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कोरोना संकट के बीच जनता को विद्रोह के लिए उकसाना चिदंबरम की निर्लज्जता है!

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 01 मई, 2021 02:48 PM
  • 01 मई, 2021 02:48 PM
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कांग्रेस नेता चिदंबरम ने जनता से विद्रोह करने की बात तो कह दी, लेकिन वह ये बताना भूल गए कि आखिर किस सरकार के खिलाफ विद्रोह करना है? छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब में कांग्रेस की बहुमत की सरकार है. महाराष्ट्र और झारखंड में वह सरकार में सहयोगी दल की भूमिका में है. कमोबेश इन सभी राज्यों में कोरोना संक्रमण से जुड़ी भयावह खबरें सामने आ रही हैं.

कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बीच फैली अव्यवस्थाओं को लेकर केंद्र सरकार चौतरफा सवालों से घिरी हुई है. सुप्रीम कोर्ट से लेकर आम आदमी ने भी कोरोना संक्रमण की रोकथाम को लेकर देरी से किए जा रहे केंद्र सरकार के प्रयासों को कटघरे में खड़ा कर दिया है. कोविड-19 संक्रमण के इस आपातकाल में चिकित्सा सेवाओं के चरमराने, ऑक्सीजन की कमी, जीवनरक्षक दवाओं की अनुपलब्धता के बारे में सरकार से सवाल पूछना बहुत जरूरी है. लेकिन, इसके लिए जनता को विद्रोह के लिए नहीं उकसाया जा सकता है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने ऑक्सीजन और वैक्सीन की कमी पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन को खरी-खरी सुनाई. चिदंबरम ने अपनी बात कहते हुए कहा कि लोगों को ऐसी सरकार के खिलाफ विद्रोह करना चाहिए, जो भारत के सभी लोगों को मूर्ख समझ रही है. चिदंबरम एक बड़े राजनेता हैं और पूर्व की सरकारों में मंत्री भी रह चुके है. विपक्ष के बड़े नेता के तौर पर चिदंबरम का सरकार की आलोचना करना बिल्कुल भी गलत नहीं कहा जा सकता है. लेकिन, आलोचना के सहारे राजनीति को साधना और लोगों को विद्रोह के लिए उकसाना निर्लज्जता से भरा हुआ कथन ही कहा जाएगा.

कोरोना से एकसाथ मिलकर लड़ने का समय है

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने हाल ही में एक इंटरव्यू में ऑक्सीजन, वैक्सीन और अस्पतालों में बेड्स की कमी के मामले में केंद्र सरकार को जमकर आड़े हाथों लिया. उन्होंने कोरोना की दूसरी लहर से पहले कांग्रेस के नेताओं द्वारा दिए गए सुझावों की अनदेखी करने का आरोप भी केंद्र सरकार पर लगाया. उन्होंने हर तरीके से केंद्र सरकार को कोरोना महामारी को रोकने में विफल साबित किया, लेकिन लोगों को सरकार के खिलाफ विद्रोह के लिए नहीं उकसाया. ऐसे समय में जब लोग राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक वर्जनाओं को तोड़ते हुए एकसाथ आकर कोरोना संक्रमण से लड़ रहे हैं. एक-दूसरे की सहायता करने से पहले एकबार भी ये सोच नहीं रहे हैं कि फला शख्स कांग्रेसी या भाजपाई या सपा कार्यकर्ता है. लोगों ने कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ाई को अपनी लड़ाई मान लिया है, चिदंबरम का बयान निर्लज्जता की हदों को तोड़ने वाला है.

कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बीच फैली अव्यवस्थाओं को लेकर केंद्र सरकार चौतरफा सवालों से घिरी हुई है. सुप्रीम कोर्ट से लेकर आम आदमी ने भी कोरोना संक्रमण की रोकथाम को लेकर देरी से किए जा रहे केंद्र सरकार के प्रयासों को कटघरे में खड़ा कर दिया है. कोविड-19 संक्रमण के इस आपातकाल में चिकित्सा सेवाओं के चरमराने, ऑक्सीजन की कमी, जीवनरक्षक दवाओं की अनुपलब्धता के बारे में सरकार से सवाल पूछना बहुत जरूरी है. लेकिन, इसके लिए जनता को विद्रोह के लिए नहीं उकसाया जा सकता है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने ऑक्सीजन और वैक्सीन की कमी पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन को खरी-खरी सुनाई. चिदंबरम ने अपनी बात कहते हुए कहा कि लोगों को ऐसी सरकार के खिलाफ विद्रोह करना चाहिए, जो भारत के सभी लोगों को मूर्ख समझ रही है. चिदंबरम एक बड़े राजनेता हैं और पूर्व की सरकारों में मंत्री भी रह चुके है. विपक्ष के बड़े नेता के तौर पर चिदंबरम का सरकार की आलोचना करना बिल्कुल भी गलत नहीं कहा जा सकता है. लेकिन, आलोचना के सहारे राजनीति को साधना और लोगों को विद्रोह के लिए उकसाना निर्लज्जता से भरा हुआ कथन ही कहा जाएगा.

कोरोना से एकसाथ मिलकर लड़ने का समय है

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने हाल ही में एक इंटरव्यू में ऑक्सीजन, वैक्सीन और अस्पतालों में बेड्स की कमी के मामले में केंद्र सरकार को जमकर आड़े हाथों लिया. उन्होंने कोरोना की दूसरी लहर से पहले कांग्रेस के नेताओं द्वारा दिए गए सुझावों की अनदेखी करने का आरोप भी केंद्र सरकार पर लगाया. उन्होंने हर तरीके से केंद्र सरकार को कोरोना महामारी को रोकने में विफल साबित किया, लेकिन लोगों को सरकार के खिलाफ विद्रोह के लिए नहीं उकसाया. ऐसे समय में जब लोग राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक वर्जनाओं को तोड़ते हुए एकसाथ आकर कोरोना संक्रमण से लड़ रहे हैं. एक-दूसरे की सहायता करने से पहले एकबार भी ये सोच नहीं रहे हैं कि फला शख्स कांग्रेसी या भाजपाई या सपा कार्यकर्ता है. लोगों ने कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ाई को अपनी लड़ाई मान लिया है, चिदंबरम का बयान निर्लज्जता की हदों को तोड़ने वाला है.

कांग्रेस शासित राज्यों की जनता भी कर दे विद्रोह

कांग्रेस नेता चिदंबरम ने जनता से विद्रोह करने की बात तो कह दी, लेकिन वह ये बताना भूल गए कि आखिर किस सरकार के खिलाफ विद्रोह करना है? छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब में कांग्रेस की बहुमत की सरकार है. महाराष्ट्र और झारखंड में वह सरकार में सहयोगी दल की भूमिका में है. कमोबेश इन सभी राज्यों में कोरोना संक्रमण से जुड़ी भयावह खबरें सामने आ रही हैं. इन सभी राज्यों से भी वैसी ही खबरें दिखाई जा रही हैं, जिन पर चिदंबरम ने जनता से विद्रोह कर देने को कहा था. क्या इन राज्यों की जनता को प्रदेश सरकारों के खिलाफ विद्रोह करने की सलाह चिदंबरम देंगे? अगर नहीं, तो उनके इस बयान को गलत क्यों न ठहराया जाए? कोरोना महामारी से निपटने में केंद्र सरकार की विफलता पर सवाल उठाना जायज है. कोरोना संक्रमण से निपटने में राज्य सरकारों की अक्षमता की भी आलोचना की जानी चाहिए.

विद्रोह से कोरोना संक्रमण और इसकी वजह से हो रही मौतों में बदलाव नहीं होगा. विद्रोह से स्थितियां और भयावह हो जाएंगी.

कोरोना संकट भयावह, लेकिन इससे लड़ना ही होगा

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि देश एक अभूतपूर्व संकट में फंसा हुआ है. टीवी पर कोरोना संक्रमण से जुड़े झूठे वीडियो नहीं दिखाए जा रहे हैं. मौतों के आंकड़ों को बताती अखबारों की खबरें गलत नहीं हैं. ऑक्सीजन और बेड की कमी को लेकर डॉक्टर झूठ नहीं बोल रहे हैं. परिवार के सदस्य गलत बयान दे नहीं रहे हैं. जो कुछ भी दिखाया जा रहा है, वो गलत नहीं है. लेकिन, इसकी वजह से सरकार के खिलाफ विद्रोह करना कोई विकल्प नहीं है. चिदंबरम की गलतबयानी को किसी भी हाल में सही नहीं ठहराया जा सकता है. वह खुद भी इस बुरे समय में लोगों की मदद कर ही रहे होंगे. उसके बावजूद वह ऐसी बात कैसे कह सकते हैं? इस आपदाकाल में लोगों को एकसाथ मिलकर इस महामारी से लड़ना है, नाकि सरकार के खिलाफ.

चुनावी रैलियों और कुंभ की दोषी केवल सरकार नहीं

हर चीज का दोष सरकार पर डाल देना कहीं से भी उचित नहीं है. चुनावी रैलियों में सभी राजनीतिक दलों ने हिस्सा लिया था. कुंभ जैसी जगहों पर लोगों ने खुद की जान से ऊपर आस्था को रखा था, इन सभी चीजों का दोष सरकार पर नहीं डाला जा सकता है. केंद्र सरकार ने लोगों को मास्क लगाने, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने से मना नहीं किया. कोरोना संक्रमण की स्थिति बिगड़ने पर केंद्र सरकार की ओर से चीजों को दुरुस्त करने के हरसंभव कोशिशें की जा रही हैं. एक राजनेता होते हुए सरकार की आलोचना करने के लिए आप कुछ भी बोलकर यूं ही नहीं निकल सकते हैं. सबसे पुराने राजनीतिक दल का नेता होने के नाते आपको सरकार पर स्थितियों को सुधारने के लिए दबाव बनाना होगा, लेकिन यह दबाव जनता के विद्रोह से नहीं बन सकता है.

विद्रोह कोरोना का हल नही है

विद्रोह से कोरोना संक्रमण और इसकी वजह से हो रही मौतों में बदलाव नहीं होगा. विद्रोह से स्थितियां और भयावह हो जाएंगी. विद्रोह होने पर अराजकता का राज होगा और जो प्रयास इस संक्रमण को रोकने के लिए फिलहाल किए जा रहे हैं, उन पर ब्रेक लग जाएगा. विद्रोह से कांग्रेस का भला हो सकता है, लेकिन जनता का भला नहीं होगा. विद्रोह कोई 'जादू की छड़ी' नहीं है, जो घुमाते ही सारी चीजें सही हो जाएंगी.

किसी भी सरकार के कार्यकाल में विपक्ष की भूमिका सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होती है. कांग्रेस के भावी अध्यक्ष राहुल गांधी ने ऑक्सीजन से लेकर वैक्सीन तक हर मामले पर केंद्र सरकार की नीतियों की आलोचना की है. पिछले साल लॉकडाउन लगाने पर भी उन्होंने सवाल उठाए थे. लेकिन, वह लगातार सरकार के साथ सहयोग करते हुए काम करने की बात कहते रहे हैं. इस आपात स्थिति में हम सभी को एकसाथ मिलकर कोरोना संक्रमण से लड़ना है. भविष्य में चुनाव होंगे और जनता अपना फैसला सुना देगी, लेकिन विद्रोह कहीं से भी इस समस्या का हल नजर नहीं आता है. पी. चिदंबरम ने भावातिरेक में जो कहा है, वह निर्लज्जता की ओर ही इशारा करता है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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