूमिका में थे. CWC की मीटिंग में गहलोत ने कहा कि हम सबको मुख्यमंत्री, केन्द्रीय मंत्री और CWC का सदस्य पार्टी ने बनाया. पर कभी भी चुनाव के ज़रिए कोई पद नहीं मिला. लेकिन आज बहुत से लोग चुनाव की बात कर रहे है..किसी को पता है अमित शाह और जेपी नड्डा कैसे अध्यक्ष बने हैं. अशोक गहलोत की इस बात पर आनंद शर्मा  फिर बीच मे बोल पड़े. शर्मा ने कहा, हमने कभी सोनिया गांधी या राहुल को लेकर कुछ नहीं कहा. पर यह अब आम बात हो गई है कि हमारे लिए ऐसा कहा जाता है. यह ट्रेंड बन गया है अब तो. ऐसे में अम्बिका सोनी ने बीच बचाव करते हुए कहा- गहलोत जी ने आपके लिए नहीं बोला है शर्माजी, प्लीज छोड़ दीजिए अब इस मामले को. आखिर में राहुल गांधी ने फिर कहा कि गहलोत जी अपनी जगह ठीक है और आनंद शर्मा जी अपनी जगह ठीक है..मैं दोनों की बात का आदर करता हूं..संगठन चुनाव कराकर इस मुद्दे को हमेशा के लिए ख़त्म कर देना चाहिए, लेकिन कब मई-जून में? जो तय था उस पर राहुल गांधी ने आख़िरी मोहर लगा दी.

अब असली कहानी भी सुन लीजिए. दरअसल पिछले दिनों कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल जयपुर आए थे. तब राजस्थान में कांग्रेस के महाधिवेशन की तैयारी करने का प्रस्ताव आया था जिसमें कहा गया कि जल्दी से राहुल गांधी को राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया जाए ताकि कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में जोश आए. मगर सोनिया गांधी के भरोसेमंद कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि पार्टी के कार्यकर्ताओं में तो जोश आ जाएगा मगर राहुल गांधी के लिए ताजपोशी का यह समय ठीक नहीं रहेगा.

दरअसल जहां पर चुनाव होने जा रहे हैं चाहे केरल हो या पश्चिम बंगाल, असम हो या तमिलनाडू, कांग्रेस बहुत अच्छा करते हुए नहीं दिख रही है. ऐसे में जैसे ही राहुल गांधी को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जाएगा और दोबारा अध्यक्ष बनते ही पार्टी फिर से बुरी तरह से हार जाएगी तो हमेशा- हमेशा के लिए राहुल गांधी ख़ारिज कर दिए जाएंगे और फिर राहुल गांधी को नेता के तौर पर खड़े करने में भारी मुसीबत आएगी.

कई दिनों के मंथन के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने तय किया कि कांग्रेस के संगठनात्मक चुनाव को टाल कर मई में कर दिया जाए. अगर चारों राज्यों में कांग्रेस को हार मिल जाती है या 3 राज्यों में कांग्रेस को हार मिल जाती है तो कहा जाएगा कि राहुल गांधी को एक बार फिर से कांग्रेस पार्टी का कायाकल्प करने के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जाए. तब शायद पार्टी में भी मांग उठने लगे. इससे माहौल अच्छा बनेगा.

और तब राहुल गांधी नए सिरे से कमान संभालेंगे. इन चुनावों में हार के बाद सोनिया गांधी को भी इस्तीफ़ा देने में आसानी होगी. सूत्रों के अनुसार कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की यह राय ने गांधी परिवार को भी ठीक लगी है इसलिए तय किया गया है कि जनवरी-फ़रवरी में घोषित कांग्रेस के महाधिवेशन को मई तक टाला जाएगा.

मगर अब बड़ा सवाल उठ रहा है कि ऐसे डर-डर कर राहुल गांधी कब तक राजनीति करेंगे और कब तक कांग्रेस का नेतृत्व करेंगे. नेता तो प्रतिकूल परिस्थितियों में पैदा होता है या निखरता है. अनुकूल परिस्थितियों में तो डॉक्टर मनमोहन सिंह भी दूसरी बार कांग्रेस को जिताकर ले आए थे. राहुल गांधी के लिए साहस दिखाने का समय था मगर एक बार फिर से चूकते नज़र आ रहे हैं. हो सकता है कि कांग्रेस के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव टालने से राहुल गांधी की हार के बाद किरकिरी होने से बच जाएं मगर कांग्रेस की इज्ज़त तार तार हो जाएगी.

कितनी दया आती है कि देश की इतनी पुरानी पार्टी अपने एक बीमार अंतरिम राष्ट्रीय अध्यक्षा का विकल्प नहीं खोज पा रही है. कांग्रेस के बहुत सारे नेता गांधी परिवार के बाहर अध्यक्ष तलाशने की राहुल गांधी की बात से निजी बातचीत में सहमत नजर आते हैं मगर किसी को यह कहने का साहस नही है. जो कोई कहने की हिम्मत करेगा इसे बीजेपी से मिला हुआ करार दे देंगे. अब तो यह थ्योरी भी अपनी उम्र जी चुकी है कि गांधी परिवार नही होगा तो कांग्रेस बिखर जाएगी या चल नही पाएगी.

लोग कहने लगे हैं कि गांधी परिवार के साये में कौन सी कांग्रेस संवर रही है या दौड़ रही है. सारा खेल साहस का होता है. राजनीति हो या युद्ध का मैदान या भी फिर खेल का मैदान. जो डर गया सो मर गया. हो सकता है कि राहुल गांधी नहीं डर रहे हो बल्कि उनके आस पास के लोग उन्हें डरा रहे हो. मगर यही तो लीडरशीप जो मनोबल गिरी सेना में जान फूंके. कांग्रेस के नेता कहते हैं कि राहुल गांधी किसी से डरते नहीं और सबसे ज़्यादा सवाल मोदी सरकार से सवाल वही करते हैं अगर यह दिलेरी के साथ करते हैं तो राहुल गांधी को दिलेरी के साथ जनता के सामने जाना चाहिए.

ख़ारिज कर दिए जाने के डर से अगर नेतृत्व करने से हट रहे हैं तो समझ जाइए कांग्रेस के लिए भारत की राजनीति में वक़्त ख़त्म हो गया है. जो नेता राहुल गांधी को यह समझा रहे हैं कि तीन-चार राज्यों में चुनाव में हार मिल सकती है और हार मिलने से छवि ख़राब हो जाएगी तो उन नेताओं को यह भी समझना चाहिए कि मई के बाद होने वाले चुनाव में भी कांग्रेस कोई कमाल करने नहीं जा रही है.

कांग्रेस जिन परिस्थितियों में है उन परिस्थितियों में कायाकल्प करने के लिए उचित दिन का चुनाव करने का विकल्प उनके पास नहीं है. जो पार्टी करो या मरो के हालात में जी रही हो तो वह सेनापति के चुनाव के लिए सही वक़्त का इंतज़ार करें तो फिर यही कहा जा सकता है कि इस तरह तो गांव में चारपाई पर लेटा हुआ कोई बुजुर्ग जीते रहने की इच्छा के साथ भगवान के बुलावे का इंतज़ार करता है.

ये भी पढ़ें -

बिहार में शाहनवाज हुसैन के बहाने बीजेपी ने साधे एक तीर से कई निशाने!

Mamata Banerjee के नंदीग्राम चैलेंज से बढ़ी मोदी-शाह की मुश्किलें

पश्चिम बंगाल चुनाव ओपिनियन पोल: ममता को राहत और बीजेपी की मुश्किल

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲