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World Sleep Day : जहां जागना था वहां 'सो' गए, सो अब रात में नींद नहीं आती

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 15 मार्च, 2019 09:20 PM
  • 15 मार्च, 2019 09:20 PM
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इससे पहले के हम हमेशा के लिए sleepless हो जाएं आइये World Sleep Day पर उन कारणों पर गौर किया जाए जिनकी वजह से हमें सोने बल्कि सही समय पर सोने में भारी दुश्वारियों का सामना करना पड़ता है.

दुनिया भर के ये डे, वो डे के बीच 15 मार्च को World Sleep Day के तौर पर जाना जाता है. यानी 15 मार्च एक ऐसा दिन है जो पूरी तरह आपकी नींद को समर्पित है. बात नींद की चल रही है तो हमारे लिए संसार भर के डॉक्टर्स और हेल्थ एक्सपर्ट द्वारा दी गई वैधानिक चेतावनी को भी जान लेना बहुत जरूरी है. बड़े-बड़े मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल्स के डॉक्टर्स यही कहते हुए दुबले हुए जा रहे हैं कि व्यक्ति को टाइम पर सोना चाहिए और कम से कम 8 घंटे की नींद लेनी चाहिए. मगर हाय रे मज़बूरी! एक आम आदमी चाह कर भी टाइम पर नहीं सो सकता. और उन जगहों पर सोता है जहां नहीं सोना चाहिए.

आज हमारे बीच ऐसी लोगों की एक बड़ी संख्या है जो अपनी जीवनशैली के चलते सही समय पर सो नहीं पाते

सवाल हो सकता है आखिर क्यों आज का आदमी सो नहीं पा रहा है ? जवाब है टेक्नोलॉजी और सब कुछ जानने की चाह. दिए गए टारगेट को आधा या फिर चौथाई छोड़कर आज का आदमी दफ्तर से घर पहुंचता है और लोटा भर चाय पीने के बाद टीवी खोल कर बैठ जाता है. भले ही उसने अपने खेलने कूदने की उम्र में कभी खो-खो और कबड्डी जैसे खेल न खेले हों मगर साहब उसे टेन स्पोर्ट्स या ईएसपीएन पर मेनचेस्टर यूनाइटेड और एफसी बार्सिलोना का फुटबॉल मैच देखना है तो देखना है. मजाल है कोई उसे रोककर दिखा दे.

या फिर असल जिंदगी में जो लोग चूहे और छिपकली से डर जाते हैं वो नेट जियो वाइल्ड पर ये देखते हैं कि सर्वाइवल पर निकला अंग्रेज नंगे हाथों से कैसे जहरीला सांप पकड़ रहा है.कुछ न हो तो आदमी देश की सरकार को फेसबुक और ट्विटर पर गरियाने के लिए न्यूज़ खोलकर बैठ जाता है.

कुछ लोग, ऐसे लोगों से भी ज्यादा लीजेंड होते हैं. प्रायः इन्हें मल्टी टास्किंग कहा जाता है. ये लोग दो हाथों से दो सौ काम करते पाए जाते हैं. ये एक ही समय पर चाय भी पी रहे होते...

दुनिया भर के ये डे, वो डे के बीच 15 मार्च को World Sleep Day के तौर पर जाना जाता है. यानी 15 मार्च एक ऐसा दिन है जो पूरी तरह आपकी नींद को समर्पित है. बात नींद की चल रही है तो हमारे लिए संसार भर के डॉक्टर्स और हेल्थ एक्सपर्ट द्वारा दी गई वैधानिक चेतावनी को भी जान लेना बहुत जरूरी है. बड़े-बड़े मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल्स के डॉक्टर्स यही कहते हुए दुबले हुए जा रहे हैं कि व्यक्ति को टाइम पर सोना चाहिए और कम से कम 8 घंटे की नींद लेनी चाहिए. मगर हाय रे मज़बूरी! एक आम आदमी चाह कर भी टाइम पर नहीं सो सकता. और उन जगहों पर सोता है जहां नहीं सोना चाहिए.

आज हमारे बीच ऐसी लोगों की एक बड़ी संख्या है जो अपनी जीवनशैली के चलते सही समय पर सो नहीं पाते

सवाल हो सकता है आखिर क्यों आज का आदमी सो नहीं पा रहा है ? जवाब है टेक्नोलॉजी और सब कुछ जानने की चाह. दिए गए टारगेट को आधा या फिर चौथाई छोड़कर आज का आदमी दफ्तर से घर पहुंचता है और लोटा भर चाय पीने के बाद टीवी खोल कर बैठ जाता है. भले ही उसने अपने खेलने कूदने की उम्र में कभी खो-खो और कबड्डी जैसे खेल न खेले हों मगर साहब उसे टेन स्पोर्ट्स या ईएसपीएन पर मेनचेस्टर यूनाइटेड और एफसी बार्सिलोना का फुटबॉल मैच देखना है तो देखना है. मजाल है कोई उसे रोककर दिखा दे.

या फिर असल जिंदगी में जो लोग चूहे और छिपकली से डर जाते हैं वो नेट जियो वाइल्ड पर ये देखते हैं कि सर्वाइवल पर निकला अंग्रेज नंगे हाथों से कैसे जहरीला सांप पकड़ रहा है.कुछ न हो तो आदमी देश की सरकार को फेसबुक और ट्विटर पर गरियाने के लिए न्यूज़ खोलकर बैठ जाता है.

कुछ लोग, ऐसे लोगों से भी ज्यादा लीजेंड होते हैं. प्रायः इन्हें मल्टी टास्किंग कहा जाता है. ये लोग दो हाथों से दो सौ काम करते पाए जाते हैं. ये एक ही समय पर चाय भी पी रहे होते हैं. मैगी भी खाते हैं चैनल बदल बदल कर फुटबॉल, क्रिकेट, रेसलिंग, न्यूज़, जंगल, झाड़ी नदी नाले, हिस्ट्री, जियोग्राफी सब देखते हैं. इनके हाथ में मोबाइल होता है और इन सब कामों के अलावा ये उसमें पबजी या फिर एनएफसी और काउंटर स्ट्राइक जैसे गेम भी खेलते हैं.

हमारे सही समय पर न सोने की एक बड़ी वजह टेक्नोलॉजी भी है

अब साहब जब आदमी इतने अतरंगी काम कर रहा हो तो फिर उसे नींद कैसे आएगी? आदमी देर रात सोएगा और सुबह न चाहते हुए भी अलार्म 'ट्रिंग-ट्रिंग' की आवाज के साथ उसे उठा देगा. आदमी उठेगा. जल्दी-जल्दी  आधा अधूरा तैयार होगा और दफ्तर या फिर अपने काम के लिए निकल जाएगा. ध्यान रहे इस निकले हुए आदमी की नींद अभी पूरी नहीं हुई है. ये उन स्थानों पर सोने का प्रयास करेगा जहां पर सोना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है.

प्रायः हम अपने आस पास ऐसे बहुत से लोग देख चुके हैं जो मेट्रो, बस, ट्रेन, प्लेन में बैठे बैठे और कभी कभी तो खड़े-खड़े सो जाते हैं. सोते वक़्त इनके मुंह से निकली लार या फिर सन्नाटे की सनसनी को चीरते इनके खर्राटे इस बात की गवाही खुद दे देते हैं कि अगला बरसों का जागा है और इसे सोने की जरूरत है. माना जाता है कि ऐसा हमारे साथ सिर्फ इसलिए हो रहा है क्योंकि हमारी लाइफ स्टाइल डिस्टर्ब है और हम अपने जीवन में संतुलन बनाने में असमर्थ हैं.

तो भइया अब भी वक़्त है. घर पहुंचो खाना खाओ गर्मी हो तो एसी, कूलर पंखा और जो सर्दी हो तो ब्लोवर या हीटर जला के टाइम पर सो लिया करो. वरना एक आम आदमी यूं भी दुनिया भर के बिल पे कर रहा है, एक डार्क सर्किल हटाने और तारो ताजा दिखने वाली क्रीम के लिए भी करेगा.

इससे पहले के अगला  World Sleep Day आने पर पूरी तरह 'स्लीपलेस' हो जाओ. बदल लो अपनी आदतें. सुधर लो अपने आप को और हां याद रखना ये जो मेट्रो या बस में दूसरे के कन्धों पर सिर रखकर सोया जाता है न वो किसी को भी अच्छा नहीं लगता. 

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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