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लिंचिस्तान और रेपिस्तान नहीं, हिंदुस्तान को हिंदुस्तान ही रहने दीजिए

    • आईचौक
    • Updated: 14 जुलाई, 2018 02:22 PM
  • 14 जुलाई, 2018 02:21 PM
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10 हजार साल पुरानी सभ्यता को लिंचिस्तान और रेपिस्तान का दर्ज़ा देने वाले नेताओं और तथाकथित बुद्धिजीवियों ने देश की साख पर बट्टा लगाने का काम किया है.

आज कल हमारे देश में एक फैशन चल पड़ा है, किसी भी नई घटना के बाद देश को एक नए तमगे की माला पहना दी जाती है. कभी रेपिस्तान तो कभी लिंचिस्तान. अब कांग्रेस के एक कद्दावर नेता ने नया जुमला गढ़ा है जिसे हिन्दू पाकिस्तान का नाम दिया है. अपनी आपसी चुनावी राजनीतिक रंजिश का बोझ 10 हजार साल पुरानी सभ्यता वाले देश के ऊपर थोपना हमारे राजनेताओं का राष्ट्रीय चरित्र हो गया है. पहले देश के माहौल में अपनी राजनीतिक लिप्सा का ज़हर घोलते हैं और उसके बाद राष्ट्रीय गरिमा को ताक पर रखकर फ़र्ज़ी माहौल बनाते हैं.

भारत 130 करोड़ की जनसंख्या वाला देश है. दुनिया की दो मात्र जीवित सभ्यताओं में से एक है. पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा विविधताओं को समेटने वाला देश आज अपने लोगों की असहिष्णुता से कराह रहा है. आये दिन देश की प्रतिष्ठा को तार-तार करने वाली ख्यातियों में बेतहाशा इजाफा हो रहा है. हमारे देश में समस्याएं हैं लेकिन ऐसा नहीं है कि एक समाज के नाते हमने अपने राष्ट्रीय कर्तव्यों की बलि दे दी है.

लोकतंत्र की ताकत के आगे आखिरकार जयंत सिन्हा को झुकना पड़ा

मानवता को शर्मसार करने वाली हर घटना की निंदा हमने एक जागरूक समाज के नाते सामूहिक रूप से की है. बहरहाल हम एक लोकतान्त्रिक देश में रहते हैं जहां हमें अपने गुस्से का इज़हार भी लोकतान्त्रिक तरीके से करना होता है. लोकतंत्र की ताकत ही है कि मॉब लिंचिंग के आरोपियों को माला पहनाकर स्वागत करने वाले जयंत सिन्हा को आखिर में माफ़ी मांगनी ही पड़ी. कोई नेता अगर इस तरह की करतूतों में शामिल होता है तो वोट की ताकत से उसकी अहंकारी सत्ता को उखाड़ फेंकने का अधिकार भी हमारे देश का संविधान हमें देता है.

कश्मीर की धरती से सिविल सर्विसेज की परीक्षा टॉप करने वाले आईएस अधिकारी शाह फैसल ने बीते दिन एक ट्वीट किया जिसमे उन्होंने देश में होने...

आज कल हमारे देश में एक फैशन चल पड़ा है, किसी भी नई घटना के बाद देश को एक नए तमगे की माला पहना दी जाती है. कभी रेपिस्तान तो कभी लिंचिस्तान. अब कांग्रेस के एक कद्दावर नेता ने नया जुमला गढ़ा है जिसे हिन्दू पाकिस्तान का नाम दिया है. अपनी आपसी चुनावी राजनीतिक रंजिश का बोझ 10 हजार साल पुरानी सभ्यता वाले देश के ऊपर थोपना हमारे राजनेताओं का राष्ट्रीय चरित्र हो गया है. पहले देश के माहौल में अपनी राजनीतिक लिप्सा का ज़हर घोलते हैं और उसके बाद राष्ट्रीय गरिमा को ताक पर रखकर फ़र्ज़ी माहौल बनाते हैं.

भारत 130 करोड़ की जनसंख्या वाला देश है. दुनिया की दो मात्र जीवित सभ्यताओं में से एक है. पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा विविधताओं को समेटने वाला देश आज अपने लोगों की असहिष्णुता से कराह रहा है. आये दिन देश की प्रतिष्ठा को तार-तार करने वाली ख्यातियों में बेतहाशा इजाफा हो रहा है. हमारे देश में समस्याएं हैं लेकिन ऐसा नहीं है कि एक समाज के नाते हमने अपने राष्ट्रीय कर्तव्यों की बलि दे दी है.

लोकतंत्र की ताकत के आगे आखिरकार जयंत सिन्हा को झुकना पड़ा

मानवता को शर्मसार करने वाली हर घटना की निंदा हमने एक जागरूक समाज के नाते सामूहिक रूप से की है. बहरहाल हम एक लोकतान्त्रिक देश में रहते हैं जहां हमें अपने गुस्से का इज़हार भी लोकतान्त्रिक तरीके से करना होता है. लोकतंत्र की ताकत ही है कि मॉब लिंचिंग के आरोपियों को माला पहनाकर स्वागत करने वाले जयंत सिन्हा को आखिर में माफ़ी मांगनी ही पड़ी. कोई नेता अगर इस तरह की करतूतों में शामिल होता है तो वोट की ताकत से उसकी अहंकारी सत्ता को उखाड़ फेंकने का अधिकार भी हमारे देश का संविधान हमें देता है.

कश्मीर की धरती से सिविल सर्विसेज की परीक्षा टॉप करने वाले आईएस अधिकारी शाह फैसल ने बीते दिन एक ट्वीट किया जिसमे उन्होंने देश में होने वाली बलात्कार की घटनाओं का एक विचित्र विश्लेषण किया. पुरुष प्रधान समाज और अराजकता के माहौल के दम पर उन्होंने वही संज्ञा दी, जो आए दिन तथाकथित बुद्धिजीवी देते रहते हैं. समस्या को गिनाने वालों की लम्बी कतार खड़ी है लेकिन उसे किस तरह खत्म किया जाए ये आज किसी की प्राथमिकता में नहीं दिखता है. एक ज़िम्मेदार सरकारी पद पर होने के बावजूद उनका ये बयान उनकी लोकतान्त्रिक आस्थाओं में विश्वास की धज्जियां उड़ाता है.

निर्भया के आरोपियों को लटकाने का आखिरी फैसला भी आ चुका है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि देश में बलात्कार की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है, लेकिन आरोपियों को लगातार सजा भी हुई है. लेकिन जब हम रेपिस्तान की संज्ञा से हिंदुस्तान को नवाजते हैं तो कुछ लोगों की करतूत को देश के राष्ट्रीय चरित्र को ही कठघरे में खड़ा कर देते हैं. हम उस अमर परम्परा को भूल जाते हैं जहां महिलाओं को देवी का दर्जा प्राप्त है. इस हकीकत से मुंह मोड़ा नहीं जा सकता है कि जब पूरी दुनिया में महिलाओं का शोषण अपने चरम पर था उस दौर में भारत की महिलाओं की सामाजिक हालत पुरुषों के बराबर थी.

दरअसल इससे पहले इस देश में महिला सशक्तिकरण शब्द की कोई प्रासंगिकता नहीं थी क्योंकि इसकी कभी जरूरत ही नहीं पड़ी. एक प्रसिद्ध अमेरिकी लेखक और दार्शनिक मार्क ट्वेन ने एक बार कहा था- इस संसार में कोई भी चीज जिसे मनुष्य ने किया या ईश्वर ने वो हिंदुस्तान की पावन भूमि पर ही घटित हुआ है. हमारे नेताओं और बुद्धिजीवियों को कोई बताए कि हमें इसी तरह के उपाधि की जरूरत है. मानव चेतना के स्तर को उठाने के लिए सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह जरूरी होता है. नकरात्मकता तो गन्दी राजनीति और व्यक्तिगत दुश्मनी और खुन्नस की परिचायक है.

कंटेंट - विकास कुमार (इंटर्न आईचौक)

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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