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राहुल को गडकरी के पास बैठाना मोदी सरकार की गलती से मिस्टेक है

    • आईचौक
    • Updated: 27 जनवरी, 2019 05:47 PM
  • 27 जनवरी, 2019 05:47 PM
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राहुल गांधी और नितिन गडकरी की ही तरह मनमोहन सिंह और राजनाथ सिंह भी आस पास बैठे थे - लेकिन जिन वजहों से नितिन गडकरी सुर्खियों में हैं, राहुल के साथ उनकी खुशनुमा बातचीत काफी दिलचस्प हो गयी है.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की सीट इस बार भी चर्चाओं का हिस्सा बनी है. 2018 में गणतंत्र दिवस परेड के दौरान राहुल गांधी को पीछे बैठाने को लेकर बवाल हुआ था तो इस बार उनके आगे बैठने पर. दरअसल, राहुल गांधी को जो सीट मिली थी वो नितिन गडकरी की पास वाली रही. जहां तक अगल बगल बैठने की बात है तो राहुल और गडकरी की ही तरह मनमोहन सिंह और राजनाथ सिंह भी आस पास बैठे थे - लेकिन हाल के बागी रूख के चलते गडकरी लोगों का ध्यान ज्यादा खींच रहे हैं - और राहुल गांधी के साथ उनकी मधुर बातचीत ने उस पर सियासी रंग चढ़ा दिया है.

ये गूफ्तगू ध्यान क्यों खींचता है?

गणतंत्र दिवस परेड के मौके पर अमित शाह, नितिन गडकरी और राहुल गांधी तीनों सबसे आगे वाली सीटों पर बैठे थे. अमित शाह और राहुल गांधी के बीच तीन कुर्सियों का फासला रहा - और नितिन गडकरी ठीक राहुल के पास वाली सीट पर बैठे थे. ऐसे में जबकि नितिन गडकरी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकल्प के तौर पर दबी जबान चर्चा चल रही है, राहुल गांधी के साथ गूफ्तगू हर किसी का ध्यान खींचता है.

कुछ दिन से नितिन गडकरी मोदी सरकार के खिलाफ बागी रुख अख्तियार किये हुए हैं. वो विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार के लिए नेतृत्व पर सवाल उठा रहे हैं. वो जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी की तारीफ कर रहे हैं. और उनकी इस राजनीतिक सक्रियता के पीछे संघ की सहमति या समर्थन को खारिज नहीं किया जा रहा है.

वैसे तो कांग्रेस चुनावों में जीत हासिल कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शिकस्त देने की कोशिश में है, लेकिन भीतर ही भीतर कुछ कांग्रेस नेता इस लाइन पर भी काम कर रहे हैं कि अगर बीजेपी जीत भी जाये तो प्रधानमंत्री कोई और बन जाये. खुद राहुल गांधी की भी इस मामले में खास दिलचस्पी है.

इसी बीच नितिन गडकरी का चेहरा उभरने लगा है. एक ऐसा चेहरा जो हर किसी के साथ मिलनसार है. मेल-मिलाप में पक्ष-विपक्ष से कोई परहेज नहीं है. एक ऐसा चेहरा जो बिजनेस क्लास का पसंदीदा है. एक ऐसा चेहरा जो संघ का करीबी होने के कारण उसके एजेंडे के साथ...

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की सीट इस बार भी चर्चाओं का हिस्सा बनी है. 2018 में गणतंत्र दिवस परेड के दौरान राहुल गांधी को पीछे बैठाने को लेकर बवाल हुआ था तो इस बार उनके आगे बैठने पर. दरअसल, राहुल गांधी को जो सीट मिली थी वो नितिन गडकरी की पास वाली रही. जहां तक अगल बगल बैठने की बात है तो राहुल और गडकरी की ही तरह मनमोहन सिंह और राजनाथ सिंह भी आस पास बैठे थे - लेकिन हाल के बागी रूख के चलते गडकरी लोगों का ध्यान ज्यादा खींच रहे हैं - और राहुल गांधी के साथ उनकी मधुर बातचीत ने उस पर सियासी रंग चढ़ा दिया है.

ये गूफ्तगू ध्यान क्यों खींचता है?

गणतंत्र दिवस परेड के मौके पर अमित शाह, नितिन गडकरी और राहुल गांधी तीनों सबसे आगे वाली सीटों पर बैठे थे. अमित शाह और राहुल गांधी के बीच तीन कुर्सियों का फासला रहा - और नितिन गडकरी ठीक राहुल के पास वाली सीट पर बैठे थे. ऐसे में जबकि नितिन गडकरी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकल्प के तौर पर दबी जबान चर्चा चल रही है, राहुल गांधी के साथ गूफ्तगू हर किसी का ध्यान खींचता है.

कुछ दिन से नितिन गडकरी मोदी सरकार के खिलाफ बागी रुख अख्तियार किये हुए हैं. वो विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार के लिए नेतृत्व पर सवाल उठा रहे हैं. वो जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी की तारीफ कर रहे हैं. और उनकी इस राजनीतिक सक्रियता के पीछे संघ की सहमति या समर्थन को खारिज नहीं किया जा रहा है.

वैसे तो कांग्रेस चुनावों में जीत हासिल कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शिकस्त देने की कोशिश में है, लेकिन भीतर ही भीतर कुछ कांग्रेस नेता इस लाइन पर भी काम कर रहे हैं कि अगर बीजेपी जीत भी जाये तो प्रधानमंत्री कोई और बन जाये. खुद राहुल गांधी की भी इस मामले में खास दिलचस्पी है.

इसी बीच नितिन गडकरी का चेहरा उभरने लगा है. एक ऐसा चेहरा जो हर किसी के साथ मिलनसार है. मेल-मिलाप में पक्ष-विपक्ष से कोई परहेज नहीं है. एक ऐसा चेहरा जो बिजनेस क्लास का पसंदीदा है. एक ऐसा चेहरा जो संघ का करीबी होने के कारण उसके एजेंडे के साथ आगे बढ़ने की क्षमता रखता हो.

मुलाकात हुई, क्या बात हुई?

ऐसे खांटी राजनीतिक माहौल में राहुल गांधी और नितिन गडकरी की गूफ्तगू ध्यान नहीं खींचेगी तो भला क्या होगा?

वैसे क्या बातें हुई होंगी?

क्या राहुल गांधी और नितिन गडकरी के बीच निहायत ही निजी बातें हुई होंगी?

क्या नितिन गडकरी ने राहुल गांधी से ये नहीं पूछा होगा कि वो लगातार काम कर रहे हैं और कोई ब्रेक नहीं ले रहे. ब्रेक लेना जरूरी होता है. अब हर कोई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसा तो हो भी नहीं सकता जो बगैर छुट्टी लिये लगातार काम करता रहे. कब छुट्टी जा रहे हैं? कहां का प्लान है?

क्या राहुल गांधी ने जवाब में बताया होगा कि अगले ही दिन जाने वाले हैं. गोवा का प्लान है. खबर है कि राहुल गांधी और सोनिया गांधी तीन दिन के लिए गोवा में हैं - और ये निजी यात्रा है. कांग्रेस नेताओं का कहना है कि इस दौरान कांग्रेस नेतृत्व किसी भी राजनीतिक गतिविधि से दूर रहेगा.

अगर राहुल गांधी ने ये बताया होगा तो क्या सुन कर नितिन गडकरी के कान नहीं खड़े हुए होंगे. क्योंकि गोवा कांग्रेस विधानसभा उपचुनावों के बाद सरकार बनाने का दावा कर रही है. कांग्रेस का दावा है कि गठबंधन सरकार के पांच विधायक उसके संपर्क में हैं. गोवा में बीजेपी की सरकार बनवाने में भी तो नितिन गडकरी की बड़ी भूमिका थी. नितिन गडकरी की चाल में दिग्विजय सिंह उलझ गये और बीजेपी ने बाजी मार ली थी.

अमूमन होता तो ये है कि जब दो नेता मिलने के बाद कहते हैं कि मुलाकात अनौपचारिक रही. या गैर राजनीतिक रही. या निजी मुलाकात थी. कुछ नेताओं को ऐसी मुलाकातों के बाद ये कहते भी सुना गया है कि जब राजनीति से जुड़े लोग मिलेंगे तो बात पॉलिटिक्स पर तो होगी ही.

फिर क्या लगता है राहुल गांधी और नितिन गडकरी के बीच क्या बातें हुई होंगी?

अब दोनों के बीच मोदी सरकार की उपलब्धियों पर तो बात होने से रही. विरोधी दलों की दोस्ताना बातचीत भी आने वाले चुनावों की तैयारियों को लेकर भी होने से रही. फिर क्या बात हुई होगी?

बात तो ममता बनर्जी की यूनाइटेड इंडिया रैली की भी नहीं हुई होगी, लेकिन क्या यूपी में मायावती और अखिलेश यादव के गठबंधन की भी कोई चर्चा नहीं हुई होगी? यूपी गठबंधन तो दोनों के कॉमन इंटरेस्ट का टॉपिक है. क्या दोनों गठबंधन को लेकर एक दूसरे से कोई फीडबैक लेने की कोशिश नहीं किये होंगे?

क्या प्रियंका गांधी वाड्रा को लेकर भी कोई बात हुई होगी? क्या प्रियंका को राजनीति की मुख्यधारा में लाने के लिए नितिन गडकरी ने राहुल गांधी से कुछ कहा होगा - तारीफ की होगी या बधाई दी होगी? हाल ही में नितिन गडकरी ने महिला आरक्षण पर बयान दिया था. उसी प्रसंग में नितिन गडकरी ने कहा था कि इंदिरा गांधी ने तो बगैर आरक्षण के ही सब कुछ कर डाला.

क्या बातचीत में अमिताभ बच्चन और वरुण गांधी की भी कोई चर्चा हुई होगी? प्रियंका गांधी को कांग्रेस में जिम्मेदारी मिलने के बाद ये दोनों ही सुर्खियों में बने हुए हैं.

क्या राहुल गांधी ने नितिन गडकरी से उन खबरों के बारे में कुछ पूछा होगा जिनकी वजह से गडकरी हाल फिलहाल सुर्खियों में रहे. तीन राज्यों में बीजेपी की हार को लेकर पार्टी नेतृत्व पर सवाल उठाना. क्या तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनने को लेकर भी कोई चर्चा हुई होगी?

हाल ही में नागपुर में कांग्रेस नेता आशीष देशमुख ने नेहरू और इंदिरा की तारीफ का हवाला देते हुए राफेल पर नितिन गडकरी की राय जाननी चाही थी. नितिन गडकरी को लेकर आशीष देशमुख का सवाल था, 'क्या वो भविष्य में राहुल गांधी की सोच से सहमत होंगे? क्या राफेल पर राहुल गांधी के रुख से भी वह सहमत होंगे?'

तो क्या राहुल गांधी और नितिन गडकरी के बीच राफेल डील को लेकर भी कोई बात हुई होगी?

क्या राहुल गांधी को उन खबरों पर भी चर्चा का मौका मिला होगा जिसमें बीजेपी नेतृत्व के विशेष दूत के गडकरी से मुलाकात की बात सामने आयी थी.

क्या राहुल गांधी ने केजरीवाल के साथ वाले कार्यक्रम में बीजेपी नेताओं के खांसने पर डांटने को लेकर नितिन गडकरी की तारीफ की होगी?

ये महज संयोग रहा या गलती से मिस्टेक?

2018 में रिपब्लिक डे परेड के दौरान राहुल गांधी को पीछे बैठाने को लेकर कांग्रेस नेताओं ने कड़ी आपत्ति जतायी थी. केंद्र सरकार की ओर से राहुल गांधी की एसपीडी सिक्योरिटी को लेकर ऐसा करने की मजबूरी जतायी गयी थी. फिर इस बार ऐसी कोई मुश्किल क्यों नहीं आयी?

गणतंत्र दिवस परेड के मौके पर वीवीआईपी पंक्ति में पहले आओ पहले पाओ जैसे नियम तो होते नहीं. हर मेहमान की सीट पूर्व निर्धारित होती है. क्या ऐसे मौकों पर सीटों के निर्धारण के दौरान राजनीतिक तौर पर कोई ध्यान नहीं रखा जाता? जिस सरकार को छोटी छोटी बातों में राजनीतिक दखल देने की चर्चा होती रही हो, क्या महत्वपूर्ण सीटों का निर्धारण सिर्फ अफसरों के हवाले छोड़ दिया गया होगा? क्या किसी ने राहुल गांधी और नितिन गडकरी की सीटें पास पास होने का कोई असर भी हो सकता है, इस बात को राजनीतिक नजरिये से नहीं देखा होगा?

क्या राहुल गांधी और नितिन गडकरी की सीटें अगल-बगल होना महज संयोग है या मोदी सरकार का गलती से हुआ कोई मिस्टेक?

हाल ही की एक ऐसी ही मुलाकात की खूब चर्चा हुई है - मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की बंद कमरे में 40 मिनट की मीटिंग.' अब तक उस मीटिंग के रहस्य पर से परदा नहीं उठा है.

क्या दोनों जब विदा ले रहे होंगे तो फिल्म महल का वो गीत उनके कानों में गूंज नहीं रहा होगा - 'ये दुनिया वाले पूछेंगे मुलाकात हुई, क्या बात हुई - ये बात किसीसे ना कहना!'

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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