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खबरदार, यह ईमानदारों की कतार है, बेईमान दूर रहें !

    • शिवानन्द द्विवेदी
    • Updated: 19 नवम्बर, 2016 12:19 PM
  • 19 नवम्बर, 2016 12:19 PM
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यह वही जनता है जो कभी सिलेंडर गैस तो कभी यूरिया तो कभी रेल टिकट के लिए आये दिन कतारों में नजर आती रही है. इस देश में सत्तर वर्षों में जो लंबी कतार खड़ी की गई है अब नोटबंदी के इस फैसले ने उस कतार को तोड़ दिया है.

केंद्र सरकार द्वारा पांच सौ और एक हजार के नोट बंद करने के फैसले के बाद से ही मोदी-विरोधी एक राजनीतिक जमात में भूचाल की स्थिति है. इस साहसिक एवं ऐतिहासिक निर्णय के दूरगामी नफा-नुकसान पर बहस करने के बजाय कुछ राजनीतिक जमात के लोग बैंकों की कतारों पर बहस करना चाहते हैं. चूंकि इस निर्णय को लेकर आम जनता के मन में एकतरफा समर्थन का भाव खुलकर दिख रहा है, लिहाजा कुछ राजनीतिक खेमों के लोग इसपर चर्चा करने से भागते नजर आ रहे हैं.

लोगों ने इस निर्णय को स्वीकार कर लिया है

देश का आम जन अपनी कुछ दिनों की परेशानियों को दरकिनार कर इस ऐतिहासिक निर्णय को स्वीकार कर चुका है. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि वो कौन लोग हैं जो इस निर्णय को स्वीकार करने से कतरा रहे हैं ? वो कौन लोग हैं जो इस निर्णय को वापस लेने के लिए असफल रैलियां कर रहे हैं ? वो कौन लोग हैं जो महंगी गाड़ियों और एसपीजी सुरक्षा में जाकर दो घंटे में अपना चार हजार रुपया निकालने के बावजूद झूठ बोल रहे हैं कि पैसा नहीं मिल रहा ? एक सवाल यह भी है कि ये लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं ?

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इस सवाल पर पड़ताल करने से पहले जरा 'कतार' पर बहस कर लें. राहुल गांधी ने तो अपना चार हजार रुपया दो घंटे में निकाल लिया लेकिन लोगों को गुमराह कर रहे हैं कि पैसा नहीं निकल रहा है. दरअसल यह उनकी नीयत में खोट को दर्शाता...

केंद्र सरकार द्वारा पांच सौ और एक हजार के नोट बंद करने के फैसले के बाद से ही मोदी-विरोधी एक राजनीतिक जमात में भूचाल की स्थिति है. इस साहसिक एवं ऐतिहासिक निर्णय के दूरगामी नफा-नुकसान पर बहस करने के बजाय कुछ राजनीतिक जमात के लोग बैंकों की कतारों पर बहस करना चाहते हैं. चूंकि इस निर्णय को लेकर आम जनता के मन में एकतरफा समर्थन का भाव खुलकर दिख रहा है, लिहाजा कुछ राजनीतिक खेमों के लोग इसपर चर्चा करने से भागते नजर आ रहे हैं.

लोगों ने इस निर्णय को स्वीकार कर लिया है

देश का आम जन अपनी कुछ दिनों की परेशानियों को दरकिनार कर इस ऐतिहासिक निर्णय को स्वीकार कर चुका है. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि वो कौन लोग हैं जो इस निर्णय को स्वीकार करने से कतरा रहे हैं ? वो कौन लोग हैं जो इस निर्णय को वापस लेने के लिए असफल रैलियां कर रहे हैं ? वो कौन लोग हैं जो महंगी गाड़ियों और एसपीजी सुरक्षा में जाकर दो घंटे में अपना चार हजार रुपया निकालने के बावजूद झूठ बोल रहे हैं कि पैसा नहीं मिल रहा ? एक सवाल यह भी है कि ये लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं ?

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इस सवाल पर पड़ताल करने से पहले जरा 'कतार' पर बहस कर लें. राहुल गांधी ने तो अपना चार हजार रुपया दो घंटे में निकाल लिया लेकिन लोगों को गुमराह कर रहे हैं कि पैसा नहीं निकल रहा है. दरअसल यह उनकी नीयत में खोट को दर्शाता है. अगर वे ईमानदारी दिखाते तो सबके सामने स्वीकार करते कि "हां! मै कतार में लगा था और मुझे मेरा पैसा मिला! लेकिन नहीं, उनकी जबान तो कुछ और बोल रही है! दरअसल राहुल गांधी को यह बात बखूबी पता होनी चाहिए कि इस देश की आम जनता को 'कतारों' से कभी समस्या नहीं रही है. सत्तर साल की सरकारों, जिसमें लगभग साठ साल कांग्रेस ही सत्ता में रही है, ने इस देश की आम जनता को कतार में खड़े रहने की आदत डाल दी है. यह वही जनता है जो कभी सिलेंडर गैस तो कभी यूरिया तो कभी रेल टिकट के लिए आये दिन कतारों में नजर आती रही है. इसलिए इस जनता को अब कतारों का भय न दिखाइए. इस देश में सत्तर वर्षों में जो लंबी कतार आपने खड़ी की है अब नोटबंदी के इस फैसले ने उस कतार को तोड़ दिया है. यह वह कतार बन रही है जिसमें देश का आम जन खड़ा होकर बिना किसी डर के, भय के अपने हक़ के लिए और देश के भविष्य के निर्माण के लिए खड़ा होने को तैयार है. यह कतार ईमानदारों की कतार है. प्रधानमंत्री मोदी ने जो यह कतार बनाई है, इस कतार में किसी भ्रष्ट, बेईमान और चोरी से काली कमाई करने वाले की हिम्मत नहीं हो पा रही कि वो खुलकर खड़ा हो सके. लिहाजा यह ईमानदारी का उत्सव मना रहे देश की ईमानदार जनता की कतार है.

भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रही इस लड़ाई का लगातार विरोध कर रहे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की अपनी कोई विश्वसनीयता नहीं रही है. वे खुद कभी लालू यादव तो कभी किसी और के समर्थन में खड़े होकर अपनी साख पर बट्टा लगा चुके हैं. लेकिन अब जब देश की आम जनता के साथ कालाधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रही इस निर्णायक लड़ाई का समय आया तो वे बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ मिलकर इसका विरोध करते नजर आ रहे हैं. वैसे तो बिना किसी सुबूत और बुनियाद के किसी पर भी आरोप लगाने के रोग से ग्रसित दिल्ली के मुख्यमंत्री अनेक बार सुबूत न दे पाने की वजह से अपनी फजीहत भी करा चुके हैं, लेकिन आज एकबार फिर वे बिना किसी सुबूत के मनगढ़ंत बातें कर रहे हैं. दिल्ली की जनता के मन में यह सवाल बेजा नहीं उठ रहा है कि ममता बनर्जी और दिल्ली के मुख्यमंत्री के बीच किस मुद्दे पर सहमती बनी है ?

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ममता बनर्जी, मायावती सहित कुछ लोग पहले दिन से भ्रष्टाचार के खिलाफ इस निर्णायक लड़ाई में भ्रष्ट लोगों के साथ खड़े हैं. लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल आखिर क्यों इनके साथ खड़े हैं ? मोदी के इस फैसले से आतंकवादियों को फंडिंग करने वालों, माओवादियों को संसाधन मुहैया कराने वालों, तस्करों, अपराधियों, भ्रष्टाचार करने वालों की पीड़ा तो जायज है लेकिन इन चंद नेताओं की इस फैसले के खिलाफ एकजुटता भी कम शक नहीं पैदा करती है ? ऐसे में बड़ा सवाल जनता के जेहन में है कि जब पंजाब में चुनाव होने हैं तो क्या आम आदमी पार्टी को चुनाव में इस्तेमाल करने के लिए जुटाए गए धन के रद्दी हो जाने की चिंता सता रही है ? यह सबको पता है कि पारदर्शिता की बात करने वाली आम आदमी पार्टी काफी समय से अपने आय और व्यय का ब्योरा सार्वजनिक नहीं कर रही है.

खैर, कतार लंबी जरुर है लेकिन बंदोबस्त ऐसा है कि उस कतार में कोई बेईमान और भ्रष्ट ज्यादा देर टिक नहीं पाए. यह वो कतार है जिसने देश की आम और ईमानदार जनता को बेईमानों के सामने गौरवान्वित होने का अवसर दिया है. यह वह कतार है जहाँ जाने भर से न जाने कितने बेईमान खौफ खा रहे हैं. नोटबंदी के खिलाफ उठने वाली हर आवाज इस देश में ईमानदारी की बन रही इस ऐतिहासिक कतार के खिलाफ एक साजिश की तरह है. आज या तो आप इस कतार के साथ हैं या आप भ्रष्ट और बेईमानी से धन अर्जित करने वालों के साथ हैं. वैसे भी मोदी की अच्छी बात यह है कि वो प्रमाणपत्र देने वालों की परवाह किए बिना, जनहित में दशकों से काम करते हुए यहां तक पहुंचे हैं. जिनका डूब रहा है वे बौखला रहे हैं. आम लोग थोड़ी परेशानियों के बावजूद इस मुहिम के साथ कतारबद्ध होकर खड़े हैं. यही वजह है कि लाख कोशिशों के बावजूद नोटबंदी के खिलाफ की जा रही कुछ रैलियों में मोदी-मोदी के नारे लग रहे हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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