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नरेंद्र मोदी सरकार के सामने हैं 6 बड़ी चुनौतियां

    • प्रभाष कुमार दत्ता
    • Updated: 29 मई, 2019 07:18 PM
  • 29 मई, 2019 07:18 PM
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अपने दूसरे कार्यकाल के लिए शपथ लेने से पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काम निर्धारित हो चुके हैं. प्रधानमंत्री पद की दूसरी पारी शुरू करते ही पीएम मोदी को 6 बड़ी चुनौतियों से निपटना होगा.

चुनाव खत्म हो चुके हैं और नरेंद्र मोदी दूसरी बार भी तैयार हैं. 30 मई को शपथ ग्रहण समारोह होने वाला है जिसमें पड़ोसी देशों के बड़े-बड़े नेता शामिल होंगे सिवाए पाकिस्तान और चीन के.

नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री के तौर पर दूसरी बार सत्ता में आए हैं, और अपनी ही सरकार से उन्हें अनसुलझे मुद्दे विरासत में मिले हैं. उन्हें कृषि, नौकरी के क्षेत्र, अर्थव्यवस्था, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और आंतरिक सामाजिक असहमति से संबंधित समस्याओं को सुलझाना होगा.

प्रधानमंत्री का ये कार्यकाल चुनौतियों से भरा है

कृषि संकट

कृषि, फॉरेस्ट्री और मछली पालन तीनों कृषि के प्रमुख रूप हैं- जिसमें 2004-05 में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 21 प्रतिशत शामिल था. पिछले 15 वर्षों में यह घटकर करीब 13 प्रतिशत रह गया. लेकिन खेतों में इसके हिसाब से कार्यबल की संख्या में गिरावट नहीं हुई है.

देश में 55 प्रतिशत वर्क फोर्स कृषि में ही लगा हुआ है. इस क्षेत्र में करीब 26 करोड़ लोग काम कर रहे हैं. इसका मतलब ये हुआ कि भारत की 55 से 57 प्रतिशत आबादी कृषि पर ही निर्भर है. जो पिछले काफी समय से संकट में है और नरेंद्र मोदी सरकार की उपेक्षा झेल रही है.

कृषि में वर्तमान संकट की वजह खाद्य कीमतों में गिरावट है. मोदी सरकार के नए MSP शासन के कार्यान्वयन के बावजूद, किसानों को उनकी फसल पर मुनाफा नहीं मिल रहा.

किसानों को खुश रखना मोदी के लिए चुनौती है

लोकसभा चुनावों से कुछ समय पहले ही मोदी सरकार ने पीएम किसान योजना के जरिए किसानों का...

चुनाव खत्म हो चुके हैं और नरेंद्र मोदी दूसरी बार भी तैयार हैं. 30 मई को शपथ ग्रहण समारोह होने वाला है जिसमें पड़ोसी देशों के बड़े-बड़े नेता शामिल होंगे सिवाए पाकिस्तान और चीन के.

नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री के तौर पर दूसरी बार सत्ता में आए हैं, और अपनी ही सरकार से उन्हें अनसुलझे मुद्दे विरासत में मिले हैं. उन्हें कृषि, नौकरी के क्षेत्र, अर्थव्यवस्था, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और आंतरिक सामाजिक असहमति से संबंधित समस्याओं को सुलझाना होगा.

प्रधानमंत्री का ये कार्यकाल चुनौतियों से भरा है

कृषि संकट

कृषि, फॉरेस्ट्री और मछली पालन तीनों कृषि के प्रमुख रूप हैं- जिसमें 2004-05 में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 21 प्रतिशत शामिल था. पिछले 15 वर्षों में यह घटकर करीब 13 प्रतिशत रह गया. लेकिन खेतों में इसके हिसाब से कार्यबल की संख्या में गिरावट नहीं हुई है.

देश में 55 प्रतिशत वर्क फोर्स कृषि में ही लगा हुआ है. इस क्षेत्र में करीब 26 करोड़ लोग काम कर रहे हैं. इसका मतलब ये हुआ कि भारत की 55 से 57 प्रतिशत आबादी कृषि पर ही निर्भर है. जो पिछले काफी समय से संकट में है और नरेंद्र मोदी सरकार की उपेक्षा झेल रही है.

कृषि में वर्तमान संकट की वजह खाद्य कीमतों में गिरावट है. मोदी सरकार के नए MSP शासन के कार्यान्वयन के बावजूद, किसानों को उनकी फसल पर मुनाफा नहीं मिल रहा.

किसानों को खुश रखना मोदी के लिए चुनौती है

लोकसभा चुनावों से कुछ समय पहले ही मोदी सरकार ने पीएम किसान योजना के जरिए किसानों का बोझ थोड़ा कम करने की कोशिश की. इस योजना के अंतर्गत किसानों को प्रति वर्ष तीन किश्तों में 6,000 रुपये की नकद सहायता दी जाती है.

नई सरकार को कृषि में बड़ी समस्याएं हल करनी होंगी जिसमें कृषि श्रमिकों को अन्य रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना होगा. ये प्रधानमंत्री मोदी के लिए एक बड़ी चुनौती होगी.

बेरोजगारी

भारत की अनुमानित 136 करोड़ की जनसंख्या का 67 प्रतिशत हिस्सा 15-64 वर्षीय लोगों का है. इसमें नौकरी ढूंढ रहे लोग 91 करोड़ से भी ज्यादा हैं. हालांकि ये सारे ही नौकरी नहीं ढूंढ रहे होंगे लेकिन ये संख्या अपने आप में इतनी बड़ी है कि ये किसी भी सरकार के लिए चुनौती है.

'अच्छे दिन' के नारे के साथ दो करोड़ नौकरियां हर साल के वादे ने नरेंद्र मोदी की सरकार को 2014 में सत्ता दिलवाई थी. लेकिन नोटबंदी और जीएसटी की वजह से परेशानियां और बढ़ गईं. सरकार ने इन्हें इकोनॉमी का कोर्स करेक्शन कहा - लेकिन इससे बड़े पैमाने पर लोग बेरोजगार हो गए.

इस साल जनवरी में सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) की रिपोर्ट में कहा गया कि 2016 में हुई नोटबंदी और 2017 के जीएसटी रोलआउट के साइड इफेक्ट के रूप में 2018 में करीब 1.1 करोड़ नौकरियां खत्म हो गईं.

लाखों बेरोजगारों के लिए नौकरियां उपलब्ध कराना काफी मुश्किल काम है

बेरोजगारी दर के आधिकारिक आंकड़े इस साल की शुरुआत में एक अखबार को लीक हो गए. उसमें कहा गया था कि 2017-18 में बेरोजगारी 45 साल के उच्चम स्तर पर थी. औसत बेरोजगारी दर 6.1 प्रतिशत था. इसे नोटबंदी और जीएसटी के रोलआउट का असर माना गया.

रिपोर्ट बताती हैं कि साप्ताहिक और मासिक बेरोजगारी दर पिछले कई महीनों से सात प्रतिशत के आसपास देखी जा रही है. इंडिया स्पेंड एनालिसिस के मुताबिक, हर साल जॉब मार्केट में 1.2 करोड़ लोग प्रवेश करते हैं जिनमें से केवल 47.5 लाख को ही नौकरी मिलती है. बाकी बेरोजगार रह जाते हैं.

नई मोदी सरकार को बिना देरी किए लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने की जरूरत है, नहीं तो ये समस्या उनके कार्यकाल में किसी भी समय विकराल रूप ले सकती है. युवा बेरोजगारी के टाइम बम पर बैठे हैं जिसकी घड़ी बहुत तेजी से चल रही है.

अर्थव्यवस्था की खामियों को दूर करना

मोदी सरकार उच्च जीडीपी विकास दर कायम रखने में सक्षम रही, जो दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक बन गई. लेकिन ये विकास संकेत कई गहरी समस्याओं की ओर इशारा करते हैं.

कम मुद्रास्फीति के बावजूद निजी खपत और निवेश धीमा हो गया है. ऑटोमोबाइल बिक्री, रेल माल, घरेलू हवाई यातायात, पेट्रोलियम उत्पादों की खपत और आयात के आंकड़े खपत में मंदी के संकेत देते हैं. प्रमुख रूप से बिकने वाले कार, दोपहिया वाहन और ट्रैक्टरों की बिक्री गिर रही है. गैर-तेल, गैर-सोना, गैर-चांदी, और गैर-कीमती और अर्ध-कीमती पत्थरों के आयात, ये वो चीजें हैं जिसनी उपभोक्ता मांग किया करते थे. लेकिन पिछले चार महीनों में ये भी नहीं रही.

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक पिछले दो साल से काफी खराब हालत में हैं. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का एनपीए दिसंबर 2018 के अंत में 8 ट्रिलियन रुपये से अधिक रहा. वर्तमान में बैंक उनके पास जमा आखिरी पैसा भी उधार दे रहे हैं. हालिया आर्थिक परिस्थितियां नरेंद्र मोदी सरकार से समाधान की आशा कर रही हैं.

मुस्लिम और अल्पसंख्यकों की सुध

रिपोर्ट्स की मानें तो, मोदी सरकार की शानदार चुनावी जीत के बावजूद भी अल्पसंख्यकों के एक वर्ग के बीच काफी बेचैनी है, खासकर मुसलमानों में. हाल ही में हुई कुछ घटनाएं- बिहार में एक मुस्लिम शख्स से नाम पूछने के बाज उसपर गोली चलाना और गोमांस की अफवाह पर मध्य प्रदेश में एक जोड़े की पिटाई करने की घटना ने लोगों में आ रही इन भावनाओं को और बढ़ा दिया है.

पीएम मोदी ने अपने संबोधन में, नवनिर्वाचित सांसदों को कहा कि अगले पांच वर्षों में उन्हें 'सबका साथ, सबका विकास' के सात-साथ 'सबका विश्वास' भी सुनिश्चित करना होगा.

भाजपा के मुंहफट और बड़बोले नेताओं पर लगाम

नवनिर्वाचित सांसदों में, भाजपा के पास कुछ ऐसे नेता हैं जो अपने मुंह से गोली चलाने के लिए जाने जाते हैं. लोकसभा चुनाव के सातवें चरण से ठीक पहले पीएम मोदी को सार्वजनिक रूप से भोपाल की सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के गोडसे को देशभक्त कहने वाले बयान की निंदा करनी पड़ी थी. केंद्र में पिछले कार्यकाल के दौरान, मोदी सरकार और भाजपा नेतृत्व को पार्टी के वरिष्ठ नेता साक्षी महाराज समेत कई सांसदों द्वारा दिए गए विवादास्पद बयानों से शर्मिंदगी झेलनी पड़ी थी.

साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने गोडसे को देशभक्त बताकर प्रदानमंत्री मोदी को शर्मिदा किया

पीएम मोदी ने अपने संबोधन में इस तरह के बड़बोले नेताओं को चेतावनी देते हुए कहा, 'हम सरकार के रूप में बहुत अच्छा काम कर सकते हैं, लेकिन आपका एक गलत वाक्य हमारा नाम खराब कर सकता है. दो प्रवृत्तियों से हमेशा सावधान रहें जिसके बारे में आडवाणी जी चेतावनी दिया करते थे- छपास और दिखास यानी अखबारों में प्रकाशित होने और टीवी पर देखने की लालसा'.

पाकिस्तान और आतंकवाद

जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने लोकसभा चुनाव में मोदी की जीत पर बधाई देने के लिए फोन किया और शांतिपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों की दिशा में काम करने की इच्छा व्यक्त की तो प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान को एक कड़ा संकेत दिया. समझा जाता है कि पीएम मोदी ने इमरान खान से कहा कि पाकिस्तान झूठ बोलता है, और बातचीत और आतंक एक साथ नहीं चल सकते.

पड़ोसी देशों के नेताओं को पीएम मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया गया है लेकिन इमरान खान का नाम लिस्ट में नहीं है. यह पुलवामा आतंकी हमले के अपमान और बालाकोट में आतंकी ठिकाने पर हुई एयर स्ट्राइक के कारण हो सकता है. पाकिस्तान के साथ भारत के संबंध कूटनीति का सरल मामला नहीं है. इसमें कश्मीर और धार्मिक सद्भाव जैसे कई मसले शामिल हैं.

पीएम मोदी का ये कार्यकाल पिछले कार्यकाल जितना सुखद नहीं होगा. इस बार मोदी के पास ढेरों चुनौतियां हैं जिनके समाधान उनकी सरकार को तत्काल करने होंगे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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