• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

पैगंबर टिप्पणी विवाद: देश में हिंसा और पत्थरबाजी करने वाले क्या सच में 'बाहरी' हैं?

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 12 जून, 2022 10:41 PM
  • 12 जून, 2022 10:41 PM
offline
क्या ये कहना हास्यास्पद नहीं होगा कि दिल्ली की जामा मस्जिद पर इकट्ठा हुए लोग 'बाहरी' थे? उत्तर प्रदेश के कई जिलों में उग्र प्रदर्शन (Violent Protests) करने वालों को क्या बाहरी कहा जा सकता है? पश्चिम बंगाल में पत्थरबाजी करने वालों को क्या बाहरी कहा जाएगा?

तारीख : 10/6/22

स्थान : भारत के कई हिस्से

शुक्रवार यानी जुमा को दोपहर की नमाज के बाद अचानक ही दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, झारखंड, जम्मू-कश्मीर समेत कई राज्यों में नमाजी भड़क गए. भाजपा की निलंबित प्रवक्ता नूपुर शर्मा की पैगंबर मोहम्मद पर की गई कथित टिप्पणी को लेकर कई जगहों पर प्रदर्शनों ने पत्थरबाजी के बाद हिंसक रूप भी ले लिया. प्रदर्शनकारी मुस्लिमों ने नूपुर शर्मा के पुतले जलाए और उनकी गिरफ्तारी से लेकर फांसी तक दिए जाने की मांग की. खैर, इन सबके बीच दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम अहमद बुखारी ने कहा है कि 'जुमा की नमाज के बाद प्रदर्शन करने वाले लोग 'बाहरी' थे. और, उन्हें प्रदर्शन के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. प्रदर्शन करने वालों को वह नहीं जानते हैं. और, इसके बारे में पुलिस को जांच करनी चाहिए.'

जामा मस्जिद के इमाम अहमद बुखारी का बयान एक मासूम बच्चे की तरह नजर आता है. जब वह ये कहते हैं कि 'कल कुछ लोगों ने जरूर दिल्ली बंद करने की बात की थी. लेकिन, उसके लिए मना कर दिया गया था.' और, इस बात से भी इनकार नहीं करते हैं कि सोशल मीडिया पर दिल्ली बंद करने की मांग काफी तेजी से वायरल हो रही थी. क्या ये कहना हास्यास्पद नहीं होगा कि दिल्ली की जामा मस्जिद पर इकट्ठा हुए लोग 'बाहरी' थे? उत्तर प्रदेश के कई जिलों में उग्र प्रदर्शन करने वालों को क्या बाहरी कहा जा सकता है? पश्चिम बंगाल में पत्थरबाजी करने वालों को क्या बाहरी कहा जाएगा? और, इन तमाम लोगों को बाहरी कहने से क्या ये लोग मुस्लिम समुदाय से बाहर मान लिए जाएंगे?

प्रदर्शनकारी मुस्लिमों को बाहरी तत्व बताकर तमाम जिम्मेदार लोग केवल अपनी गर्दन बचाने की कोशिश कर रहे हैं.

सभ्यताओं की लड़ाई से लेकर...

तारीख : 10/6/22

स्थान : भारत के कई हिस्से

शुक्रवार यानी जुमा को दोपहर की नमाज के बाद अचानक ही दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, झारखंड, जम्मू-कश्मीर समेत कई राज्यों में नमाजी भड़क गए. भाजपा की निलंबित प्रवक्ता नूपुर शर्मा की पैगंबर मोहम्मद पर की गई कथित टिप्पणी को लेकर कई जगहों पर प्रदर्शनों ने पत्थरबाजी के बाद हिंसक रूप भी ले लिया. प्रदर्शनकारी मुस्लिमों ने नूपुर शर्मा के पुतले जलाए और उनकी गिरफ्तारी से लेकर फांसी तक दिए जाने की मांग की. खैर, इन सबके बीच दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम अहमद बुखारी ने कहा है कि 'जुमा की नमाज के बाद प्रदर्शन करने वाले लोग 'बाहरी' थे. और, उन्हें प्रदर्शन के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. प्रदर्शन करने वालों को वह नहीं जानते हैं. और, इसके बारे में पुलिस को जांच करनी चाहिए.'

जामा मस्जिद के इमाम अहमद बुखारी का बयान एक मासूम बच्चे की तरह नजर आता है. जब वह ये कहते हैं कि 'कल कुछ लोगों ने जरूर दिल्ली बंद करने की बात की थी. लेकिन, उसके लिए मना कर दिया गया था.' और, इस बात से भी इनकार नहीं करते हैं कि सोशल मीडिया पर दिल्ली बंद करने की मांग काफी तेजी से वायरल हो रही थी. क्या ये कहना हास्यास्पद नहीं होगा कि दिल्ली की जामा मस्जिद पर इकट्ठा हुए लोग 'बाहरी' थे? उत्तर प्रदेश के कई जिलों में उग्र प्रदर्शन करने वालों को क्या बाहरी कहा जा सकता है? पश्चिम बंगाल में पत्थरबाजी करने वालों को क्या बाहरी कहा जाएगा? और, इन तमाम लोगों को बाहरी कहने से क्या ये लोग मुस्लिम समुदाय से बाहर मान लिए जाएंगे?

प्रदर्शनकारी मुस्लिमों को बाहरी तत्व बताकर तमाम जिम्मेदार लोग केवल अपनी गर्दन बचाने की कोशिश कर रहे हैं.

सभ्यताओं की लड़ाई से लेकर नैरेटिव की जंग तक

दरअसल, गंगा-जमुनी तहजीब की बात करने वाले ये तमाम जिम्मेदार लोग इस हिंसा, पत्थरबाजी और अराजकता का ठीकरा इस्लाम के सिर नहीं आने देना चाहते हैं. क्योंकि, अगर ऐसा हो गया, तो देश के मुस्लिमों का एक वर्ग सीधे तौर पर मजहबी धर्मांधता से घिरा हुआ घोषित हो जाएगा. इन प्रदर्शनकारी मुस्लिमों को बाहरी तत्व बताकर तमाम जिम्मेदार लोग केवल अपनी गर्दन बचाने की कोशिश कर रहे हैं. जबकि, इन मुस्लिम प्रदर्शनकारियों में से एक भी पाकिस्तान या अन्य इस्लामिक देश से नहीं आया था. ये सभी इसी भारत देश के बाशिंदे हैं. धर्मनिरपेक्षता का नारा देने वाला मुस्लिमों का एक वर्ग खुलेआम लोगों के बीच भड़काऊ तकरीरें करता है. और, उनके अंदर की मजहबी कट्टरता को और बढ़ाता है.

कहना गलत नहीं होगा कि इंटरनेट की सर्वसुलभता ने रजा अकादमी, पीएफआई जैसे दर्जनों मुस्लिम संगठन, जो किसी समय खुलकर अपने प्रदर्शनों को अंजाम देते थे. अब उन्हें बेनकाब होने में समय नहीं लगता है. बात जम्मू-कश्मीर के किसी मौलाना के भड़काऊ भाषण देने की हो या कर्नाटक में नूपुर शर्मा के पुतले को फांसी देने की. पलक झपकते ही ये चीजें सोशल मीडिया पर वायरल हो जाती हैं. खैर, इसे किनारे रखिए. बीते साल तमिलनाडु के किसी हिस्से में मुस्लिमों के बहुसंख्यक होने पर हिंदुओं को त्योहार मनाने से रोकने का फैसला कर लिया जाता है. और, इस मामले में मद्रास हाईकोर्ट को फैसला देना पड़ता है. ऐसी खबरें भी अब धर्मनिरपेक्षता के नाम पर छिपी नहीं रहती हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो यह एक तरीके से सभ्यताओं की लड़ाई ही नजर आती है.

वहीं, गंगा-जमुनी तहजीब के पैरोकार कथित बुद्धिजीवी वर्ग के कुछ लोग भी ऐसी खबरों को अपने ही नजरिये से पेश करते रहते हैं. पैगंबर मोहम्मद पर कथित टिप्पणी विवाद में खुद को सेकुलर पत्रकार कहने वाले लोग स्थापित करने में लगे हुए हैं कि टीवी डिबेट्स में हिंदू धर्म का मजाक उड़ाने वाले इस्लाम के आलिम और मौलानाओं को जबरदस्ती बुलाया जाता है. इतना ही नहीं, ये तक बताया जा रहा है कि कुछ स्वघोषित फैक्ट चेकर इन मौलानाओं की हेट स्पीच के बारे में पहले से ही बताते रहे हैं. लेकिन, इन तमाम बातों के बीच वो ये बताना भूल जाते हैं कि ये तमाम मौलाना देश के अलग-अलग हिस्सों से आते हैं. और, ये भी बाहरी तत्व नहीं हैं. जो देश में रह रहे हैं और जहरीली सोच के मालिक हैं. वो अपने इलाकों में किस तरह का जहर फैलाते होंगे?

नमाज के बाद पत्थरबाजी या हिंसा किस किताब का हिस्सा?

जुमे की नमाज के बाद पत्थरबाजी या हिंसा का ये पहला मामला नहीं है. जम्मू-कश्मीर में पत्थरबाजी का इतिहास जुमे की नमाज के साथ ही जुड़ा हुआ है. हालांकि, अब कश्मीर में पत्थरबाजी पुरानी याद हो गई है. और, अब राज्य में हिंदुओं की टारगेट किलिंग को अंजाम दिया जाने लगा है. हां, ये जरूर कहा जा सकता है कि इसके लिए जुमे का इंतजार नहीं किया जाता है. वैसे, बीते हफ्ते कानपुर में हुई हिंसा भी शुक्रवार की नमाज के बाद ही भड़की थी. सीएए के खिलाफ प्रदर्शनों से लेकर तीन तलाक के खिलाफ तकरीरें जुमे के दिन ही दी जाती हैं. क्योंकि, इस दिन मस्जिदों में बड़ी संख्या में मुसलमान इकट्ठा होते हैं. लेकिन, इन तमाम बातों को अगर दरकिनार भी कर दिया जाए. तो, सबसे अहम सवाल यही है कि जुमे की नमाज के बाद पत्थरबाजी या हिंसा किस किताब का हिस्सा है? देश कानून और संविधान से चलता है. तो, प्रदर्शन कीजिए. लेकिन, पत्थरबाजी और हिंसा की जाहिलता का प्रदर्शन मत कीजिए.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲