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पंकजा मुंडे मान तो गयीं - बदले में BJP में क्या मिलने वाला है?

    • आईचौक
    • Updated: 05 दिसम्बर, 2019 07:42 PM
  • 05 दिसम्बर, 2019 03:10 PM
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पंकजा मुंडे (Pankaja Munde) का गुस्सा फिलहाल शांत हो गया है. मान-मनौव्वल के दौरान देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) से भी बात हुई और उसके बाद बताया कि वो BJP छोड़ कर कहीं नहीं जाने वाली - उनके शिवसेना में जाने के कयास लगाये जा रहे थे.

महाराष्ट्र (Maharashtra Politics) की बीजेपी नेता पंकजा मुंडे (Pankaja Munde) की पार्टी से नाराजगी खत्म हो गई है. बीजेपी के कद्दावर नेता रहे गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा ने खुद को बीजेपी (BJP) की सच्ची कार्यकर्ता बताते हुए कहा है - 'बगावत मेरे खून में नहीं है.'

पंकजा मुंडे की नाराजगी की बातें उन्हीं के सोशल मीडिया स्टेटस के जरिये सामने आयीं. पहले प्रोफाइल से बीजेपी हटाया और फिर फेसबुक (Facebook Post) पर एक लंबी पोस्ट लिख कर बताया कि जल्द ही वो आगे की रणनीति को लेकर फैसला ले लेंगी.

पंकजा मुंडे महाराष्ट्र में बीजेपी का ओबीसी (OBC Face) का बड़ा चेहरा हैं और सत्ता गंवाने के बाद कोई नेता गंवा देना पार्टी के लिए बड़ा नुकसान होता - लिहाजा बीजेपी के नेताओं चंद्रकांत पाटिल और विनोद तावड़े को टास्क मिला था पंकजा मुंडे को मनाने का और वो मान भी गयीं.

पंकजा का मानने के लिए ही रूठी थीं?

पंकजा मुंडे के पास सफाई में कहने को कुछ था भी नहीं. फिर तो पल्ला झाड़ते हुए दूसरों पर ठीकरा फोड़ देना ही आखिरी रास्ता बनता है. पंकजा मुंडे ने भी यही किया. कहतीं भी क्या इसलिए बोल दिया - 'मेरी फेसबुक पोस्ट का गलत मतलब निकाला गया है और मेरे पार्टी छोड़ने की अफवाह फैलाई गई है.'

पंकजा मुंडे का ये दावा जरूर सही है कि उन्होंने सीधे सीधे या साफ शब्दों में बीजेपी छोड़ने का कोई ऐलान नहीं किया था - लेकिन जो कुछ कहा था वो क्या था?

बिना लाग लपेट के पंकजा मुंडे ने लिखा था कि वो 10 दिन में अपने आगे के रास्ते के बारे में फैसला करेंगी - 'आइए, हम सब आने वाली 12 तारीख को गोपीनाथ-गढ़ में मिलते हैं.' 12 दिसंबर को पंकजा के पिता गोपीनाथ मुंडे का जन्मदिन है और उसी मौके पर ये रैली बुलाई गयी थी.

पंकजा मुंडे विधानसभा चुनाव में परली सीट पर अपने ही चचेरे भाई, राजनीतिक विरोधी और एनसीपी उम्मीदवार धनंजय मुंडे से हार गयी थीं - और अब भी उन्हें यकीन है कि बीजेपी के लोगों ने ही पंकजा मुंडे की हार की स्क्रिप्ट लिख डाली थी. हालांकि, पंकजा मुंडे के...

महाराष्ट्र (Maharashtra Politics) की बीजेपी नेता पंकजा मुंडे (Pankaja Munde) की पार्टी से नाराजगी खत्म हो गई है. बीजेपी के कद्दावर नेता रहे गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा ने खुद को बीजेपी (BJP) की सच्ची कार्यकर्ता बताते हुए कहा है - 'बगावत मेरे खून में नहीं है.'

पंकजा मुंडे की नाराजगी की बातें उन्हीं के सोशल मीडिया स्टेटस के जरिये सामने आयीं. पहले प्रोफाइल से बीजेपी हटाया और फिर फेसबुक (Facebook Post) पर एक लंबी पोस्ट लिख कर बताया कि जल्द ही वो आगे की रणनीति को लेकर फैसला ले लेंगी.

पंकजा मुंडे महाराष्ट्र में बीजेपी का ओबीसी (OBC Face) का बड़ा चेहरा हैं और सत्ता गंवाने के बाद कोई नेता गंवा देना पार्टी के लिए बड़ा नुकसान होता - लिहाजा बीजेपी के नेताओं चंद्रकांत पाटिल और विनोद तावड़े को टास्क मिला था पंकजा मुंडे को मनाने का और वो मान भी गयीं.

पंकजा का मानने के लिए ही रूठी थीं?

पंकजा मुंडे के पास सफाई में कहने को कुछ था भी नहीं. फिर तो पल्ला झाड़ते हुए दूसरों पर ठीकरा फोड़ देना ही आखिरी रास्ता बनता है. पंकजा मुंडे ने भी यही किया. कहतीं भी क्या इसलिए बोल दिया - 'मेरी फेसबुक पोस्ट का गलत मतलब निकाला गया है और मेरे पार्टी छोड़ने की अफवाह फैलाई गई है.'

पंकजा मुंडे का ये दावा जरूर सही है कि उन्होंने सीधे सीधे या साफ शब्दों में बीजेपी छोड़ने का कोई ऐलान नहीं किया था - लेकिन जो कुछ कहा था वो क्या था?

बिना लाग लपेट के पंकजा मुंडे ने लिखा था कि वो 10 दिन में अपने आगे के रास्ते के बारे में फैसला करेंगी - 'आइए, हम सब आने वाली 12 तारीख को गोपीनाथ-गढ़ में मिलते हैं.' 12 दिसंबर को पंकजा के पिता गोपीनाथ मुंडे का जन्मदिन है और उसी मौके पर ये रैली बुलाई गयी थी.

पंकजा मुंडे विधानसभा चुनाव में परली सीट पर अपने ही चचेरे भाई, राजनीतिक विरोधी और एनसीपी उम्मीदवार धनंजय मुंडे से हार गयी थीं - और अब भी उन्हें यकीन है कि बीजेपी के लोगों ने ही पंकजा मुंडे की हार की स्क्रिप्ट लिख डाली थी. हालांकि, पंकजा मुंडे के पक्ष में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह दोनों ने उनके इलाके में रैली भी की थी.

पंकजा के मान जाने के लिए क्या मिलने वाला है?

पंकजा मुंडे का शक तब और भी गहरा हो गया जब बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस ने एनसीपी नेता अजित पवार के साथ एक दिन तड़के सरकार बना ली और उसके केंद्र में धनंजय मुंडे ही नजर आये. दरअसल, एनसीपी विधायकों को धनंजय मुंडे के घर ही बुलाया गया था और उसके बाद सब लोग राज भवन जहां देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. वैसे धनंजय मुंडे बाद में शरद पवार के पास लौट आये थे.

पंकजा मुंडे को सबसे ज्यादा गुस्सा तो इसी बात से आया कि उनके कट्टर विरोधी नेता को सारी बातें मालूम थीं और उन्हें पूरे मिशन से बाहर रखा गया. एक तो देवेंद्र फडणवीस और दूसरे धनंजय मुंडे, भला पंकजा मुंडे कितना बर्दाश्त कर पातीं? ये सब उनके शक को और भी मजबूत कर रहा था कि बीजेपी में ही एक लॉबी उनके खिलाफ धनंजय को चुनावी जीत दिलाने में लगी हुई थी.

देवेंद्र फडणवीस और पंकजा मुंडे के बीच छत्तीस का आंकड़ा बहुत पहले ही बन गया था. माना जाता है कि पंकजा मुंडे बहुत पहले से खुद को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद का दावेदार मान कर चल रही थीं - लेकिन सीएम की कुर्सी कौन कहे वहां तो सब खेल ही उल्टा हो रहा था.

2014 में महाराष्ट्र में बीजेपी की सरकार बनने के साल भर बाद पुणे में अपने समर्थकों के बीच पंकजा मुंडे ने एक ऐसी बात कह दी थी जो उनके और देवेंद्र फडणवीस के बीच जहर के बीज के तौर पर जगह बनाती गयी. पंकजा मुंडे का कहना रहा कि वो मुख्यमंत्री बनेंगी या मंत्री के रूप में ही काम करती रहेंगी ये तो नहीं मालूम लेकिन वो इसी बात से खुश हैं कि लोगों की नजरों में वो मुख्यमंत्री हैं. पंकजा मुंडे का ये बयान देवेंद्र फडणवीस को बहुत बुरा लगा और वो मौके की ताक में बैठ गये.

उस वाकये के एक साल बाद देवेंद्र फडणवीस ने पंकजा को कैबिनेट में तो बनाये रखा लेकिन उनसे दो मंत्रालय छीन लिये. पंकजा के समर्थकों ने उनके इलाके में खूब बवाल किया और देवेंद्र फणडवीस का पुतला तक जलाया. तब सिंगापुर में मौजूद पंकजा मुंडे ने ट्विटर पर लिखा कि वो अगले दिन होने वाली वर्ल्ड वाटर लीडर सम्मेलन में हिस्सा नहीं लेंगी क्योंकि वो मंत्रालय उनके पास नहीं है. पंकजा ने ये भी बताया कि वो सम्मेलन में निमंत्रण मिलने पर पहुंची थीं. तभी ट्विटर पर ही देवेंद्र फडणवीस ने हिदायद दे डाली कि वो महाराष्ट्र सरकार की ओर से सम्मेलन में शामिल जरूर हों.

तब से लेकर अब तक ऐसे कई वाकये हुए जब पंकजा मुंडे विवादों में रहीं और देवेंद्र फडणवीस से टकराव भी होता रहा. चुनाव नतीजे आने पर मालूम हुआ कि देवेंद्र फडणवीस के हारने वाले सात मंत्रियों में पंकजा मुंडे का नाम भी शुमार रहा. देवेंद्र फडणवीस के हाथ से सत्ता छिन जाने के बाद पंकजा मुंडे को कुछ बड़ा दिखायी देने लगा होगा, ऐसा समझा जाता है. फिर पंकजा ने सोशल मीडिया के जरिये अपने लोगों को इकट्ठा होने का संदेश देकर बीजेपी प्रेशर पॉलिटिक्स शुरू कर दिया और ये तरीका रंग भी लाया.

पंकजा और विनोद तावड़े के बीच लंबी चर्चा हुई और तब जाकर को पंकजा शांत हुईं. इस प्रयास में प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल भी शिद्दत से जुटे हुए थे - जब पंकजा मुंडे के तेवर थोड़े नरम पड़े तो देवेंद्र फडणवीस से भी उनकी फोन पर बात करायी गयी.

पंकजा के दोनों हाथों में लड्डू है

पंकजा मुंडे की फेसबुक पोस्ट के बाद तरह तरह के कयास लगाये गये. माना जाने लगा था कि पंकजा मुंडे के साथ दर्जन भर विधायक भी बीजेपी छोड़ सकते हैं - और सभी के शिवसेना में शामिल होने के अनुमान लगाये जा रहे थे. संजय राउत ने ये कह कर इस बात को और भी हवा देने की कोशिश की कि कई सारे लोग उनके संपर्क में हैं. उसी बीच उद्धव ठाकरे ने भी पंकजा मुंडे को शुक्रिया कह दिया. ये शुक्रिया उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री बनने पर पंकजा मुंडे की बधाई के जवाब में कहा था.

पंकजा मुंडे के ठाकरे परिवार से बरसों पुराना संबंध रहा है - और पंकजा मुंडे उद्धव ठाकरे को अपना भाई मानती हैं. अगर बीजेपी यूं ही चली जाने देती तो पंकजा मुंडे को शिवसेना में भी हाथोंहाथ लिया जा सकता था - और उनके लिए किसी ओहदे का भी इंतजाम किया जाता. संभव था ये मंत्री पद भी हो सकता था.

अब जबकि पंकजा मुंडे ने साफ कर दिया है कि वो कहीं नहीं जा रही हैं और बीजेपी में ही रहेंगी - बस एक ही खबर का इंतजार है. आखिर पंकजा मुंडे किस चीज के लिए रूठी थीं और क्या मिलने के वादे पर मान गयीं?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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