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शरद पवार-देवेंद्र फडणवीस के बीच की दुश्मनी कितनी गहरी है!

    • आईचौक
    • Updated: 04 दिसम्बर, 2019 05:41 PM
  • 04 दिसम्बर, 2019 05:41 PM
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महाराष्ट्र की राजनीति (Maharashtra Politics) में शरद पवार (Sharad Pawar) और देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) के बीच जैसे शतरंज का खेल चला है. कभी पवार आगे तो कभी फडणवीस. अंत में यूं लगा कि फडणवीस ने अपना राजा बचा लिया है कि तभी पवार के प्यादे ने पूरा गेम ही पलट दिया.

जब 26 नवंबर को करीब 80 घंटे तक महाराष्ट्र (Maharashtra Politics) के मुख्यमंत्री पद पर रहने के बाद देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) ने अल्पमत में आने के कारण इस्तीफा दिया, तो उस वक्त सबसे अधिक खुशी हुई थी राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी यानी एनसीपी (NCP) सुप्रीमो शरद पवार (Sharad Pawar) को. भाजपा ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव (Maharashtra Assembly Election) में 105 सीटें जीती थीं, लेकिन बहुमत के आंकड़े से 40 दूर थी. जब अजित पवार ने पहले समर्थन देकर पैर वापस खींचे तो देवेंद्र फडणवीस अकेले पड़ गए. शरद पवार ने 2 दिसंबर को एक मराठी न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा था कि भाजपा 105 सीटें भी पीएम मोदी के नाम पर जीत सकी, इसमें फडणवीस की कोई भूमिका नहीं है.

ये पहली बार नहीं है जब शरद पवार ने फडणवीस की आलोचना की है, लेकिन इस बार वह पहले के मुकाबले और भी गहरा जख्म देने की कोशिश कर रहे हैं. एक और तेज हमला बोलते हुए उन्होंने कहा कि फडणवीस ने महाराष्ट्र के विकास में बहुत ही कम योगदान दिया है. लोगों ने उनके गुस्से और उनके खुद को प्रोजेक्ट करने के तरीके को सिरे से खारिज कर दिया है.

महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार और देवेंद्र फडणवीस के बीच शतरंज का खेल चला.

पवार-फडणवीस में हैं कुछ समानताएं

पवार और फडणवीस में कई बातें एक सी हैं, लेकिन फडणवीस के बारे में पवार ने गंभीरता से तब बात करना शुरू किया, जब वह मुख्यमंत्री बने. बता दें कि पवार का नाम अभी भी महाराष्ट्र के सबसे युवा मुख्यमंत्री के रूप में दर्ज है, जब वह महज 38 साल की उम्र में 1978 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने थे. जब फडणवीस अक्टूबर 2014 में मुख्यमंत्री बने, तब उनकी उम्र 44 साल थी और वह राज्य के दूसरे सबसे युवा मुख्यमंत्री बने. इतना ही नहीं, फडणवीस से पहले...

जब 26 नवंबर को करीब 80 घंटे तक महाराष्ट्र (Maharashtra Politics) के मुख्यमंत्री पद पर रहने के बाद देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) ने अल्पमत में आने के कारण इस्तीफा दिया, तो उस वक्त सबसे अधिक खुशी हुई थी राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी यानी एनसीपी (NCP) सुप्रीमो शरद पवार (Sharad Pawar) को. भाजपा ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव (Maharashtra Assembly Election) में 105 सीटें जीती थीं, लेकिन बहुमत के आंकड़े से 40 दूर थी. जब अजित पवार ने पहले समर्थन देकर पैर वापस खींचे तो देवेंद्र फडणवीस अकेले पड़ गए. शरद पवार ने 2 दिसंबर को एक मराठी न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा था कि भाजपा 105 सीटें भी पीएम मोदी के नाम पर जीत सकी, इसमें फडणवीस की कोई भूमिका नहीं है.

ये पहली बार नहीं है जब शरद पवार ने फडणवीस की आलोचना की है, लेकिन इस बार वह पहले के मुकाबले और भी गहरा जख्म देने की कोशिश कर रहे हैं. एक और तेज हमला बोलते हुए उन्होंने कहा कि फडणवीस ने महाराष्ट्र के विकास में बहुत ही कम योगदान दिया है. लोगों ने उनके गुस्से और उनके खुद को प्रोजेक्ट करने के तरीके को सिरे से खारिज कर दिया है.

महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार और देवेंद्र फडणवीस के बीच शतरंज का खेल चला.

पवार-फडणवीस में हैं कुछ समानताएं

पवार और फडणवीस में कई बातें एक सी हैं, लेकिन फडणवीस के बारे में पवार ने गंभीरता से तब बात करना शुरू किया, जब वह मुख्यमंत्री बने. बता दें कि पवार का नाम अभी भी महाराष्ट्र के सबसे युवा मुख्यमंत्री के रूप में दर्ज है, जब वह महज 38 साल की उम्र में 1978 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने थे. जब फडणवीस अक्टूबर 2014 में मुख्यमंत्री बने, तब उनकी उम्र 44 साल थी और वह राज्य के दूसरे सबसे युवा मुख्यमंत्री बने. इतना ही नहीं, फडणवीस से पहले पवार अकेले ऐसे मुख्यमंत्री थे, जिनके पास होम पोर्टफोलियो (1992-95) भी रह चुका था. अगर पवार ने राज्य में हॉर्टिकल्चर को बढ़ावा दिया था तो फडणवीस ने पानी के संरक्षण को अपना मिशन बना लिया था. दोनों ही इंडस्ट्रियल ग्रोथ पर फोकस रखते थे.

ना पवार ने मौके छोड़े ना फडणवीस ने

इतना ही नहीं, शरद पवार कभी भी फडणवीस को ये बताने का कोई मौका नहीं चूकते हैं कि फडणवीस एक नौसिखिए हैं, जबकि उन्होंने विधायक रहने के दौरान उनके पिता गंगाधर राव के साथ काम किया है. पवार कहते हैं कि गंगाधर राव से उनकी अच्छी दोस्ती थी. उन्होंने उम्मीद थी कि उनके बेटे देवेंद्र फडणवीस भी उनकी सलाह मानेंगे, क्योंकि वह बिना किसी अनुभव के ही मुख्यमंत्री बन गए थे.

वहीं दूसरी ओर, देवेंद्र फडणवीस अपने ही तरीके से काम करना पसंद करते हैं और किसी पर निर्भर नहीं होते. जल संरक्षण की उनकी स्कीम जलयुक्त शिवर अभियान में इतना दम था कि वह भाजपा को ग्रामीण इलाकों तक पहुंचाए. फडणवीस ने फार्म प्रोडक्ट्स की कीमत तय करने वाली संस्थआ एग्रिकल्चर प्रोड्यूस मार्केटिंग कमेटी यानी APMC के ऊपर से कांग्रेस-एनसीपी की पकड़ को कमजोर करने में भी अहम योगदन दिया.

महारष्ट्र की राजनीति में चला शतरंज का खेल

हालांकि, पवार हर वक्त फडणवीस को किनारे लगाने के चक्कर में रहे. 2016 में राजनीतिक रूप से मजबूत मराठा समुदाय ने शिक्षा और सरकारी नौकरी में आरक्षण की मांग करते हुए एक आंदोलन की शुरुआत कर दी. इसी बीच फडणवीस ने पीएम मोदी को इस बात के लिए मना लिया कि छत्रपति शिवाजी के वंशज सम्भाजी राजे को राज्यसभा के लिए नामित किया जाए. इस पर पवार ने मौका ना गंवाते हुए फडणवीस पर जातिगत वार किया और कहा पहले छत्रपति की ओर से पेशवा को नामित किया जाता था, अब पेशवा की ओर से छत्रपति का नामांकन हो रहा है. पवार के इस बयान से मराठा समुदाय तो खुश हुआ, लेकिन फडणवीस को नुकसान हुआ.

इसके बाद एक राजनीतिक शतरंज की बाजी शुरू हुई. फडणवीस ने पूरी कोशिश की कि वो इंडस्ट्री, को-ऑपरेटिव्स और एग्रिकल्चर सेक्टर पर पवार की पकड़ को कमजोर कर सकें. उन्होंने किसान नेता अजित नावले पर दाव खेला, ताकि पवार को टक्कर दी जा सके. उन्होंने चीनी मुगल जैसे विजयसिंह मोहिते-पाटिल को पवार के खिलाफ होने और भाजपा में शामिल होने के लिए भी मना लिया. एक ऐसा वक्त भी आया जब पवार की ताकत कम करने के लिए फडणवीस ने एनसीपी के किसी भी नेता का भाजपा में स्वागत करना शुरू कर दिया, भले ही वह राजनीतिक रूप से तगड़ा हो या नहीं.

सितंबर में मुंबई में हुए India Today Conclave में फडणवीस ने कहा कि अब पवार पॉलिटिक्स खत्म होने के कगार पर पहुंच चुकी है. उन्होंने कहा- 'मेरी राजनीति पवार की राजनीति से काफी अलग है. वह प्रतिशोध लेने वालों में से हैं, लेकिन मैं नहीं. मुझे शतरंज खेलना पसंद नहीं है.' इसके बाद विधानसभा चुनाव के एक चुनाव प्रचार के दौरान फडणवीस ने खुलकर पवार की आलोचना की और उन्हें 'तेल लवालेना पहलवान' (ऐसा पहलवान जिसे पकड़ा ना जा सके) कहा. आखिरकार अंत में खुद फडणवीस को ही पवार ने चेकमेट कर दिया. इस मराठा ने भाजपा और फडणवीस दोनों को सत्ता से बाहर रखने में कामयाबी हासिल कर ली.

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