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पाक चुनाव में महिला उम्मीदवारी के रिकॉर्ड की हकीकत कुछ और ही निकली

    • आईचौक
    • Updated: 15 जुलाई, 2018 01:27 PM
  • 15 जुलाई, 2018 01:27 PM
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पहली नज़र में किसी को भी सुनकर ये लगेगा कि पाकिस्तान की राजनीति में महिलाओं की स्वीकार्यता बढ़ रही है. पाकिस्तानी समाज का रुख महिलाओं को लेकर थोड़ा नरम हुआ है. लेकिन इस कहानी के पीछे एक दिलचस्प राज छिपा हुआ है.

पाकिस्तान में जब भी महिलाओं की बात होती है तो हमारे सामने अनायास ही बुर्कानशी महिलाओं की तस्वीर पहली नज़र में उभर के सामने आती है. एक देश, जिसने वैश्वीकरण के दौर में सऊदी अरब प्रचारित कट्टरपंथी वहाबी इस्लाम के मार्ग को अपने सामाजिक जीवन स्तर में उतारा, जिसमें महिलाओं की स्वीकार्यता देश या समाज के नेतृत्व स्तर पर तो नगण्य ही है. पाकिस्तान में संसदीय चुनाव होने हैं और देश की आधी आबादी को अपने पक्ष में करने के लिए देश के नेताओं के बीच होड़ शुरू हो गई है.

पाकिस्तान के संसदीय चुनाव में इस बार महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है. पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार इतनी संख्या में महिला उम्मीदवार चुनावी मैदान में नज़र आ रही हैं. देशभर में नेशनल असेंबली की 272 सामान्या सीटों पर 171 महिला उम्मीदवार चुनाव लड़ रही हैं. पाकिस्तान से आने वाली ख़बरों के मुताबिक, 105 महिला उम्मीरदवारों को विभिन्न पार्टियों ने टिकट दिए हैं. वहीं 66 महिला उम्मीदवार ऐसी हैं, जो स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर चुनावी मैदान में उतरी हैं.

सच्चाई कुछ और है

पहली नज़र में किसी को भी सुनकर ये लगेगा कि पाकिस्तान की राजनीति में महिलाओं की स्वीकार्यता बढ़ रही है. पाकिस्तानी समाज का रुख महिलाओं को लेकर थोड़ा नरम हुआ है. लेकिन इस कहानी के पीछे एक दिलचस्प राज छिपा हुआ है. 1970 में पाकिस्तान के पहले आम चुनाव में महिला वोटरों की संख्या और पुरुष वोटरों की संख्या का अनुपात 77.8:100 था. इसका मतलब 100 पुरुष वोटरों की संख्या में लगभग 78 महिलाएं अपने वोट देने के अधिकार का इस्तेमाल करती थीं, लेकिन ये संख्या 2013 में घटकर 77 हो गई. लगभग पांच दशकों के बाद जब पूरी दुनिया के साथ-साथ सऊदी अरब में महिलाओं के अधिकारों का दायरा बढ़ाया जा रहा है, उसी समय पाकिस्तान में महिला वोटरों की संख्या घटना महिला उम्मीदवारों की प्रासंगिकता पर एक गहरा प्रश्न चिन्ह लगाती है.

पाकिस्तान में जब भी महिलाओं की बात होती है तो हमारे सामने अनायास ही बुर्कानशी महिलाओं की तस्वीर पहली नज़र में उभर के सामने आती है. एक देश, जिसने वैश्वीकरण के दौर में सऊदी अरब प्रचारित कट्टरपंथी वहाबी इस्लाम के मार्ग को अपने सामाजिक जीवन स्तर में उतारा, जिसमें महिलाओं की स्वीकार्यता देश या समाज के नेतृत्व स्तर पर तो नगण्य ही है. पाकिस्तान में संसदीय चुनाव होने हैं और देश की आधी आबादी को अपने पक्ष में करने के लिए देश के नेताओं के बीच होड़ शुरू हो गई है.

पाकिस्तान के संसदीय चुनाव में इस बार महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है. पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार इतनी संख्या में महिला उम्मीदवार चुनावी मैदान में नज़र आ रही हैं. देशभर में नेशनल असेंबली की 272 सामान्या सीटों पर 171 महिला उम्मीदवार चुनाव लड़ रही हैं. पाकिस्तान से आने वाली ख़बरों के मुताबिक, 105 महिला उम्मीरदवारों को विभिन्न पार्टियों ने टिकट दिए हैं. वहीं 66 महिला उम्मीदवार ऐसी हैं, जो स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर चुनावी मैदान में उतरी हैं.

सच्चाई कुछ और है

पहली नज़र में किसी को भी सुनकर ये लगेगा कि पाकिस्तान की राजनीति में महिलाओं की स्वीकार्यता बढ़ रही है. पाकिस्तानी समाज का रुख महिलाओं को लेकर थोड़ा नरम हुआ है. लेकिन इस कहानी के पीछे एक दिलचस्प राज छिपा हुआ है. 1970 में पाकिस्तान के पहले आम चुनाव में महिला वोटरों की संख्या और पुरुष वोटरों की संख्या का अनुपात 77.8:100 था. इसका मतलब 100 पुरुष वोटरों की संख्या में लगभग 78 महिलाएं अपने वोट देने के अधिकार का इस्तेमाल करती थीं, लेकिन ये संख्या 2013 में घटकर 77 हो गई. लगभग पांच दशकों के बाद जब पूरी दुनिया के साथ-साथ सऊदी अरब में महिलाओं के अधिकारों का दायरा बढ़ाया जा रहा है, उसी समय पाकिस्तान में महिला वोटरों की संख्या घटना महिला उम्मीदवारों की प्रासंगिकता पर एक गहरा प्रश्न चिन्ह लगाती है.

पाकिस्तान की राजनीति में उन्ही महिलाओं की स्थिति मज़बूत रही है, जिन्होंने अपने गॉडफादर के सहारे राजनीति में उभरने का रास्ता चुना. चाहे वो हिना रब्बानी खार हों या मरियम नवाज़ शरीफ. पाकिस्तान की राजनीति में इन्होंने अपनी उपस्थिति ठीक-ठाक दर्ज़ करवाई है, लेकिन कभी भी अपनी राजनीतिक विरासत से अलग पहचान बनाने में नाकाम रही हैं. इन शहजादियों को केंद्र में रखकर पाकिस्तान की आम महिलाओं के राजनीतिक स्तर की ईमानदार समीक्षा नहीं हो सकती.

पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी ने इस बार सबसे ज्यादा 19 महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया है. इनमें 11 पंजाब से, 5 सिंध से और 3 महिला उम्मीदवारों को खैबर पख्तून से टिकट दिए गए हैं. खैबर पख्तून का जो इलाका है, वहां आज भी महिलाओं की स्थिति पाकिस्तान में सबसे बदतर है. महिलाओं को टिकट देने वाली राजनीतिक पार्टियां क्या महिलाओं की सामाजिक स्तर में वाकई कुछ सुधार करना चाहती हैं या अपने राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ती के लिए इनका इस्तेमाल भर ही करना उनका एकमात्र इरादा है?

कंटेंट - विकास कुमार (इंटर्न आईचौक)

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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