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पाकिस्तान चुनाव में 'अल्लाह' को भी मैदान में उतारा !

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 14 जुलाई, 2018 11:06 AM
  • 14 जुलाई, 2018 11:06 AM
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पाकिस्तान के चुनाव नजदीक हैं मगर दिलचस्प बात ये है कि यहां चुनाव उसी ढर्रे पर लड़ा जा रहा है जैसा अब तक लड़ा गया है. क्या नवाज और जरदारी, क्या इमरान सब ने अपनी स्थिति साफ कर ली है.

लब्बैक- लब्बैक या रसूल अल्लाह (हम आपके साथ हैं या रसूल अल्लाह) के बुलंद नारे. "फांसी दो, फांसी दो की आवाजें." हरे झंडे पकड़े कुछ एक आम लोग चारों तरफ फैले मौलवी. सजा हुआ मंच. मच पर बैठे मौलाना. पहली नजर में लगेगा कि कोई इज्तेमा चल रहा है, जहां मौलाना दीन के खिलाफ जाने पर किसी को मौत का फरमान सुनाएंगे. साथ ही मौलाना ये भी बताएंगे कि दीन किसी आदमी के लिए कितना महत्त्व रखता है. उसकी हिफाजत के लिए एक आदमी को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए. कहना गलत नहीं है ये एक इज्तेमा (इस्लामी बैठक) ही है मगर इसका उद्देश्य जुदा है. यहां मौजूद लोग ईशनिंदा के गुनाहगार को फांसी देना चाहते हैं और इस फांसी के नाम पर अपनी राजनीति चमकाना चाहते हैं.

तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान के लोगों को ख़ासा आकर्षित कर रही है

बात हो रही है पाकिस्तान की जहां तहरीक-ए-लब्बैक या रसूल अल्लाह अपने तरीके से लोगों का ध्यान आकर्षित कर रहा है और अपने प्रति मिली सहानुभूति को वोटों में बदलने का प्रयास कर रहा है.

जानें क्या है तहरीक-ए-लब्बैक?

तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान यानी टीएलपी एक इस्लामिक राजनीतिक दल है. इस दल की कमान खादिम हुसैन रिज़वी के हाथ में है. आपको बताते चलें कि इस्लामिक आंदोलन के रूप में टीएलपी का गठन 1 अगस्त 2015 को कराची में हुआ था. बाद में ये संगठन राजनीति में प्रवेश करता चला गया. संगठन का मुख्य उद्देश पाकिस्तान को एक इस्लामिक राज्य बनाना है, जो शरियत-ए-मोहम्मदी के अनुसार चले.

पाकिस्तान चुनाव में लोकप्रियता के मामले में इमरान खान बढ़त बनाए हुए हैं...

लब्बैक- लब्बैक या रसूल अल्लाह (हम आपके साथ हैं या रसूल अल्लाह) के बुलंद नारे. "फांसी दो, फांसी दो की आवाजें." हरे झंडे पकड़े कुछ एक आम लोग चारों तरफ फैले मौलवी. सजा हुआ मंच. मच पर बैठे मौलाना. पहली नजर में लगेगा कि कोई इज्तेमा चल रहा है, जहां मौलाना दीन के खिलाफ जाने पर किसी को मौत का फरमान सुनाएंगे. साथ ही मौलाना ये भी बताएंगे कि दीन किसी आदमी के लिए कितना महत्त्व रखता है. उसकी हिफाजत के लिए एक आदमी को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए. कहना गलत नहीं है ये एक इज्तेमा (इस्लामी बैठक) ही है मगर इसका उद्देश्य जुदा है. यहां मौजूद लोग ईशनिंदा के गुनाहगार को फांसी देना चाहते हैं और इस फांसी के नाम पर अपनी राजनीति चमकाना चाहते हैं.

तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान के लोगों को ख़ासा आकर्षित कर रही है

बात हो रही है पाकिस्तान की जहां तहरीक-ए-लब्बैक या रसूल अल्लाह अपने तरीके से लोगों का ध्यान आकर्षित कर रहा है और अपने प्रति मिली सहानुभूति को वोटों में बदलने का प्रयास कर रहा है.

जानें क्या है तहरीक-ए-लब्बैक?

तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान यानी टीएलपी एक इस्लामिक राजनीतिक दल है. इस दल की कमान खादिम हुसैन रिज़वी के हाथ में है. आपको बताते चलें कि इस्लामिक आंदोलन के रूप में टीएलपी का गठन 1 अगस्त 2015 को कराची में हुआ था. बाद में ये संगठन राजनीति में प्रवेश करता चला गया. संगठन का मुख्य उद्देश पाकिस्तान को एक इस्लामिक राज्य बनाना है, जो शरियत-ए-मोहम्मदी के अनुसार चले.

पाकिस्तान चुनाव में लोकप्रियता के मामले में इमरान खान बढ़त बनाए हुए हैं

तहरीक-ए-लब्बैक के बाद पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के इमरान खान हैं. इमरान सियासत में नए हैं मगर जो उनका अंदाज है वो साफ बता रहा है कि उन्हें देश के आम लोगों का समर्थन प्राप्त है, अपने मेनिफेस्टो में इमरान पहले ही इस बात का वर्णन कर चुके हैं कि यदि वो चुनाव जीतते हैं तो पाकिस्तान की तस्वीर बदल कर रख देंगे. इमरान की रैलियों में जिस तरह का जन सैलाब देखने को मिल रहा है वो ये बता रहा है कि अगर पाकिस्तान के सियासतदान उन्हें हल्के में ले रहे हैं तो ये उनकी भारी भूल है.

खादिम हुसैन और इमरान के बाद अगर  बात नवाज की हो तो नवाज भ्रष्टाचार के आरोप में सजा काट रहे हैं मगर उन्होंने अपना रुख साफ कर दिया है. अपने समर्थकों के सामने नवाज अपने विक्टिम दिखा रहे हैं. नवाज शरीफ की बेटी मरियम नवाज ने ट्विटर पर एक वीडियो पोस्ट किया है. वीडियो देखने पर साफ है कि नवाज अपने को 'बेचारा' साबित कर ये बता रहे हैं कि वो बेक़सूर हैं और उनके साथ जो भी हुआ उसके लिए विपक्ष जिम्मेदार है.

बात अगर पाकिस्तान की सियासत की हो रही है तो हम पाकिस्तान के सबसे वरिष्ठ और सबसे मजबूत नेताओं में शुमार आसिफ अली जरदारी को हरगिज़ नहीं नकार सकते. एक जमाने में पाकिस्तान की सियासत में महत्वपूर्ण हैसियत रखने वाले आसिफ अली जरदारी आज हाशिये पर हैं.

पाकिस्तान में क्या नरम दल, क्या गरम दल सभी पार्टियों के पास अपने एजेंडे और पैतरे हैं. गन और गोली से लेकर अल्लाह के रसूल को समर्पित नारों और नवाज के समर्थन या विरोध में उतरी जनता को देखकर बस यही कहा जा सकता है कि पाकिस्तान का चुनाव किसी सस्पेंस थ्रिलर फिल्म सरीखा है जहां कोई भी बड़े ही नाटकीय ढंग से देश का अगला प्रधानमंत्री बन देश के अलावा दुनिया भर के लोगों को हैरत में डाल सकता है.

पाकिस्‍तान के 4 सूबे : कहां, कौन भारी ?

बहरहाल चुनावों के चलते और सियासी घमासान के बीच पाकिस्तान में कयास लगाने का दौर शुरू हो गया है. बात आगे बढ़ाने से पहले एक नजर डालते हैं कि पाकिस्तान में कौन कहां बाजी मार रहा है. मार्केट रिसर्च फर्म गैलप ने पाकिस्‍तान के चार सूबों में सियासी रुझान को जानने के लिए 1 मई से 6 जून के बीच सर्वे किया, जिसके नतीजे कुछ इस तरह से हैं.

पंजाब : सजा के बावजूद नवाज का जलवा कायम

पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में नवाज बढ़त बनाए हुए हैं और अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं

ज्ञात हो कि चुनाव के मद्देनजर पूरे पाकिस्तान में तीन पार्टियों पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज ) पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ और पाकिस्तान पीपल्स पार्टी का दबदबा है. मगर इनमें भी बात जब पंजाब क्षेत्र में दबदबे की आती है तो यहां नवाज की पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) विरोधियों पर भारी है. Gallup पाकिस्तान द्वारा करवाए गए एक सर्वे के अनुसार पंजाब में PML (N) को 40 प्रतिशत वोट मिल रहे हैं जबकि इमरान खान की तहरीक ए इंसाफ यहां दूसरे नंबर पर है जिसे 26 प्रतिशत वोट मिल रहे हैं. जरदारी की पाकिस्तान पीपल्स पार्टी को यहां 6 प्रतिशत वोटों के साथ संतोष करना पड़ रहा है.

ख़ैबर पख़्तूनख़्वा : इमरान के आसपास तो क्‍या, दूर-दूर तक कोई नहीं

ख़ैबर पख़्तूनख़्वा में सिक्का सिर्फ इमरान खान का चल रहा है

ख़ैबर पख़्तूनख़्वा को इमरान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ का गढ़ माना जाता है. पाकिस्तान के इस क्षेत्र में अन्य दलों के मुकाबले तहरीक-ए-इंसाफ ने बढ़त बना रखी है जिसे यहां से तकरीबन 57% वोट मिल रहे हैं. इस क्षेत्र में नवाज की पार्टी जहां 9 प्रतिशत पर सिमट के रह गई है तो वहीं जरदारी भी पिछड़े हैं यहां तीसरे नंबर पर जमिअत उलेमा-ए-इस्लाम (एफ) / एमएमएम है जिसे 6 प्रतिशत वोट मिल रहे हैं.

सिंध : जरदारी की सिंध में लोकप्रियता कायम है

सिंध जरदारी का क्षेत्र हैं यहां जरदारी ने बाजी मार ली है

सिंध क्षेत्र जरदारी का गढ़ है. लाजमी है कि जरदारी यहां से बढ़त बनाएंगे पंजाब में तीसरे और ख़ैबर पख़्तूनख़्वा से गायब ज़रदारी को सिंध से 44% वोट मिल रहे हैं जबकि यहां भी इमरान खान ने नवाज को पीछे कर दिया है. सिंध में नंबर दो पर आने वाली तहरीक-ए-इंसाफ को 9 प्रतिशत और पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज ) को 4% वोट मिलने की सम्भावना है.

बलूचिस्तान : कट्टरपंथी उसी को चाहेंगे जो उनके जैसा होगा

कट्टरपंथियों के किले में बाजी कट्टरपंथ का समर्थन करने वाली जमिअत उलेमा-ए-इस्लाम (एफ) ने मारी है

पाकिस्तान का बलूचिस्तान प्रांत चरमपंथ से प्रभावित रहा है. सर्वे पर यकीन करें तो यहां जमीअत उलेमा-ए-इस्लाम (एफ) / एमएमए 23% सीटों पर बढ़त बना रही है. जमीअत उलेमा-ए-इस्लाम (एफ) / एमएमए के अलावा यहां जरदारी की पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी का भी रुख हैरत में डालने वाला है. जरदारी की पार्टी यहां नंबर दो पर है और उसे 20% वोट मिल रहे हैं. बलूचिस्तान में इमरान खान के हाथ निराशा लगी है जहां उन्हें केवल 5% वोटों से संतोष करना पड़ रहा है.

बड़ा सवाल ये भी रहेगा कि नवाज अपना खोया जनसमर्थन जुटा पाएंगे

इन रुझानों को देखकर इतनी बात समझ में आ जाती है कि पाकिस्तान में किसी भी चीज का पूर्वानुमान आसानी से नहीं लगाया जा सकता. यदि इस बात को हम मौजूदा परिदृश्य में नवाज शरीफ के सन्दर्भ में रखकर देखें तो मिल रहा है कि भले ही नवाज भ्रष्टाचार के आरोप झेल रहे हों और सजा काट रहे हों मगर देश के लिबरल लोगों का आज भी पूरा समर्थन नवाज के साथ है. इस बात को हम Gallup के ही सर्वे से समझ सकते हैं. Gallup द्वारा दिए गए सर्वे के अनुसार अब भी पाकिस्तान की जनता अपने पूर्व प्रधानमंत्री को चाहती है और अगर वक़्त आया तो वो उसकी गलतियों को नजरंदाज कर देगी.

खैर अब पाकिस्तान में लोगों की सहानुभूति के दम पर नवाज दोबारा सत्ता में आएं या फिर इमरान खान देश के प्रधानमंत्री हों मगर जो अब तक के रुझान हैं और जो पाकिस्तान का चुनाव को लेकर मिजाज है वो ये साफ बता रहा है कि देश का चुनाव न सिर्फ साम दाम दंड भेद एक कर लड़ा जा रहा है बल्कि यहां ऐसा बहुत कुछ होने वाला है जो न सिर्फ पाकिस्तान को बल्कि पूरी दुनिया को हैरत में डाल देगा.

पाकिस्तान का भविष्य किसके हाथ में होगा ये हमें आने वाला वक़्त बता देगा. मगर जो अब तक का आंकलन है वो साफ बता रहा है कि पाकिस्तान में विकास की बात बेईमानी है. देश और देश के नेता उसी फार्मूले से चुनाव लड़ेंगे और जीतेंगे जिस फार्मूले पर अब तक वो चलते आए हैं और उन्होंने विजय हासिल की है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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