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हवाई जहाज का किराया ऑटो से सस्ता? जनाब अब जरा ये गणित भी देख लीजिए, आंखें खुल जाएंगी !

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 05 फरवरी, 2018 06:13 PM
  • 05 फरवरी, 2018 06:13 PM
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जयंत सिन्हा ने कहा कि इन दिनों यात्रियों को दिल्ली से इंदौर की हवाई यात्रा पर सिर्फ 5 रुपए प्रति किलोमीटर खर्च करना पड़ रहा है, जबकि अगर इस शहर में ऑटो रिक्शा से भी आप कहीं जाते हैं तो आपको 8-10 रुपए प्रति किलोमीटर चुकाना होगा.

गरीबों के लिए एक बहुत बड़ी खुशखबरी है, अब उन्हें ऑटो रिक्शा से चलने की जरूरत नहीं है. ऐसा इसलिए क्योंकि अब हवाई यात्रा ऑटो रिक्शा से भी सस्ती हो चुकी है. पता है आप इस बात पर यकीन नहीं करेंगे, लेकिन यह बात खुद नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री जयंत सिन्हा ने कही है. इससे पहले बजट में भी यह बात कही जा चुकी है कि हवाई चप्पल पहनने वाला भी अब हवाई यात्रा कर रहा है. सिन्हा जी ने अपनी बात को साबित करने के लिए किराए का पूरा गणित भी सुझा दिया, लेकिन ये नहीं बताया कि 200 रुपए रोजाना कमाने वाले पकौड़े वाले के पास आखिर 10,000 रुपए कहां से आएंगे, जिससे वह इंदौर से दिल्ली जाकर वापस अपने घर आएगा? भाजपा और उनके मंत्री का ये जादुई गणित पता नहीं कितने लोगों की समझ में आया और कितनों के नहीं. अब आइए नजर डालते हैं मंत्री जी के गणित पर.

5 रुपए प्रति किलोमीटर में हवाई यात्रा

जयंत सिन्हा ने कहा कि इन दिनों यात्रियों को दिल्ली से इंदौर की हवाई यात्रा पर सिर्फ 5 रुपए प्रति किलोमीटर खर्च करना पड़ रहा है, जबकि अगर इस शहर में ऑटो रिक्शा से भी आप कहीं जाते हैं तो आपको 8-10 रुपए प्रति किलोमीटर चुकाना होगा. जिस तरह से जयंत सिन्हा ने ये जादुई आंकड़े जनता के सामने रखे, लोग भी उनकी बात से सहमत हो गए. भई बात भी सही है, फ्लाइट और ऑटो रिक्शा से सफर करने में लगभग इतना ही खर्च हो भी रहा है. लेकिन जयंत सिन्हा के गणित की जो खामी थी, अब उसकी बात करते हैं.

पहले समझिए चप्पल का गणित

सबसे पहले तो यह समझना जरूरी है कि कोई व्यक्ति हवाई चप्पल पहन कर सफर क्यों करता है? या यूं कहें कि कोई व्यक्ति सफर के दौरान भी जूतों के बजाय चप्पल क्यों पहनता है? यूं तो कुछ लोग सिर्फ आरामदायक अनुभव पाने के लिए चप्पल पहनते हैं, लेकिन अधिकतर लोग चप्पल पहन कर यात्रा करने को मजबूर होते...

गरीबों के लिए एक बहुत बड़ी खुशखबरी है, अब उन्हें ऑटो रिक्शा से चलने की जरूरत नहीं है. ऐसा इसलिए क्योंकि अब हवाई यात्रा ऑटो रिक्शा से भी सस्ती हो चुकी है. पता है आप इस बात पर यकीन नहीं करेंगे, लेकिन यह बात खुद नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री जयंत सिन्हा ने कही है. इससे पहले बजट में भी यह बात कही जा चुकी है कि हवाई चप्पल पहनने वाला भी अब हवाई यात्रा कर रहा है. सिन्हा जी ने अपनी बात को साबित करने के लिए किराए का पूरा गणित भी सुझा दिया, लेकिन ये नहीं बताया कि 200 रुपए रोजाना कमाने वाले पकौड़े वाले के पास आखिर 10,000 रुपए कहां से आएंगे, जिससे वह इंदौर से दिल्ली जाकर वापस अपने घर आएगा? भाजपा और उनके मंत्री का ये जादुई गणित पता नहीं कितने लोगों की समझ में आया और कितनों के नहीं. अब आइए नजर डालते हैं मंत्री जी के गणित पर.

5 रुपए प्रति किलोमीटर में हवाई यात्रा

जयंत सिन्हा ने कहा कि इन दिनों यात्रियों को दिल्ली से इंदौर की हवाई यात्रा पर सिर्फ 5 रुपए प्रति किलोमीटर खर्च करना पड़ रहा है, जबकि अगर इस शहर में ऑटो रिक्शा से भी आप कहीं जाते हैं तो आपको 8-10 रुपए प्रति किलोमीटर चुकाना होगा. जिस तरह से जयंत सिन्हा ने ये जादुई आंकड़े जनता के सामने रखे, लोग भी उनकी बात से सहमत हो गए. भई बात भी सही है, फ्लाइट और ऑटो रिक्शा से सफर करने में लगभग इतना ही खर्च हो भी रहा है. लेकिन जयंत सिन्हा के गणित की जो खामी थी, अब उसकी बात करते हैं.

पहले समझिए चप्पल का गणित

सबसे पहले तो यह समझना जरूरी है कि कोई व्यक्ति हवाई चप्पल पहन कर सफर क्यों करता है? या यूं कहें कि कोई व्यक्ति सफर के दौरान भी जूतों के बजाय चप्पल क्यों पहनता है? यूं तो कुछ लोग सिर्फ आरामदायक अनुभव पाने के लिए चप्पल पहनते हैं, लेकिन अधिकतर लोग चप्पल पहन कर यात्रा करने को मजबूर होते हैं, क्योंकि उनके पास इतने पैसे नहीं होते कि वह जूते खरीद सकें. साथ ही जयंत सिन्हा को यह भी समझने की जरूरत है कि जो गरीब होते हैं वह ऑटो रिक्शा बुक करके यात्रा नहीं करते, बल्कि शेयरिंग ऑटो से या फिर बस या ट्रेन से जाना पसंद करते हैं. जिस तरह से जयंत सिन्हा ने ऑटो रिक्शा से फ्लाइट की तुलना की, उससे तो ये लग रहा है इंदौर से दिल्ली जाने के लिए लोग ऑटो रिक्शा भी इस्तेमाल करते हैं. या कहीं जयंत सिन्हा ये तो नहीं कहना चाह रहे कि ऑटो रिक्शा वाले अधिक पैसे ले रहे हैं?

ट्रेन से तो प्रति किलोमीटर 50 पैसे ही लगेंगे

मंत्री जी, इंदौर से दिल्ली आने के लिए फ्लाइट के अलावा सिर्फ ऑटो रिक्शा का विकल्प तो हैं नहीं. कोई चाहे तो ट्रेन से भी इंदौर से दिल्ली जा सकता है. अगर वह स्लीपर से टिकट बुक करवाकर दिल्ली जाएगा तो उसके 435 रुपए खर्च होंगे, यानी लगभग 50 पैसे प्रति किलोमीटर खर्च होंगे. ट्रेन के फर्स्ट एसी से आने पर भी 2790 रुपए खर्च होंगे यानी प्रति किलोमीटर करीब 3 रुपए. तो जयंत सिन्हा जी, ट्रेन हर हाल में फ्लाइट से सस्ती पड़ेगी और आपकी ऑटो वाली थ्योरी से बहुत सस्ती पड़ेगी.

अगर इंदौर से दिल्ली जाने वाली INDB DEE EXP ट्रेन की टिकट देखी जाए तो वह कुछ इस प्रकार है-

फर्स्ट एसी- 2790 रुपए

सेकेंड एसी- 1650 रुपए

थर्ड एसी- 1155 रुपए

स्लीपर- 435 रुपए

अब समझिए बस का गणित

अगर किसी शख्स को ट्रेन से जाना पसंद ना हो या फिर अगर उसे ट्रेन की टिकट ना मिल पाए तो वह बस से भी जा सकता है. बस का किराया है 1000 रुपए. यानी प्रति किलोमीटर लगभग 1 रुपए किराया लगा. बस भी फ्लाइट से सस्ती निकली. मेरा गणित तो यही कहता है कि हवाई चप्पल पहनने वाला गरीब अगर ट्रेन से ना जा पाया तो इस 1 रुपए प्रति किलोमीटर के खर्च पर बस से जाना पसंद करेगा. फ्लाइट से जाकर वह 5 गुना तो खर्च नहीं करेगा, ना ही कर पाएगा. और ऑटो रिक्शा में 10 रुपए प्रति किलोमीटर देने की तो वह सोच भी नहीं पाएगा.

कार या टैक्सी बुक करना भी एक विकल्प

जिस तरह जयंत सिन्हा ने ऑटो रिक्शा को भी इंदौर से दिल्ली आने का विकल्प मान लिया, वैसे तो ओला और उबर भी एक विकल्प हैं. इनमें भी 8 से 10 रुपए प्रति किलोमीटर का खर्च आता है. तो अगर ओला या उबर टैक्सी वाला आपको इंदौर से दिल्ली ले जाने के लिए तैयार हो जाए तो आप उसमें भी दिल्ली जा सकते हैं. जयंत सिन्हा ने टैक्सी या कैब की बात नहीं की क्योंकि गरीब आदमी ऑटो रिक्शा में सफर करता है और उन्हें सिर्फ यही दिखाना था कि जिस ऑटो में गरीब आदमी सफर करता है, उसके किराए से भी सस्ता हवाई जहाज हो गया है.

अंत में जयंत सिन्हा जी से मेरा सिर्फ एक ही निवेदन है कि कृपया आगे से अगर आप किराए को लेकर कोई गणित बताइएगा तो फ्लाइट की तुलना ऑटो से ना कर के किसी ट्रेन या बस से करिएगा. ऑटो रिक्शा बुक कर के कोई इंदौर से दिल्ली नहीं जाता है. इतनी दूर (करीब 1000 किलोमीटर) ना तो कोई ऑटो में बैठ कर सफर कर पाएगा, ना ही कोई इतनी दूर ऑटो रिक्शा चलाकर आसानी से जा पाएगा. मैंने अभी तक तो ऑल इंडिया परमिट वाले ऑटो रिक्शा नहीं देखे हैं, अगर सरकार ऐसा भी कोई प्रावधान करने जा रही है तो ही आपकी थ्योरी थोड़ी समझ आएगी.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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