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मोदी के खिलाफ लड़ें न लड़ें, प्रियंका ने माहौल बनाकर ज्यादा पा लिया है

    • आईचौक
    • Updated: 15 अप्रिल, 2019 08:44 PM
  • 15 अप्रिल, 2019 08:44 PM
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अभी तो कांग्रेस में भी किसी को ऐसा भरोसा होगा कि प्रियंका गांधी वाड्रा वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हरा देंगी. अगर सिर्फ चैलेंज ही करना महत्वपूर्ण है तो प्रियंका की जितनी चर्चा हुई है वो कम नहीं है.

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने हंसी खेल में वाराणसी से चुनाव लड़ने को लेकर जो माहौल बनाया है वो जबरदस्त है. राहुल गांधी के अमेठी के साथ साथ वायनाड से चुनाव लड़ने की सूरत में पहले ही ये खबर आयी थी कि प्रियंका वाराणसी से कांग्रेस उम्मीदवार हो सकती हैं.

प्रियंका गांधी वाड्रा चुनाव लड़ेंगी और प्रधानमंत्री मोदी को कितना टक्कर देंगी, ये सब बात की बातें हैं. सिर्फ चुनाव लड़ने की चर्चा कराकर प्रियंका वाड्रा ने जो बहस छेड़ी है उससे इतना कुछ मिल चुका है जो जरूरी नहीं चुनाव लड़ने पर हासिल हो पाये.

माहौल तो चैलेंज करने जैसा ही है!

हो सकता है आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल को भी ये आत्मविश्वास रहा हो कि वो मोदी को भी हरा ही देंगे. दिल्ली में 15 साल से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कुंडली मार कर बैठीं शीला दीक्षित को न सिर्फ सत्ता से बेदखल करना बल्कि उन्हीं की सीट पर चुनाव हरा देने के बाद तो किसी को भी अति आत्मविश्वास हो सकता है. गुजरात से वाराणसी पहुंचे मोदी को बीजेपी के गढ़ में जीत लगभग निश्चित ही थी, लेकिन हरियाणा और दिल्ली से पहुंचे अरविंद केजरीवाल को जो वोट मिले वो कम भी न थे. बुरा हाल तो कांग्रेस उम्मीदवार अजय राय का हुआ. 2009 में करीब सवा लाख वोट पाने वाले अजय राय 75 हजार पर ही सिमट गये.

महत्वपूर्ण ये नहीं है कि प्रियंका गांधी वाराणसी से चुनाव लड़ती हैं या नहीं - ये भी कम है क्या कि वो लगातार इस वजह से अलग से सुर्खियों में बनी हुई हैं. वाराणसी में भी मीडिया से लेकर गली मोहल्लों और चाय-पान की दुकानों तक सब जगह लोग अपने अपने तरीके से विश्लेषण करने लगे हैं.

मोदी को तो मां गंगा ने बुलाया था, प्रियंका को?

नतीजे जो भी हों ये भी कम तो नहीं कि बगैर उम्मीदवारों की सूची में नाम आये, बगैर...

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने हंसी खेल में वाराणसी से चुनाव लड़ने को लेकर जो माहौल बनाया है वो जबरदस्त है. राहुल गांधी के अमेठी के साथ साथ वायनाड से चुनाव लड़ने की सूरत में पहले ही ये खबर आयी थी कि प्रियंका वाराणसी से कांग्रेस उम्मीदवार हो सकती हैं.

प्रियंका गांधी वाड्रा चुनाव लड़ेंगी और प्रधानमंत्री मोदी को कितना टक्कर देंगी, ये सब बात की बातें हैं. सिर्फ चुनाव लड़ने की चर्चा कराकर प्रियंका वाड्रा ने जो बहस छेड़ी है उससे इतना कुछ मिल चुका है जो जरूरी नहीं चुनाव लड़ने पर हासिल हो पाये.

माहौल तो चैलेंज करने जैसा ही है!

हो सकता है आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल को भी ये आत्मविश्वास रहा हो कि वो मोदी को भी हरा ही देंगे. दिल्ली में 15 साल से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कुंडली मार कर बैठीं शीला दीक्षित को न सिर्फ सत्ता से बेदखल करना बल्कि उन्हीं की सीट पर चुनाव हरा देने के बाद तो किसी को भी अति आत्मविश्वास हो सकता है. गुजरात से वाराणसी पहुंचे मोदी को बीजेपी के गढ़ में जीत लगभग निश्चित ही थी, लेकिन हरियाणा और दिल्ली से पहुंचे अरविंद केजरीवाल को जो वोट मिले वो कम भी न थे. बुरा हाल तो कांग्रेस उम्मीदवार अजय राय का हुआ. 2009 में करीब सवा लाख वोट पाने वाले अजय राय 75 हजार पर ही सिमट गये.

महत्वपूर्ण ये नहीं है कि प्रियंका गांधी वाराणसी से चुनाव लड़ती हैं या नहीं - ये भी कम है क्या कि वो लगातार इस वजह से अलग से सुर्खियों में बनी हुई हैं. वाराणसी में भी मीडिया से लेकर गली मोहल्लों और चाय-पान की दुकानों तक सब जगह लोग अपने अपने तरीके से विश्लेषण करने लगे हैं.

मोदी को तो मां गंगा ने बुलाया था, प्रियंका को?

नतीजे जो भी हों ये भी कम तो नहीं कि बगैर उम्मीदवारों की सूची में नाम आये, बगैर नामांकन दाखिल किये चर्चा इस बात पर हो रही है की प्रियंका गांधी मोदी को चैलेंज करेंगी तो क्या होगा? चुनाव लड़ने की स्थिति में भी यही चर्चा होती. ये तो वही हुआ - 'हींग लगे न फिटकरी और रंग चोखा'. भला अब और क्या और कितना चाहिये?

प्रियंका की रणनीति देखिये

प्रियंका ने चुनाव लड़ने की चर्चा जिस तरीके से आगे बढ़ायी है वो तो किसी जुमले से भी ज्यादा असरदार लग रहा है. चुनाव बाद न तो कोई सवाल खड़े कर सकता है और न ही किसी को खारिज करने के लिए जुमला बताने की जरूरत होगी. जब 15-15 लाख की चर्चा भर से चुनावों में बड़ा फायदा हो सकता है तो क्या प्रियंका के बनारस से चुनाव लड़ने पर चर्चा का भी कुछ न कुछ फायदा मिल ही सकता है?

अभी तक एक बार भी प्रियंका वाड्रा ने गंभीर होकर चुनाव लड़ने पर कोई बयान नहीं दिया है. सवाल होते हैं और जवाब में प्रियंका सिर्फ इतना कहती हैं - "क्यों नहीं लड़ सकते. कोई भी लड़ सकता है. आप भी लड़ सकते हो.'

ये क्या बात हुई? चुनाव लड़ना कोई हंसी मजाक की बात है क्या? वो भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके संसदीय क्षेत्र से चुनौती देने की बात. ये तो गजब है - लेकिन सच तो ये है कि इसके मायने राजनीतिक तौर पर बेहद अहम हैं.

प्रियंका ने बड़ी बुद्धिमानी से चुनाव लड़ने की बात अमेठी से शुरू की. चुनाव लड़ने को लेकर सवाल उठा तो कहा - 'पार्टी चाहेगी तो जरूर लड़ेंगे.' रायबरेली पहुंचकर उसी चर्चा को पूरी चतुरायी से एक धक्का और देकर आगे कर दिया - 'वाराणसी से लड़ जाऊं क्या?'

मार्केट में अब नया बयान भी आ ही गया है - 'कांग्रेस चाहेगी तो वाराणसी से जरूर लड़ेंगे.'

प्रियंका के बयान को सोनिया गांधी और राहुल गांधी के बयानों से समझने की कोशिश की जा सकती है. बहुत पहले चुनाव लड़ने के सवाल पर सोनिया गांधी का कहना था - 'अगर कांग्रेस तय करेगी कि चुनाव लड़ना है तो लड़ेंगे.' ऐसा ही जवाब राहुल गांधी का भी रहा. वायनाड के सवाल पर राहुल गांधी ने भी फैसला कांग्रेस पार्टी पर ही छोड़ दिया था - और अब तो वायनाड और अमेठी से नामांकन भी दाखिल कर चुके हैं.

क्या सोनिया और राहुल गांधी की ही तरह प्रियंका के बयान को भी स्पष्ट संकेत के रूप में नहीं समझा जा सकता? अगर ऐसा है तो तय मान कर चलना चाहिये कि प्रिंयका वाड्रा का वाराणसी से टिकट फाइनल है, सिर्फ उम्मीदवारी की घोषणा का इंतजार है.

आज तक ने सूत्रों से मिली जानकारी के आधार पर खबर दी है कि प्रियंका ने खुद चुनाव लड़ने के लिए हामी भर दी है - लेकिन इस बारे में अंतिम फैसला कांग्रेस अध्यक्ष और उनके भाई राहुल गांधी और मां सोनिया गांधी को लेना है.

वैसे बनारसी गपशप में प्रियंका गांधी वाड्रा के वाराणसी से चुनाव लड़ने को लेकर कुछ लोग इसे अधपकी खिचड़ी बता रहे हैं तो कुछ का कहना है कि अभी सिर्फ चूल्हा जला है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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