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पंजाब में 'बदलाव की बयार' का असर राजस्थान और छत्तीसगढ़ पहुंचना तय है!

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 23 सितम्बर, 2021 04:50 PM
  • 23 सितम्बर, 2021 04:50 PM
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राजस्थान (Rajasthan) और छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में असंतोष के स्वर लंबे समय से गूंज रहे हैं. लेकिन, जैसा कि कांग्रेस आलाकमान करता आया है. इन दोनों ही राज्यों की समस्याओं पर शीर्ष नेतृत्व की ओर से कोई खास ध्यान नहीं दिया गया.

पंजाब में कांग्रेस (Congress) आलाकमान ने अपने नए मास्टरस्ट्रोक में एक स्थापित मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह (Amarinder Singh) को हटाकर चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) को नया मुख्यमंत्री बना दिया है. कांग्रेस के इस मास्टरस्ट्रोक के कुछ ही समय बाद पंजाब कांग्रेस प्रभारी हरीश रावत ने नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) के नेतृत्व में आगामी पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर एक बेहतरीन शॉट खेलते हुए बॉल स्टेडियम के बाहर पहुंचा दी. खैर, ये तो पहले से ही तय माना जा रहा था कि अमरिंदर सिंह को हटाकर सीएम बनाए गए चरणजीत सिंह चन्नी केवल बचा हुआ समय ही मुख्यमंत्री के तौर पर पूरा करेंगे. क्योंकि, इससे पंजाब की वो राजनीति बिगड़ जाएगी, जिसके लिए अमरिंदर सिंह कांग्रेस आलाकमान को हस्तक्षेप न करने की सलाह दे रहे थे.

वैसे, पंजाब में बही 'बदलाव की बयार' का असर राजस्थान और छत्तीसगढ़ भी पहुंचना तय है. राजस्थान (Rajasthan) और छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में असंतोष के स्वर लंबे समय से गूंज रहे हैं. लेकिन, जैसा कि कांग्रेस आलाकमान करता आया है. इन दोनों ही राज्यों की समस्याओं पर शीर्ष नेतृत्व की ओर से कोई खास ध्यान नहीं दिया गया. अभी तक सारा असंतोष किसी तरह समझाइश की बैठकों के द्वारा शांत किया जाता रहा है. लेकिन, पंजाब में हुए बदलाव के बाद अब राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विरोध के स्वरों को दबा पाना आसान नहीं होगा. ऐसा कहने की वजह ये है कि नवजोत सिंह सिद्धू के दबाव में कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाकर कांग्रेस आलाकमान ने कहीं न कहीं ये संकेत दे दिया है कि अगर दबाव दुरुस्त है, तो समस्या का हल निकल सकता है. इस बात की पूरी संभावना है कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ में थमी नजर आ रही सियासी खींचतान अब पुरजोर तरीके से सामने आएगी.

छत्तीसगढ़ और राजस्थान में अभी तक...

पंजाब में कांग्रेस (Congress) आलाकमान ने अपने नए मास्टरस्ट्रोक में एक स्थापित मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह (Amarinder Singh) को हटाकर चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) को नया मुख्यमंत्री बना दिया है. कांग्रेस के इस मास्टरस्ट्रोक के कुछ ही समय बाद पंजाब कांग्रेस प्रभारी हरीश रावत ने नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) के नेतृत्व में आगामी पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर एक बेहतरीन शॉट खेलते हुए बॉल स्टेडियम के बाहर पहुंचा दी. खैर, ये तो पहले से ही तय माना जा रहा था कि अमरिंदर सिंह को हटाकर सीएम बनाए गए चरणजीत सिंह चन्नी केवल बचा हुआ समय ही मुख्यमंत्री के तौर पर पूरा करेंगे. क्योंकि, इससे पंजाब की वो राजनीति बिगड़ जाएगी, जिसके लिए अमरिंदर सिंह कांग्रेस आलाकमान को हस्तक्षेप न करने की सलाह दे रहे थे.

वैसे, पंजाब में बही 'बदलाव की बयार' का असर राजस्थान और छत्तीसगढ़ भी पहुंचना तय है. राजस्थान (Rajasthan) और छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में असंतोष के स्वर लंबे समय से गूंज रहे हैं. लेकिन, जैसा कि कांग्रेस आलाकमान करता आया है. इन दोनों ही राज्यों की समस्याओं पर शीर्ष नेतृत्व की ओर से कोई खास ध्यान नहीं दिया गया. अभी तक सारा असंतोष किसी तरह समझाइश की बैठकों के द्वारा शांत किया जाता रहा है. लेकिन, पंजाब में हुए बदलाव के बाद अब राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विरोध के स्वरों को दबा पाना आसान नहीं होगा. ऐसा कहने की वजह ये है कि नवजोत सिंह सिद्धू के दबाव में कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाकर कांग्रेस आलाकमान ने कहीं न कहीं ये संकेत दे दिया है कि अगर दबाव दुरुस्त है, तो समस्या का हल निकल सकता है. इस बात की पूरी संभावना है कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ में थमी नजर आ रही सियासी खींचतान अब पुरजोर तरीके से सामने आएगी.

छत्तीसगढ़ और राजस्थान में अभी तक सारा असंतोष समझाइश की बैठकों के द्वारा शांत किया जाता रहा है.

गहलोत भी अमरिंदर बनते जा रहे हैं

माना जा सकता है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) के खिलाफ लंबे समय से मोर्चा खोले सचिन पायलट (Sachin Pilot) पंजाब के फैसले के बाद मुखरता के साथ अपनी बात कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व के सामने रखने को तैयार हो गए होंगे. दरअसल, कांग्रेस आलाकमान की ओर से राजस्थान प्रभारी अजय माकन बहुत पहले ही अशोक गहलोत को इशारा कर चुके हैं कि अब उन्हें मंत्रिमंडल विस्तार पर ध्यान देना चाहिए. लेकिन, कोरोना की दूसरी लहर के बाद तबीयत खराब होने से लेकर अभी तक किसी न किसी तरह अशोक गहलोत कांग्रेस आलाकमान के फैसले को टालते रहे हैं. इस दौरान सचिन पायलट ने कई बार अपनी बात कांग्रेस आलाकमान तक पहुंचाई. लेकिन, हर बार की तरह आश्वासन लेकर ही लौट आए हैं. बताया जा रहा है कि बीते हफ्ते जब पंजाब में बदलाव को लेकर फैसला लिया जा रहा था, उसी दौरान राहुल गांधी और सचिन पायलट के बीच एक गुप्त बैठक भी हुई थी.

वैसे, अशोक गहलोत को भी राहुल-सचिन की इस बैठक के बारे में पूरी जानकारी रही होगी. वरना राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी की तरह गहलोत पंजाब में अमरिंदर सिंह को सीएम पद से हटाए जाने के बाद सलाह देते हुए नजर नहीं आते. और, सलाह भी ऐसी जिसके निहितार्थ अलग ही निकल रहे हो. राजनीति के विषय में कहा जाता है कि कोई बयान यूं ही नहीं दिया जाता है. तो, अशोक गहलोत ने भी ये बयान यूं ही नहीं दिया होगा. उन्होंने कहा था कि मैं उम्मीद करता हूं कि कैप्टन ऐसा कोई कदम नहीं उठाएंगे, जो कांग्रेस के हित में नहीं हो. इसी बहाने गहलोत ने ये भी याद दिला दिया कि फासिस्ट सरकारों की वजह से देश जिस दिशा में जा रहा है, हमारे लिए 'वो' चिंता का विषय होना चाहिए. इसलिए ऐसे समय हम सभी कांग्रेसजनों की जिम्मेदारी बढ़ जाती है. हमें अपने से ऊपर उठकर पार्टी व देश हित में सोचना होगा. माना जा सकता है कि अशोक गहलोत ने अपने बयान से इशारों-इशारों में कांग्रेस आलाकमान तक अपने 'मन की बात' पहुंचा ही दी है.

गांधी परिवार से करीबी की वजह से अशोक गहलोत पर लंबे समय से कोई खतरा नजर नहीं आ रहा था. लेकिन, बीते कुछ महीनों में कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व के दिए गए आदेशों को लगातार नजरअंदाज कर गहलोत भी अमरिंदर सिंह बनने की ओर कदम बढ़ा रहे हैं. हालांकि, मंत्रिमंडल विस्तार से इतर अन्य मामलों में अशोक गहलोत कांग्रेस आलकमान के हर फैसले के साथ ही खड़े नजर आते हैं. लेकिन, छिपे शब्दों में ही सही वो गांधी परिवार को राजस्थान की राजनीति में दखल न देने की ताकीद करते हुए दिखते हैं. वैसे, पंजाब का फैसला लेने के समय हुई सचिन पायलट और राहुल गांधी की मुलाकात की टाइमिंग बहुत सटीक मानी जा सकती है. अब राहुल-सचिन इस बैठक का नतीजा क्या निकलेगा, ये राहुल गांधी के शिमला लौटने के बाद ही सामने आएगा. लेकिन, पार्टी का हित गहलोत के मुख्यमंत्री बने रहने में है या नेतृत्व परिवर्तन कर सचिन पायलट को सीएम बनाने में, पंजाब में हुए बदलाव को देखकर अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है.

सिंहदेव का पक्ष मजबूत होने की वजह है

छत्तीसगढ़ में नेतृत्व परिवर्तन के लिए राज्य के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव (TS Singh Deo) बीते कुछ महीने में दर्जन बार दिल्ली यात्रा कर चुके हैं. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (Bhupesh Baghel) के साथ उनका छत्तीस का आंकड़ा कई बार खुलकर सामने आ चुका है. भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव के बीच असहजता का आलम ये है कि पंजाब में हुए बदलाव के बाद सिंहदेव फिर से दिल्ली के लिए रवाना हो गए थे. दरअसल, छत्तीसगढ़ में 'ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री' का फॉर्मूला ही सियासी दंगल की असल वजह है. पंजाब में हुए फैसले से टीएस सिंहदेव इतना समझ ही चुके होंगे कि 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव के बाद उनके पास मुख्यमंत्री बनने की संभावनाएं 'शून्य' हो जाएंगी. ऐसी स्थिति में जितना समय बचा है, उसी में मुख्यमंत्री बनकर सिंहदेव अपनी इच्छा पूरी करने के लिए शीर्ष नेतृत्व से गुहार लगा रहे हैं.

पंजाब में हुए फैसले के बाद ये तय हो चुका है कि अब कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी की 'सबको साथ लेकर चलने वाली राजनीति' का पार्टी में समय पूरा हो चुका है. और, पार्टी में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के फैसले ही चलते हैं. अगर ऐसा नहीं होता, तो पंजाब कांग्रेस के प्रभारी हरीश रावत (जो उत्तराखंड में सीएम पद के दावेदार माने जा रहे थे) अचानक इस पहाड़ी राज्य के लिए दलित मुख्यमंत्री की मांग न करने लग जाते. अमरिंदर सिंह के हटाए जाने के बाद माना जा रहा है कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी कांग्रेस शासित राज्यों में बुजुर्ग नेताओं को किनारे लगाने की ओर बढ़ चुके हैं. 70 वर्षीय टीएस सिंहदेव कांग्रेस आलाकमान को मजबूती के साथ अपनी बात समझाने की पूरी कोशिश करेंगे. लेकिन, फैसला राहुल और प्रियंका को ही करना है.

टीएस सिंहदेव कांग्रेस के वरिष्ठ और कद्दावर नेता हैं, तो उनकी ये बात मानी जाने की संभावना बढ़ जाती है. वैसे, उनके पास इस बात की भी बढ़त मानी जा सकती है कि भूपेश बघेल के पिता की तरह उन्होंने ब्राह्मणों को वोल्गा भेजने की बात नहीं कही है. खैर, भूपेश बघेल से तमाम अदावत होने के बावजूद उन्होंने छत्तीसगढ़ को राजस्थान नहीं बनने दिया है और हर बार कांग्रेस आलाकमान से ही अपना दुख जताया है, तो हो सकता है कि राहुल गांधी का दिल पिघल जाए.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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