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PM Modi का 'आत्मनिर्भता अभियान' बेरोजगारी बर्दाश्त करने का नया बहाना तो नहीं?

    • अनूप मिश्रा
    • Updated: 13 मई, 2020 04:28 PM
  • 13 मई, 2020 04:27 PM
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राष्ट्र के नाम अपने सम्बोधन में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने आत्मनिर्भरता (Self Reliant) की बात तो कह दी है मगर ऐसे तमाम कारण हैं जो बताते हैं केंद्र द्वारा इस महामारी (Pandemic) के मद्देनजर जारी किया गया फंड जरूरतमंदों के पास नहीं पहुंचेगा और बेरोजगारी (Unemployment) बढ़ेगी.

हमें तो कत्तई 2006 में ही पता चल गया था कि एक दिन मोदी जी (Narendra Modi) देश के प्रधानमंत्री (Prime Minister) बनेंगे और आत्मनिर्भर (Self Reliant) बनने के लिए बोलेंगे. अब जब देश की GDP तेज़ी से जीरो की ओर अग्रसर है, कॉरपोरेट ध्वस्तीकरण की ओर है, SME सेक्टर बेहोश है, प्रोडक्शन से लेके डिस्ट्रीब्यूशन तक ठप्प है, माइक्रो रिटेल, और रियल एस्टेट तो विकास की बारिश के वज्रपात में कब के स्वाहा हो चुके हैं, जो गलती से बचे कुचे हैं तो वो लॉक डाउन में दम तोड़ देंगे. इससे पहले की कोई आप को जॉब से निकल दे, या न रहे तो पहले ही आत्मनिर्भर बनने में ही भलाई है. क्योंकि मैं आत्मनिर्भर हूं तो मुझे काम की तलाश भी होगी. चूंकि मार्केट में मंदी है प्राइवेट सेक्टर तबाही के कगार पर हैं, कॉस्टकटिंग जोरों पर, तो ऐसे माहौल में काम कौन देगा?

तो क्या मुझे सरकारी टेंडर्स की ओर देखना चाहिए पर वहां भी टेंडर छोटा या बड़ा जो भी है वो डरवाने टर्नओवर दिखा के बड़ा कट देने वाली कंपनियों, बाबुओं के दलालों, सत्ताधारी पार्टी के नेताओं व उनके आत्मनिर्भर बच्चों व उनपे निर्भर करीबियों से बचते नहीं. सम्पूर्ण कब्ज़ा है. सरकार भी आप की काबिलियत आप के बैलेंस शीट से नापती है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में आत्मनिर्भर बनने की बात तो की मगर तमाम कारण हैं जिनके चलते ये संभव नहीं है

पर असली संकट तो सामने है मोदी जी कह रहे हैं लोकल को बढ़ाओ. पर किन लोकल्स को? हम जैसे आत्मनिर्भरों से काम लेने वाले लोकल क्या अब भी जीवित बचे हैं? पर करना तो है आखिर मोदी जी ने जो कहा है. वार्ना देश क्या कहेगा! तो क्या चाय -पकौड़े का ठेला ही अंतिम विकल्प होगा?

क्या आत्मनिर्भरता का कोई और विकल्प बचा है? क्या अब मैं खुद ही, खुद के लिए प्रोजेक्ट बना लूं, खुद के लिए...

हमें तो कत्तई 2006 में ही पता चल गया था कि एक दिन मोदी जी (Narendra Modi) देश के प्रधानमंत्री (Prime Minister) बनेंगे और आत्मनिर्भर (Self Reliant) बनने के लिए बोलेंगे. अब जब देश की GDP तेज़ी से जीरो की ओर अग्रसर है, कॉरपोरेट ध्वस्तीकरण की ओर है, SME सेक्टर बेहोश है, प्रोडक्शन से लेके डिस्ट्रीब्यूशन तक ठप्प है, माइक्रो रिटेल, और रियल एस्टेट तो विकास की बारिश के वज्रपात में कब के स्वाहा हो चुके हैं, जो गलती से बचे कुचे हैं तो वो लॉक डाउन में दम तोड़ देंगे. इससे पहले की कोई आप को जॉब से निकल दे, या न रहे तो पहले ही आत्मनिर्भर बनने में ही भलाई है. क्योंकि मैं आत्मनिर्भर हूं तो मुझे काम की तलाश भी होगी. चूंकि मार्केट में मंदी है प्राइवेट सेक्टर तबाही के कगार पर हैं, कॉस्टकटिंग जोरों पर, तो ऐसे माहौल में काम कौन देगा?

तो क्या मुझे सरकारी टेंडर्स की ओर देखना चाहिए पर वहां भी टेंडर छोटा या बड़ा जो भी है वो डरवाने टर्नओवर दिखा के बड़ा कट देने वाली कंपनियों, बाबुओं के दलालों, सत्ताधारी पार्टी के नेताओं व उनके आत्मनिर्भर बच्चों व उनपे निर्भर करीबियों से बचते नहीं. सम्पूर्ण कब्ज़ा है. सरकार भी आप की काबिलियत आप के बैलेंस शीट से नापती है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में आत्मनिर्भर बनने की बात तो की मगर तमाम कारण हैं जिनके चलते ये संभव नहीं है

पर असली संकट तो सामने है मोदी जी कह रहे हैं लोकल को बढ़ाओ. पर किन लोकल्स को? हम जैसे आत्मनिर्भरों से काम लेने वाले लोकल क्या अब भी जीवित बचे हैं? पर करना तो है आखिर मोदी जी ने जो कहा है. वार्ना देश क्या कहेगा! तो क्या चाय -पकौड़े का ठेला ही अंतिम विकल्प होगा?

क्या आत्मनिर्भरता का कोई और विकल्प बचा है? क्या अब मैं खुद ही, खुद के लिए प्रोजेक्ट बना लूं, खुद के लिए मार्केटिंग कर के खुद को ही बेच लूं. और उसपे GST काट के सरकार के खाते में जमा भी करा दूं, फिर प्रॉफिट पे टैक्स भी दे दूं और इनकम टैक्स भी जमा करा दूं और फ़िर सरकार उसे आर्थिक पैकेज के जैसे मुझे लौटा देगी? क्या सच मे 20 लाख करोड़ पैकेज मिलेगा हमें?

क्योंकि मैं एक मिडिल क्लास का आत्मनिर्भर हूं. तो ये जो हज़ारों करोड़ो के आर्थिक पैकेज हैं वो मेरे सामने से बड़े बड़े चट कर जायेगे. बिल्कुल सरकारी टेंडर के जैसे. हमें तो भनक भी न लगेगी. जैसे हज़ारों करोड़ का बजट जाता कहां है किसी को नहीं पता होता, जैसे मुद्रा योजना में अब तक बैकों के 17 हज़ार करोड़ रुपये NPA हो चुके हैं.

जाने कहां गए वो आत्मनिर्भर लोग किसी को नहीं पता, आप बैंक लोन की एक किश्त न दे के देखिये, पाताल से खोज निकालेंगे आपको. वैसे भी माल्या, नीरव, या वो CCD, जेट एयर वालों के जैसे आत्मनिर्भर होते तो सरकार कंपनियां बन्द करा देती, लाखों लोगों को बेरोजगार कर देती, हंसती खेलती जिंदगी को परिवार सहित सड़क पे ला देती और वसूल लेती पर ये 17 हज़ार करोड़ रुपये को डकारने वाले डकैत कौन थे जिनकी जानकारी किसी को न हुई, बस पी के बैठ गए.

ये बिल्कुल वैसे ही डकैती है जैसे कोई ऑनलाइन ठग एक मोटे बैंक एकाउंट्स में सेंधमारी करता है और उस पैसे को हज़ारों छोटे छोटे एकाउंट्स में ट्रांसफर कर देता है. क्या यहां भी यही हुआ है. लाखों छोटे छोटे एकाउंट्स में देश का 17 हज़ार करोड़ ट्रासंफर. खैर अब पार्टियाँ भी तो आत्मनिर्भर लोगों की हैं. उनके लिए कौन सा आर्थिक पैकेज है? अब इन्हें भी तो 100, 50 करोड़ के छोटे मोटे चंदों पे जिंदा रहना पड़ता है.

वैसे आत्मनिर्भर तो वो शहरों में काम करने वाले मजदूर भी थे,जो अब सड़कों पर हैं. सुना है सरकार गरीबों के लिए बड़ा काम करती है. पर गरीब तो पहले से आत्मनिर्भर है. और मोदी जी कह रहे कि अब देश को भी आत्मनिर्भर बनना है. तो क्या अब देश भी सड़क पे होगा? सवाल कई हैं. पर मैं निश्चिन्त हूं, क्योंकि मैं आत्मनिर्भर हूं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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