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पुलवामा से लौट रहे 5 राज्यों के शहीद हजारों सैनिकों को जन्‍म देंगे

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 16 फरवरी, 2019 12:22 PM
  • 15 फरवरी, 2019 09:08 PM
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गुरुवार को पुलवामा में सेना के जवानों से भरी जिस बस को आतंकियों ने धमाके से उड़ा दिया, उसमें किसी एक राज्य के रहने वाले सैनिक नहीं थे, बल्कि पूरे देश से थे. हर किसी की एक कहानी थी. अब वो कहानी तो है, लेकिन उस कहानी का असल किरदार शहीद हो गया है.

जब सियासी गलियारों में कीचड़ उछलता है, तो अपना ही देश बंटा हुआ सा नजर आता है. कोई पश्चिम बंगाल में नेताओं को घुसने नहीं देता तो कोई यूपी-बिहार वालों को महाराष्ट्र से खदेड़ता है. लेकिन जब बात आती है भारतीय सेना की तो एक बस में ही पूरा हिंदुस्तान बैठा नजर आता है. सेना का जवान खुद को यूपी-बिहार या बंगाल का नहीं, बल्कि देश का मानता है और देश की रक्षा में अपनी जान तक न्योछावर कर देता है. गुरुवार को पुलवामा में सेना के जवानों से भरी जिस बस को आतंकियों ने धमाके से उड़ा दिया, उसमें किसी एक राज्य के रहने वाले सैनिक नहीं थे, बल्कि पूरे देश से थे. हर किसी की एक कहानी थी. अब वो कहानी तो है, लेकिन उस कहानी का असल किरदार शहीद हो गया है.

1- बंगाल के दो लाल शहीद

पुलवामा में हुए आतंकी हमले में पश्चिम बंगाल के रहने वाले बबलू संतरा भी थे. वह पश्चिम बंगाल के हावड़ा जिले में रहते थे. 37 साल के बबलू के परिवार में उनकी पत्नी, मां और 4 साल की बेटी थी. वह 2000 में सीआरपीएफ में शामिल हो गए थे, जब वह उलुबेरिया कॉलेज में फर्स्ट ईयर के स्टूडेंट थे. बबलू सिर्फ साल भर में ही रिटायर होने वाले थे और उन्होंने सोचा था कि रिटायर होकर वह अपने परिवार के साथ समय बिताएंगे और कोई बिजनेस शुरू करेंगे. लेकिन पुलवामा में हुए आतंकी हमले में वह शहीद हो गए और अब रह गई हैं सिर्फ उनकी यादें. शहीद जवान बबलू के भतीजे ने बताया कि उन्होंने उसे भी सीआरपीएफ की तैयारी करने के लिए कहा था.

पुलवामा आतंकी हमले में पश्चिम बंगाल के सुदीप बिस्वास (बाएं) और बबलू संतरा भी थे.

सुदीप बिस्वास पश्चिम बंगाल के नादिया जिले के हशपुकुरिया के रहने वाले थे. अभी 5 साल पहले ही वह सीआरपीएफ में शामिल हुए थे. सुदीप के परिवार वाले बताते हैं कि वह जल्द ही घर आने वाले थे. उनकी...

जब सियासी गलियारों में कीचड़ उछलता है, तो अपना ही देश बंटा हुआ सा नजर आता है. कोई पश्चिम बंगाल में नेताओं को घुसने नहीं देता तो कोई यूपी-बिहार वालों को महाराष्ट्र से खदेड़ता है. लेकिन जब बात आती है भारतीय सेना की तो एक बस में ही पूरा हिंदुस्तान बैठा नजर आता है. सेना का जवान खुद को यूपी-बिहार या बंगाल का नहीं, बल्कि देश का मानता है और देश की रक्षा में अपनी जान तक न्योछावर कर देता है. गुरुवार को पुलवामा में सेना के जवानों से भरी जिस बस को आतंकियों ने धमाके से उड़ा दिया, उसमें किसी एक राज्य के रहने वाले सैनिक नहीं थे, बल्कि पूरे देश से थे. हर किसी की एक कहानी थी. अब वो कहानी तो है, लेकिन उस कहानी का असल किरदार शहीद हो गया है.

1- बंगाल के दो लाल शहीद

पुलवामा में हुए आतंकी हमले में पश्चिम बंगाल के रहने वाले बबलू संतरा भी थे. वह पश्चिम बंगाल के हावड़ा जिले में रहते थे. 37 साल के बबलू के परिवार में उनकी पत्नी, मां और 4 साल की बेटी थी. वह 2000 में सीआरपीएफ में शामिल हो गए थे, जब वह उलुबेरिया कॉलेज में फर्स्ट ईयर के स्टूडेंट थे. बबलू सिर्फ साल भर में ही रिटायर होने वाले थे और उन्होंने सोचा था कि रिटायर होकर वह अपने परिवार के साथ समय बिताएंगे और कोई बिजनेस शुरू करेंगे. लेकिन पुलवामा में हुए आतंकी हमले में वह शहीद हो गए और अब रह गई हैं सिर्फ उनकी यादें. शहीद जवान बबलू के भतीजे ने बताया कि उन्होंने उसे भी सीआरपीएफ की तैयारी करने के लिए कहा था.

पुलवामा आतंकी हमले में पश्चिम बंगाल के सुदीप बिस्वास (बाएं) और बबलू संतरा भी थे.

सुदीप बिस्वास पश्चिम बंगाल के नादिया जिले के हशपुकुरिया के रहने वाले थे. अभी 5 साल पहले ही वह सीआरपीएफ में शामिल हुए थे. सुदीप के परिवार वाले बताते हैं कि वह जल्द ही घर आने वाले थे. उनकी छुट्टी भी मंजूर हो गई थी, लेकिन इस आतंकी हमले ने सुदीप बिस्वास की अपने मां-बाप से मिलने की ख्वाहिश अधूरी छोड़ दी, लेकिन आंखों में आंसू के साथ-साथ सभी को उनकी शहादत पर गर्व है.

2- शहीदों में 12 बेटे यूपी के

पुलवामा में हुए आंतकी हमले में सिर्फ उत्तर प्रदेश के 12 जवान शहीद हुए हैं. जैसे ही इस आतंकी हमले की खबर शहीदों के घरवालों को मिली, हर घर में कोहराम मच गया. चंदौली के शहीद अवधेश कुमार, इलाहाबाद के शहीद महेश कुमार, शामली के शहीद प्रदीप, वाराणसी के शहीद रमेश यादव, आगरा के शहीद कौशल कुमार यादव, उन्नाव के शहीद अजीत कुमार, कानपुर देहात के शहीद श्याम बाबू और कन्नौज के शहीद प्रदीप सिंह ने अपनी जान देश के लिए न्योछावर कर दी.

शहीदों में उन्नाव के रहने वाले अजित कुमार भी थे. पुलवामा के इस दिल दहलाने वाले हादसे से कुछ देर पहले ही उन्होंने अपनी पत्नी से बात की थी. पत्नी से बच्चे के स्कूल में होने वाली पैरेंट्स मीटिंग की बात बताई थी. पत्नी ने बताया- 'उन्होंने कहा था कि स्कूल में पैरेंट्स मीटिंग में तुम्हें ही जाना होगा, क्योंकि मैं तो सीमा पर हूं.'

3- बिहार के दो सपूत देश पर न्‍योछावर

इस आतंकी हमले में बिहार के 2 सपूत भी शहीद हो गए हैं. पहले हैं पटना के तारेगना निवासी हेड कांस्टेबल संजय कुमार सिन्हा और दूसरे हैं भागलपुर के कहलगांव निवासी रतन कुमार ठाकुर. रतन ठाकुर का परिवार मूल रूप से कहलगांव के आमंडंडा थाना के रतनपुर गांव का रहने वाला है.

संजय सिन्हा के पिता एक ओर तो अपने बेटे के वीरगति को प्राप्त हो जाने पर फख्र से सीना चौड़ा कर रहे हैं, लेकिन दूसरी ओर एक चिंता उन्हें खाए जा रही है. वह कहते हैं- शहीद संजय के परिवार की क्या हालत है इस पर सरकार को ध्यान देना चाहिए. बेटे की दो बच्चियां हैं, जिनकी शादी नहीं हुई है. परिवार गरीब है. संजय सिन्हा की शहादत पर सबको फख्र तो है, लेकिन अब चिंता ये है परिवार में कमाने वाला नहीं रहा तो अब जिंदगी कैसे कटेगी. हालांकि, इन सबके बावजूद उन्हें अपने बेटे की वीरगति पर फख्र है.

रतन ठाकुर (बाएं) और संजय सिन्हा तो वीरगति को प्राप्त हो गए.

शहीद जवान रतन ठाकुर के पिता कहते हैं- 'एक ही बेटा था, जिसे बेहद जतन से पाला था. मजदूरी की... जूस बेचा... कपड़े की फेरी लगाई. पढ़ाया-लिखाया. वह तो भारत माता की रक्षा में शहीद हो गया, लेकिन अब हम किसके सहारे जिएंगे?' गुरुवार दोपहर करीब डेढ़ बजे रतन ने अपनी पत्नी राजनंदनी को फोन किया था और कहा था कि वह लोग श्रीनगर जा रहे हैं, शाम तक पहुंच जाएंगे फिर बात करेंगे. शाम को फोन तो नहीं आया, लेकिन जब टीवी चलाई तो आतंकी हमले की खबर सुनकर दिल बैठ गया. रतन ठाकुर की पत्नी अभी गर्भवती हैं और एक 4 साल का बेटा भी है.

4- पंजाब के 4 शेर शहीद

इस आतंकी हमले में पंजाब के चार जवान शहीद हो गए हैं, जिनमें मोगा जिले के जैमाल सिंह, तरन तारन के सुखजिंदर सिंह, गुरदासपुर के मनिंदर सिंह अत्री और रोपड़ के कुलविंदर सिंह शामिल हैं. सुखजिंदर सिंह का 7 महीने का बेटा है. कुछ दिन पहले ही वह घर से ड्यूटी पर लौटे थे.

हमले में शहीद हुए 44 वर्षीय जैमाल सिंह उस बस के ड्राइवर थे, जिसे आतंकी हमले में धमाके से उड़ा दिया गया. पिता कहते हैं- बेटा देश के लिए शहीद हो गया, लेकिन सरकार को पाकिस्तान की कायराना हरकत के लिए उसे सबक सिखाना चाहिए. उनके घर में बुजुर्ग माता-पिता, पत्नी, 10 साल का बेटा और एक छोटा भाई है.

मनिंदर सिंह अत्री 13 फरवरी को ही छुट्टी के बाद ड्यूटी पर पहुंचे थे. पिता कहते हैं- 'बेटे ने जम्मू पहुंचते ही फोन किया था और अगले दिन ही शहीद हो गया. उसकी कमी हमेशा खलेगी, लेकिन उस पर हमें गर्व है.'

5- राजस्थान की मिट्टी के 5 लाल मिसाल बने

पुलवामा में गुरुवार को हुए फिदायीन हमले में शहीद हुए जवानों में राजस्थान के 3 सपूत भी शामिल हैं. इनमें कोटा के हेमराज मीणा, शाहपुरा के रोहिताश लांबा, भरतपुर के जीतराम गुर्जर, राजसमंद के नारायण गुर्जर और जैतपुर के भागीरथ सिंह शहीद हुए हैं. रोहिताश लांबा अमरसर थाना इलाके के गोविंदपुरा के निवासी थे और वे 2 साल पहले ही सेना में भर्ती हुए थे.

भागीरथ सिंह ने दो दिल पहले ही अपने पिता से कहा था कि वह जल्दी ही घर आने वाले हैं. पिता को खबर मिलने के बाद वह सदमे में चले गए हैं. उनके घर में पत्नी और दो बच्चे भी हैं. दो मासूमों को पत्नी की गोद में छोड़कर भागीरथ इस दुनिया से विदा हो गए हैं. परिवार दुख की घड़ी से गुजर रहा है, लेकिन ये भी समझता है कि देश की रक्षा में भागीरथ ने अपनी जान न्यौछावर की है.

दो मासूमों को पत्नी की गोद में छोड़कर भागीरथ इस दुनिया से विदा हो गए हैं.

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए इस आतंकी हमले में सीआरपीएफ के 37 जवान शहीद हो चुके हैं. जैश-ए-मोहम्मद ने इसकी जिम्मेदारी भी ले ली है और भारत सरकार ने सख्त कदम भी उठाने शुरू कर दिए हैं. इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल ये है कि शहीदों के परिवारों का अब क्या होगा? उनका जीवन कैसे चलेगा? ये जवान वीरगति को प्राप्त हो गए, लेकिन अपने पीछे छोड़ गए रोता-बिलखता परिवार और कुछ दर्द भरी कहानियां, जो हर किसी की आंखें नम कर दें.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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