• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

प्रियंका की कैंप पॉलिटिक्स तफरीह का मजा भले दे, UP में नतीजे तो देने से रही!

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 18 जुलाई, 2021 03:12 PM
  • 18 जुलाई, 2021 03:09 PM
offline
प्रियंका गांधी वाड्रा ने अपने यूपी दौरे (Priyanka Gandhi UP Visit) में बदसलूकी की शिकार अनिता यादव (Anita Yadav) से वैसे ही मुलाकात की है जैसे पहले हाथरस, उभ्भा या उन्नाव के पीड़ित परिवारों से मिलती रही हैं - कांग्रेस के पिटारे में बस इतना ही है क्या?

प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) ने भी उत्तर प्रदेश में अपने चुनाव अभियान की शुरुआत कर दी है. कांग्रेस का चुनाव अभियान बीजेपी के दो दिन बाद शुरू हुआ है.

बीजेपी की चुनावी मुहिम जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बनारस से शुरू किया, वैसे ही कांग्रेस की मुहिम प्रियंका गांधी ने लखनऊ से. मिलती जुलती एक बात ये भी है कि प्रधानमंत्री मोदी ने शुभारम्भ अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी से किया तो प्रियंका गांधी वाड्रा ने लखनऊ शहर से जहां उनके लिए एक घर भी रहने लायक तैयार किया गया है. दिल्ली का सरकारी बंगला खाली करने के बाद समझा जा रहा था कि यूपी चुनाव को देखते हुए प्रियंका गांधी लखनऊ शिफ्ट भी हो सकती हैं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

प्रियंका गांधी के लिए लखनऊ में घर तो तैयार हो गया, लेकिन रहने के लिए वो अभी तक तैयार नहीं हो पायी हैं. अब तक तो वो दिल्ली से ही यूपी (P Visit) की राजनीति करती आ रही हैं - कोविड 19 के दौर में वैसे भी विपक्षी राजनीति के लिए ले देकर ट्विटर ही सबसे बड़ा सहारा साबित हुआ है.

प्रधानमंत्री ने तो दिल्ली से जाकर मुख्यमंत्री के लिए वोट मांग और लौट आये, लेकिन प्रियंका गांधी वाड्रा भी अगर ऐसा ही करने की सोच रही हैं तो कांग्रेस को नफे नुकसान का भी पहले से ही अंदाजा हो जाना चाहिये.

लखनऊ वाले घर को प्रियंका गांधी वाड्रा ने अभी तक कैंप-ऑफिस के तरह ही इस्तेमाल किया है - और यही वजह है कि प्रियंका गांधी वाड्रा का यूपी दौरा भी कैंप-पॉलिटिक्स जैसा ही लग रहा है. राहुल गांधी के ऐसा करने पर भले ही उनके राजनीतिक विरोधी पॉलिटिकल टूरिज्म बताते फिरते हों, लेकिन प्रियंका गांधी के मामले में ये बात नहीं लागू होती क्योंकि प्रियंका गांधी सिर्फ कांग्रेस की प्रभारी महासचिव नहीं हैं, कांग्रेस नेता उनको यूपी में कांग्रेस के चेहरे के तौर पर पेश कर रहे हैं -

प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) ने भी उत्तर प्रदेश में अपने चुनाव अभियान की शुरुआत कर दी है. कांग्रेस का चुनाव अभियान बीजेपी के दो दिन बाद शुरू हुआ है.

बीजेपी की चुनावी मुहिम जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बनारस से शुरू किया, वैसे ही कांग्रेस की मुहिम प्रियंका गांधी ने लखनऊ से. मिलती जुलती एक बात ये भी है कि प्रधानमंत्री मोदी ने शुभारम्भ अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी से किया तो प्रियंका गांधी वाड्रा ने लखनऊ शहर से जहां उनके लिए एक घर भी रहने लायक तैयार किया गया है. दिल्ली का सरकारी बंगला खाली करने के बाद समझा जा रहा था कि यूपी चुनाव को देखते हुए प्रियंका गांधी लखनऊ शिफ्ट भी हो सकती हैं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

प्रियंका गांधी के लिए लखनऊ में घर तो तैयार हो गया, लेकिन रहने के लिए वो अभी तक तैयार नहीं हो पायी हैं. अब तक तो वो दिल्ली से ही यूपी (P Visit) की राजनीति करती आ रही हैं - कोविड 19 के दौर में वैसे भी विपक्षी राजनीति के लिए ले देकर ट्विटर ही सबसे बड़ा सहारा साबित हुआ है.

प्रधानमंत्री ने तो दिल्ली से जाकर मुख्यमंत्री के लिए वोट मांग और लौट आये, लेकिन प्रियंका गांधी वाड्रा भी अगर ऐसा ही करने की सोच रही हैं तो कांग्रेस को नफे नुकसान का भी पहले से ही अंदाजा हो जाना चाहिये.

लखनऊ वाले घर को प्रियंका गांधी वाड्रा ने अभी तक कैंप-ऑफिस के तरह ही इस्तेमाल किया है - और यही वजह है कि प्रियंका गांधी वाड्रा का यूपी दौरा भी कैंप-पॉलिटिक्स जैसा ही लग रहा है. राहुल गांधी के ऐसा करने पर भले ही उनके राजनीतिक विरोधी पॉलिटिकल टूरिज्म बताते फिरते हों, लेकिन प्रियंका गांधी के मामले में ये बात नहीं लागू होती क्योंकि प्रियंका गांधी सिर्फ कांग्रेस की प्रभारी महासचिव नहीं हैं, कांग्रेस नेता उनको यूपी में कांग्रेस के चेहरे के तौर पर पेश कर रहे हैं - हो सकता है राहुल गांधी किसी शुभ मुहूर्त में प्रियंका गांधी को मुख्यमंत्री का चेहरा भी घोषित कर दें. पांच साल पहले ही चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर कांग्रेस नेतृत्व को ऐसी सलाह दे चुके हैं.

अब अगर प्रियंका गांधी ही चेहरा हैं तो यूपी में छोटे छोटे दौरे कर क्या हासिल कर सकती हैं - जब तक लोगों को कांग्रेस महासचिव ये यकीन नहीं दिला देतीं कि वो राजनीतिक तफरीह से कहीं आगे की सोच रही हैं और यूपी की राजनीति को लेकर गंभीर भी हैं, तब तक कांग्रेस को किसी तरह की उम्मीद नहीं पालनी चाहिये - और न ही लोगों को गुमराह करने की कोशिश करनी चाहिये.

मकान देखने गयी हैं या कांग्रेस का घर संवारने

प्रियंका गांधी के यूपी दौरे में एक खास पैटर्न देखने को मिलता है - और बिलकुल वही इस बार भी देखने को मिला है. रैली और पब्लिक मीटिंग तो कांग्रेस महासचिव बनने के बाद वो अपने पहले दौरे में भी नहीं कर पायी थीं. फरवरी, 2019 में वो राहुल गांधी के साथ लखनऊ पहुंची थीं और जब भी बोलने का मौका आया राहुल गांधी ही मोर्चा संभाले रहे. तभी पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर आतंकवादी हमला हो गया और प्रियंका गांधी को बीच में ही दौरा रद्द कर दिल्ली लौटना पड़ा था.

आम चुनाव के बाद से प्रियंका गांधी वाड्रा अपने हर दौरे में किसी न किसी पीड़ित के पास पहुंचती हैं, बात करती हैं, गले लगाती हैं और संघर्ष में हमेशा साथ देने का वादा करती हैं - और फिर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को टारगेट करते हुए बीजेपी पर हमला बोल देती हैं.

कांग्रेस के यूपी चुनाव मुहिम की शुरुआत भी प्रियंका गांधी वाड्रा ने पहले के अपने हाथरस, उभ्भा और उन्नाव दौरों की तरह ही की है

प्रियंका गांधी के हर यूपी दौरे में ऐसे ही सीन नजर आते हैं, चाहे वो सोनभद्र के उभ्भा गांव को नरसंहार पीड़ित हों, उन्नाव में रेप की शिकार पीड़ित के परिवार वाले हों या फिर हाथरस का पीड़ित परिवार. जैसे CAA-NRC विरोधी प्रदर्शनों में पुलिस एक्शन के शिकार लोगों को ढाढ़स बंधाती रहीं, लखीमपुर खीरी पहुंच कर भी अनीता यादव (Anita Yadav) के साथ प्रियंका गांधी भविष्य में हमेशा खड़े रहने का वादा किया - और यूपी की महिलाओं के साथ साथ देश की महिलाओं के सपोर्ट का भरोसा दिलाया.

अनिता यादव के साथ बदसलूकी का वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस उपाधीक्षक सहित इलाके के कई पुलिस अफसरों को सस्पेंड कर दिया गया था. अनीता यादव ब्लॉक प्रमुख पद की समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार की प्रस्तावक थी, लेकिन रास्ते में रोक कर ही उनके साथ दुर्व्यवहार हुआ - उनकी साड़ी खींची गयी और हाथ भी पकड़ा गया ता.

अनीता यादव से मिलने के बाद प्रियंका गांधी वाड्रा ने बीजेपी को निशाने पर लेते हुए ट्विटर पर बयान जारी किया - "लोकतंत्र का चीरहरण करने वाले भाजपा के गुंडे कान खोलकर सुन लें, महिलाएं प्रधान, ब्लॉक प्रमुख, विधायक, सांसद, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री बनेंगी और उनपर अत्याचार करने वालों को शह देने वाली सरकार को शिकस्त देंगी... पंचायत चुनाव में भाजपा द्वारा की गयी हिंसा की शिकार अपनी सभी बहनों, नागरिकों के न्याय के लिए मैं राज्य चुनाव आयोग को पत्र लिखूंगी."

कांग्रेस के पास ये कहने का मौका है कि प्रधानमंत्री तो बनारस में पांच घंटे ही रहे, लेकिन प्रियंका गांधी का तो तीन दिन का दौरा रहा. बहुत अच्छी बात है, लेकिन क्या प्रियंका गांधी भी किसी और के लिए वोट मांगने गयी थीं? अगर नहीं तो क्या मकान देखने गयी थीं जबकि कांग्रेस का घर संवारने की जरूरत है. चुनाव के ऐन पहले यूपी कांग्रेस को बीजेपी ने जितिन प्रसाद को झटक लिया है - क्या मालूम प्रियंका गांधी की टीम के और कितने लोग बीजेपी के संपर्क में हों?

अगर प्रियंका गांधी वाड्रा भी राहुल गांधी की तरह निडर और डरपोक नेताओं की फेहरिस्त तैयार करने लगीं तो समझो कांग्रेस का कल्याण हो गया - क्योंकि राहुल गांधी 2024 या हो सकता है 2029 के हिसाब से तैयारी कर रहे हों, लेकिन प्रियंका गांधी वाड्रा के सामने तो 2022 की चुनौती है.

अगर कांग्रेस के लिए प्रियंका कुछ करना चाहें ...

यूपी से कांग्रेस को नतीजे चाहिये तो लखनऊ में रहना ही होगा, तभी राजनीति होगी. अगर नहीं तो असम चुनाव वाला हाल होकर रह जाएगा. प्रियंका गांधी हाल के असम विधानसभा चुनाव में भी काफी सक्रिय देखी गयी थीं, लेकिन देश के राजनीतिक मिजाज के हिसाब से असम और यूपी की तुलना नहीं हो सकती.

फर्ज कीजिये अमित शाह भी कोलकाता में खूंटा गाड़ के बैठ गये होते - तो भी क्या पश्चिम बंगाल चुनाव के नतीजे ऐसे ही होते? बहुत संभावना थी कि अलग हो सकते थे. ज्यादा कुछ नहीं तो कम से कम अमित शाह, ममता बनर्जी के चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर को तो झूठा तो साबित कर ही दिये होते.

वैसे खूंटा गाड़ कर बैठने वाला डायलाग अरविंद केजरीवाल का है, लेकिन अब तक तो ऐसा ही लगता है कि वो सिर्फ दिल्ली के ही अमित शाह हैं. दिल्ली में अमित शाह को भी अरविंद केजरीवाल फेल कर देते हैं, लेकिन ठीक वैसे ही बाकी जगह गोल हो जाते हैं. गोल होने से मतलब उपलब्धियों के जीरो बैलेंस से ही है.

2014 के आम चुनाव से काफी पहले ही अमित शाह यूपी में खूंटा गाड़ कर बैठ गये थे - नतीजे देखे आपने बीजेपी को कितने मार्क्स मिले थे. 2017 में अहमदाबाद में वैसे ही खूंटा गाड़ कर बैठ गये थे. मंत्रियों को भी गली मोहल्लों तक घुमा रहे थे. प्रधानमंत्री मोदी को भी मोर्चे पर तैनात कर दिये थे - नतीजे तो आपने देखे ही. राजनीति में मौके पर मौजूद रहने का यही फर्क होता है.

मोदी सरकार में होने के कारण अमित शाह के लिए पश्चिम बंगाल में ऐसा करना संभव नहीं था. दिल्ली से जो कुछ कर सकते थे कोई कसर तो छोड़ी नहीं. लॉकडाउन के उल्लंघन के लिए जांच टीम भेजी ही. नोटिस पर नोटिस भेजते ही रहे. कभी नड्डा की सिक्योरिटी वाले आईपीएस अफसरों को बुलाने का आदेश भेजा तो कभी चीफ सेक्रेट्र्री को ही दिल्ली तलब कर लेने वाला ऑर्डर. और कुछ हो न हो ममता बनर्जी को छकाते तो रहे ही. ममता कुछ और करतीं उसकी जगह रिस्पॉन्ड करने में वक्त और ऊर्जा जाया करने को मजबूर तो हुईं ही.

अब अगर प्रियंका गांधी जो काम तीन दिन के दौरे में कर रही हैं - लखनऊ में डेरा डाल कर रोज करने लगें तो क्या नजारा बदल नहीं जाएगा? योगी आदित्यनाथ के लिए मुसीबत होगी ही - क्या अखिलेश यादव और मायावती को वर्क फ्रॉम होम पॉलिटिक्स वाले मोड से बाहर नहीं आना पड़ेगा?

FIR में प्रियंका का नाम क्यों नहीं?

लखनऊ पहुंचते ही प्रियंका गांधी हजरतगंज की गांधी प्रतिमा के पास पहुंचीं और मौन धरना शुरू कर दीं. यूपी पुलिस ने धरने को लेकर 500 से ज्यादा कांग्रेस कार्यकर्ताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है. एफआईआर में इन लोगों के खिलाफ कोविड प्रोटोकॉल के उल्लंघन से लेकर सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का भी इल्जाम है. लखनऊ पुलिस के मुताबिक, कांग्रेस की तरफ से सिर्फ 10 मिनट के कार्यक्रम और माल्यार्पण की अनुमति ली गयी थी.

पुलिस की FIR में यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू, वेदप्रकाश त्रिपाठी, दिलप्रीत सिंह जैसे नेताओं के नाम तो हैं, लेकिन कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा को आरोपी नहीं बनाया गया है - सबसे बड़ी हैरानी की बात भी यही.

सवाल ये है कि जब प्रियंका गांधी ने ही धरने का नेतृत्व किया और वहां मौन धरना दिया भी - और उसी को लेकर पुलिस ने एफआईआर दर्ज की तो प्रियंका गांधी से परहेज की वजह क्या रही?

लगभग हर मामले में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पुलिस एनकाउंटर वाले मिजाज में भी एक्शन लेते नजर आती है - क्या प्रियंका गांधी वाड्रा से यूपी पुलिस को डर लगता है?

इन्हें भी पढ़ें :

मायावती का अनुभव कमज़ोर कर रहा अखिलेश की मीठी छुरी की धार

कावड़ यात्रा पर योगी और धानी के अलग-अलग फैसलों का अर्थ समझिए...

प्रियंका गांधी वाड्रा के संकटमोचक बनने पर भी कांग्रेस में छाए हैं संकट के बादल


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲