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ब्रांड मोदी के लिए उपचुनावों में बीजेपी की हार 2022 से पहले खतरे की घंटी है

    • आईचौक
    • Updated: 04 नवम्बर, 2021 06:39 PM
  • 04 नवम्बर, 2021 06:39 PM
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उपचुनावों में मिली बुरी शिकस्त को बीजेपी नजरअंदाज कर सकती है, लेकिन तभी जब वो ब्रांड मोदी (Brand Modi) के भरोसे ही न बैठी हो - और अगर वास्तव में ऐसा ही है तो ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के साथ साथ राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को भी खुशी से उछलना चाहिये.

उपचुनावों के नतीजे किसी राष्ट्रीय पार्टी के लिए खास मायने नहीं रखते. भारतीय जनता पार्टी या कांग्रेस जैसे राजनीतिक दल के लिए ये न तो हद से ज्यादा खुशी देने वाले न ही निराश करने वाले, लेकिन अभी ये अलग ही इशारे कर रहे हैं.

अगर अमित शाह लखनऊ जाकर योगी आदित्यनाथ के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट नहीं मांगे होते तो ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के पश्चिम बंगाल ही नहीं हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में हुए उपचुनावों को लेकर भी राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की कांग्रेस के दिये टेंशन से बीजेपी को शायद ही कोई परवाह होती - हफ्ते भर पहले ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह यूपी की एक रैली में लोगों से कह रहे थे कि अगर वे चाहते हैं कि 2024 में नरेंद्र मोदी फिर से देश के प्रधानमंत्री बनें तो योगी आदित्यनाथ की जीत सुनिश्चित करनी ही होगी.

अगर अमित शाह के मुताबिक, कानून-व्यवस्था की स्थिति के मामले में उत्तर प्रदेश अगर देश में नंबर 1 है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुताबिक, कोरोना संकट के दौरान योगी आदित्यनाथ की सरकार ने अगर बेहतरीन काम किया - और अगर राम मंदिर निर्माण में भी योगी आदित्यनाथ की महत्वपूर्ण भूमिका है ही तो भला अमित शाह को उनकी सत्ता में वापसी पर भरोसा क्यों नहीं है - ये वे सवाल हैं जो कम से कम तीन राज्यों में हुए उपचुनावों के नतीजों को लेकर चिंता का माहौल बनाने के लिए पर्याप्त प्रतीत हो रहे हैं.

अव्वल तो शुभेंदु अधिकारी और सुकांता मजूमदार को फिक्र होनी चाहिये कि कैसे बीजेपी उम्मीदवारों की चार-चार सीटों पर इतनी बुरी हार हुई? मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को परेशान होना चाहिये कि बीजेपी हिमाचल प्रदेश में खाता क्यों नहीं खोल पायी? मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई को चिंतित होना चाहिये कि कर्नाटक में कैसे उसके गढ़ में ही बीजेपी उम्मीदवार को हार...

उपचुनावों के नतीजे किसी राष्ट्रीय पार्टी के लिए खास मायने नहीं रखते. भारतीय जनता पार्टी या कांग्रेस जैसे राजनीतिक दल के लिए ये न तो हद से ज्यादा खुशी देने वाले न ही निराश करने वाले, लेकिन अभी ये अलग ही इशारे कर रहे हैं.

अगर अमित शाह लखनऊ जाकर योगी आदित्यनाथ के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट नहीं मांगे होते तो ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के पश्चिम बंगाल ही नहीं हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में हुए उपचुनावों को लेकर भी राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की कांग्रेस के दिये टेंशन से बीजेपी को शायद ही कोई परवाह होती - हफ्ते भर पहले ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह यूपी की एक रैली में लोगों से कह रहे थे कि अगर वे चाहते हैं कि 2024 में नरेंद्र मोदी फिर से देश के प्रधानमंत्री बनें तो योगी आदित्यनाथ की जीत सुनिश्चित करनी ही होगी.

अगर अमित शाह के मुताबिक, कानून-व्यवस्था की स्थिति के मामले में उत्तर प्रदेश अगर देश में नंबर 1 है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुताबिक, कोरोना संकट के दौरान योगी आदित्यनाथ की सरकार ने अगर बेहतरीन काम किया - और अगर राम मंदिर निर्माण में भी योगी आदित्यनाथ की महत्वपूर्ण भूमिका है ही तो भला अमित शाह को उनकी सत्ता में वापसी पर भरोसा क्यों नहीं है - ये वे सवाल हैं जो कम से कम तीन राज्यों में हुए उपचुनावों के नतीजों को लेकर चिंता का माहौल बनाने के लिए पर्याप्त प्रतीत हो रहे हैं.

अव्वल तो शुभेंदु अधिकारी और सुकांता मजूमदार को फिक्र होनी चाहिये कि कैसे बीजेपी उम्मीदवारों की चार-चार सीटों पर इतनी बुरी हार हुई? मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को परेशान होना चाहिये कि बीजेपी हिमाचल प्रदेश में खाता क्यों नहीं खोल पायी? मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई को चिंतित होना चाहिये कि कर्नाटक में कैसे उसके गढ़ में ही बीजेपी उम्मीदवार को हार का मुंह देखना पड़ा?

ये सब कहीं से भी अमित शाह या बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए परेशानी का सबब नहीं होता - अगर बीजेपी उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में ब्रांड मोदी (Brand Modi) के जरिये अगले साल होने जा रहे विधानसभा चुनाव में नहीं उतर रही होती, लेकिन लखनऊ रैली में अमित शाह के भाषण में जो भय का संकेत मिला है वही ऐसी आशंकाओं को जन्म दे रहा है.

यूपी सहित पांच राज्यों में अगले साल के शुरू में होने जा रहे विधानसभा चुनावों से पहले के किसी आखिरी चुनाव में बेशक बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टियों को एक 16 विधानसभा सीटों और एक लोकसभा सीट पर जीत मिली हो, लेकिन 14 विधानसभा और 2 लोक सभा सीटों का उसके राजनीतिक विरोधियों के खाते में चले जाना उसके लिए खतरे की ही घंटी है.

बीजेपी के लिए बड़ा झटका है

पश्चिम बंगाल, हिमाचल और कर्नाटक में हुए उपचुनावों में बीजेपी को वैसा ही झटका लगा है, जैसा बिहार में लालू यादव को - 2022 की शुरुआत में होने जा रहे विधानसभा चुनावों से उपचुनावों के नतीजों का कोई सीधा लेना-देना तो नहीं है, लेकिन नतीजे स्पष्ट तौर पर जता रहे हैं कि मोदी-शाह की बीजेपी में सब कुछ ठीक ठाक तो नहीं ही चल रहा है. अभी अभी हुए उपचुनाव न सिर्फ इस साल के लिए आखिरी हैं, बल्कि अगले विधानसभा चुनावों से पहले किसी भी पार्टी को कहीं और से कोई फीडबैक नहीं मिलने वाला है.

पश्चिम बंगाल के नतीजों को थोड़ी देर के लिए अलग रख कर देखें तो हिमाचल प्रदेश का रिजल्ट ऐसा सिरदर्द है जो खुद भले ही बहुत परेशान न करे, लेकिन किसी बड़ी बीमारी की आशंका जरूर जाहिर करता है. हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होंगे तो 2022 में ही लेकिन साल के आखिर में, गुजरात चुनाव के साथ.

उपचुनावों के नतीजे ममता बनर्जी और राहुल गांधी की पार्टियों के जोश बढ़ाने वाले हैं और मोदी-शाह के लिए चिंता की बात बस इतनी ही है.

हिमाचल प्रदेश की ही तरह बीजेपी की फिक्र बढ़ाने वाली खबर कर्नाटक से आयी है - ये ध्यान देने की बात इसलिए भी है क्योंकि दोनों ही राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं. संभव है आने वाले दिनों में बीजेपी दोनों ही राज्यों में नेतृत्व को बनाये रखने को लेकर नये सिरे से विचार करे. कर्नाटक में तो ये काम कुछ दिन पहले ही हुआ है.

कर्नाटक में विधानसभा के चुनाव 2023 में होंगे. कहने का मतलब ये है कि अभी वहां चुनाव होने में लंबा वक्त बचा हुआ है. दक्षिणी राज्यों में बीजेपी को सत्ता का स्वाद चखाने वाले बीएस येदियुरप्पा की बढ़ती उम्र की वजह से बीजेपी नेतृत्व ने उत्तराखंड और गुजरात जैसा प्रयोग कर्नाटक में भी किया - और बासवराज बोम्मई मुख्यमंत्री बनाये गये.

लेकिन जिस तरीके से बासवराज बोम्मई के अपने इलाके में ही कांग्रेस ने उपचुनाव में जीत हासिल की है, उनके सुरक्षित भविष्य पर आशंकाओं के बादल मंडराने लगे हैं. कांग्रेस उम्मीदवार श्रीनिवास माने की बीजेपी उम्मीदवार पर 30 हजार से ज्यादा वोटों से जीत जता रही है कि बीजेपी नेतृत्व आने वाले चुनाव को लेकर कर्नाटक में एक बार फिर से मुख्यमंत्री बदलने पर विचार जरूर करने जा रहा है. ऐसा तो नहीं हुआ है कि कांग्रेस ने सिंदगी सीट बीजेपी से ही हथिया ली हो क्योंकि पहले वो पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी की पार्टी जेडीएस के पास हुआ करती थी.

हिमाचल प्रदेश में बीजेपी की ही सरकार है और जयराम ठाकुर मुख्यमंत्री हैं, जबकि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी अभी छह महीने पहले ही मोदी-शाह को शिकस्त देकर मुख्यमंत्री बनी हैं - और कुछ ही दिन पहले भवानीपुर उपचुनाव में भी बीजेपी उम्मीदवार प्रियंका टिबरेवाल को हराया है.

हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने राहुल गांधी सहित सोनिया गांधी और बाकी कांग्रेस नेताओं को खुशी मनाने का बड़ा मौका दे दिया है, खासकर तब जबकि पड़ोसी पंजाब में भी कांग्रेस रोजाना ही नयी नयी मुश्किलों से जूझ रही है.

2019 आम चुनाव में जो सीट बीजेपी 4 लाख से ज्यादा वोटों से जीती हो, वो भला उसी वीरभद्र सिंह की पत्नी के हाथों कैसे गवां बैठी जिस पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर 2017 में कांग्रेस को हरा कर सत्ता हासिल की थी. कांग्रेस उम्मीदवार प्रतिभा सिंह ने मंडी लोक सभा सीट पर 7, 490 वोटों से जीत हासिल की है.

मंडी संसदीय सीट पर बीजेपी की हार भी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के लिए बिलकुल वैसी ही है जैसी कर्नाटक की सिंदगी सीट का बीजेपी के हाथ से फिसल जाना मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई के लिए. हिमाचल प्रदेश में मंडी के अलावा कांग्रेस ने जुब्बल-कोटखाई विधानसभा सीट तो बीजेपी से झटक ही लिया, अर्की और फतेहपुर विधानसभा सीटें भी अपने पास कायम रखा है.

देखा जाये तो हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने बीजेपी को बिलकुल वैसी ही शिकस्त दी है, जैसी पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने - दोनों राज्यों में सत्ता समीकरण अलग अलग हैं, लेकिन उपचुनावों के नतीजे एक जैसे आये हैं.

बीजेपी के सामने आने वाली चुनौतियों का संकेत है

तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी ने छह महीने बाद ही बीजेपी को दोबारा वैसा ही झटका दिया है, जैसा पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में दिया था. भवानीपुर उपचुनाव जीतने के बाद ममता बनर्जी अपने अखिल भारतीय मिशन में जुट चुकी हैं. अभी अभी ममता बनर्जी गोवा के तीन दिन के दौरे पर थीं - और तृणमूल कांग्रेस की तरफ से संकेत दिये गये हैं कि जल्द ही वो उत्तर प्रदेश का भी रुख करने वाली हैं, जहां बीजेपी सत्ता में वापसी के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाये हुए है.

पश्चिम बंगाल की चार विधानसभा सीटों दिनहाटा, शांतिपुर, खरदाह और गोसाबा में हुए उपचुनावों के नतीजे बता रहे हैं कि ममता बनर्जी के उम्मीदवारों ने बीजेपी के अरमानों को जैसे जमींदोज कर दिया हो. दिनहाटा और शांतिपुर में उपचुनाव इसलिए कराने पड़े क्योंकि चुनाव जीतने वाले बीजेपी उम्मीदवारों ने विधानसभा की सदस्यता नहीं ली. अगर वे ऐसा करते तो उनकी लोक सभा की सदस्यता चली जाती.

दिनहाटा से चुनाव जीतने वाले केंद्रीय राज्य मंत्री निशीथ प्रमाणिक ने खुद ही चुनाव मुहिम की कमान भी संभाली थी, लेकिन अब इससे अजीब बात क्या होगी कि जो चुनाव वो महज 57 वोटों से जीते थे उसी सीट पर हुआ उपचुनाव तृणमूल कांग्रेस उम्मीदवार ने 1.64 लाख वोट से जीत लिया है. बाकी सीटों पर भी टीएमसी उम्मीदवारों ने जीत का फासला बड़ा ही बरकरार रखा है.

अगर ये सब ब्रांड मोदी के लिए निगेटिव मार्किंग कैटेगरी में आता है तो दादरा और नगर हवेली लोक सभा उपचुनाव का नतीजा भी बीजेपी की फिक्र बढ़ाने वाला ही है. इस सीट पर शिवसेना की कलाबेन डेलकर ने बीजेपी उम्मीदवार को 51,269 वोटों से शिकस्त दी है. कलाबेन डेलकर निर्दलीय सांसद रहे मोहन डेलकर की पत्नी हैं.

दादरा और नगर हवेली लोक सभा उपचुनाव की जीत के साथ ही शिवसेना नेता दिल्ली की तरफ लंबी छलांग बताने लगे हैं. बताते हैं कि ये चुनाव संजय राउत की निगरानी में ही लड़ा गया. जीत की पूरी पटकथा भी उनकी ही लिखी बतायी जाती है.

शिवसेना की स्थापना से लेकर अब तक ये पहला मौका है जब महाराष्ट्र से बाहर भी शिवसेना का एक सांसद लोक सभा पहुंचा है. 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ कर कांग्रेस और एनसीपी के सहयोग से उद्धव ठाकरे के सरकार बना लेने के बाद शिवसेना की तरफ से बीजेपी नेतृत्व को ये नया और बड़ा झटका है.

राजस्थान में हुए दो सीटों पर उपचुनाव में तो बीजेपी की दाल नहीं ही गली, मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री रहते भी कांग्रेस ने 32 साल बाद रायगांव विधानसभा सीट जीत ली है. राजस्थान में बीजेपी धारियावाड़ में तीसरे स्थान तो वल्लभगढ़ में चौथे स्थान पर रही.

इंडियन नेशनल लोकदल नेता अभय सिंह चौटाला ने तीन कृषि कानूनों के विरोध में विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन उपचुनाव में बीजेपी के ही उम्मीदवार को फिर से हरा कर अपनी सीट बरकरार रखी है. हरियाणा में बीजेपी ने दुष्यंत चौटाला की पार्टी से गठबंधन कर सरकार बनायी है और मुख्मंत्री मनोहर लाल खट्टर हैं.

अगर इन नतीजों से सबक न लेकर बीजेपी आने वाले चुनावों में स्थानीय मुद्दों पर ध्यान न देकर यूपी की तरह ही श्मशान-कब्रिस्तान करते हुए राम मंदिर के नाम पर और पाकिस्तान का भय दिखाकर वोट मांगती है - या फिर ब्रांड मोदी के भरोसे बैठी रहती है तो पश्चिम बंगाल जैसा हाल होने से कोई नहीं रोक सकता.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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