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मोदी को सुधारों का इतिहास गढ़ना चाहिए

    • मंजीत ठाकुर
    • Updated: 27 मई, 2019 06:55 PM
  • 27 मई, 2019 06:55 PM
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देश की मौजूदा आर्थिक स्थिति उग्र सुधारवादी कदमों की मांग करती है. उम्मीद है मोदी अपने दूसरे कार्यकाल में एक चुनाव जीतने के लिए काम करने वाले राजनेता की बजाए एक स्टेट्समैन की तरह सोचना शुरू करेंगे.

हाल के भारतीय इतिहास को देखें तो विशेष रूप से उन सरकारों ने बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है जिन्होंने बड़ी जीत हासिल की हो. 1971 में प्रचंड जीत के दो साल बाद, इंदिरा गांधी को बड़ी आर्थिक और सामाजिक अशांति का सामना करना पड़ा था. जिसने उन्हें 1975 में आपातकाल लगाने के लिए प्रेरित किया. 1984 में राजीव गांधी, आजादी के बाद के सबसे बड़े जनादेश के साथ सत्ता में आए थे (414 सीटें) हालांकि 1987 आते-आते उनकी सरकार लड़खड़ाने लगी थी और 1989 में वे सत्ता से बाहर हो गए थे. दो कार्यकाल की सरकार चलाना और भी कठिन है, यह अहसास मनमोहिन सिंह को बेहतर रहा होगा. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी स्वीकार करते हैं कि 2012 तक आते-आते यूपीए-2 में बहुत सी खामियां आ गई थीं. जिसके कारण 2014 में पार्टी को अपमानजनक पराजय का सामना करना पड़ा. मोदी को इतिहास पर ध्यान देना चाहिए. अपने भाषण में वे इस जनादेश को फकीर की झोली में डाला गया दान मान चुके हैं, उन्हें लोगों के उस विश्वास को पूरा करना होगा, जो लोगों ने उनमें जताया है.

देश की मौजूदा आर्थिक स्थिति उग्र सुधारवादी कदमों की मांग करती है. उम्मीद है मोदी अपने दूसरे कार्यकाल में एक चुनाव जीतने के लिए काम करने वाले राजनेता की बजाए एक राष्ट्र नेता (स्टेट्समैन) की तरह सोचना शुरू करेंगे.

देश की मौजूदा आर्थिक स्थिति उग्र सुधारवादी कदमों की मांग करती है

यह जनादेश जहिर है, मोदी को विकास के तमाम बड़े मुद्दों पर बड़े फैसले लेने में सक्षम बनाएगा. मोदी को भारतीय अर्थव्यवस्था में जान फूंकनी होगी, नौकरियों और रोजगार का सृजन करना होगा, कृषि संकट के लिए तत्काल कोशिशें करनी होगी. देश में सूखे का आसन्न संकट मुंह बाए खड़ा है. महाराष्ट्र में लगातार दो साल से सूखा भयावह रूप में सामने है. मॉनसून पर अल नीनो की दानवी...

हाल के भारतीय इतिहास को देखें तो विशेष रूप से उन सरकारों ने बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है जिन्होंने बड़ी जीत हासिल की हो. 1971 में प्रचंड जीत के दो साल बाद, इंदिरा गांधी को बड़ी आर्थिक और सामाजिक अशांति का सामना करना पड़ा था. जिसने उन्हें 1975 में आपातकाल लगाने के लिए प्रेरित किया. 1984 में राजीव गांधी, आजादी के बाद के सबसे बड़े जनादेश के साथ सत्ता में आए थे (414 सीटें) हालांकि 1987 आते-आते उनकी सरकार लड़खड़ाने लगी थी और 1989 में वे सत्ता से बाहर हो गए थे. दो कार्यकाल की सरकार चलाना और भी कठिन है, यह अहसास मनमोहिन सिंह को बेहतर रहा होगा. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी स्वीकार करते हैं कि 2012 तक आते-आते यूपीए-2 में बहुत सी खामियां आ गई थीं. जिसके कारण 2014 में पार्टी को अपमानजनक पराजय का सामना करना पड़ा. मोदी को इतिहास पर ध्यान देना चाहिए. अपने भाषण में वे इस जनादेश को फकीर की झोली में डाला गया दान मान चुके हैं, उन्हें लोगों के उस विश्वास को पूरा करना होगा, जो लोगों ने उनमें जताया है.

देश की मौजूदा आर्थिक स्थिति उग्र सुधारवादी कदमों की मांग करती है. उम्मीद है मोदी अपने दूसरे कार्यकाल में एक चुनाव जीतने के लिए काम करने वाले राजनेता की बजाए एक राष्ट्र नेता (स्टेट्समैन) की तरह सोचना शुरू करेंगे.

देश की मौजूदा आर्थिक स्थिति उग्र सुधारवादी कदमों की मांग करती है

यह जनादेश जहिर है, मोदी को विकास के तमाम बड़े मुद्दों पर बड़े फैसले लेने में सक्षम बनाएगा. मोदी को भारतीय अर्थव्यवस्था में जान फूंकनी होगी, नौकरियों और रोजगार का सृजन करना होगा, कृषि संकट के लिए तत्काल कोशिशें करनी होगी. देश में सूखे का आसन्न संकट मुंह बाए खड़ा है. महाराष्ट्र में लगातार दो साल से सूखा भयावह रूप में सामने है. मॉनसून पर अल नीनो की दानवी छाया है और मॉनसून देर से भी आएगा और कमजोर भी होगा.

मोदी को रेल की हालत में भी सुधार करना होगा. इन कदमों में किराए में बढोतरी भी एक होगी ताकि देश की अधिसंख्य आबादी के लिए परिवहन के ये साधन चुस्त-दुरुस्त हो सके. असल में अपने इस दूसरे कार्यकाल में मोदी को कुछ उग्र सुधारवादी कदम उठाने होंगे. कुछ राजनैतिक और सामाजिक मुद्दे भी हैं जिन पर मोदी को बहुत एहतियात के साथ कदम उठाने होंगे. भाजपा ने पूरे चुनाव प्रचार में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के खात्मे की बात कही है. इस दिशा में सरकार सख्ती से कदम उठाएगी तो मामला उल्टा भी पड़ सकता है. घाटी पहले ही अशांत दौर से गुजर रही है. ऐसे में सरकार को यह काम घाटी में सर्वसम्मति बनाकर करना चाहिए. सरकार को वहां के लोगों को बताना चाहिए कि इस दर्जे को छोड़ देने से सूबे को कितना फायदा पहुंच सकता है. कुछ वैसे ही जैसे पार्टी ने तीन तलाक का कानून बनाते वक्त किया था.

इसी तरह उग्र हिंदुत्व समर्थक राम मंदिर के निर्माण के लिए हड़बड़ी मचा सकते हैं. पर मजबूत सरकार को चाहिए कि वह सौहार्द्रपूर्ण माहौल में समाधान की दिशा में बढ़े. पर राम मंदिर का एजेंडे में आगे रहना जरूरी है क्योंकि अति-उत्साह में आई हिंदुत्ववादी ताकते अगर बागी होने लग गईं तो यह सरकार और देश दोनों के लिए अच्छा नहीं होगा. सरकार को यह तय करना होगा कि विपक्ष के आरोपों के मुताबिक गोरक्षा या ऐसे ही तमाम फिसड्डी मुद्दों को लेकर सरकार के इकबाल पर असर न पड़े और देश का अल्पसंख्यक, खासकर मुसलमान, बकौल विपक्ष, असुरक्षित न महसूस करे.

विजय के बाद के अपने भाषणों के जरिए मोदी ऐसा कह चुके हैं. फिलहाल, मोदी ऐसे नेता हैं जिनके सामने कोई बड़ा संकट नहीं है. उनकी लोकप्रियता में जनता की अपार उम्मीदें छिपी हैं. अब मोदी को सुधारों का इतिहास गढ़ना चाहिए.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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