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राजनाथ सिंह से पहले Rafale राहुल गांधी और मोदी भी उड़ा चुके हैं!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 07 अक्टूबर, 2019 09:35 PM
  • 07 अक्टूबर, 2019 09:35 PM
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2018 के मानसून सेशन में कांग्रेस द्वारा राफेल का मुद्दा उठाए जाने और अब 2019 में जल्द ही उसके भारत आने के बीच 1 साल गुजर चुका है. बीते हुए इस एक साल में ऐसे कई मौके आए जब मोदी सरकार के लिए फायदेमंद साबित हुए राफेल ने राहुल गांधी और कांग्रेस को भी फायदा पहुंचाया.

2014 में देश से कांग्रेस का सफाया कर नरेंद्र मोदी पहली बार देश के प्रधानमंत्री बने थे. अपने पहले कार्यकाल में मोदी सरकार ने कई अहम फैसले लिए. इन्हीं फैसलों में एक फैसला देश की सुरक्षा के लिहाज से खासा अहम था. सरकार ने राफेल जहाज की खरीद फरोख्त की. बात अगर 19 के आम चुनाव के बड़े मुद्दों की हो कांग्रेस और राहुल गांधी ने राफेल सौदे को एक बड़े मुद्दे की तरह पेश किया और इसे लेकर सरकार पर तमाम तरह के गंभीर आरोप लगाए. कांग्रेस और राहुल गांधी राफेल को लेकर सरकार पर कितने हमलावर थे? इसका अंदाजा हम 2018 के मानसून सत्र को देखकर भी लगा सकते हैं. 2018 के मानसून सत्र के दौरान हुई कार्रवाई पर अगर गौर किया जाए तो मिलता है कि तब संसद में जहां राफेल को लेकर राहुल गांधी सरकार पर हमलावर थे. तो वहीं देश की सरकार डिफेंसिव मोड में थी और कांग्रेस द्वारा उठाए इस मुद्दे को लेकर अपना बचाव करती नजर आ रही थी. सवाल होगा कि तब की ये बातें आज क्यों हो रही हैं ? तो इसका जवाब है केंद्रीय रक्षा राजनाथ सिंह का फ्रांस जाना और वहां राफेल की शस्त्र पूजा करना. जो बस भारत आने ही वाला है. मानसून सत्र में राफेल को लेकर राहुल गांधी के सख्त होने और फ्रांस जाकर राफेल विमान के लिए शस्त्र पूजा करने तक एक साल हो गया है.

राफेल के भारत आने की खबर के बाद भले ही कांग्रेस उदास हो मगर लोग काफी खुश हैं

अब अगर इस एक साल का अवलोकन किया जाए तो तमाम दिलचस्प बातें हैं जो हमारे सामने आ रही हैं. कह सकते हैं कि इन बीते हुए 365 दिनों में ऐसा बहुत कुछ हुआ है जो न सिर्फ भाजपा बल्कि कांग्रेस तक के लिए फायदेमंद साबित हुई हैं

मानसून सेशन 2018 और राहुल गांधी की मजबूती  

मानसून सेशन 2018 का जिक्र हम पहले ही कर चुके हैं और ये बता चुके हैं कि कैसे राहुल गांधी द्वारा संसद में...

2014 में देश से कांग्रेस का सफाया कर नरेंद्र मोदी पहली बार देश के प्रधानमंत्री बने थे. अपने पहले कार्यकाल में मोदी सरकार ने कई अहम फैसले लिए. इन्हीं फैसलों में एक फैसला देश की सुरक्षा के लिहाज से खासा अहम था. सरकार ने राफेल जहाज की खरीद फरोख्त की. बात अगर 19 के आम चुनाव के बड़े मुद्दों की हो कांग्रेस और राहुल गांधी ने राफेल सौदे को एक बड़े मुद्दे की तरह पेश किया और इसे लेकर सरकार पर तमाम तरह के गंभीर आरोप लगाए. कांग्रेस और राहुल गांधी राफेल को लेकर सरकार पर कितने हमलावर थे? इसका अंदाजा हम 2018 के मानसून सत्र को देखकर भी लगा सकते हैं. 2018 के मानसून सत्र के दौरान हुई कार्रवाई पर अगर गौर किया जाए तो मिलता है कि तब संसद में जहां राफेल को लेकर राहुल गांधी सरकार पर हमलावर थे. तो वहीं देश की सरकार डिफेंसिव मोड में थी और कांग्रेस द्वारा उठाए इस मुद्दे को लेकर अपना बचाव करती नजर आ रही थी. सवाल होगा कि तब की ये बातें आज क्यों हो रही हैं ? तो इसका जवाब है केंद्रीय रक्षा राजनाथ सिंह का फ्रांस जाना और वहां राफेल की शस्त्र पूजा करना. जो बस भारत आने ही वाला है. मानसून सत्र में राफेल को लेकर राहुल गांधी के सख्त होने और फ्रांस जाकर राफेल विमान के लिए शस्त्र पूजा करने तक एक साल हो गया है.

राफेल के भारत आने की खबर के बाद भले ही कांग्रेस उदास हो मगर लोग काफी खुश हैं

अब अगर इस एक साल का अवलोकन किया जाए तो तमाम दिलचस्प बातें हैं जो हमारे सामने आ रही हैं. कह सकते हैं कि इन बीते हुए 365 दिनों में ऐसा बहुत कुछ हुआ है जो न सिर्फ भाजपा बल्कि कांग्रेस तक के लिए फायदेमंद साबित हुई हैं

मानसून सेशन 2018 और राहुल गांधी की मजबूती  

मानसून सेशन 2018 का जिक्र हम पहले ही कर चुके हैं और ये बता चुके हैं कि कैसे राहुल गांधी द्वारा संसद में इस मुद्दे को उठाया गया. तब अपने भाषण के बाद जिस तरह राहुल ने प्रधानमंत्री मोदी को गले लगाया था उसे भी कांग्रेस और राहुल गांधी के समर्थकों द्वारा एक बड़ी जीत के रूप में देखा गया था. तब कांग्रेस के इस रूप पर भाजपा और स्वयं प्रधानमंत्री मोदी भी भौचक्के रह गए थे और जैसा रुख था तब या तो भाजपा अपनी बगलें झांक रही थीं या फिर वो अपनी बातों को तर्क की चाशनी में डुबोकर केवल अपना बचाव कर रही थी. उस समय जैसे आरोप राहुल गांधी ने लगाए थे एक बार को लगा था कि राफेल मोदी सरकार के लिए गले की हड्डी की तरफ हो गया था.

मानसून सत्र में पीएम मोदी को गले लगाते राहुल गांधी

मानसून सत्र में जैसा रुख राहुल गांधी का था उसने न सिर्फ राहुल को लोकप्रिय किया. बल्कि इससे पार्टी को भी मजबूती मिली. ये राहुल गांधी के मानसून सत्र में दिए गए भाषण का जोश ही था कि तमाम प्रमुख मोर्चों पर हार का सामना कर चुके और पस्त पड़े कार्यकर्ताओं और पार्टी के नेताओं में जोश आया और मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में वो हुआ जिसकी कल्पना शायद ही किसी ने कभी की हो.

कांग्रेस का जश्न और उसपर सुप्रीम कोर्ट की फिटकरी

एक ऐसे समय में जब कांग्रेस को देश की जनता ने गर्त के अंधेरों में धकेल दिया हो. कांग्रेस द्वारा हिंदी भाषी तीन बड़े राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ऐतिहासिक जीत दर्ज करना वाकई जश्न मनाने योग्य बात थी. कार्यकर्ताओं के अलावा कांग्रेस पार्टी के बड़े छोटे नेताओं द्वारा अभी ढंग से जश्न मनाया भी न गया था कि सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस और राहुल गांधी को गहरा आघात दिया. राफेल को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार को क्लीन चिट देते हुए कहा कि, मोदी सरकार द्वारा फ्रांस के साथ 36 राफेल फाइटर जेट्स खरीदने में कोई बुराई नहीं है. भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि इस मामले का अध्ययन "बड़े पैमाने पर" किया गया था और इस प्रक्रिया में संदेह का कोई अवसर नहीं है.

राफेल मामले पर सुप्रीम कोर्ट का इतना कहना भर था. बाजी पलट गई और मोदी सरकार के पक्ष में चली गई. अब सरकार का पलड़ा भारी था और कांग्रेस के सामने काटो तो खून नहीं की स्थिति थी. पूरे कुंबे में मातम मच गया. कांग्रेस और पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी इस बात को समझने में नाकाम थे कि आखिर ऐसा क्या किया जाए जिससे बेइज्जती से बचा जा सके. मामले पर सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद जिस तरह भाजपा ऊपर गई उसने जश्न मनाती कांग्रेस को फ़ौरन ही सदमे में डाल दिया.

राफेल सौदे को लेकर जो बता सुप्रीम कोर्ट ने कही थी उसने भी राहुल को खासा परेशानी में डाला था

कांग्रेस और राहुल गांधी की मुसीबत इतने पर थम जाती तो भी ठीक रहता. राफेल सौदे से जुड़ी फाइलों के गायब होने के बाद राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर बड़ा हमला तो किया मगर कहीं न कहीं वो अपनी ही बातों में फंस गए. बात मार्च 2019 की है. राहुल ने देश की सरकार के खिलाफ बड़ा बयान देते हुए राफेल की फाइलें वैसे ही गायब हुई हैं जैसे नोटबंदी और जीएसटी. तब खुद को अलग अलग मंचों से चौकीदार बताने वाले देश के प्रधानमंत्री मोदी को चोर बनाते हुए राहुल गांधी ने चौकीदार चोर है का नारा दिया था. दिलचस्प बात ये है कि जनता को भटकाने के लिए तब राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया था. जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी की कड़ी फटकार लगाई थी और उनसे माफ़ी मांगने को कहा था. कोर्ट ने राहुल से सवाल किया कि हमने तो किसी फैसले में कहा ही नहीं कि 'चौकीदार चोर है', आपने ये हमारे नाम से कैसे इस्तेमाल किया?  कोर्ट के सामने अपने को घिरता देख राहुल ने भी माफ़ी मांग कर मामला रफा दफा करने की कोशिश की थी.

आपको बताते चलें कि बीजेपी नेता मीनाक्षी लेखी ने इस संबंध में राहुल गांधी के खिलाफ अवमानना याचिका दायर की थी. इस याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने साफ कहा कि 'हमने कभी नहीं कहा चौकीदार चोर है.' दरअसल राहुल ने कोर्ट के इस फैसले पर कहा था कि अब सुप्रीम कोर्ट ने भी मान लिया कि 'चौकीदार चोर है'.

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने राहुल से कहा कि आप हमें कड़े कदम उठाने के लिए मजबूर कर रहे हैं, हम अभी इससे ज्यादा कुछ कहना नहीं चाहते. इसके बाद राहुल के वकील और सीनियर कांग्रेस लीडर अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि हम इस मामले में खेद जता चुके हैं. इस पर कोर्ट और सख्ती से पेश आया और पूछा कि आपके जवाब में वो 'खेद' हमें क्यों नज़र नहीं आ रहा है.

2019 में भाजपा की जीत की एक बड़ी वजह कांग्रेस द्वारा उन्हें चोर कहना भी माना जा सकता है

चौकीदार चोर है बनाम मैं भी चौकीदार और भाजपा की धमाकेदार वापसी

2019 के आम चुनावों में राहुल गांधी के 'चौकीदार चोर है' के खिलाफ देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा ने 'मैं भी चौकीदार' अभियान चलाया. ये अभियान कितना सफल हुआ इसे हम 19 के चुनाव में भाजपा को मिली सफलता से भी समझ सकते हैं. तब आलम कुछ यूं था कि जिस राफेल को लेकर राहुल गांधी ने पीएम मोदी के खिलाफ उड़ान भरी थी. वही राफेल कांग्रेस और राहुल गांधी के गले की हड्डी साबित हुआ और नतीजा वर्तमान में हमारे सामने हैं. कांग्रेस विलुप्त होती नजर आ रही है और जिस राफेल विमान को लेकर इतना बखेड़ा हुआ वो जल्द ही भारत आने वाला है.

बहरहाल, अब जबकि सरकार ने जो कहा उसे कर के दिखा दिया है तो हमारे लिए भी ये कहना गलत नहीं है कि अब किसी को भी पुरानी बातों में इंटरेस्ट नहीं है. विमान आ रहा है . भले ही विपक्ष इसे लेकर उदास हो मगर देश के आम नागरिकों में इसे लेकर ख़ुशी की लहर है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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