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Pandit Nehru Birthday: 'बाल दिवस' इसलिए क्योंकि नेहरू बालक नहीं थे!

    • योगेश मिश्रा
    • Updated: 14 नवम्बर, 2020 06:55 PM
  • 14 नवम्बर, 2020 06:55 PM
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आज दिवाली (Diwali) है, उत्तर भारत का सबसे बड़ा त्योहार. एक दूसरे को दिवाली की बधाई दें या न दे लेकिन नेहरू के बारे में अगर कोई भ्रांति फैलाए तो उसे करेक्ट करें.नेहरू सिर्फ कांग्रेस (Congress) का नहीं बल्कि इतिहास का एक बड़ा हिस्सा हैं और जो पीढ़ी गलत इतिहास के साथ बड़ी होगी उसका भविष्य भी अपंग हो जाएगा.

आज दिवाली (Diwali) है, बाल दिवस (Childrens Day) है और देश के पहले अंतरिम और निर्वाचित प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू (Pandit Jawarlal Nehru Birthday) की जयंती है. नेहरू का जन्मदिन ‘बच्चों के दिन’ के रूप में मनाया जाता है लेकिन नेहरू कोई अबोध बालक नहीं थे, जिनके कार्यकाल को आज समीक्षा की जरूरत हो. नेहरू वाकई देश के ‘चाचा’ थे, जिन्होंने ‘बालक’ भारत (India) को चलना और सही मायनों में आत्मनिर्भर बनाना सिखाया. नेहरू वो चिंगारी नहीं थे जो अभाव की हवा से आग में बदले बल्कि नेहरू ने पिता और संसाधनों के खिलाफ जाकर दूसरों के संघर्ष को अपने लिए चुना था.

इस प्रसंग को पढ़ते वक्त मुझे चारू मजूमदार की याद आती है जो खुद जमींदार का बेटा था और आगे चलकर जमींदारों के खिलाफ आंदोलन का जननायक बन गया.

तमाम किस्से हैं जो देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के जीवन से जुड़े हैं

किसी भी नेता का कद उसके दौर में मौजूद विपक्ष से आंका जा सकता है. शुरुआती दौर में नेहरू का कोई विपक्ष नहीं था लेकिन उन्होंने लोहिया से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी का सामना सदन में किया. मंच के पीछे नेहरू का जो संबंध फूलपुर में चुनाव प्रचार के दौरान लोहिया के साथ था या रघुपति सहाय के साथ रहा, नेहरू उसी भावना के जनक थे, सहिष्णु, लोकतांत्रिक और बैर से मुक्त.

अपने बच्चों, भाई, बहनों से नेहरू की तारीफ भले न करें लेकिन ‘बाल दिवस’ के पीछे की भावना जरूर समझाएं. बच्चों से बेइंतहा प्यार करने वाले उस शख्स की अपनी बच्ची और नाती जिस तरह मारे गए, ये देश तो नेहरू से पहले प्रधानमंत्री बनने का बदला कब का ले चुका है.

कल्पना करिए अगर नेहरू सिर्फ हिंदुओं को लेकर चले होते या मंदिर-मस्जिद निर्माण के लिए संघर्ष कर रहे होते तो भारत,...

आज दिवाली (Diwali) है, बाल दिवस (Childrens Day) है और देश के पहले अंतरिम और निर्वाचित प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू (Pandit Jawarlal Nehru Birthday) की जयंती है. नेहरू का जन्मदिन ‘बच्चों के दिन’ के रूप में मनाया जाता है लेकिन नेहरू कोई अबोध बालक नहीं थे, जिनके कार्यकाल को आज समीक्षा की जरूरत हो. नेहरू वाकई देश के ‘चाचा’ थे, जिन्होंने ‘बालक’ भारत (India) को चलना और सही मायनों में आत्मनिर्भर बनाना सिखाया. नेहरू वो चिंगारी नहीं थे जो अभाव की हवा से आग में बदले बल्कि नेहरू ने पिता और संसाधनों के खिलाफ जाकर दूसरों के संघर्ष को अपने लिए चुना था.

इस प्रसंग को पढ़ते वक्त मुझे चारू मजूमदार की याद आती है जो खुद जमींदार का बेटा था और आगे चलकर जमींदारों के खिलाफ आंदोलन का जननायक बन गया.

तमाम किस्से हैं जो देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के जीवन से जुड़े हैं

किसी भी नेता का कद उसके दौर में मौजूद विपक्ष से आंका जा सकता है. शुरुआती दौर में नेहरू का कोई विपक्ष नहीं था लेकिन उन्होंने लोहिया से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी का सामना सदन में किया. मंच के पीछे नेहरू का जो संबंध फूलपुर में चुनाव प्रचार के दौरान लोहिया के साथ था या रघुपति सहाय के साथ रहा, नेहरू उसी भावना के जनक थे, सहिष्णु, लोकतांत्रिक और बैर से मुक्त.

अपने बच्चों, भाई, बहनों से नेहरू की तारीफ भले न करें लेकिन ‘बाल दिवस’ के पीछे की भावना जरूर समझाएं. बच्चों से बेइंतहा प्यार करने वाले उस शख्स की अपनी बच्ची और नाती जिस तरह मारे गए, ये देश तो नेहरू से पहले प्रधानमंत्री बनने का बदला कब का ले चुका है.

कल्पना करिए अगर नेहरू सिर्फ हिंदुओं को लेकर चले होते या मंदिर-मस्जिद निर्माण के लिए संघर्ष कर रहे होते तो भारत, भारत नहीं सीरिया या फिलिस्तीन की तरह एक सुलगता देश होता. आज दिवाली है, उत्तर भारत का सबसे बड़ा त्योहार. एक दूसरे को दिवाली की बधाई दें या न दे लेकिन नेहरू के बारे में अगर कोई भ्रांति फैलाए तो उसे करेक्ट करें.

नेहरू सिर्फ कांग्रेस का नहीं बल्कि इतिहास का एक बड़ा हिस्सा हैं और जो पीढ़ी गलत इतिहास के साथ बड़ी होगी उसका भविष्य भी अपंग हो जाएगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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