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हाथों पर कोड़े लगवाकर छत्तीसगढ़ सीएम अंधविश्वास को बढ़ावा ही दे रहे हैं!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 06 नवम्बर, 2021 10:23 PM
  • 06 नवम्बर, 2021 10:20 PM
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छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का एक वीडियो वायरल हुआ है.यदि उस वीडियो का अवलोकन किया जाए तो ये कहना कहीं से भी गलत न होगा कि भूपेश बघेल न केवल अंधविश्वास को अंजाम दे रहे हैं बल्कि अपनी गतिविधियों से इसे दूसरों के बीच प्रचारित और प्रसारित भी करते नजर आ रहे हैं.

भारत आस्थाओं और मान्यताओं का देश है. जहां अंधविश्वासों की भरमार है. कई बार हम ऐसा बहुत कुछ देखते सुनते है जिसके पीछे कोई लॉजिक नहीं होता. जो व्यक्ति को अचरज में डालता है साथ ही जो इस बात की तस्दीख भी कर देता है कि भले ही आज हम विज्ञान और आधुनिक होने की बड़ी बड़ी बातें क्यों न कर रहे हों लेकिन अंदर से आज भी हम पहले जैसे ही हैं. प्रायः ऐसे विचार मन में आते रहते हैं मगर इनको बल तब मिलता है जब हम किसी किसी बड़े आदमी को, जानी मानी हस्ती को , जनसेवक को या फिर किसी राज्य के मुख्यमंत्री को सिर्फ इसलिए कोड़े खाते देखते हैं क्यों कि उसे एक पुरानी मान्यता का पालन करना है. इस बात को जानकर हैरत में पड़ने की कोई जरूरत नहीं है. हमारा सीधा इशारा छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की तरफ है जिनका दिवाली के मद्देनजर एक वीडियो वायरल हुआ है और यदि उस वीडियो का अवलोकन किया जाए तो ये कहना कहीं से भी गलत न होगा कि भूपेश बघेल न केवल अंधविश्वास को अंजाम दे रहे हैं बल्कि अपनी गतिविधियों से इसे दूसरों के बीच प्रचारित और प्रसारित भी करते नजर आ रहे हैं.

दिवाली पर ग्रामीण से अपने को कोड़े मरवाते छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल

दरअसल बात कुछ यूं है कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल हर साल प्रदेश की सुख, समृद्धि, मंगल कामना और विघ्नों के नाश के लिए कुश से बने सोटे का प्रहार सहते हैं. अभी बीते दिन ही उन्होंने दुर्ग के जंजगिरी में यह परंपरा निभाई. वीडियो इंटरनेट पर वायरल है और इस वीडियो के तहत बताया यही जा रहा है कि यहां के एक ग्रामीण बीरेंद्र ठाकुर ने उन पर सोटे का प्रहार किया. बीरेंद्र से कोड़े खाने के बाद ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने गोवर्धन और गोवंश की पूजा की.

कोड़े से पिटाई के बाद मुख्यमंत्री ने ग्रामीणों के सामने अपनी बात रखी और कहा कि...

भारत आस्थाओं और मान्यताओं का देश है. जहां अंधविश्वासों की भरमार है. कई बार हम ऐसा बहुत कुछ देखते सुनते है जिसके पीछे कोई लॉजिक नहीं होता. जो व्यक्ति को अचरज में डालता है साथ ही जो इस बात की तस्दीख भी कर देता है कि भले ही आज हम विज्ञान और आधुनिक होने की बड़ी बड़ी बातें क्यों न कर रहे हों लेकिन अंदर से आज भी हम पहले जैसे ही हैं. प्रायः ऐसे विचार मन में आते रहते हैं मगर इनको बल तब मिलता है जब हम किसी किसी बड़े आदमी को, जानी मानी हस्ती को , जनसेवक को या फिर किसी राज्य के मुख्यमंत्री को सिर्फ इसलिए कोड़े खाते देखते हैं क्यों कि उसे एक पुरानी मान्यता का पालन करना है. इस बात को जानकर हैरत में पड़ने की कोई जरूरत नहीं है. हमारा सीधा इशारा छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की तरफ है जिनका दिवाली के मद्देनजर एक वीडियो वायरल हुआ है और यदि उस वीडियो का अवलोकन किया जाए तो ये कहना कहीं से भी गलत न होगा कि भूपेश बघेल न केवल अंधविश्वास को अंजाम दे रहे हैं बल्कि अपनी गतिविधियों से इसे दूसरों के बीच प्रचारित और प्रसारित भी करते नजर आ रहे हैं.

दिवाली पर ग्रामीण से अपने को कोड़े मरवाते छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल

दरअसल बात कुछ यूं है कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल हर साल प्रदेश की सुख, समृद्धि, मंगल कामना और विघ्नों के नाश के लिए कुश से बने सोटे का प्रहार सहते हैं. अभी बीते दिन ही उन्होंने दुर्ग के जंजगिरी में यह परंपरा निभाई. वीडियो इंटरनेट पर वायरल है और इस वीडियो के तहत बताया यही जा रहा है कि यहां के एक ग्रामीण बीरेंद्र ठाकुर ने उन पर सोटे का प्रहार किया. बीरेंद्र से कोड़े खाने के बाद ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने गोवर्धन और गोवंश की पूजा की.

कोड़े से पिटाई के बाद मुख्यमंत्री ने ग्रामीणों के सामने अपनी बात रखी और कहा कि प्रत्येक वर्ष गांव के भरोसा ठाकुर नाम के व्यक्ति इस परंपरा का पालन करते थे और उनपर प्रहार करते थे. अब यह परंपरा उनके पुत्र बीरेंद्र ठाकुर द्वारा निभाई जा रही है. वहीं गोवंश की पूजा पर भी भूपेश बघेल ने अपने मन की बात की है. ग्रामीणों से चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि गोवर्धन पूजा गोवंश की समृद्धि की परंपरा की पूजा है.

बघेल का मानना है कि जितना समृद्ध गोवंश होगा उतनी ही हमारी तरक्की होगी. इसी वजह से ग्रामीण क्षेत्रों में गोवर्धन पूजा इतनी लोकप्रिय होती है. लोग सालभर इसकी प्रतीक्षा करते है. गोवर्धन और गोवंश पूजा पर भूपेश बघेल ने कहा कि एक तरह से यह पूजा गोवंश के प्रति हमारी कृतज्ञता का प्रतीक भी है. वहीं संस्कृति की दुहाई देते हुए बघेल ने ये भी कहा कि गोवर्धन पूजा लोक के उत्सव की परंपरा है. हमारे पूर्वजों ने बहुत सुंदर छोटी-छोटी परंपराओं का सृजन किया और इन परंपराओं के माध्यम से हमारे जीवन में उल्लास भरता है.

मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर कहा कि अपनी माटी की अस्मिता को सहेजना उसका संवर्धन करना हम सब का कर्तव्य है. इसके बाद भूपेश बघेल ने परंपराओं का जिक्र किया और कहा कि इन्हें सहेजना हमारा परम कर्तव्य है. भूपेश बघेल का मानना है कि हमें अपनी सांस्कृतिक परंपराओं को अपनी व्यवस्था में शीर्षस्थ स्थान देना होगा क्योंकि परंपरा से हमारा अस्तित्व भी है, परंपरा से हमारे मूल्य भी हैं.

बेशक एक मुख्यमंत्री के रूप में भूपेश बघेल ने बहुत अच्छी बातें की हैं मगर जिस तरह उन्होंने कोड़े खाए हैं सवाल ये है कि आखिर कैसे ये किसी राज्य की उन्नति और विकास को, वहां की कृषि व्यवस्था को प्रभावित करता है. अच्छी बात है कि मुख्यमंत्री राज्य के लोगों के लिए, वहां की संस्कृति और उसके संरक्षण के लिए गंभीर है मगर खुद को कोड़े मरवाना फिर उस व्यक्ति को जिसने पूरी ताकत से कोड़े जड़े गले लगाना, हंसना-मुस्कुराना सोच और कल्पना दोनों के ही परे है.

कहना गलत नहीं है कि भावों में बहक़र भूपेश बघेल एक ऐसी परंपरा का पालन कर रहे हैं जिसका आज के समय में शायद ही कोई औचित्य हो. यानी वो सीधे सीधे अन्धविश्वास को बढ़ावा दे रहे हैं. हम फिर इस बात को कह रहे हैं कि संस्कृति का संरक्षण कर भूपेश बघेल ने एक नेता से पहले एक आदर्श नागरिक होने का परिचय दिया है लेकिन जिस तरह उन्होंने कोड़े खाए हैं उसकी आलोचना इसलिए भी होनी चाहिए क्योंकि वैज्ञानिक रूप से इसे कहीं से भी जस्टिफाई नहीं किया जा सकता है.

ध्यान रहे भारत, नए भारत की तरफ बहुत तेजी से बढ़ रहा है. ऐसे में चाहे वो छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल हों या कोई और. जो कोई भी ऐसी गतिविधियों को ऐसे अंधविश्वासों को बढ़ावा दे रहा है वो प्रत्यक्ष या परोसख़ रूप से देश को दस साल पीछे ले जा रहा है. अंत में बस इतना ही कि संस्कृति के संरक्षण के तहत भूपेश बघेल के इरादे तो नेक हैं लेकिन उनका तरीका गलत है और यदि विरोध हो रहा है तो वो उनके इरादे का नहीं बल्कि तरीके का हो रहा है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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