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राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राज्यसभा में नामांकन पर अपनी ही कही बात को भूला दिया

    • अशोक उपाध्याय
    • Updated: 18 जुलाई, 2018 12:07 PM
  • 18 जुलाई, 2018 12:07 PM
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2010 में, बीजेपी के प्रवक्ता के रूप में, राम नाथ कोविंद ने कांग्रेस पार्टी के 'प्रतिबद्ध कार्यकर्ता' के नामांकन का विरोध किया. लेकिन 2018 में उन्हीं कोविंद ने राष्ट्रपति के रुप में भाजपा के 'प्रतिबद्ध कार्यकर्ता' को ऊपरी सदन के लिए नामित करने के सुझाव पर हस्ताक्षर किया.

14 जुलाई को राष्ट्रपति सचिवालय द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया, "राष्ट्रपति राज्यसभा में चार सदस्यों को नामांकित करते हैं." चार नामित नाम- राम शाकल, राकेश सिन्हा, रघुनाथ महापात्रा और सोनल मानसिंह थे.

राम शाकल की जीवनी कहती है, "वह उत्तर प्रदेश के एक प्रतिष्ठित नेता और सार्वजनिक जनप्रतिनिधि हैं... वह उत्तर प्रदेश के रॉबर्ट्सगंज निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हुए तीन बार संसद सदस्य भी रहे हैं."

प्रेस विज्ञप्ति में आगे कहा गया, "...भारत के संविधान के अनुच्छेद 80 द्वारा प्रदत्त शक्तियों के प्रयोग में, और प्रधान मंत्री की सलाह पर, भारत के राष्ट्रपति राज्यसभा में निम्नलिखित चार लोगों का नामांकन कर रहे हैं". संविधान के खंड 3 के अनुच्छेद 80 में लिखा है कि राष्ट्रपति द्वारा नामित सदस्यों को "निम्नलिखित मामलों जैसे कि साहित्य, विज्ञान, कला और सामाजिक सेवा के संबंध में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव रखने वाले व्यक्ति शामिल होंगे."

संसद में नामांकन का लक्ष्य संगीतकारों, कलाकारों, कवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को अवसर प्रदान करना है, संसद में आने के लिए जिनकी चुनाव लड़ने की संभावना नहीं होती है. लेकिन फिर भी लोकसभा के लिए तीन बार चुने गए राम शाकल को राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों की सूची में डाला गया.

अपनी कही ही भूल गए राष्ट्रपति

जाहिर है कि उनके जैसे एक सक्रिय राजनेता को चुनाव के माध्यम से संसद में आना चाहिए न की नामांकन के जरिए. लेकिन फिर यह पहली बार भी नहीं है जब एक सक्रिय राजनेता को नामांकन के आसान रास्ते के जरिए संसद में लाया गया है. अप्रैल 2016 में, भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी और नवजोत सिंह सिद्धू (अब कांग्रेस में) को नरेंद्र मोदी सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा ऊपरी सदन में नामित...

14 जुलाई को राष्ट्रपति सचिवालय द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया, "राष्ट्रपति राज्यसभा में चार सदस्यों को नामांकित करते हैं." चार नामित नाम- राम शाकल, राकेश सिन्हा, रघुनाथ महापात्रा और सोनल मानसिंह थे.

राम शाकल की जीवनी कहती है, "वह उत्तर प्रदेश के एक प्रतिष्ठित नेता और सार्वजनिक जनप्रतिनिधि हैं... वह उत्तर प्रदेश के रॉबर्ट्सगंज निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हुए तीन बार संसद सदस्य भी रहे हैं."

प्रेस विज्ञप्ति में आगे कहा गया, "...भारत के संविधान के अनुच्छेद 80 द्वारा प्रदत्त शक्तियों के प्रयोग में, और प्रधान मंत्री की सलाह पर, भारत के राष्ट्रपति राज्यसभा में निम्नलिखित चार लोगों का नामांकन कर रहे हैं". संविधान के खंड 3 के अनुच्छेद 80 में लिखा है कि राष्ट्रपति द्वारा नामित सदस्यों को "निम्नलिखित मामलों जैसे कि साहित्य, विज्ञान, कला और सामाजिक सेवा के संबंध में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव रखने वाले व्यक्ति शामिल होंगे."

संसद में नामांकन का लक्ष्य संगीतकारों, कलाकारों, कवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को अवसर प्रदान करना है, संसद में आने के लिए जिनकी चुनाव लड़ने की संभावना नहीं होती है. लेकिन फिर भी लोकसभा के लिए तीन बार चुने गए राम शाकल को राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों की सूची में डाला गया.

अपनी कही ही भूल गए राष्ट्रपति

जाहिर है कि उनके जैसे एक सक्रिय राजनेता को चुनाव के माध्यम से संसद में आना चाहिए न की नामांकन के जरिए. लेकिन फिर यह पहली बार भी नहीं है जब एक सक्रिय राजनेता को नामांकन के आसान रास्ते के जरिए संसद में लाया गया है. अप्रैल 2016 में, भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी और नवजोत सिंह सिद्धू (अब कांग्रेस में) को नरेंद्र मोदी सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा ऊपरी सदन में नामित किया गया था.

अतीत में भी जगमोहन, भूपिंदर सिंह मान, प्रकाश अम्बेडकर और गुलाम रसूल कार जैसे कई नेताओं ने इस मार्ग के माध्यम से राज्यसभा में प्रवेश किया है. 2009 में लोकसभा चुनाव हारने के बाद मनमोहन सिंह सरकार द्वारा मणिशंकर अय्यर का नामांकन सबसे विवादास्पद था. बीजेपी ने उनके नामांकन का जोरदार ढंग से विरोध किया. साहित्य में उनके योगदान के लिए अय्यर के नामांकन को अपवाद मानके हुए तत्कालिन भाजपा प्रवक्ता राम नाथ कोविंद ने संविधान के अनुच्छेद 80 का हवाला दिया और कहा कि जो लोग सिर्फ संविधान के निर्धारित प्रारूप में आते हैं उन्हें ही नामित किया जाना चाहिए.

बीजेपी के प्रवक्ता ने दावा किया कि अय्यर इन श्रेणियों में से किसी एक में भी नहीं आते हैं क्योंकि वह कांग्रेस के "प्रतिबद्ध कार्यकर्ता" रहे हैं. कोविंद ने आगे कहा, "अय्यर का नामांकन संविधान की भावना के खिलाफ है और सभी स्थापित नियमों का उल्लंघन करता है. वर्तमान कांग्रेस की अगुआई वाली सरकार द्वारा यह सत्ता का दुरुपयोग है."

2010 में, बीजेपी के प्रवक्ता के रूप में, राम नाथ कोविंद ने कांग्रेस पार्टी के "प्रतिबद्ध कार्यकर्ता" के नामांकन का विरोध किया. लेकिन 2018 में उन्हीं कोविंद ने राष्ट्रपति के रुप में भाजपा के "प्रतिबद्ध कार्यकर्ता" को ऊपरी सदन के लिए नामित करने के सुझाव पर हस्ताक्षर किया. ऐसा लगता है कि राष्ट्रपति कोविंद ने बीजेपी के प्रवक्ता कोविंद द्वारा एक बार सत्ता में बैठे लोगों को पेश किए गए सौहार्दपूर्ण सलाह पर ध्यान नहीं दिया.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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