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अरविंद केजरीवाल से खफा बनारसी, नाम दिया 'रणछोड़'

    • संध्या द्विवेदी
    • Updated: 03 मई, 2019 04:04 PM
  • 02 मई, 2019 07:19 PM
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वाराणसी के लोग अरविंद केजरीवाल पर अब भरोसा नहीं करते. पिछले इलेक्शन में उन्हें लाखों वोट देने के बाद भी दोबारा उन्होंने काशी की ओर पलट कर भी नहीं देखा.

बनारस में नरेंद्र मोदी एक बार फिर से मैदान में हैं. उनके सामने कांग्रेस के अजय राय और फिलहाल समाजवादी पार्टी (सपा)-बहुजन समाज पार्टी (बसपा) गठबंधन की तरफ से शालिनी यादव हैं. लेकिन यहां की जनता और दूसरी पार्टियों के कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल की याद बार-बार कर रहे हैं. एक तरफ राजनीतिक कार्यकर्ता तंज कर रहे हैं तो दूसरी तरफ जनता उन पर धोखेबाज होने का आरोप मढ़ रही है. यहां के गांव लोहता में रहने वाली सीमा कहती हैं, ''पिछले साल तो गंगा का जल हाथ में लेकर बोले थे कि कुछ भी हो जाए बनारस नहीं छोड़ेंगे. महीनों यहीं बनारस में पड़े रहे थे. वोट तो उन्हें भी मिले थे. पर, हारने के बाद दोबारा दर्शन नहीं दिए. इस बार चुनाव लड़ने भी नहीं आए.''

सीमा के साथ खड़े राकेश कहते हैं, "रणछोड़ नाम दिए हैं. मतलब जो रण छोड़कर भाग जाए. अबकी लड़ने नहीं आए, मोदी से डर गए क्या?" राकेश की यह बात दरअसल खीझ का नतीजा है, ''पिछली बार नरेंद्र मोदी को अरविंद केजरीवाल ने टक्कर दी थी, जहां कांग्रेस के अजय राय की जमानत जब्त हो गई थी वहीं केजरीवाल को यहां के 2 लाख नौ हजार लोगों ने वोट दिया था. अब केजरीवाल को वोट देने वाले उनकी इस दगाबाजी से नाराज हैं. चोलापुर ब्लाक के गांव बरथरा खुर्द की शाहिदा कहती हैं, ''अरे जिस बनारस ने पहली ही बार में आप को लाखों वोट दे दिए कम से कम कभी तो उसकी सुध लेनी चाहिए थी."

अरविंद केजरीवाल को पिछली बार बनारस से 2 लाख 9 हज़ार वोट मिले थे. (तस्‍वीर 2014 के वाराणसी चुनाव की).

अरविंद केजरीवाल तो अपनी बात से इतना पलटे हैं कि उनका नाम ही यहां सब 'यू-टर्न' रख दिए हैं. कांग्रेस से इस बार फिर मैदान में अजय राय हैं, ''वे तो सीधे कहते हैं, अरविंद केजरीवाल ने यहां की जनता को खूब ठगा, लाखों वोट लिए और चंपत हो गए. हार जीत तो राजनीति...

बनारस में नरेंद्र मोदी एक बार फिर से मैदान में हैं. उनके सामने कांग्रेस के अजय राय और फिलहाल समाजवादी पार्टी (सपा)-बहुजन समाज पार्टी (बसपा) गठबंधन की तरफ से शालिनी यादव हैं. लेकिन यहां की जनता और दूसरी पार्टियों के कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल की याद बार-बार कर रहे हैं. एक तरफ राजनीतिक कार्यकर्ता तंज कर रहे हैं तो दूसरी तरफ जनता उन पर धोखेबाज होने का आरोप मढ़ रही है. यहां के गांव लोहता में रहने वाली सीमा कहती हैं, ''पिछले साल तो गंगा का जल हाथ में लेकर बोले थे कि कुछ भी हो जाए बनारस नहीं छोड़ेंगे. महीनों यहीं बनारस में पड़े रहे थे. वोट तो उन्हें भी मिले थे. पर, हारने के बाद दोबारा दर्शन नहीं दिए. इस बार चुनाव लड़ने भी नहीं आए.''

सीमा के साथ खड़े राकेश कहते हैं, "रणछोड़ नाम दिए हैं. मतलब जो रण छोड़कर भाग जाए. अबकी लड़ने नहीं आए, मोदी से डर गए क्या?" राकेश की यह बात दरअसल खीझ का नतीजा है, ''पिछली बार नरेंद्र मोदी को अरविंद केजरीवाल ने टक्कर दी थी, जहां कांग्रेस के अजय राय की जमानत जब्त हो गई थी वहीं केजरीवाल को यहां के 2 लाख नौ हजार लोगों ने वोट दिया था. अब केजरीवाल को वोट देने वाले उनकी इस दगाबाजी से नाराज हैं. चोलापुर ब्लाक के गांव बरथरा खुर्द की शाहिदा कहती हैं, ''अरे जिस बनारस ने पहली ही बार में आप को लाखों वोट दे दिए कम से कम कभी तो उसकी सुध लेनी चाहिए थी."

अरविंद केजरीवाल को पिछली बार बनारस से 2 लाख 9 हज़ार वोट मिले थे. (तस्‍वीर 2014 के वाराणसी चुनाव की).

अरविंद केजरीवाल तो अपनी बात से इतना पलटे हैं कि उनका नाम ही यहां सब 'यू-टर्न' रख दिए हैं. कांग्रेस से इस बार फिर मैदान में अजय राय हैं, ''वे तो सीधे कहते हैं, अरविंद केजरीवाल ने यहां की जनता को खूब ठगा, लाखों वोट लिए और चंपत हो गए. हार जीत तो राजनीति का हिस्सा है. लेकिन अपने वोटर से ऐसा दगा, अब यहां के वोटर कभी उन पर भरोसा नहीं करेंगे.''

जनवरी 2019 में जब 'आप' संयोजक संजय सिंह ने अरविंद केजरीवाल पर दिल्ली की जिम्मेदारियों का हवाला देकर कहा बनारस से चुनाव न लड़ने की बात कही थी, तभी से उन पर अन्य राजनीतिक दल निशाना साध रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय सचिव आर.पी. सिंह ने उस वक्त कहा था, ''इनका कोई ठौर-ठिकाना नहीं, कभी कसम खाकर कहते हैं, कांग्रेस और भाजपा से समर्थन नहीं लेंगे, फिर कांग्रेस से समर्थन के लिए बिल्कुल डेस्परेट हो जाते हैं. कहते हैं, बनारस कभी नहीं छोड़ूंगा फिर भागकर दिल्ली आ जाते हैं, बनारस कभी नहीं जाते हैं. सच तो यह है कि केजरीवाल साहब सत्ता प्राप्ति के लिए आम आदमी का मुखौटा पहनकर आम आदमी को ही छलते हैं.'' कांग्रेस के प्रवक्ता हरनाम सिंह ने भी भाजपा प्रवक्ता की बात से सहमति जताई थी.

फिलहाल इस बार बनारस में नरेंद्र मोदी को टक्कर देने वाला कोई प्रत्याशी नजर नहीं आ रहा. गठबंधन ने पहले कांग्रेस से सपा में आईं शालिनी यादव को उतारा पर एक दिन में ही उनकी जगह बीएसएफ से बर्खास्त तेजबहादुर को उतारा. लेकिन तेजबहादुर का नामांकन चुनाव आयोग ने रद्द कर दिया है. अब गठबंधन की तरफ से मैदान में कौन होगा? स्‍पष्‍ट हो गया है कि दोबारा शालिनी यादव मैदान में हैं. उधर अजय राय पिछले साल जमानत जब्त करा ही चुके है. हालांकि, इस बार वे 'माटी के लाल' बनाम 'बाहरी' का नारा देकर मैदान में हैं.

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