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Modi-US visit: अमेरिका में पीएम मोदी के लिए इन पांच मुद्दों को उठाना जरूरी है!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 23 सितम्बर, 2021 09:42 PM
  • 23 सितम्बर, 2021 09:42 PM
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अमेरिका यात्रा के दौरान पीएम मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन (Modi-Biden meeting) के अलावा ऑस्ट्रेलिया और जापान के शासनाध्यक्षों के साथ कई मुद्दों पर चर्चा करेंगे. आइये उन पांच चुनौतियों पर नजर डाली जाए जिनका सामना भारत अपने अमेरिका दौरे के दौरान करेगा.

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने तीन दिवसीय दौरे के सिलसिले में अमेरिका (Modi S visit) में हैं. वह 25 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के 76वें सत्र को संबोधित करेंगे. प्रधानमंत्री पीएम मोदी की अमेरिकी यात्रा कई द्विपक्षीय और बहुपक्षीय बैठकों से भरी हुई है, जिसमें सबसे खास है प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति जो बाइडेन (Modi-Biden meeting) के बीच मुलाकात. जैसा कि ज्ञात है पीएम मोदी अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के शासनाध्यक्षों के साथ कई अहम मुद्दों पर चर्चा करेंगे, आइये उन पांच चुनौतियों पर एक नजर डाली जाए जिनका सामना भारत अपने अमेरिका दौरे के दौरान कर सकता है.

तमाम चुनौतियां हैं जिनका सामना पीएम मोदी को अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान करना पड़ेगा

क्वाड 

Quadrilateral Security Dialogue, जिसे क्वाड के नाम से भी जाना जाता है, ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका का रणनीतिक सहयोग है. कह सकते हैं कि क्वाड भारत के प्रमुख नीतिगत फोकस के रूप में उभरा है.

24 सितंबर को औपचारिक क्वाड वार्ता से पहले, पीएम मोदी ऑस्ट्रेलिया के क्वाड नेताओं स्कॉट मॉरिसन, जापान के योशीहिदे सुगा और अमेरिका के जो बाइडेन से मुलाकात करेंगे.

क्वाड बैठक अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के बीच परमाणु पनडुब्बियों के लिए एक हैरत में डालने वाले AKS सौदे के बाद हो रही है. इस सौदे में अमेरिका से ऑस्ट्रेलिया को अत्यधिक संवेदनशील तकनीक का हस्तांतरण शामिल है. इस सौदे ने काफी तनाव भी पैदा किया है, ध्यान रहे पहले ऑस्ट्रेलिया ने सौदा फ्रांस के साथ किया था और उसे रद्द करके उसने फ़्रांस को बड़ा झटका दिया है. कहा जा रहा है कि ऑस्ट्रेलिया के इस रुख से फ़्रांस को अरबों का नुकसान हुआ है.

चूंकि नुकसान हो चुका है इसलिए फ्रांस...

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने तीन दिवसीय दौरे के सिलसिले में अमेरिका (Modi S visit) में हैं. वह 25 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के 76वें सत्र को संबोधित करेंगे. प्रधानमंत्री पीएम मोदी की अमेरिकी यात्रा कई द्विपक्षीय और बहुपक्षीय बैठकों से भरी हुई है, जिसमें सबसे खास है प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति जो बाइडेन (Modi-Biden meeting) के बीच मुलाकात. जैसा कि ज्ञात है पीएम मोदी अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के शासनाध्यक्षों के साथ कई अहम मुद्दों पर चर्चा करेंगे, आइये उन पांच चुनौतियों पर एक नजर डाली जाए जिनका सामना भारत अपने अमेरिका दौरे के दौरान कर सकता है.

तमाम चुनौतियां हैं जिनका सामना पीएम मोदी को अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान करना पड़ेगा

क्वाड 

Quadrilateral Security Dialogue, जिसे क्वाड के नाम से भी जाना जाता है, ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका का रणनीतिक सहयोग है. कह सकते हैं कि क्वाड भारत के प्रमुख नीतिगत फोकस के रूप में उभरा है.

24 सितंबर को औपचारिक क्वाड वार्ता से पहले, पीएम मोदी ऑस्ट्रेलिया के क्वाड नेताओं स्कॉट मॉरिसन, जापान के योशीहिदे सुगा और अमेरिका के जो बाइडेन से मुलाकात करेंगे.

क्वाड बैठक अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के बीच परमाणु पनडुब्बियों के लिए एक हैरत में डालने वाले AKS सौदे के बाद हो रही है. इस सौदे में अमेरिका से ऑस्ट्रेलिया को अत्यधिक संवेदनशील तकनीक का हस्तांतरण शामिल है. इस सौदे ने काफी तनाव भी पैदा किया है, ध्यान रहे पहले ऑस्ट्रेलिया ने सौदा फ्रांस के साथ किया था और उसे रद्द करके उसने फ़्रांस को बड़ा झटका दिया है. कहा जा रहा है कि ऑस्ट्रेलिया के इस रुख से फ़्रांस को अरबों का नुकसान हुआ है.

चूंकि नुकसान हो चुका है इसलिए फ्रांस क्वाड के रक्षा सौदों को संदेह की नजर से देख रहा है. भारत ने सैन्य उन्नयन के लिए कुछ चुनिंदा देशों पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए फ्रांस के साथ अपने संबंधों को गहरा किया है. राजनीतिक विश्लेषक इस बात पर बल दे रहे हैं कि फ्रांस भारत के भू-रणनीतिक समीकरणों के लिए शुभ संकेत नहीं है.

भारत के सामने एक और चुनौती क्वाड के भीतर विषम यूएस-ऑस्ट्रेलिया संबंध है. भारत-प्रशांत महासागरीय क्षेत्रों में ऑस्ट्रेलिया और भारत के साझा रणनीतिक हित हैं. असामान्य रूप से मजबूत यूएस-ऑस्ट्रेलिया समीकरण क्वाड के भीतर और क्षेत्र में भारत के द्विपक्षीय और रणनीतिक आयामों को कमजोर कर सकता है.

भारत के लिए, जैसा कि विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला ने कहा, 'क्वाड एक स्वतंत्र, खुले, पारदर्शी और समावेशी इंडो-पैसिफिक के दृष्टिकोण के साथ एक बहुपक्षीय समूह है.' पीएम मोदी की अमेरिका यात्रा यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण होगी कि क्वाड सभी चार देशों के लिए इसी तरह बना रहे.

तालिबान

अमेरिका के नेतृत्व वाली बहुराष्ट्रीय ताकतों द्वारा सैनिकों की वापसी के बाद अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी भारत के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है. तालिबान एक स्वीकृत आतंकी समूह है जिसका पाकिस्तान और उसके द्वारा प्रायोजित आतंकी समूहों के साथ गहरे संबंध हैं. यह क्षेत्रीय रूप से भारत के लिए एक बड़ा सुरक्षा खतरा है.

विश्व स्तर पर, तालिबान की वापसी नए संरेखण के उद्भव में तब्दील हो जाती है. भारत ने अफगानिस्तान में अमेरिका के साथ मिलकर काम किया. संयोग से, अफगानिस्तान में अमेरिकी उपस्थिति की 20 साल की अवधि वह समय था, जब भारत रूसी ब्लॉक से अमेरिकी ब्लॉक में स्पष्ट बदलाव करता दिखाई दिया. ऐसा आर्थिक रूप से कमजोर रूस के कारण भी हुआ.

अब, अमेरिका तालिबान और पाकिस्तान को छोड़कर दक्षिण एशिया से पीछे हट गया है, लेकिन इससे उसकी अफपाक नीति प्रभावित हुई है.कहा जा रहा है कि अमेरिका पुराने सहयोगियों को आश्वस्त करने के लिए तैयार है. कई लोगों ने जल्दबाजी में शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक समझौता सुनिश्चित किए बिना अमेरिकी वापसी को इस रूप में भी देखा कि उसने अपने भागीदारों को डंप किया है. 

इसी संदर्भ में ऑस्ट्रेलिया के साथ AKS पनडुब्बी सौदा आया. यह इस तथ्य को भी सामने लाता है कि अमेरिका अब भारत के लिए एक प्रमुख रणनीतिक क्षेत्र इंडो-पैसिफिक क्षेत्र पर अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहता है. मॉरिसन, सुगा और बाइडेन के साथ पीएम मोदी की व्यक्तिगत बातचीत में इन चिंताओं पर ध्यान केंद्रित करने की संभावना है.

चीन

चीन के साथ भारत के संबंध वर्तमान में विश्वास की कमी से परिभाषित होते हैं. अप्रैल-मई 2020 में शुरू हुआ सैन्य गतिरोध आंशिक रूप से हल हो गया है. चीन की व्यस्तता और अफगानिस्तान में तालिबान को अपनी सुरक्षा बढ़ाने की स्पष्ट इच्छा ने भारत के लिए सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा दिया है.

जबकि भारत पर चीन के आर्थिक और सैन्य आधिपत्य का संकेत देने वाले दावे के मद्देनजर क्वाड पर भारत का ध्यान फिर से शुरू हो गया, नई दिल्ली को क्वाड के माध्यम से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र पर एक तेज फोकस बनाए रखना मुश्किल हो सकता है यदि तालिबान और आतंकवादी समूह इसके पश्चिमी क्षेत्र में हैं. कहा तो यहां तक जा रहा रहा है कि भारत को नुकसान पहुंचाने के लिए चीन तालिबान को शरण देगा. 

भारत में कई आतंकवादी हमलों को अंजाम देने वाले समूह के बावजूद चीन ने जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख मसूद अजहर के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र की मंजूरी का लंबे समय तक विरोध किया. चीन पहले ही, हाल ही में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) में तालिबान के साथ कूटनीतिक जुड़ाव का मामला बनाने की कोशिश कर चुका है. भारत की सुरक्षा से जुड़े आतंकवाद के मामलों पर चीन और पाकिस्तान एक साथ बोलने के लिए जाने जाते हैं.

कश्मीर

पाकिस्तान कश्मीर के मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और यूएनजीए में नियमित रूप से उठाता रहा है. तालिबान ने भी अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद दावा किया कि उन्हें मुस्लिम कश्मीरियों के लिए बोलने का 'अधिकार' है. उन्हें संयुक्त राष्ट्र में तुर्की के रूप में एक सहयोगी मिल गया है.

यूएनजीए को संबोधित करते हुए तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन ने कश्मीर के मुद्दे का जिक्र किया. यह लगातार दूसरा साल था जब एर्दोगन ने इस मुद्दे को उठाया था. पाकिस्तान एर्दोगन के बार-बार कश्मीर के संदर्भ को अपनी कूटनीतिक सफलता मानता है, क्योंकि हाल के दिनों में दोनों देश करीब आ गए हैं.

हालांकि, भारत ने एर्दोगन के कश्मीर संदर्भ को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह मुद्दा पाकिस्तान द्वारा भड़काए गए आतंकवाद में से एक था.

एक अन्य खंडन में, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने साइप्रस समकक्ष से मुलाकात के बाद तुर्की को साइप्रस पर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव की याद दिलाते हुए एक ट्वीट पोस्ट किया. द्वीप राष्ट्र पर सैन्य तख्तापलट के बाद 1974 में तुर्की ने साइप्रस पर आक्रमण किया था. संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव ने इस मुद्दे के शांतिपूर्ण समाधान का आह्वान किया.

पीएम मोदी की अमेरिका यात्रा और यूएनजीए को संबोधित करने से पाकिस्तान को घेरने वाले कश्मीर मुद्दे पर भारत के राजनयिक रुख को मजबूत करने और तालिबान-पाकिस्तान-चीन की उभरती धुरी के खिलाफ दुनिया को चेतावनी देने की संभावना है.

वैक्सीन 

इस वर्ष की NGA बहस का विषय है, 'कोविड -19 से उबरने की आशा के माध्यम से लचीलापन बनाना, स्थिरता का पुनर्निर्माण करना, विश्व की जरूरतों का जवाब देना, लोगों के अधिकारों का सम्मान करना और संयुक्त राष्ट्र को पुनर्जीवित करना". महामारी के खिलाफ लड़ाई में कोविड-19 वैक्सीन राष्ट्रवाद एक चुनौती बनकर उभरा है.

इसी हफ्ते भारत ने यूके की वैक्सीन सर्टिफिकेट पॉलिसी को भेदभावपूर्ण बताया. यूके ने भारत में जारी टीकाकरण प्रमाण पत्र के प्रारूप पर आपत्ति जताते हुए भारत में टीका लगवा चुके यात्रियों के 'वैक्सीनेशन' को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था.

हाल ही में, भारत ने अक्टूबर से कोविड -19 वैक्सीन निर्यात फिर से शुरू करने की घोषणा की. महामारी की दूसरी लहर के दौरान कोरोनोवायरस मामलों में तेज वृद्धि के कारण सरकार द्वारा कोविड -19 टीकों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के कारण भारत तीखी आलोचना के घेरे में आ गया था.

पीएम मोदी की अमेरिकी यात्रा के दौरान, भारत द्वारा सभी स्वीकृत कोविड -19 जैब्स को वायरस के खिलाफ प्रमाणन के लिए योग्य मानते हुए वैक्सीन समानता के लिए बैटिंग करने की संभावना है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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