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Modi के 'अंधे विरोध' पर हाईकोर्ट ने लगाया 1 लाख का जुर्माना!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 22 दिसम्बर, 2021 05:15 PM
  • 22 दिसम्बर, 2021 05:15 PM
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कोरोना वैक्सीन के सर्टिफिकेट पर पीएम मोदी की तस्वीर देखकर आहत एक व्यक्ति ने इस तस्वीर के खिलाफ केरल हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की. कोर्ट ने याचिका को ख़ारिज तो किया ही साथ ही जुर्माने के रूप में एक ऐसा सबक भी दिया जो याचिकाकर्ता को लंबे समय तक याद रहेगा.

'देश की अदालतें तकरीबन हर रोज कोई न कोई ऐसा फैसला जरूर सुनाती हैं जो न केवल समाज के लिए नजीर बनता है बल्कि जिनसे समाज को बड़ा सबक मिलता है. केरल में भी कुछ ऐसा ही हुआ है जहां केरल उच्च न्यायालय ने न केवल एक याचिका को खारिज किया है बल्कि याचिकाकर्ता पर अदालत का कीमती वक़्त जाया करने के लिए एक लाख रुपये का जुर्माना भी ठोंका है. मामला कोरोना वैक्सीन के प्रमाणपत्र से जुड़ा है जिसमें देश के प्रधानमंत्री की तस्वीर है.'

एक ऐसे समय में जब एक वर्ग को ये लगता हो कि महंगाई से लेकर बेरोजगारी तक हर दूसरी बात के लिए पीएम मोदी जिम्मेदार हों, कोरोना वैक्सीन के सर्टिफिकेट पर उनकी तस्वीर ऐसे लोगों को कहां ही रास आने वाली. मामला अदलात की क्षरण में चला गया और अदालत ने न केवल याचिका को खारिज किया बल्कि याचिकाकर्ता को एक ऐसा सबक दिया जो शायद उसे लंबे समय तक याद रहे. बताते चलें कि याचिकाकर्ता पीटर म्यालीपारमबिल जो कि एक आरटीआई एक्टिविस्ट हैं और NCPRI के स्टेट कॉर्डिनेटर हैं. "कोरोना वैक्सीन के सर्टिफिकेट पर पीएम मोदी की तस्वीर देखकर न केवल आहत हुए बल्कि इसके खिलाफ कोर्ट गए जहां उन्हें भरी अदालत में मुंह की खानी पड़ी है.

कोविड वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट को लेकर केरल हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है

अदालत ने इससे पहले इसी माह हुई सुनवाई के दौरान भी याचिकाकर्ता को आड़े हाथों लिया था.कोर्ट ने याचिकाकर्ता से सवाल किया था कि वैक्सीन सर्टिफिकेट पर प्रधानमंत्री की फोटो में क्या गलत है? मामले पर केरल हाई कोर्ट ने कहा कि प्रधानमंत्री किसी राजनीतिक दल के नहीं बल्कि राष्ट्र के नेता हैं और नागरिकों को उनकी तस्वीर और 'मनोबल बढ़ाने वाले संदेश' के साथ वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट ले जाने में शर्मिंदा होने की जरूरत नहीं...

'देश की अदालतें तकरीबन हर रोज कोई न कोई ऐसा फैसला जरूर सुनाती हैं जो न केवल समाज के लिए नजीर बनता है बल्कि जिनसे समाज को बड़ा सबक मिलता है. केरल में भी कुछ ऐसा ही हुआ है जहां केरल उच्च न्यायालय ने न केवल एक याचिका को खारिज किया है बल्कि याचिकाकर्ता पर अदालत का कीमती वक़्त जाया करने के लिए एक लाख रुपये का जुर्माना भी ठोंका है. मामला कोरोना वैक्सीन के प्रमाणपत्र से जुड़ा है जिसमें देश के प्रधानमंत्री की तस्वीर है.'

एक ऐसे समय में जब एक वर्ग को ये लगता हो कि महंगाई से लेकर बेरोजगारी तक हर दूसरी बात के लिए पीएम मोदी जिम्मेदार हों, कोरोना वैक्सीन के सर्टिफिकेट पर उनकी तस्वीर ऐसे लोगों को कहां ही रास आने वाली. मामला अदलात की क्षरण में चला गया और अदालत ने न केवल याचिका को खारिज किया बल्कि याचिकाकर्ता को एक ऐसा सबक दिया जो शायद उसे लंबे समय तक याद रहे. बताते चलें कि याचिकाकर्ता पीटर म्यालीपारमबिल जो कि एक आरटीआई एक्टिविस्ट हैं और NCPRI के स्टेट कॉर्डिनेटर हैं. "कोरोना वैक्सीन के सर्टिफिकेट पर पीएम मोदी की तस्वीर देखकर न केवल आहत हुए बल्कि इसके खिलाफ कोर्ट गए जहां उन्हें भरी अदालत में मुंह की खानी पड़ी है.

कोविड वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट को लेकर केरल हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है

अदालत ने इससे पहले इसी माह हुई सुनवाई के दौरान भी याचिकाकर्ता को आड़े हाथों लिया था.कोर्ट ने याचिकाकर्ता से सवाल किया था कि वैक्सीन सर्टिफिकेट पर प्रधानमंत्री की फोटो में क्या गलत है? मामले पर केरल हाई कोर्ट ने कहा कि प्रधानमंत्री किसी राजनीतिक दल के नहीं बल्कि राष्ट्र के नेता हैं और नागरिकों को उनकी तस्वीर और 'मनोबल बढ़ाने वाले संदेश' के साथ वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट ले जाने में शर्मिंदा होने की जरूरत नहीं है.

याचिका की सुनवाई के दौरान हाइकोर्ट ने कहा, 'कोई यह नहीं कह सकता कि प्रधानमंत्री कांग्रेस के प्रधानमंत्री हैं या भाजपा के प्रधानमंत्री या किसी राजनीतिक दल के प्रधानमंत्री हैं. लेकिन एक बार जब प्रधानमंत्री संविधान के अनुसार चुन लिए जाते हैं, तो वह हमारे देश के प्रधानमंत्री होते हैं और वह पद हर नागरिक का गौरव होना चाहिए. वहीं अदालत ने ये भी कहा कि, 'वे सरकार की नीतियों और यहां तक कि प्रधानमंत्री के राजनीतिक रुख से भी असहमत हो सकते हैं. लेकिन नागरिकों को विशेष रूप से इस महामारी की स्थिति में मनोबल बढ़ाने वाले संदेश के साथ प्रधानमंत्री की तस्वीर के साथ टीकाकरण प्रमाण-पत्र ले जाने में शर्मिंदा होने की जरूरत नहीं है.

अदालत ने यह भी कहा कि जब कोविड-19 महामारी को केवल टीकाकरण से ही समाप्त किया जा सकता है तो अगर प्रधानमंत्री ने प्रमाण पत्र में अपनी तस्वीर के साथ संदेश दिया कि दवा और सख्त नियंत्रण की मदद से भारत वायरस को हरा देगा तो इसमें 'क्या गलत है?' याचिका से साफ था कि इसमें याचिकाकर्ता द्वारा राजनीतिक हित साधे जा रहे थे इसलिए शायद इस बात को कोर्ट ने भी समझा और अदालत ने एक लाख रुपये का जुर्माना लगाते हुए याचिका को खारिज कर दिया.

कोर्ट ने याचिकाकर्ता को फटकार लगाते हुए बहुत ही स्पष्ट लहजे में कहा कि याचिका 'तुच्छ, गलत उद्देश्यों के साथ प्रचार के लिए' दायर की गई और याचिकाकर्ता का शायद इसके पीछे कोई ' पॉलिटिकल एजेंडा' भी था. कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि वह जुर्माने की राशि अगले छह हफ्तों के अंदर जमा करे. कोर्ट जुर्माने की रकम को लेकर कितना गंभीर थी इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यदि याचिकाकर्ता जुर्माने की राशि को जमा नहीं कर पाता है तो केरल स्टेट लीगल सर्विसेज अथॉरिटी को याचिकाकर्ता की संपत्ति से इस रकम को हासिल करने का अधिकार होगा.

जुर्माने को लेकर कोर्ट का मत है कि ने जुर्माना सिर्फ इसलिए लगा है ताकि लोगों को पता लग सके कि इस तरह की फालतू याचिकाएं कोर्ट का समय बर्बाद करती हैं. बहरहाल, अब जबकि जुर्माना लग गया है. तो शायद याचिकाकर्ता की आंखें खुल गईं हों. चूंकि इस याचिका की एक बड़ी वजह प्रधानमंत्री का विरोध है. हम प्रधानमंत्री के विरोधियों से इतना जरूर कहेंगे कि विरोध दर्ज करना उनका मौलिक अधिकार है लेकिन अधिकारों का ये मतलब बिल्कुल नहीं है कि मर्यादा को ताख पर रख दिया जाए और इस तरह की नीचता पर उतरते हुए कोर्ट का दरवाजा खटखटाकर उसका समय बर्बाद कर दिया जाए.

बात कोरोना वैक्सीन के सर्टिफिकेट पर पीएम की तस्वीर के विरोध की है तो ये बताना भी बहुत जरूरी है कि ये प्रधानमंत्री पीएम मोदी की फैन फ़ॉलोइंग ही थी जिसके चलते देश की सौ करोड़ आबादी ने कोरोना से बचने के लिए वैक्सीन ली वरना इतनी बड़ी आबादी का टीकाकरण करना किसी भी मुल्क के लिए आसान नहीं है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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