• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

नरेंद्र मोदी को बनारस में हराना राहुल गांधी का दिवास्वप्न क्यों है

    • आईचौक
    • Updated: 11 अप्रिल, 2018 03:55 PM
  • 11 अप्रिल, 2018 03:55 PM
offline
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हराने के लिए राहुल गांधी जी तोड़ मेहनत करते नजर आ रहे हैं. राहुल को लगता है कि यदि पूरा विपक्ष एकजुट हो जाए तो बड़ी ही आसानी के साथ मोदी लहर को आसानी से पीछे ढकेला जा सकता है.

हाल ही में बेंगलुरु की एक चुनावी सभा में कांग्रेस पार्टी के युवराज 'राहुल गांधी' ने एक भविष्यवाणी की. अगर पूरा विपक्ष मिल जाए तो देश के प्रधान सेवक को उनकी लोकसभा सीट पर 2019 में पटखनी दी जा सकती है. जिस काशी की धरती ने 2014 में हर-हर मोदी, घर-घर मोदी का नारा दिया, जिसने दिल्ली से चल के आए देश के तथाकथित सबसे ईमानदार नेता अरविंद केजरीवाल को नकार दिया उसी काशी में राहुल गांधी, देश के सबसे लोकप्रिय नेता को हराने का दिवास्वप्न देख रहे हैं. गोरखपुर के नतीजे विपक्ष को और खासकर कांग्रेस पार्टी को अति-आत्मविश्वास के चंगुल में धकेल चुके हैं. आज एक जागरूक राजनीतिक दर्शक होने के नाते सबको मालूम है कि गोरखपुर में किसने और क्यों हराया?

राहुल गांधी देश के सबसे लोकप्रिय नेता को हराने का दिवास्वप्न देख रहे हैं

बनारस का गणित

1991 की हिन्दू लहर के बाद से एक चुनाव को छोड़कर वाराणसी संसदीय सीट हमेशा भारतीय जनता पार्टी के पास रही है. 2014 में इस सीट की चर्चा पूरे देश में हुई क्योंकि इस बार लड़ने वाला खुद बीजेपी का प्रधानमंत्री उम्मीदवार था और लगभग एक दशक से सबसे चर्चित राजनेता था. चुनाव तब और रोचक हो गया जब आम आदमी पार्टी के मुखिया दिल्ली से चलकर काशी की धरती पर राजनीतिक मोक्ष की तलाश में आए. कांग्रेस ने स्थानीय और लोकप्रिय नेता अजय राय को अपना उम्मीदवार बनाया था. बहरहाल 16 मई 2014 के आए नतीजों में नरेंद्र मोदी ने अपने प्रतिद्वंदी अरविन्द केजरीवाल को 3 लाख 71 हजार से अधिक वोटों से हराया. जहां मोदी को 5 लाख 81 हजार वोट प्राप्त हुए वहीं केजरीवाल को 2 लाख 10 हज़ार वोट मिले. कांग्रेस के उम्मीदवार अजय राय को मात्र 75 हजार वोट मिले.   

हाल ही में बेंगलुरु की एक चुनावी सभा में कांग्रेस पार्टी के युवराज 'राहुल गांधी' ने एक भविष्यवाणी की. अगर पूरा विपक्ष मिल जाए तो देश के प्रधान सेवक को उनकी लोकसभा सीट पर 2019 में पटखनी दी जा सकती है. जिस काशी की धरती ने 2014 में हर-हर मोदी, घर-घर मोदी का नारा दिया, जिसने दिल्ली से चल के आए देश के तथाकथित सबसे ईमानदार नेता अरविंद केजरीवाल को नकार दिया उसी काशी में राहुल गांधी, देश के सबसे लोकप्रिय नेता को हराने का दिवास्वप्न देख रहे हैं. गोरखपुर के नतीजे विपक्ष को और खासकर कांग्रेस पार्टी को अति-आत्मविश्वास के चंगुल में धकेल चुके हैं. आज एक जागरूक राजनीतिक दर्शक होने के नाते सबको मालूम है कि गोरखपुर में किसने और क्यों हराया?

राहुल गांधी देश के सबसे लोकप्रिय नेता को हराने का दिवास्वप्न देख रहे हैं

बनारस का गणित

1991 की हिन्दू लहर के बाद से एक चुनाव को छोड़कर वाराणसी संसदीय सीट हमेशा भारतीय जनता पार्टी के पास रही है. 2014 में इस सीट की चर्चा पूरे देश में हुई क्योंकि इस बार लड़ने वाला खुद बीजेपी का प्रधानमंत्री उम्मीदवार था और लगभग एक दशक से सबसे चर्चित राजनेता था. चुनाव तब और रोचक हो गया जब आम आदमी पार्टी के मुखिया दिल्ली से चलकर काशी की धरती पर राजनीतिक मोक्ष की तलाश में आए. कांग्रेस ने स्थानीय और लोकप्रिय नेता अजय राय को अपना उम्मीदवार बनाया था. बहरहाल 16 मई 2014 के आए नतीजों में नरेंद्र मोदी ने अपने प्रतिद्वंदी अरविन्द केजरीवाल को 3 लाख 71 हजार से अधिक वोटों से हराया. जहां मोदी को 5 लाख 81 हजार वोट प्राप्त हुए वहीं केजरीवाल को 2 लाख 10 हज़ार वोट मिले. कांग्रेस के उम्मीदवार अजय राय को मात्र 75 हजार वोट मिले.   

आज विकास के मार्ग पर है काशी

वहीं सपा को 45 हज़ार और बसपा को 60 हज़ार से कुछ अधिक वोट मिले थे. अगर ऐसे में कांग्रेस, सपा और बसपा का वोट मिला भी दिया जाए तो केजरीवाल की बराबरी भी नहीं कर पा रहे हैं. राहुल गांधी जब पूरे विपक्ष की बात बोल रहे हैं और अगर उनके विपक्ष में आम आदमी पार्टी भी शामिल है, सबके मिल जाने के बावजूद मोदी काशी का किला फतह कर रहे थे. गोरखपुर चुनाव में बीजेपी की हार के बाद राहुल गांधी कुछ ज़्यादा ही उत्साहित नजर आ रहे हैं. 82% हिन्दू जनसंख्या वाले सीट पर 'हिन्दू ह्रदय सम्राट' को चुनौती देना टेढ़ी खीर लगता है.

काशी क्योटो नहीं बन पाया

नरेंद्र मोदी जब बनारस से चुनकर आए तो उन्होंने काशी को 'क्योटो' बनाने का वादा किया था. आज लगभग 4 वर्षों के बाद अगर देखा जाये तो बनारस कहीं से भी क्योटो नहीं लगता. लेकिन एक बात तो है कि देश की आध्यात्मिक राजधानी आज विकास के मार्ग पर धीरे ही सही लेकिन दौड़ रही है. बनारस के घाटों के सौंदर्यीकरण से लेकर रिंग रोड और भूमिगत बिजली के तारों तक, आज बहुत हद तक काशी की तस्वीर बदल चुकी है. काशी में विदेशी पर्यटकों की संख्या में पहले से ज़बरदस्त इज़ाफ़ा हुआ है. कभी कूड़े के ढेर पे बैठा शहर आज पूरे राज्य में सबसे साफ़-सुथरा शहरों में अपना नाम दर्ज़ करवा चुका है. कैंसर के अस्पताल से लेकर बुनकरों को नयी तकनीक देने तक, नरेंद्र मोदी ने पिछले विगत वर्षों में काशी की जनता का खास ख्याल रखा है.

अगर राहुल गांधी को ये लगता है कि मोदी बनारस को क्योटो नहीं बना पाए और इस मुद्दे के दम पर वो मोदी को हराने का ख्वाब देख रहे हैं तो ये कहीं न कहीं उनकी राजनीतिक नादानी को दर्शाता है. ऐसे में तो गांधी परिवार को अमेठी और रायबरेली पर कब का अपना दावा छोड़ देना चाहिए था. जर्जर सड़कें, स्वाथ्य सुविधाओं का अभाव और बुनियादी सुविधाओं की कमी यही तो अमेठी और रायबरेली की पहचान रही है.

कुछ आंकड़ों के जरिये समझते हैं इन सीटों की तथाकथित विकास गाथा.

साक्षरता दर

रायबरेली : 68%

अमेठी : 64%

झाँसी : 75%

इटावा : 78%

बीपीएल परिवार

रायबरेली : 3,29,000

अमेठी : 4,07,000

झाँसी :  72,000

इटावा : 1,12,000

सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज

रायबरेली : 1

अमेठी : 0

झाँसी : 3

इटावा  : 1

सरकारी मेडिकल कॉलेज

रायबरेली : 0

अमेठी : 0

झाँसी : 1

इटावा : 1  

(सोर्स- इंडिया टुडे)

दरअसल राहुल गांधी को ये मालूम नहीं है कि आज का मतदाता समझदार हो चुका है. वो जानता है कि उनके नेताओं के वादों और जमीनी हकीकत में जमीन-आसमान का अंतर होता है. हो सकता है कि काशी को क्योटो बनाना नरेंद्र मोदी के बाकी जुमलों की तरह हो और समय आने पर जनता उसका भी हिसाब करेगी. फिलहाल इतना तो तय है कि इन चार वर्षों में काशी जितना बदला है उससे कई गुना ज्यादा बदलना अभी बाकी है.

खैर चुनाव नजदीक आ चुके हैं. नेताओं के अपने-अपने दावे होंगे. हमें उनके वादों और दावों का ईमानदारी से विश्लेषण करना होगा ताकि जुमलों और फिज़ूल के तर्कों से बचा जा सके. ऐसे में अगर देश की जनता राजनीतिक दिग्गजों को अपने मत की ताक़त से कोई कड़ा सन्देश देती है, चाहे वो कोई भी हो तो यकीन मानिए उसी दिन देश की राजनीति में राम-राज्य का पदार्पण तय है और विकास की गंगा अविरल बहेगी.

कंटेंट- विकास कुमार (इंटर्न- इंडिया टुडे)

ये भी पढ़ें-

2013 के सबक 2018 में पढ़कर राहुल गांधी टॉपर कैसे बनेंगे

राहुल गांधी को अब गुजरात टेस्ट में पास कांग्रेस नेताओं का ही साथ पसंद है

वो बातें जो 2019 चुनाव के चलते सालभर होंगी...


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲