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पाकिस्‍तान चुनाव से भारत को उम्‍मीद नहीं रखना चाहिए

    • अरविंद मिश्रा
    • Updated: 07 जुलाई, 2018 03:47 PM
  • 07 जुलाई, 2018 03:47 PM
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71 साल के इतिहास में पाकिस्तान का कोई भी प्रधानमंत्री किसी ना किसी कारण से अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया. कभी सैन्य तख्तापलट के कारण से तो कभी भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण से उसे सत्ता से बेदखल होना पड़ा है.

भारी राजनीतिक अस्थिरता वाले देश पाकिस्तान में 25 जुलाई को 15वें आम चुनाव के लिए मतदान होगा. लेकिन क्या यह आम चुनाव पाकिस्‍तान को राजनीतिक स्थिरता प्रदान कर पाएगा? क्या पाकिस्तान की चुनी हुई सरकार पांच साल तक चल पाएगी? चाहे प्रधानमंत्री कोई भी बने, क्या वो अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा कर पाएगा? सवाल इसलिए क्योंकि अभी तक के 71 साल के इतिहास में पाकिस्तान का कोई भी प्रधानमंत्री किसी ना किसी कारण से अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया. कभी सैन्य तख्तापलट के कारण से तो कभी भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण से उसे सत्ता से बेदखल होना पड़ा है.

ऐसे देश का पड़ोसी होने के कारण क्‍या हमें पाकिस्‍तान चुनाव से कोई उम्‍मीद रखनी चाहिए ?

पाकिस्तान में 25 जुलाई को 15वें आम चुनाव के लिए मतदान होगा

सैन्य तख्तापलट-

पाकिस्‍तान में अब तक चार बार सैन्य तख्तापलट हो चुका है और वजह साफ है-  राजन‍ीतिक दलों और सेना के बीच सत्ता के लिए संघर्ष. पाकिस्तान में सत्ता के लिए सैन्य तख्तापलट की परम्परा की शुरुआत 1958 में हुई थी जब जनरल अयूब खान ने राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा से तख्तापलट कर सत्ता हथिया ली थी और खुद को राष्ट्रपति घोषित कर दिया था. उसके बाद 1969 में जनरल यह्या खान ने तख्तापलट कर अयूब खान को बेदखल कर दिया था. तीसरी बार 1978 में प्रधानमंत्री जुल्फीकार अली भुट्टो को जनरल जियाउल हक ने तख्ता पलट दिया था. आखिरी बार 1999 में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को बेदखल करके जनरल परवेज मुशर्रफ ने सत्ता हथिया ली थी.

भ्रष्टाचार-

अब बात भ्रष्टाचार की. पाकिस्तान में भ्रष्टाचार कोई नई बात नहीं है और इसके आरोप में कई हस्तियों को अपने पद से हाथ भी धोना पड़ा. मसलन- नवाज शरीफ, परवेज मुशर्रफ, आसिफ अली...

भारी राजनीतिक अस्थिरता वाले देश पाकिस्तान में 25 जुलाई को 15वें आम चुनाव के लिए मतदान होगा. लेकिन क्या यह आम चुनाव पाकिस्‍तान को राजनीतिक स्थिरता प्रदान कर पाएगा? क्या पाकिस्तान की चुनी हुई सरकार पांच साल तक चल पाएगी? चाहे प्रधानमंत्री कोई भी बने, क्या वो अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा कर पाएगा? सवाल इसलिए क्योंकि अभी तक के 71 साल के इतिहास में पाकिस्तान का कोई भी प्रधानमंत्री किसी ना किसी कारण से अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया. कभी सैन्य तख्तापलट के कारण से तो कभी भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण से उसे सत्ता से बेदखल होना पड़ा है.

ऐसे देश का पड़ोसी होने के कारण क्‍या हमें पाकिस्‍तान चुनाव से कोई उम्‍मीद रखनी चाहिए ?

पाकिस्तान में 25 जुलाई को 15वें आम चुनाव के लिए मतदान होगा

सैन्य तख्तापलट-

पाकिस्‍तान में अब तक चार बार सैन्य तख्तापलट हो चुका है और वजह साफ है-  राजन‍ीतिक दलों और सेना के बीच सत्ता के लिए संघर्ष. पाकिस्तान में सत्ता के लिए सैन्य तख्तापलट की परम्परा की शुरुआत 1958 में हुई थी जब जनरल अयूब खान ने राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा से तख्तापलट कर सत्ता हथिया ली थी और खुद को राष्ट्रपति घोषित कर दिया था. उसके बाद 1969 में जनरल यह्या खान ने तख्तापलट कर अयूब खान को बेदखल कर दिया था. तीसरी बार 1978 में प्रधानमंत्री जुल्फीकार अली भुट्टो को जनरल जियाउल हक ने तख्ता पलट दिया था. आखिरी बार 1999 में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को बेदखल करके जनरल परवेज मुशर्रफ ने सत्ता हथिया ली थी.

भ्रष्टाचार-

अब बात भ्रष्टाचार की. पाकिस्तान में भ्रष्टाचार कोई नई बात नहीं है और इसके आरोप में कई हस्तियों को अपने पद से हाथ भी धोना पड़ा. मसलन- नवाज शरीफ, परवेज मुशर्रफ, आसिफ अली जरदारी, और यूसुफ गिलानी को खासतौर से याद किया जाता है जब भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण इन्हें सत्ता से बेदखल होना पड़ा.

अस्थिर राजनीतिक पृष्ठभूमि-

पाकिस्तान को आजाद हुए 71 साल हो गए लेकिन भारत की तरह वहां कभी भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया सफल नहीं हुई. साल 1951 से ही वहां अशांति का दौर शुरू हुआ जब पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली की हत्या कर दी गई थी. उसके बाद महज 6 वर्षों में वहां 6 प्रधानमंत्री बनाए गए और बर्खास्त किए गए. अशांति का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि वहां इन सात दशकों में 13 बार सरकारें बनीं जिसमें 18 लोग 22 बार प्रधानमंत्री बने. यही नहीं 2007 में बेनज़ीर भुट्टो की भी गोली मार कर हत्या कर दी गई थी.

अब चूंकि वहां आम चुनाव कराया जा रहा है और कोई प्रधानमंत्री भी बनेगा लेकिन क्या वो अपने देश को राजनीतिक अस्थिरता से बाहर निकाल पाएगा. क्या कर्ज के बोझ के तले दबा पाकिस्तान आर्थिक स्थिति से उबर पाएगा? क्या वो आतंकवादियों के शरण देने वाले टैग से बाहर आ पाएगा या फिर उसके दंश से पीड़ित ही रहेगा? ये सारे सवालों का जवाब आने वाला वक़्त ही  देगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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